दुनिया में भारतवर्ष और भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश और उत्तरप्रदेश में आगरा,आगरा का ताजमहल, मेरे ख्याल से दुनिया कोइ ही ऐसा व्यक्ति होगा जो ताजमहल के बारे में नहीं जानता होगा.इतिहास कुछ भी हो,कहानी कुछ भी हो,कारण कुछ भी हो लेकिन ताजमहल का शानी इस संसार में नहीं है,हो भी नहीं सकता है,इसका कारण इस स्थान की महानता ज्योतिष के छाया ग्रह राहू ने ही प्रदान की है.मनुष्य अपने धर्म के अनुसार इसे कोइ भी रूप दे दे लेकिन यह इमारत इबादत की इमारत के नाम से जानी जाती है,भले ही शाहजहाँ का नाम मुमताज के लिए बताया जाए और मुमताज के नाम से ताजमहल का नाम मुम हटा कर लिया जाए,लेकिन जो वास्तविकता है वह सच से दूर करना साधारण बात नहीं है.
ताजमहल की इमारत को बनाने के लिए कितने ही कारीगरों ने अपने मेहनत रूपी तपस्या को जग जाहिर किया किस प्रकार से राजस्थान के मकराना से खुदा हुआ संगमरमर का पत्थर आगरा तक उस समय की जटिल बाधाओं से लाया गया उसे काटा गया छाँटा गया मूर्त रूप देकर सकारात्मक किया गया,फिर भवन कला और वास्तुकला का अनूठा उदाहरण पेश किया गया,यह प्रकृति की महानता मानी जाए,तो बहुत बढ़िया बात है,इसे कीई प्रकार के कारण से जोड़ना बेकार की बात है.इस इमारत का निर्माण यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर हुआ है इस प्रकार से उत्तर की तरफ यमुना का बहना साथ ही ईशान कोण से यमुना का पूर्व की तरफ घूम जाना भी एक प्रकार से प्रकृति का करिश्माई कारण ही माना जाता है.चारो तरफ चार मीनारे बीच में गुम्बद और गुम्बद के नीचे बनी ऊपरी भाग में नकली कब्रे और नीचे बनी असली कब्रे तथा असली कब्र पर गिरता बूँद बूँद पानी आज तक लोगो की सोच से परे है की यह पानी आता कहाँ से है,सर्दी गर्मी बरसात किसी भी ऋतू में बिना किसी अवरोध के यह पानी अपनी निश्चित समय रेखा में लगातार गिरता है.
इस ताजमहल को बनाने के समय इसके दक्षिणी सिरे पर एक कुर्सी का निर्माण किया गया था,यह कुर्सी केवल उन्ही लोगो के लिए है जो आकर अपनी उपस्थिति को देने के लिए अपनी फोटो को बनवाते है,पहले लोग अपनी फोटो बनवाने के लिए ब्रूस और केनवास का प्रयोग करने वाले कारीगरों का सहारा लिया करते थे फिर कैमरे का चलन होने के बाद कैमरा वाले फोटोग्राफर अपना काम करने लगे बाद में डिजिटल फोटोग्राफी आने के बाद लोग अपने अपने कैमरे से इस कुर्सी का प्रयोग करने लगे,कभी कभी तो एक एक घंटा लोग पंक्ति में खड़े रहते है की उनका भी नंबर आये और वे अपनी विभिन्न मुद्रा में अपनी फोटो ताजमहल के साथ बनवाकर अपनी यादो को ताज के साथ बरकरार रख सके.इस कुर्सी का सही मायनों में जिन लोगो ने महत्व समझा है वे ही ताज के महत्व को समझते है.
लाल पत्थर के कितने ही किले बने है और उन किलो में एक सफ़ेद पत्थर का रूप ताजमहल में ही मिलता है,जो छवि ताजमहल की है उस छवि की कल्पना करने के लिए कितने ही कवियों ने अपनी अपनी भावना को प्रस्तुत किया है लेकिन आज भी कोइ न कोइ नई छवि इस इमारत के लिए बनाती है और वह छवि अपने एक अनोखे रूप में अपने को प्रस्तुत करती है.इस कुर्सी पर जो बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है उस छवि को निहारने के लिए ताज का रूप बिलकुल उसी व्यक्ति के अनुरूप बन जाता है,जैसा वह व्यक्ति है.
