भूमि की पहिचान

भूमि परीक्षण
 जमीन को खरीदने से पहले भूमि का परीक्षण कर लेना भी हितकर होता है,भूमि परीक्षण कोई भी साधारण आदमी कर सकता है उसके लिये कोई विशेष विद्वान की जरूरत नही पडती है। भूमि परीक्षण इस प्रकार से करना चाहिये:-

मिट्टी भराव के द्वारा

खरीदी जाने वाली भूमि के अन्दर एक हाथ लम्बा और एक हाथ चौडा खड्डा खोद लें,उस खोदी गयी मिट्टी से दुबारा से उस खड्डे को भरें,अगर मिट्टी पूरी भरने के बाद बच जाती है तो जमीन शुभ है और खड्डा नही भर पाता है तो अशुभ है तथा खड्डा भर कर मिट्टी नही बचती है तो जमीन सामान्य कहलाती है।

जल द्वारा परीक्षण

जमीन में खड्डा ऊपर की विधि से खोदें और उसे पूरा पानी से भर कर सौ कदम पूर्व दिशा में जाकर वापस आजायें,अगर खड्डा पानी से भरा रहता है तो शुभ है,खड्डा बिलकुल खाली हो जाये तो अशुभ है,अगर आधा रह जाये तो सामान्य है।

जल बहाव द्वारा

जमीन के बीच में बैठ कर जल को फ़ैलाया जाये और जल अगर उत्तर दिशा में पहली बार बहता है तो जमीन धन और सम्मान दायक है, पूर्व की तरफ़ बहता है तो परिवार दायक है,और धर्म कर्म में विश्वास करने वाले लोग ही उस घर में निवास करेंगे,दक्षिण की तरफ़ बहता है तो वह जमीन मारकाट और लडाई झगडे के लिये मानी जायेगी,पश्चिम दिशा में जल बहता है तो भौतिक सम्पत्ति तो मिलेगी लेकिन मन की शांति नही मिलेगी।

रंग द्वारा जमीन का परीक्षण

सफ़ेद रंग वाली जमीन ब्राह्मण वर्ग की लाल रंग वाली क्षत्रिय वर्ण की काले रंग वाली जमीन शनि वर्ण की और राख या रेत वाली जमीन शमशानी शक्तियों वाली जमीन बताई जाती है।

स्वाद से जमीन की पहिचान

मीठा स्वाद ब्राह्मण तीखा स्वाद क्षत्रिय अन्न बिना स्वाद की मिट्टी वैश्य वर्ण की और कसैले आदि स्वाद वाली जमीन शूद्र वर्ण की मानी जाती है।

नींव खोदते समय शुभ अशुभ देखना

जब जमीन को परख लिया गया और जमीन को अपने कब्जे मे लेकर जमीन में नींव को खोदा जाने लगा तो मिट्टी के अन्दर से शंख कछुआ द्रव्य तांबा आदि धातु निकले तो वह जमीन उत्तम फ़ल वाली मानी जाती है,कोयला राख हड्डी कौडी घास फ़ूस दीमक सांप सिर के बाल अंडा लोहा आदि निकले तो जमीन निकृष्ट फ़ल देने वाली मानी जाती है। अगर अशुभ वस्तुयें निकलती है तो पूरी जमीन की पांच फ़ुट तक की मिट्टी निकलवा कर नयी साफ़ मिट्टी को भरवा देना चाहिये। और् जमीन का शुद्धिकरण किसी योग्य ब्राह्मण से करवा लेना चाहिये।


नींव पूजन
विधि विधान से योग्य आचार्य द्वारा नींव पूजन करवायें,नाक नागिन कछुआ मगरमच्छ दीपक कलश की स्थापना करवायें एवं भूमि को ऊर्जावान बनाने के लिये धातुओं को दिशानुसार एक बेल्ट की तरह से जोड देंवे,इस प्रकार से उस घर में सुख समृद्धि का बास हमेशा रहेगा। और पीढियां दर पीढियां उस घर में अपना स्थान बनाकर रह सकेंगी। लेकिन यह सब तभी तक माना जाता है जब तक कि नींव का दायरा नही बिगाडा जायेगा।

