भचक्र की पांचवी राशि सिंह राशि है,लगन में इस राशि का प्रभाव बहुत ही प्रभाव वाला माना जाता है,यह अपनी औकात के अनुसार जातक के अन्दर गुण देती है,जैसे जातक का स्वभाव बिलकुल शेर की आदत से जुडा होता है,जातक जो खायेगा वही खायेगा,जातक जहां जायेगा वहां जायेगा,जातक के लिये कोई बन्धन देने वाली बात को अगर सामने लाया जायेगा तो वह बन्धन की बात को करने वाले या बन्धन का कारण पैदा करने वाले के लिये आफ़त को देने वाला बन जायेगा। इस राशि के स्वभाव के अनुसार वह एक सीमा में अपने को बान्धने के लिये मजबूर हो जाता है,वह अपने परिवार यानी माता पिता से तभी तक सम्बन्ध रखता है जब तक माता पिता के द्वारा वह समर्थ नही हो जाता है,अक्सर जातक को माता के प्रति सहानुभूति अधिक होती है लेकिन पत्नी के आने के बाद माता से दूरिया बढ जाती है पिता को केवल पिता की शक्ति के अनुसार ही जातक मानता है जैसे ही पिता से दूरिया होती है वह अपने बच्चों और जीवन साथी के प्रति समर्पित हो जाता है और जीवन साथी के द्वारा ही उसके लिये अधिक से अधिक कार्य पूरे किये जाते है,जब तक जीवन साथी के द्वारा उसके लिये प्रयास करने के रास्ते नही दिये जाते है वह किसी भी रास्ते पर जाने के लिये उद्धत नही होता है लेकिन जीवन साथी के उकसाने के बाद वह अपने को पूरी तरह से करना या मरना के रास्ते को अपना लेता है,जितना वह जीवन साथी के लिये समर्पित होता है उतनी ही आशा अपने जीवन साथी से छल नही करने के लिये रखता है,अगर कोई शक्ति को अपना कर जीवन साथी के प्रति आघात करता है तो वह अपने अनुसार या तो अपने को पूरी तरह से समाप्त कर लेता है या अपने को इतना बेकार का बना लेता है कि वह दूसरे किसी जीवन साथी को अपना कर उसी प्रकार से त्यागना शुरु कर देता है जैसे एक कुत्ता अपने लिये कामुकता की बजह से भटकाना शुरु कर देता है। यह तभी होता है जब उसे जीवन साथी के द्वारा कोई आहत करने वाला कारण बनता है।इस राशि वाले जातक की आदत होती है कि वह अपनी शक्ति से ही कमा कर खाने में विश्वास रखता है और जब वह शक्ति से हीन हो जाता है तो अपने को एकान्त में रखकर अपनी जीवन लीला को समाप्त करने की बाट जोहने लगता है। वह दया पर निर्भर रहना नही जानता है।अक्सर इस राशि वाले की पहिचान इस प्रकार से भी की जाती है कि वह अगर किसी स्थान पर जाता है तो वह उस स्थान पर अपने को बैठाने के लिये किसी के हुकुम की परवाह नही करता है उसे जहां भी जगह मिलती है आराम से अपनी जगह को सुरक्षित रूप से तलाश कर बैठने की कोशिश करता है। एक बात और भी देखी जाती है कि इस राशि वाले अक्सर किसी के प्रति लोभ वाली नजर से देखते है तो उनकी पहली नजर गले पर जाती है वे आंखों से आंखो को नही मिलाते है।
बारहवा स्थान भचक्र के अनुसार गुरु की वायु राशि मीन है,लेकिन सिंह लगन के लिये इस इस राशि मे पानी की राशि कर्क का स्थापन हो जाता है। कर्क राशि के स्थापन के कारण और सूर्य का बारहवे भाव में बैठना आसमान के राजा का आसमान में ही प्रतिस्थापन भी माना जाता है। यह सूर्य बडे सन्स्थानों में राजनीति वाली बाते करने और राजनीति के मामले में भी जाना जाता है,कर्क राशि घर की राशि है,और सूर्य इस राशि में लकडी अथवा वन की उपज से अपना सम्बन्ध रखता है। जातक की पहिचान और जाति के समबन्ध में कर्क राशि का सूर्य अगर किसी प्रकार से मंगल से सम्बन्ध रखता है तो जातक के परिवार को उसी परिवार से जोड कर माना जाता है जहां से जातक की उत्पत्ति होती है,जातक या तो वन पहाडों में लकडी के बने घर में पैदा होता है और पिता के द्वारा मेहनत करने के बाद वन की उपज से घर को बनाया गया होता है,जातक का पैदा होना और जातक के पिता का बारहवें भाव में होना यानी पिता का बाहर रहना भी माना जाता है। चन्द्र केतु अगर चौथे भाव में है और मंगल का भी साथ है तो जातक के पैदा होने के समय में जितनी मंगल में शक्ति है उतनी ही तकनीक को रखने वाली दाई के साये में जातक का जन्म हुआ होता है और जातक के पिता के साथ किसी प्रकार की दुर्घटना होनी मानी जाती है।मंगल के साथ केतु के होने से जातक के लिये एक तकनीकी काम का करने वाला साथ ही धन वाले कारणो को पैदा करने के लिये।
बारहवा स्थान भचक्र के अनुसार गुरु की वायु राशि मीन है,लेकिन सिंह लगन के लिये इस इस राशि मे पानी की राशि कर्क का स्थापन हो जाता है। कर्क राशि के स्थापन के कारण और सूर्य का बारहवे भाव में बैठना आसमान के राजा का आसमान में ही प्रतिस्थापन भी माना जाता है। यह सूर्य बडे सन्स्थानों में राजनीति वाली बाते करने और राजनीति के मामले में भी जाना जाता है,कर्क राशि घर की राशि है,और सूर्य इस राशि में लकडी अथवा वन की उपज से अपना सम्बन्ध रखता है। जातक की पहिचान और जाति के समबन्ध में कर्क राशि का सूर्य अगर किसी प्रकार से मंगल से सम्बन्ध रखता है तो जातक के परिवार को उसी परिवार से जोड कर माना जाता है जहां से जातक की उत्पत्ति होती है,जातक या तो वन पहाडों में लकडी के बने घर में पैदा होता है और पिता के द्वारा मेहनत करने के बाद वन की उपज से घर को बनाया गया होता है,जातक का पैदा होना और जातक के पिता का बारहवें भाव में होना यानी पिता का बाहर रहना भी माना जाता है। चन्द्र केतु अगर चौथे भाव में है और मंगल का भी साथ है तो जातक के पैदा होने के समय में जितनी मंगल में शक्ति है उतनी ही तकनीक को रखने वाली दाई के साये में जातक का जन्म हुआ होता है और जातक के पिता के साथ किसी प्रकार की दुर्घटना होनी मानी जाती है।मंगल के साथ केतु के होने से जातक के लिये एक तकनीकी काम का करने वाला साथ ही धन वाले कारणो को पैदा करने के लिये।
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