हमेशा यह जरूरी नही है कि आपके द्वारा बनाया गया मकान वास्तु के नियमों से पूरा ही हो,साथ ही यह भी जरूरी नही है कि मकान को बनाने के बाद उसकी कटाई छटाई की जाय,जिस प्रकार से शरीर में जीव रहता है और शरीर के किसी हिस्से में बनाव बिगाड करने पर दर्द और उस अंग के पुन:निर्माण में समय लगता है और जरूरी भी नही है कि जो अंग दुबारा बनाया गया है वह सही तरीके से कार्य ही करने लगे।यह भी हो सकता है कि जिस अंग का निर्माण किया गया है वह दुबारा से निर्मित होने के बाद अपनी गति ही भूल जाये। उसी प्रकार से मकान को बनाने के बाद भी उसके अन्दर मनुष्य रूपी जीव रहता है,और मकान का प्रत्येक अंग अपने अपने अनुसार कार्य नही करता है तो मनुष्य रूपी जीव उस मकान के अन्दर दुखी रहेगा। उस दुख के कारण वह अपने कार्यों और मानसिक भावनाओं का विकाश भी नही कर पायेगा,जब सभी बाते सही नही मिलेगी तो जीव का आना और नही आना बेकार ही हो गया। जिन लोगों का विश्वास वास्तु पर नही उन्हे केवल इतना पता होता है कि बरसात होने पर छतरी का प्रयोग करने के बाद भीगने से बचाया जा सकता है या बरसात होने पर रास्ते के किसी सार्वजनिक शेड में खडे रहकर अपने को भीगने से बचाया जा सकता है,लेकिन बरसात होने पर चैन की नींद अपने घर के अन्दर ही आ सकती है छतरी के नीचे या किसी सार्वजनिक शेड के नीचे नही,उसी प्रकार से व्यक्ति अपनी भूख को कुछ समय के लिये तो किसी भी होटल में खाना खा कर मिटा सकता है लेकिन शांति और चैन का भोजन अपने ही घर पर प्राप्त होता है। इसी प्रकार से जीवन के सभी क्षेत्रों की तरफ़ देखा जा सकता है। अगर वास्तु से मकान बना है और पानी की जगह पानी आग की जगह आग हवा की जगह हवा और मजबूती की जगह मजबूत और चिरस्थाई जमीन पर भवन का निर्माण वास्तु अनुरूप किया गया है तो भवन रहने वाले व्यक्ति के लिये हमेशा सुख देने वाला और बलवान भाग्य के निर्माण में सहायक होगा। जैसे पानी का स्थान भवन में इकट्ठा करने का है वह ब्रह्म स्थान से हटकर थोडा सा पूर्व दिशा की तरफ़ है,और पूर्व दिशा से पानी की आवक है,उसी प्रकार से शरीर में मुंह के बायें हिस्से से पानी की ग्रन्थिया सजीव रहती है और ह्रदय के नीचे पानी का इकट्ठा रहना मिलता है,जिस प्रकार से शरीर के दाहिने हिस्से में आग की प्रबलता होती है उसी प्रकार से मकान के दाहिने हिस्से में रसोई के निर्माण का उपयोग किया जाता है। कहने के लिये तो कई वास्तु विद कहते है कि मकान के नैऋत्य कोण में घर के मुखिया का निवास होना चाहिये,लेकिन नैऋत्य कोण शरीर के अन्दर दाहिना पुट्ठा होता है,क्या शरीर के अन्दर जीव का निवास इसी हिस्से में होता है,यह बात कदापि नही है,मकान के अन्दर घर के मुखिया का निवास हमेशा ब्रह्मस्थान में होना जरूरी है जिस प्रकार से ह्रदय और आत्मा के स्थान को शरीर के बायें हिस्से में निवासित किया गया है उसी प्रकार से मकान के ईशान से नीचे के हिस्से में घर के मुखिया का निवास होना जरूरी है।
मकान के अन्दर दोष होने से या किसी प्रकार से मकान के दोषी बना लेने से जब घर के मुखिया को परेशानी होने लगे तो मकान का दिशा बन्धन करवा लेना चाहिये। दिशा बन्धन करवा लेने से मकान के दोषों का शमन उसी प्रकार से होता है जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति अमृत को प्राप्त कर जाये। यह दिशा बन्धन करने के लिये हवा पानी आग और मिट्टी का प्रयोग यथा स्थान पर किया जाता है। रोजाना शाम के समय जब सूर्यास्त हो जाता है तो मकान की छत पर और मकान की छत नही होने पर मकान के अन्दर चारों दिशाओं में पूर्व में पानी का रखा जाना पश्चिम में किसी मिट्टी वाली वस्तु का रखा जाना दक्षिण में आग के रूप में अगरबत्ती आदि जलाना और उत्तर में किसी गुब्बारे आदि का रखा जाना या हवा से चलने वाले वाद्य यंत्र का बजाना आदि वास्तु के लिये दिशा बन्धन का कार्य कार्य करता है,यह दिशा बन्धन वर्ष में एक दिन किसी पूर्णमाशी के दिन किया जाता है और चारों दिशाओं में यह कार्य करने के बाद ग्रह स्वामी उत्तर पूर्व के कोने से थोडा बीच की तरफ़ पूर्व की तरफ़ मुंह करने के बाद गायत्री मंत्र का अपनी राशि के अनुसार एक या जितनी भी श्रद्धा या शक्ति हो उतनी माला का जाप करे।