
नकारात्मक सकारात्मक
नकारात्मक सकारात्मक के बारे में जानने के लिये दोनो रूपों के एक जगह इकट्ठा होने की बात को लेते है,शिव का वाहन नन्दी बैल है और माता पार्वती का वाहन शेर है,शेर के लिये बैल पूरक है,बैल घास खाने वाला है और शेर मांस खाने वाला है,बैल शेर का भोजन है,एक साथ इकट्ठे कभी रह ही नही सकते है,यह प्रकृति की बात होती है,इन दोनो के द्वारा जो दर्शाव हुआ है वह है कि बैल नकारात्मक है और शेर सकारात्मक है बैल को शेर खा लेगा तो बैल है ही नही,लेकिन बैल के नही होने से शेर भी नकारात्मक है,जब भोजन ही नही होगा तो शेर जिन्दा कैसे रहेगा,एक की प्रकृति में मरना है और दूसरे की प्रकृति में मारना है। मतलब एक तो मरेगा ही चाहे कितने ही जतन करो,और एक मारेगा ही चाहे समय कितना ही लगे। दोनो का रूप शिव-पार्वती के लिये एक ही प्रयोग के लिये प्रयुक्त किये गये है,दोनो ही शिव और पार्वती के वाहन है,मतलब बिना शेर के पार्वती नही चल सकती है और बिना नन्दी के शिवजी नही चल सकते है। लेकिन दोनों को ही अपने अपने उद्देश्य के लिये एक ही स्थान में रखना और दोनो से ही अपना अपना काम लेने के लिये जो साधन आपको इस चित्र में देखने को मिलते है उन्हे गौर से देखिये। शक्ति के लिये जो अहम का रूप त्रिशूल डराकर काम निकालने के लिये शिवजी के हाथ में है,प्रेम से काम निकालने के लिये कमल का फ़ूल माता पार्वती के हाथ में है। जो शेर जैसी हिंसक शक्ति को प्रेम रूपी कमल से साधने की कला को जानती है,और वही अहिंसक रूपी बैल को डराकर काम निकालने के लिये त्रिशूल का रूप काम में लिया गया है। इसका मतलब है कि हिंसा को प्रेम से जीता जा सकता है,और अहिंसा को कायम रखने के लिये डर की जरूरत होते है। पुरुष रूपी शिव का हाथ केवल आशीर्वाद की मुद्रा में है,लेकिन स्त्री रूपी पार्वती का हाथ प्रदान करने वाली मुद्रा में नीचे की तरफ़ है,जो दोनो को समान्तर समझते है,उनके लिये तो शक्ति का हाथ काम करता है,लेकिन जो अहम को सामने रख कर काम करते है,उनके लिये आशीर्वाद तो है लेकिन शक्ति दे कुछ नही सकती है,इस भाव का एक अर्थ और लिया जा सकता है कि जो खडे होकर और तन कर शक्ति से प्राप्त करने की इच्छा करते है उनके लिये केवल आशीर्वाद ही है और जो झुक कर प्राप्त करना चाहते है उनके लिये शक्ति प्रदान करने की मुद्रा में नीचे की तरफ़ इशारा कर रही है। शिव का बीज "क्रीं" है और शक्ति का बीज "ह्रीं" है,क्रीं को मारक रूप में और ह्रीं को पालन के लिये प्रयोग में लाया जाता है। स्त्री का रूप पृथ्वी रूप में है,लेकिन पुरुष का रूप आकाश रूप में है इसी बात को समझाने के लिये शिवजी की जटाओं में चन्द्रमा को स्थापित किया गया है। पुरुष को अघोर वृत्ति पसंद होती है,लेकिन स्त्री को दीप्तमान बने रहने की प्रवृत्ति पसंद होती है,पुरुष कार्य करने के लिये और स्त्री कार्यो और कार्यों से मिलने वाले फ़लों को समाप्त करने के लिये जानी जाती है। अगर पुरुष स्त्री से प्राप्त करने की कामना रखता है तो वह या तो अपने को स्त्री के पूर्ण समर्पण में डाल दे,और अगर वह अहम को दिखाने की कोशिश करने के बाद प्राप्त करने की कामना करता है तो स्त्री उसे कहीं भी किसी भी जगह पर नीचा दिखाने में सफ़ल हो सकती है। बिना शक्ति के शिव नही है,और बिना शिव के शक्ति नही है,शब्दों के अन्दर भी इसी भावना का प्रयोग किया गया है,शब्द "शव" तब तक मुर्दा है जब तक कि उसके ऊपर छोटी "इ" की मात्रा नही लगती है,जैसे ही यह मात्रा लग जाती है वही "शव" "शिव" रूप हो जाता है,इस रूप को समझने के लिये जो एक बात समझने के लिये प्रयोग में होती है वह है कि पुरुष कमाने के लिये और स्त्री खर्च करने के लिये ही इस संसार में अवतरित है। लेकिन जो वह खर्च करती है उसका करोडों गुना फ़ल वह पुरुष को देती है,अप्रत्यक्ष तरीके से अगर समझा जाये तो इस अर्धनारीश्वर की महत्ता समझ में आसानी से आजाती है। इस अर्धनारीश्वर रूप का मंत्र है,-"ऊँ नम: शिवाये".