आकार का रूप शुरु से होता है और प्रकार का रूप आकार को विभिन्न पहलुओं में देखा जाता है। आकार का परिवर्तन ही प्रकार के रूप में माना जाता है। यही बात साकार और निराकार में भी होती है। जो सामने दिखई देता है वह साकार होता है लेकिन पीछे रह कर काम करता है और जिसके बिना साकार भी नही चल सकता है वही निराकार होता है। लेकिन बिना साकार के निराकार को सत्य मानना प्रकृति के परे की बात है इसलिये साकार और निराकार का रूप एक साथ मानकर चलना ही मनुष्य शरीर रूप में मान्य है।
तंत्र का रूप और तांत्रिक
शमशान की राख को बटोर कर अघोरियों को पूजा करते हुये देखा था,लोग कहते थे कि जादूगर है और इससे बच कर रहना। जादूगरों का काम होता था कि वे अपने सम्मोहन से पहले जनता को रिझाते और बाद में अपनी कुछ बात करते हुये कुछ दिखा देते,लोग हैरान और परेशान होकर डरने लगते कोई कहता शमशान सिद्धि है कोई कहता कि भूत सिद्धि है,कोई कहता कि जिन्न को पाल रखा है और कोई कहता कि डाकिनी को साथ रखे हैं। इस शमशान की सेवा और अघोरी का काम तब समझ में आया जब देखा कि पुराने जमान के शमशान साधक कुछ भी नही हुआ करते थे जितने बडे शमशान साधक आज की दुनियामें सामने फ़िर रहे है एक ही नही दो नही लाखों नही करोडों नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व इन तांत्रिकों के जाल में उलझ कर रह गया है। और सभी को उलझाने और अपना उल्लू सीधा करने के लिये पता नही कितनी तरह की तकनीकी तांत्रिक क्रियायें इनके दिमाग में घुस गयीं है कि हर काम भूत को करने के लिये दे दियाहै। घर से लेकर बाहर तक जितना भूत का मंत्र फ़ूंक दिया जाता है उतना ही वह आगे चलता रहता है और जैसे ही भूत का मंत्र समाप्त भूत का काम बन्द। भूत को खाने के लिये कोई विशेष प्रसाद की जरूरत नही होती है,भूत के लिये केवल शुद्ध बिना हवा के अग्नि की जरूरत होती है,ऐसी अग्नि जिसके अन्दर हवा की मात्रा कतई नहीं हो,अगर हवा की मात्रा आ गयी तो भूत का बेडा गर्क होने में देर नही लगेगी,भूत की इतनी बडी शक्ति हो गयी है कि वह लाखों की संख्या के आदमियों को एक बार में ही अपने करतब दिखाने की औकात रखता है। जब कम्पयूटर के हार्डवेयर को देखेंगे तो पायेंगे कि उसके अन्दर कोई जीव नही बैठा है,एक ही चीज काम कर रही है वह है गर्मी,तरह तरह के सेमीकंडक्टर को गर्म करने के बाद जो प्रभाव ऊष्मा का होता है,वही प्रभाव हमे कम्पयूटर पर काम करने के लिये तैयार होने वाले प्रोग्राम यानी सोफ़्टवेयर का माना जाता है। उस गर्मी के रहने तक तो काम किया जा सकता है,और गर्मी के समाप्त होते ही वह भी बन्द हो जाता है। बाबाजी भी क्या करते है,लकडी जला कर धुंआ के सहारे बैठे रहते है,आग की तपन धीरे धीरे उनके शरीर में जाती रहती है,वही तपन उनकी शरीर की ऊर्जा को एक समान बनाये रखती है,गर्मी हो या बरसात सर्दी हो या तूफ़ान बाबा की धूनी नही बुझती है,फ़िर बाबा का शरीर भी कम्पयूटर की तरह से काम करना चालू कर देता है,बिजली की गर्मी से चलने वाले कम्पयूटर