वास्तु के वैज्ञानिक आधार

वास्तु विज्ञान को समझने के लिये निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिये।
  1. पृथ्वी की गति
  2. पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव
  3. सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा
  4. सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा
  5. ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम
  6. अलग अलग स्थानों की ऊर्जा और मानवीय स्वभाव
  7. ऋतुओं के अनुसार अलग अलग ऊर्जा के प्रकार
  8. स्थल पठार पहाड जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग अलग ऊर्जा के प्रकार
  9. अलग अलग ऊर्जा से शरीर का अलग अलग विकास और सभ्यता की नई और पुरानी विकास की गति
  10. मस्तिष्क को मिलने वाली नई और पुरानी ऊर्जा के अनुसार किये जाने वाले निर्माण और विध्वंशकारी कार्य तथा सृजन क्षमता का विकास या विदीर्ण दिमाग की गति.
भूगोल में आप लोगों ने पढा होगा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर साढे तेइस अंश झुकी हुयी है,अगर यह झुकाव नही होता तो सभी दिन रात आचार विचार व्यवहार मानव जीव जन्तु सभी एक जैसे होते। दिन रात का माप बराबर का होगा,उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर छ: छ: महिने के दिन और रात नही होते। भूमध्य रेखा पर बारह महीने लगातार पानी नही बरसता और भयंकर गर्मी नहीं पडती आदि कारण मिलते। लेकिन हवाओं का प्रवाह नही होता,ऋतुओं का परिवर्तन नही होता,पानी की गति नही होती नदियां बहती नही पहाड बनते नहीं यह सब भी पृथ्वी की गति और उसके झुके होने का फ़ल है। उत्तरी ध्रुव का फ़ैल कर घूमना और दक्षिणी ध्रुव का एक ही स्थान पर सिमट कर घूमना,यह दोनो बातें धरती के लिये एक भराव और जमाव वाली बातों के लिये मानी जा सकती है,जिस तरह से एक पंखा अपनी हवा को उल्टी तरफ़ से खींच कर सीधी तरफ़ यानी सामने फ़ेंकता है उसी तरह से धरती उत्तरी ध्रुव से अन्य ग्रहों की चुम्बकीय शक्ति को इकट्ठा करने के बाद धरती के अन्य भागों को प्रेषित करता है। अक्सर आपने देखा होगा कि उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले लोग अपने आप में विलक्षण बुद्धि के मालिक होते है उनके शरीर सुडौल और दिमागी ताकत अधिक होती है। पूर्वी भागों में रहने वाले लोग शरीर से कमजोर ठिगने और बुद्धि से चालाक होते है,पानी के अन्दर रहने या उष्ण जलवायु के कारण उनका शरीर काले रंग का होता है। इसके विपरीत दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ रहने वाले लोग अत्याचारी और अपनी बुद्धि को मारकाट की तरफ़ ले जाने वाले हिंसक प्रवृत्ति वाले होते है।यह सकारात्मक और नकारात्मक गति का प्रभाव माना जाता है। नदियों का पानी अधिकतर पश्चिम से पूर्व की तरफ़ उत्तरी ध्रुव की तरफ़ तथा कर्क रेखा के आसपास के क्षेत्रों में बहता हुआ पाया जाता है,लेकिन जैसे जैसे मकर रेखा के पास पहुंचते जाते है पानी की गति पश्चिम की तरफ़ जाती हुयी मिलती है। समुद्र के पानी की गति भी अक्सर देखने को मिलती है कि जैसे जैसे सूर्य कर्क रेखा की तरफ़ चलता जाता है,समुद्र का पानी दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ सिमटता जाता है और जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ बढता जाता है समुद्र का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ बढना शुरु हो जाता है। सपाट मैदानी भागों में हवा का रुख काफ़ी तेज होता है और पहाडी भागों में तथा हिमालय के तराई वाले भागों में हवा का बहाव कम ही मिलता है। तूफ़ान पहाडी चोटियों और समुद्री किनारों की तरफ़ अधिक चलते है,पृथ्वी का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ अधिक जमता हुआ चला जाता है,और सूर्य के कर्क रेखा की तरफ़ आने पर वह पिघल कर नदियों के रास्ते दक्षिण की तरफ़ के समुद्रों को भरने लगता है। जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ आता है समुद्रों का पानी वाष्पीकरण