ताजमहल को बनवाने के समय जो कारण प्रकृति ने प्रस्तुत किये उनके अनुसार राहू ग्रह की सीमा के अनुसार ही इसे बनाना माना जा सकता है,जैसे राहू की सीमा वैदिक नियमो के अनुसार पंद्रह सौ मील (सौ योजन,डेढ़ मील का एक योजन) के अनुसार ही बना है.अगर आगरा से भारत के दक्षिणी सीमा को नापा जाए तो श्री लंका का आख़िरी हिस्सा पंद्रह सौ मील ही है,पश्चिम में बन्दर अब्बास से आगे कर्मोस्ताज तक पूर्व में चीन के कूमिंग यान तक तथा उत्तर में रूस की सीमा तक माना जाता है.आगरा नामक स्थान पर २७ अक्षांश उत्तर और अठत्तर देशांतर पूर्व में स्थिति है.ग्रह कक्षा के अनुसार राहू का केंद्र बिंदु इसी स्थान पर माना जाता है,प्रत्येक अठारह साल में यह अपने अनुसार बदलाव करता है.
इस स्थान पर जो कुर्सी संगमरमर की बनी हुयी उसके बारे में कोइ ऐतिहासिक कथन नहीं मिलता है,कब किसने और किस प्रयोजन के लिए इस कुर्सी को यहाँ बनवाया था लेकिन आज यह फोटो ग्राफी के लिए मशहूर कुर्सी है. वास्तुकला से यह कुर्सी जिस स्थान पर है वह स्थान एकाधिकार का स्थान कहा जाता है जब कोइ भी व्यक्ति इस स्थान पर बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है तो उसे यह पता नहीं होता है की वह किसी अन्य स्थान से आया है उसे यही महशूश होता है की वह ही इस ताजमहल का मालिक है,भले ही कुर्सी से उठाने के बाद उसे यह समझ में आये की वह अन्य देश से अन्य प्रांत से अन्य शहर से अन्य जाति से अन्य कारण से आया है इस कुर्सी पर बैठने के बाद हर व्यक्ति यही सोचता है की वह भी मुमताज और शाहजहाँ के रूप में एक प्रेमी है और वह भी इस इमारत के सामने बैठ कर अपने मन वचन और कर्म से अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित है,अक्सर यहाँ लोग जीवन में तीन बार अवश्य आते देखे गए है,जो एक बार आता है वह अपने जीवन में दो बार अवश्य ताजमहल के दर्शन को आता है चाहे कारण कोइ भी हो या किसी भी प्रकार की चाहत या संगती मिली हो.
ताजमहल एक अमर और सृष्टि के समय तक अपना स्थायित्व रखने वाली इमारत है,जब तक इंसान आपस में प्रेम करता रहेगा इस इमारत का कोइ भी बाल बांका नहीं हो सकता है,भारत ही नहीं किसी भी स्थान के बारे में आप वास्तु से देख सकते है की जिस स्थान पर भी उत्तर या पूर दिशा में प्राकृतिक जल स्तोत्र है वह स्थान हमेशा के लिए कायम हो जाता है,भले ही वह धार्मिक रूप से हो या भले ही वह बढ़ती हुयी जनसंख्या उद्योग धंधो की भरमार से हो अक्सर इस प्रकार की इमारते शहर आदि हमेशा ही धार्मिक रूप से देखे जाते है,जैसे भारत में अगर समुद्री स्थानों को देखा जाए तो कलकत्ता गंगासागर जगन्नाथपुरी आदि जो भी समुद्र से पश्चिम में बसे है उनके लिए कोइ न कोइ कारण धार्मिक रूप से जुडा है कानपुर में ब्रह्मावर्त इलाहाबाद में संगम जिसमे प्रयाग के ईशान में गंगाजी का बहाव है,दिल्ली में यमुना हरिद्वार में गंगा जी आदि स्थानों को देख कर धार्मिकता के रूप में माना जाता है,दिशाओं के अनुसार जो भी शहर या इमारत या स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से दक्षिण पश्चिम में स्थापित हो जाता है वह राहू के रूप में देखा जाता है और उसकी महिमा किसी न किसी रूप में फैलती जाती है लेकिन जो स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर दिशा में स्थापित हो जाता है वह केतु के रूप में स्थापित होता है जैसे वनारस मुम्बई पोरबंदर आदि शहर इन स्थानों पर राहू व्यक्तियों के अन्दर निवास करने लगता है.क्राइम के लिए जितने भी शहर प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर्व में स्थापित होते है इनके अन्दर अधिक से अधिक क्राइम मारकाट नशे वाली बाते डाक्टरी कारण केवल इसलिए ही मिलते है की व्यक्ति के अंदर राहू प्रवेश करजाता है और व्यक्ति अपनी साख को पैदा करने के लिए अपनी मर्जी का अधिकारी हो जाता है,अक्सर ऐसे स्थानों के लोग अपनी प्रसिद्धि के लिए कोइ भी कार्य कर सकते है.