तो बिजली वाले कम्पयूटर से ही जुडे रहते है लेकिन आदमी का कम्पयूटर तो अन्न की गर्मी के रहने तक ही चलता है,उसी तरीके से बाबाजी का कम्पयूटर भी अपनी गर्मी को धीरे धीरे सोख कर वही काम करता है,बाबा जी की शरीर की पावर बढ जाती है,और आकशीय तरंगे उनके शरीर से निकल कर ब्रह्माण्ड में जा पहुंचती है,बाबाजी को कल का होने वाला दिखाई देने लगता है,और जब बाबाजी की मशीन पुरानी हो जाती है और इतनी गर्म हो जाती है कि कबाडा बन कर बिखरने को होती है तो जमीन के अन्दर समाधि ले ली जाती है। पहले समझा करता था कि बाबाजी पागल बनाने के लिये ही धूनी के सहारे बैठते है और उनके लिये यह भी सोचता था कि उन्हे अपनी चिलम को चलाने के लिये बार बार आग की जरूरत पडती है इसलिये ही वे अपने आगे आग को जलाकर रखते है। लेकिन जब कम्पयूटर के अन्दर चलने वाले सरकिट को देखा तो मेरे माथे का सरकिट पूरा का पूरा ही बदल गया। मेरे सरकिट बदलने के साथ बाबाजी की धूनी पर जाकर बैठने लगा और देखा कि वे चिलम को कम पीते है और शांत होकर किसी से हवा में बातें अधिक करते है,वे फ़ुसफ़ुसाहट की भाषा में बातें करते है,वह बातें करने वाला कौन है,मै भी पता नहीं कर पाता हूँ,मोबाइल का नम्बर हो तो ट्रेस भी किया जाये लेकिन बाबाजी जिससे बात कर रहे थे,वह तो बिना मोबाइल के ही कर रहे थे,कुछ बातें समझ में आ रहीं थी,उन्होने किसी से कहा कि परसों एक आदमी आयेगा वह यज्ञ करने के लिये बोलेगा,उसे क्या जबाब देना है,फ़िर हाँ हूँ में सिर हिलाते रहे। मैं तीसरे दिन भी बाबाजी के पास जा बैठा दोपहर के समय गाँव के ही सज्जन आये और बोले कि बाबाजी एक आपकी धूनी पर यज्ञ हो जानी चाहिये। बाबाजी ने देखा और कहा कि वह तो हो ही जानी चाहिये,लेकिन सम्भालने वाला कौन कौन है,वह आदमी बोला कि सम्भालने के लिये आप जिसे हुकुम करेंगे वही सामने आ कर काम करना शुरु कर देगा,दूसरे दिन ही पूरे गांव में मुनादी लग गयी कि बाबा की धूनी पर यज्ञ होगा। दो चार लोग बाबाजी के पास गये और यज्ञ के बारे मे जानने और सामान आदि इकट्ठा करने की धुन सभी लोगों में सवार होने लगी,बाबा जी कहते जाते जिससे कहते वही तैयार होकर सामान जुटाने में लग गया था। आसपास के गाँव के लोग भी इकट्ठा होने लगे,उन्हे भी यह बात बहुत अच्छी लग गयी कि बाबाजी यज्ञ करवाने जा रहे है,गेंहूं गुड सब्जी घी सभी चीजें इकट्ठी होने लगीं बाबा जी ने तारीख की घोषणा कर दी,मालपुआ और खीर के साथ कद्दू की सब्जी और छाछ के आलू बनने का ब्यौरा बन गया,निश्चित तारीख को लोग आकर अपना अपना काम करने लगे,किसी चीज की जरूरत पडती तो लोग बाबाजी के पास जा पहुंचते बात करते और बाबा पास में ही बैठे किसी व्यक्ति से कह देते और वह काम पूरा हो जाता। मालपुआ बनने लगे,आसपास के गांवों में यज्ञा का न्यौता दे दिया गया,सडक पर चलने वाली बसों को रोका जाने लगा,कोई बिना खाये नही जाना चाहिये यह बाबा का हुकुम था,अक्समात शाम के छ: बजे के समय एक साथ चार बसें यात्रियों से खचाखच भर कर आ गयीं,बाबा जी