द्वारा हवा में नमी के रूप में आता है बादलों की शक्ल में बदलता है और उत्तरी भागों की तरफ़ बढता चला जाता है,हिमालय पहाड की चोटियों से टकराकर कुछ बादल तो भारत में बरस जाते है और जो बाहर उत्तर की तरफ़ निकल जाते है वे बर्फ़ के रूप में जम कर उत्तरी ध्रुव में पानी को जमाकर बर्फ़ में बढोत्तरी करते हैं। यह गति धरती की असमान्य गति है,जब भी कोई भूमण्डलीय बदलाव की स्थिति होती है अथवा मानवीय कारणों से कोई विकृति धरती के अन्दर पैदा की जाती है तो अचानक भूकम्प टीसुनामी आदि से धरती के ही वासियों को प्रकोप को भुगतना पडता है। वास्तु का रूप अगर सही बनाया गया है तो व्यक्ति जंगल में भी मकान बनाकर सृजन की तरफ़ लगा रहेगा,और अगर उसने मकान किसी बहुत सुन्दर जगह पर भी बनाया हुया है लेकिन वास्तु अनुरूप नही है तो वह हमेशा विध्वंशकारी नीतियों में चलकर केवल विनाश की बात को ही दिमाग में रखेगा।
सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा
सकारात्मक ऊर्जा के लिये पहले क्षितिज पर उदय होते सूर्य को देखना चाहिये,घर का दरवाजा अगर उदय होने वाले सूर्य के सामने आता है तो सूर्य से निकलने वाली रश्मियां सीधे रूप से घर के अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन अस्त होने के समय सूर्य की विघटित ऊर्जा घर के अन्दर प्रवेश करती है अगर घर का द्वार नैऋत्य में होता है। सुबह का मौसम नमी युक्त होता है और जो भी ऊर्जा आती है वह द्रव अवस्था मे होती है लेकिन शाम के समय की ऊर्जा सूखी और निरीह होती है,इसी कारन से पूर्व मुखी द्वार वालो को अक्सर पूजा पाठ और ध्यान समाधि के साथ उत्तरोत्तर आगे बढता हुआ देखा जाता है तथा पश्चिम मुखी दरवाजे वालों के यहां भौतिक साधन तो खूब होंगे लेकिन मन की शांति नही होगी,वे तामसी खाने पीने की आदत में जरूर चले गये होंगे,अगर वे किसी प्रकार से तामसी खाने पीने के साधनो में नही गये होंगे तो उनके घरों में सबसे अधिक खर्चा दवाइयों में ही होता होगा। रिस्तेदारी और प्रेम वाले मामलो में ईशान मुखी दरवाजे वाले व्यक्ति अधिक भरोसे वाले होते है,और नैऋत्य मुखी दरवाजे वाले लोग कभी भी किसी प्रकार की भी रिस्तेदारी तोड सकते है।
भूमि का चयन
जब मकान बनाना होता है तो सबसे पहले भूमि की जरूरत पडती है,भूमि को लेने के पहले उसके चारों ओर की बसावट पर्यावरण दोष आदि की परीक्षा,शमशान के पास वाली जमीन,गंदा नाला या नदी अथवा गंदा भरा हुआ पानी,वर्कशाप के पास वाली जमीन,जमीन पर किसी प्रकार का चलने वाला कोर्ट केश आदि, बिजली की लाइनों के नीचे वाली जमीन,झोपड-पट्टी वाली जमीन,जो जमीन डूब क्षेत्र में हो,बीहड या जंगल वाली जमीन,जिस जमीन पर कोई अपराध वाली घटनायें गोली कांड या दुर्घटना आदि हुयी हो,भूखण्ड का आकार चित्र विचित्र हो, दलदली भूमि,पानी वाले स्थान को मिट्टी भर कर पाट कर बनायी गयी जमीन,आदि दोष वाली जमीन लेने से बचना चाहिये। जमीन लेने के पहले देखलें कि जमीन पर निर्माण करने के बाद तथा बाद में निर्माण होने के बाद प्राकृतिक रूप से मिलने वाले प्रकाश में कमी तो नही हो जायेगी। रहने वाली जमीन के आसपास कोई आगे चल कर व्यवसायिक रूप तो नही रख लेगा,आने जाने के मार्ग को कोई अतिक्रमित तो नही कर लेगा,जिस बस्ती या मुहल्ले में जमीन क्रय की जा रही है वह नाम राशि के अनुकूल है कि नही,इस प्रकार से खरीदी गयी जमीन हमेशा सुखदायी होती है।
भूमि परीक्षण
भूमि परीक्षण से पहले नगर ग्राम की अनुकूलता ग्रह मैत्री विचार नामाक्षर नक्षत्र राशि वर्ग बोध एवं कांकिणी फ़ल का विचार चक्र से जान लेना चाहिये। मेष राशि की दिशा पूर्व की होती है,वर्ग अ होता है स्थान गरुड का होता है,उसी तरह से तुला राशि की दिशा पश्चिम होती है,वर्ग त होता है,और स्थान सर्प का होता है,कर्क राशि की दिशा उत्तर की होती है,वर्ग य होता है,स्थान मूषक का होता है। मकर राशि की दिशा दक्षिण की होती है,वर्ग च होता है,स्थान मार्जार (बिल्ली) का होता है। इसी तरह से अन्य दिशाओं के बारे में जान लेना चाहिये।