ताजमहल की इमारत को बनाने के लिए कितने ही कारीगरों ने अपने मेहनत रूपी तपस्या को जग जाहिर किया किस प्रकार से राजस्थान के मकराना से खुदा हुआ संगमरमर का पत्थर आगरा तक उस समय की जटिल बाधाओं से लाया गया उसे काटा गया छाँटा गया मूर्त रूप देकर सकारात्मक किया गया,फिर भवन कला और वास्तुकला का अनूठा उदाहरण पेश किया गया,यह प्रकृति की महानता मानी जाए,तो बहुत बढ़िया बात है,इसे कीई प्रकार के कारण से जोड़ना बेकार की बात है.इस इमारत का निर्माण यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर हुआ है इस प्रकार से उत्तर की तरफ यमुना का बहना साथ ही ईशान कोण से यमुना का पूर्व की तरफ घूम जाना भी एक प्रकार से प्रकृति का करिश्माई कारण ही माना जाता है.चारो तरफ चार मीनारे बीच में गुम्बद और गुम्बद के नीचे बनी ऊपरी भाग में नकली कब्रे और नीचे बनी असली कब्रे तथा असली कब्र पर गिरता बूँद बूँद पानी आज तक लोगो की सोच से परे है की यह पानी आता कहाँ से है,सर्दी गर्मी बरसात किसी भी ऋतू में बिना किसी अवरोध के यह पानी अपनी निश्चित समय रेखा में लगातार गिरता है.
इस ताजमहल को बनाने के समय इसके दक्षिणी सिरे पर एक कुर्सी का निर्माण किया गया था,यह कुर्सी केवल उन्ही लोगो के लिए है जो आकर अपनी उपस्थिति को देने के लिए अपनी फोटो को बनवाते है,पहले लोग अपनी फोटो बनवाने के लिए ब्रूस और केनवास का प्रयोग करने वाले कारीगरों का सहारा लिया करते थे फिर कैमरे का चलन होने के बाद कैमरा वाले फोटोग्राफर अपना काम करने लगे बाद में डिजिटल फोटोग्राफी आने के बाद लोग अपने अपने कैमरे से इस कुर्सी का प्रयोग करने लगे,कभी कभी तो एक एक घंटा लोग पंक्ति में खड़े रहते है की उनका भी नंबर आये और वे अपनी विभिन्न मुद्रा में अपनी फोटो ताजमहल के साथ बनवाकर अपनी यादो को ताज के साथ बरकरार रख सके.इस कुर्सी का सही मायनों में जिन लोगो ने महत्व समझा है वे ही ताज के महत्व को समझते है.
लाल पत्थर के कितने ही किले बने है और उन किलो में एक सफ़ेद पत्थर का रूप ताजमहल में ही मिलता है,जो छवि ताजमहल की है उस छवि की कल्पना करने के लिए कितने ही कवियों ने अपनी अपनी भावना को प्रस्तुत किया है लेकिन आज भी कोइ न कोइ नई छवि इस इमारत के लिए बनाती है और वह छवि अपने एक अनोखे रूप में अपने को प्रस्तुत करती है.इस कुर्सी पर जो बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है उस छवि को निहारने के लिए ताज का रूप बिलकुल उसी व्यक्ति के अनुरूप बन जाता है,जैसा वह व्यक्ति है.
ताजमहल को बनवाने के समय जो कारण प्रकृति ने प्रस्तुत किये उनके अनुसार राहू ग्रह की सीमा के अनुसार ही इसे बनाना माना जा सकता है,जैसे राहू की सीमा वैदिक नियमो के अनुसार पंद्रह सौ मील (सौ योजन,डेढ़ मील का एक योजन) के अनुसार ही बना है.अगर आगरा से भारत के दक्षिणी सीमा को नापा जाए तो श्री लंका का आख़िरी हिस्सा पंद्रह सौ मील ही है,पश्चिम में बन्दर अब्बास से आगे कर्मोस्ताज तक पूर्व में चीन के कूमिंग यान तक तथा उत्तर में रूस की सीमा तक माना जाता है.आगरा नामक स्थान पर २७ अक्षांश उत्तर और अठत्तर देशांतर पूर्व में स्थिति है.ग्रह कक्षा के अनुसार राहू का केंद्र बिंदु इसी स्थान पर माना जाता है,प्रत्येक अठारह साल में यह अपने अनुसार बदलाव करता है.