अपनी चिलम के साथ मस्त थे,लोग जैसा कहते बाबाजी वैसा ही जबाब देदेते थे,तभी किसी ने आकर कहा कि बाबाजी घी खत्म हो गया है,बाबाजी ने एक हल्की सी और मुलायम सी गाली दी और कहा कि पास के तालाब से घी की जगह पर पानी जितने पीपा लगे डाल दो,लेकिन ध्यान रखना जो घी बजे उसी तालाब में नाप कर डाल देना और दूसरे दिन उतना ही घी बाजार से लाकर डाल देना। लोग चकित हो गये कि तालाब के पानी से कैसे मालपुआ बनेंगे,लेकिन यह मेरी आंखों के सामने का चमत्कार था,तालाब का पानी कडाही में डाला गया है वह बिलकुल घी जैसा ही बना रहा,और उसके अन्दर मालपुआ आराम से सिकने लगे,लोग टोकरियों में भर भर कर यात्रियों को खिलाने लगे,रात को करीब नौ बजे सभी भंडारे का प्रोग्राम समाप्त होने को हुआ तो बाबाजी को कहा गया कि वे भी भोजन कर लें,बाबाजी ने सभी को भोजन की पूंछी कि कोई रह गया है कि नहीं,सभी ने ना में सिर हिलाया,और बाबाजी ने चार मालपुआ और एक कटोरी खीर और छाछ के आलू और कद्दू की सब्जी लेकर अपनी धूनी में डाले और एक मालपुआ को कुछ सब्जी और छाछ के आलू के साथ खाने लगे,खीर की एक कटोरी ली और जब खाना पूरा किया तो एक से कहा कि पास में बैठे कुत्ते को एक मालपुआ डाल दिया जाये,लेकिन जो व्यक्ति भंडारे को संभाले था वह भंडारे में गया तो एक भी मालपुआ नही बचा था। उसने आकर बाबा से कहा कि वहां तो एक भी मालपुआ नही है,उन्होने फ़िर वही मुलायम सी गाली और बोले कि जाकर अपने घर से कुत्ते को खाना लाकर डाल दो,उसने जबाब दिया कि महाराज सभी लोग घर वाले यहीं से खाना खा कर गये है और अब कौन खाना बनायेगा। बाबाजी ने मुस्करा कर अपना हाथ जल्ती धूनी के अन्दर घुसेडा और एक मालपुआ निकाल कर कुत्ते को डाल दिया,कुत्ता भी उसी समय उस मालपुआ को खाने लगा,बाबाजी अपनी बातों में फ़िर मस्त हो गये,गांव वाले एक एक करके अपने अपने घर चले गये,बाबाजी और उस कुत्ते के अलावा और कोई वहाँ पर नहीं था। इन्सानी कम्पयूटर को देखने के बाद आज के बाजार के कम्पयूटरों से कितना अनमोल महंगा है यह इन्सानी कम्पयूटर इसकी बिसात को लोग भूल कर आकार को त्याग कर प्रकार में लग गये हैं।
चिन्तन करिये !
रावण को तपस्या का अहंकार था आज हमरा अहंकार ही तपस्या है
शबरी के जूठन में ही प्रेम था आज हमारे प्रेम में ही जूठन है
जटायु की लडाई में धर्म था आज हमारे धर्म की लडाई है
उर्मिला के मौन में कर्तव्य था आज हम कर्तव्य के प्रति मौन हैं
शब्द अंगार होता है
शब्द श्रंगार होता है
शब्द पुरस्कार होता है
शब्द तिरस्कार होता है
शब्द की साधना में ईश्वर का साक्षात्कार होता है.
शबरी के जूठन में ही प्रेम था आज हमारे प्रेम में ही जूठन है
जटायु की लडाई में धर्म था आज हमारे धर्म की लडाई है
उर्मिला के मौन में कर्तव्य था आज हम कर्तव्य के प्रति मौन हैं
शब्द अंगार होता है
शब्द श्रंगार होता है
शब्द पुरस्कार होता है
शब्द तिरस्कार होता है
शब्द की साधना में ईश्वर का साक्षात्कार होता है.
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