आकार का रूप शुरु से होता है और प्रकार का रूप आकार को विभिन्न पहलुओं में देखा जाता है। आकार का परिवर्तन ही प्रकार के रूप में माना जाता है। यही बात साकार और निराकार में भी होती है। जो सामने दिखई देता है वह साकार होता है लेकिन पीछे रह कर काम करता है और जिसके बिना साकार भी नही चल सकता है वही निराकार होता है। लेकिन बिना साकार के निराकार को सत्य मानना प्रकृति के परे की बात है इसलिये साकार और निराकार का रूप एक साथ मानकर चलना ही मनुष्य शरीर रूप में मान्य है।
कुमुदिनी
ज्योतिष में कभी कभी भाव और ग्रह युति बहुत ही लुभावना द्रश्य पैदा कर देते है,उन भावों को समझने के बाद बडे बडे ज्ञानी भी अपने मन को नहीं संभाल पाते है। एक कुंडली के अन्दर मैने बहुत ही सुन्दर भावनात्मक पहलू को देखा और समझा भी,दूर से भी और पास से भी,सभी पहलुओं में उस भावना को परमपिता परमात्मा की कृति के अलावा और कुछ कहा भी नही जा सकता है। अगर किसी जातक के चौथे भाव में बुध शनि का योग हो,और बारहवें भाव में चन्द्रमा की उपस्थति हो तो एक फ़ूल की कल्पना बडे आराम से की जा सकती है,बारहवें भाव का चन्द्रमा आकाश में चन्द्रमा का होना आभासित करता है,और उस चन्द्रमा की रोशनी चौथा भाव जो तालाब और पानी के स्थान के रूप में माना जाता है,के अन्दर बुध जो हरे पत्ते के रूप में और शनि जो हरे रंग को गहरे हरे रंग का बनाने में अपना सहयोग करता वह भी अपनी सख्त कालिमा लेकर। पूरा भावार्थ लगाने पर यही द्रश्य सामने आता है एक तालाब के अन्दर चांदनी रात में सुशोभित कुमुदिनी का फ़ूल,कमल तो दिन में सूर्य के उदय होने पर और कुमुदिनी रात को चन्द्रमा के उदय होने पर खिलती है। शनि का योगात्मक रूप बुध के साथ अगर चन्द्रमा से जोड दिया जाये तो वह एक भावनात्मक कलाकार का भी जन्म लेना माना जायेगा। बुध मजाकिया है,चन्द्रमा भावना से भरा हुआ,और शनि के मिल जाने से वह भावना मजाकिया रूप से दिल की बात भी कह जायेगी और हमेशा के लिये पत्थर पर तरासे अक्षरों की भांति रह भी जायेगी। माता,मन,मकान,पानी,आन बान शान,वाहन,आसपास के लोग आदि सभी तो इस चौथे भाव में आजाते है,यह कुमुदिनी का पुष्प किन किन रूपों में अपना द्रश्य उत्पन्न करेगा यह बात सोचने के बाद ही पता चलेगी। चौथा भाव दूध के लिये भी जाना जाता है,दूध के अन्दर काला और हरे रंग का पुट मिलाकर अगर कुछ बनाया जा सकता है तो वह एक ही चीज मानी जाती है,काजू पिस्ता मिली दूध की खीर,और वास्तव में जब भावनात्मक तरीके से वह पिस्ता वाली खीर ऐसे ही व्यक्ति के द्वारा खिलायी जाये तो कितना हर्ष अनुभव होगा। चौथे भाव का शनि मन के अन्दर अन्धेरा देता है,अगर ऐसा व्यक्ति कविता करने लग जाये तो सभी कवितायें अन्धेरे में कुछ खोजने जैसी तो होंगी। उन कविताओं को पढ कर लगेगा कि जो अन्धेरा मन के अन्दर है उसके अन्दर कुछ चीज खोजी जा रही है,वह खोजी जाने वाली चीज कोई और नही बल्कि मन के अन्दर दूर से देखी जाने वाली एक बहुत ही मुलायम वस्तु होगी।
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