इस स्थान पर जो कुर्सी संगमरमर की बनी हुयी उसके बारे में कोइ ऐतिहासिक कथन नहीं मिलता है,कब किसने और किस प्रयोजन के लिए इस कुर्सी को यहाँ बनवाया था लेकिन आज यह फोटो ग्राफी के लिए मशहूर कुर्सी है. वास्तुकला से यह कुर्सी जिस स्थान पर है वह स्थान एकाधिकार का स्थान कहा जाता है जब कोइ भी व्यक्ति इस स्थान पर बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है तो उसे यह पता नहीं होता है की वह किसी अन्य स्थान से आया है उसे यही महशूश होता है की वह ही इस ताजमहल का मालिक है,भले ही कुर्सी से उठाने के बाद उसे यह समझ में आये की वह अन्य देश से अन्य प्रांत से अन्य शहर से अन्य जाति से अन्य कारण से आया है इस कुर्सी पर बैठने के बाद हर व्यक्ति यही सोचता है की वह भी मुमताज और शाहजहाँ के रूप में एक प्रेमी है और वह भी इस इमारत के सामने बैठ कर अपने मन वचन और कर्म से अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित है,अक्सर यहाँ लोग जीवन में तीन बार अवश्य आते देखे गए है,जो एक बार आता है वह अपने जीवन में दो बार अवश्य ताजमहल के दर्शन को आता है चाहे कारण कोइ भी हो या किसी भी प्रकार की चाहत या संगती मिली हो.
ताजमहल एक अमर और सृष्टि के समय तक अपना स्थायित्व रखने वाली इमारत है,जब तक इंसान आपस में प्रेम करता रहेगा इस इमारत का कोइ भी बाल बांका नहीं हो सकता है,भारत ही नहीं किसी भी स्थान के बारे में आप वास्तु से देख सकते है की जिस स्थान पर भी उत्तर या पूर दिशा में प्राकृतिक जल स्तोत्र है वह स्थान हमेशा के लिए कायम हो जाता है,भले ही वह धार्मिक रूप से हो या भले ही वह बढ़ती हुयी जनसंख्या उद्योग धंधो की भरमार से हो अक्सर इस प्रकार की इमारते शहर आदि हमेशा ही धार्मिक रूप से देखे जाते है,जैसे भारत में अगर समुद्री स्थानों को देखा जाए तो कलकत्ता गंगासागर जगन्नाथपुरी आदि जो भी समुद्र से पश्चिम में बसे है उनके लिए कोइ न कोइ कारण धार्मिक रूप से जुडा है कानपुर में ब्रह्मावर्त इलाहाबाद में संगम जिसमे प्रयाग के ईशान में गंगाजी का बहाव है,दिल्ली में यमुना हरिद्वार में गंगा जी आदि स्थानों को देख कर धार्मिकता के रूप में माना जाता है,दिशाओं के अनुसार जो भी शहर या इमारत या स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से दक्षिण पश्चिम में स्थापित हो जाता है वह राहू के रूप में देखा जाता है और उसकी महिमा किसी न किसी रूप में फैलती जाती है लेकिन जो स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर दिशा में स्थापित हो जाता है वह केतु के रूप में स्थापित होता है जैसे वनारस मुम्बई पोरबंदर आदि शहर इन स्थानों पर राहू व्यक्तियों के अन्दर निवास करने लगता है.क्राइम के लिए जितने भी शहर प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर्व में स्थापित होते है इनके अन्दर अधिक से अधिक क्राइम मारकाट नशे वाली बाते डाक्टरी कारण केवल इसलिए ही मिलते है की व्यक्ति के अंदर राहू प्रवेश करजाता है और व्यक्ति अपनी साख को पैदा करने के लिए अपनी मर्जी का अधिकारी हो जाता है,अक्सर ऐसे स्थानों के लोग अपनी प्रसिद्धि के लिए कोइ भी कार्य कर सकते है.