आकार का रूप शुरु से होता है और प्रकार का रूप आकार को विभिन्न पहलुओं में देखा जाता है। आकार का परिवर्तन ही प्रकार के रूप में माना जाता है। यही बात साकार और निराकार में भी होती है। जो सामने दिखई देता है वह साकार होता है लेकिन पीछे रह कर काम करता है और जिसके बिना साकार भी नही चल सकता है वही निराकार होता है। लेकिन बिना साकार के निराकार को सत्य मानना प्रकृति के परे की बात है इसलिये साकार और निराकार का रूप एक साथ मानकर चलना ही मनुष्य शरीर रूप में मान्य है।
मकान की बनावट और वास्तु
कहावत है कि "कमाना हर किसी को आता है खर्च करना किसी किसी को आता है",शरीर और मकान की रूपरेखा को समझना और सजाना संवारना एक जैसा ही है। आज के जमाने में जब व्यक्ति को एक समय का भोजन जुटाना भारी है उसके बाद मकान का बन्दोबस्त करना कितनी टेढी खीर होगी इसका अन्दाज एक मध्यम वर्गीय परिवार आराम से लगा सकता है। हाँ उन लोगों को कोई फ़र्क नही पडता है जिनके बाप दादा कमा कर रख गये है और वे अपने जीवन में मनमाने तरीके से खर्च कर रहे है,लेकिन उनकी औलादों के लिये भी सोचना तो पडेगा ही। मकान बनाने के लिये जीवन की गाढी कमाई को प्रयोग में लेना पडता है,उस गाढी कमाई को अगर समझ बूझ कर खर्च नही किया तो वह एक दिन अपने ही कारण से रोना बन कर रह जाती है। मकान का ढांचा इस प्रकार से बनाना चाहिये कि वह किसी भी तरह के बोझ को आराम से सहन कर ले। जून की गर्मी हो या अगस्त की बरसात अथवा दिसम्बर का जाडा,सभी ऋतुओं की जलवायु को मकान का ढांचा सहन कर लेता है तो वह आराम से निवास करने वालों के लिये दिक्कत वाला नही होता है। प्रकृति के नियम के अनुसार अक्सर जाडे में बनाये हुये मकान गर्मी में अपनी बनावट में परिवर्तन करते है,अक्सर भारत के मध्य में जो मकान गर्मी में बन जाते है वे दिसम्बर में अपने अन्दर बदलाव करते है। मकान का ढांचा अपने स्थान से कुछ ना कुछ घटता है,इस घटाव के कारण अगर मकान का ढांचा बनाकर फ़टाफ़ट पलस्तर कर दिया गया है और उसके बाद फ़टाफ़ट रंग रोगन कर दिया गया है तो वह कहीं ना कहीं से चटक दिखायेगा जरूर,मकान की चटक किसी भी तरह से रंग रोगन के बाद दबाने से नही दबती है,वह अगली साल में अपनी फ़िर से रंगत दिखा देती है और अच्छा पैसा लगाने के बाद भी समझ में नही आता है कि मकान की चटक को कैसे दबाया जाये। अक्सर बडे बडे कारीगर और मकान का निर्माण करने वाले कह देते है कि मकान ने सांस ले ली है। भूतकाल में जो मकान बनाये जाते थे,वे धीरे धीरे बनाये जाते थे,जैसे जैसे हाथ फ़ैलता था मकान का निर्माण कर लिया जाता था,और जब मकान धीरे धीरे बनता था जो लाजिमी है कि मकान का पहले ढांचा बनता था फ़िर कुछ समय बाद पलस्तर होता था उसके बाद महीनो या सालों के बाद उसके अन्दर रंग रोगन किया जाता था। वे मकान आज भी सही सलामत है कोई उनके अन्दर दरार या कमी नही मिलती है। किसी प्रकार से वास्तु का प्रभाव भी होता था तो उसे समय रहते बदल दिया जाता था,लेकिन आज के भागम भाग युग में हर कोई आज ही मकान बनाकर उसके अन्दर ग्रह-प्रवेश कर लेना चाहता है। कई मंजिला मकान बनाने के लिये जो ढांचा बनाना पडता है उसके लिये पहले जमीन में जाल भरा जाता है,उस जाल को भरने के बाद बीम भरे जाते है,उन बीमों को भरने के बाद कुछ समय के लिये उन्हे छोड दिया जाता है,उसके बाद उनकी कार्य लेने की गति के अनुसार बाकी का साज सज्जा वाला काम किया जाता है। बीम के अन्दर या जाल के अन्दर जो सरिया सीमेंट बजरी और रोडी आदि प्रयोग में ली जाती है उसे मानक दंडों से माप कर ही प्रयोग में लाया जाता है,बडे बडे जो पुल बनाये जाते है उनके अन्दर भले ही दो इन्च की जगह रखी जाये लेकिन जगह जरूर छोडी जाती है,जिससे गर्मी के मौसम में अगर बीम अपने स्थान से बढता है तो वह अपनी जगह पर ही बना रहे,नीचे नही गिरे,जैसे रेलवे लाइनों के बीच में जगह छोडी जाती है,उसी प्रकार से घर बनाने के समय डाले गये बीम में किसी ना किसी प्रकार की जगह छोडी जाती है,इसके अलावा गर्मी और सर्दी का असर देखने के लिये रोजाना की तराई भी अपना काफ़ी काम करती है,जून के महिने में अगर मकान को बनाया जाता है तो रोजाना की जाने वाली पानी की तराई उस लगे हुये सीमेंट और सरिया के अन्दर अपना घटाने और बढाने वाला औसत बनाने के लिये काफ़ी अच्छा माना जाता है,तराई करते वक्त सीमेंट बजरी और सरिया रोडी अपने स्थान से सिकुडते भी है और पानी की तरावट पाकर सीमेंट अपने अन्दर पानी के बुलबुलों से जगह भी बनाता है,इस प्रकार से दिवाल में एक फ़ोम जैसा माहौल बन जाता है जो किसी भी मौसम में उसी प्रकार से काम करता है जैसे फ़ोम को दिशा के अनुसार घटाया बढाया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि मकान का झुकाव हमेशा ईशान की तरफ़ होता है,कितनी ही डिग्री को संभाल कर बनाया जाये लेकिन कुछ समय उपरान्त मकान ईशान की तरफ़ कुछ ना कुछ डिग्री में झुकेगा जरूर,इसका कारण सूर्य की गर्मी वाली किरणें शाम के साम पश्चिम दिशा की तरफ़ से पडती है और रात हो जाने के बाद ईशान दिशा सबसे पहले ठंडी हो जाती है,गर्मी हमेशा ठंड की तरफ़ भागती है,इसी प्रक्रिया के कारण मकान का झुकाव ईशाव की तरफ़ हो जाता है।
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