मानवीय मशीन

शरीर एक बायोकैमिकल प्लांट की तरह से काम करता है। जिस प्रकार से एक मशीन को चलाने के लिये फ़्यूल की जरूरत पडती है उसी प्रकार से शरीर को चलाने के लिये भोजन और पानी की जरूरत पडती है। शरीर के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं और दिमाग से सोचने से शरीर में ऊर्जा का विकास होता है,अधिक सोचने वाले के दिमाग में ऊर्जा का विकास अधिक होता है,जिस प्रकार से मोबाइल से अधिक बात करने के बाद वह बैटरी के अधिक प्रयोग करने के बाद गर्म होने लगता है उसी प्रकार से दिमाग से अधिक सोचने के कारण सिर भारी होने लगता है और माथा गर्म होने लगता है। इस शरीर में जो गतियां है वे कम्पयूटर की तरह से मानने पर दिमाग एक हार्ड डिस्क की तरह से है,भेजा जिसे कहा जाता है वह एक कठोर हड्डियों के आवरण के अन्दर अलग अलग विभागों में प्रकृति के द्वारा बनाकर स्थापित किया गया है। हर विभाग का कार्य अलग अलग होता है। भेजा जिसका बजन लगभग मात्र आधा किलो का होता है,जिसका रूप एक लिसलिसे आकार में होता है,और उसके अन्दर अगर सूक्षमदर्शी यन्त्र से देखा जाये तो अरबों खरबों चान्दी जैसे चमकते सितारे से दिखाई देते है,वे ही भेजा में सभी प्रकार की यादें इकट्टी करने के लिये शरीर के द्वारा प्रयोग में लाये जाते है। जो हम जीवन में आंखों से देखते है,कानो से सुनते है,नाक से सूंघते है और भोजन करने के समय जिव्हा से स्वाद के रूप में महसूस करते है,त्वचा से स्पर्श करने के बाद जो अनुभव मिलता है उसका एक एक हिस्सा अपने अपने स्थान पर जाकर इकट्ठा हो जाता है। और यह इकट्ठा हुआ भाग ही याददास्त के रूप में कहा जाता है,जैसे कम्पयूटर के अन्दर मेमोरी होती है और वह उसे तेज या धीमा चलाने के लिये मुख्य मानी जाती है,उसी प्रकार से माथे के अन्दर नाक से ऊपर और दोनो आंखों के बीच के भाग में आज्ञा चक्र में स्थापित ग्रन्थियां काम करती हैं। वह ग्रन्थियां ही सिर के अन्दर स्थापित भेजा को आपरेट करती है। एक जीवन में अरबों जीबी की याददास्त इस भेजा के अन्दर स्थापित होने के पीछे एक राज माना जाता है कि हर प्राणी के सिर से एक हाथ की ऊंचाई पर गोलाई में ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली चला करती है,अक्सर हम यात्रा या किसी प्रकार से जागृत अवस्था में नही होते है और हमारा अवचेतन मन भी किसी प्रकार से सो गया होता है तो वह पोटली भी अपने सभी कपाटों को बंद कर लेती है और हम जब किसी नये स्थान पर गये होते है तो हमे याद नही रहता है और हम कहने लगते है कि दिशा भ्रम हमारे अन्दर पैदा हो गया है,उसी रास्ते पर कई बार जाने के बाद भी हम उस रास्ते को पहिचान नही पाते है। यही ’श्वेताश्वेत’नामकी पोटली हमारे पीछे के जन्मों का वृतांत अपने अन्दर समेट कर रखती है,और हमारे द्वारा किये गये कार्यों व्यवहारों का पूरा लेखा जोखा अपने अन्दर रखती है,जब हम साधना या ध्यान मुद्रा में होते है तो वह पोटली हमारे शरीर के आसपास ’औरा’के रूप में फ़ैल जाती है,और हमारे विचारों को स्थिर रखने की कोशिश करती है। जैसे ही हम विचार शून्य हो जाते है उसी समय हम अपनी उस पोटली के अन्दर की बातें जानने लगते है कि हम पहले क्या थे और इसके अलावा जो गणित हमने पिछले जीवनों के अन्दर प्राप्त किया है उसका केलकुलेशन आगे के जीवन में क्या होगा।
हमारी तन्द्रा नामकी सोचने की शक्ति जब वापस आती है तो हम आज की जिन्दगी में होते है और अपनी इस शरीर रूपी मशीन को पहिचानने लगते है। हमारे आसपास जो भी होता है उसे हम उसे समझने और करने की क्रिया को करते है। जो अनुभव हमे पिछले समय से मिलता है उसी के अनुसार हमारी क्रियायें होने लगती है। अक्सर कभी कभी देखा होगा कि हम किसी के घर पर गये होते है और हमे लगने लगता है कि यह सब हमने पहले से देखा है या जो भी हम देख रहे है वह जाना पहिचाना सा लग रहा है,यह सब बाते पिछले जन्म से सम्बन्धित होती है। मैने खुद अनुभव किया है कि जब ध्यानावस्था में जाते है तो एक प्रकाश बिन्दु जो पहले काफ़ी दूर दिखाई देता है फ़िर वह धीरे धीरे नजदीक आता जाता है और उसके नजदीक आते ही एक विचित्र सा प्रकास चारों तरफ़ होता है,इस क्रिया को करने के लिये और समझने के लिये पहले आपको कुछ समय अपने कार्य के जीवन से निकालने पडेंगे और आपको पहले एकान्त में बैठ कर अपनी दोनों आंखों को बन्द करने के बाद नाक के ऊपर अपनी बन्द आंखों की द्रिष्टि को जमाना पडेगा,उसके बाद आपको अपने मन के अन्दर चलने वाले विचारों को शून्य करना पडेगा,और जैसे ही आपके विचार शून्य होने लगेंगे अक्समात आपको एक झटका सा लगेगा,और महसूस होगा कि आप धडाम से नीचे गिर गये है,जिन्हे पता होता है कि यह क्रिया होती है और वह ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली सिर पर आकर गिरती है तो हम अपनी भारहीनता को भी महसूस करते है। उसी का परिणाम यह होता है कि हमे लगता है कि हम गिर गये है। अगर व्यक्ति आने वाले विचारों से या भय से डिगता नही है तो वह आगे के प्रकास में जाकर अपने जीवन और बाहरी जीवन के लिये जानने का अनुभव ले सकता है। अगर वह अपने को विचारों से शून्य करने में असमर्थ रखता है तो वह पूरे जीवन भी लगा रहे तो वह सम्भव नही है कि वह किसी प्रकार के प्रकास को देख सके या किसी बात को महसूस कर सके। शरीर का मुख्य भाग सिर ही कहलाता है,गर्दन के ऊपर पीछे के भाग में जिसे मेडलाआबलम्बगेटा कहा जाता है के द्वारा एक सुषुम्ना नामकी पतली सी सूत जैसी सफ़ेद ग्रंथि रीढ की हड्डी से गुजरती है,और वह शरीर के तंत्रिका तंत्र को सम्भालने और संचालित करने के लिये मुख्य मानी जाती है। इस ग्रंथि के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को साधा जाता है और शरीर से क्रियायें करवायी जाती है,रात को सीधा बिना तकिया के सोने से यह तन्त्रिका तन्त्र के पीछे के किये गये कार्यों का सम्पादन करने का काम करती है,और दूसरे दिन के लिये शरीर के तन्त्रों को संचालित करने के लिये अपना योगदान देती है।
विश्व प्रसिद्ध लेखक शेक्सपीयर के दिमाग का विवेचन करने के बाद पता चला था कि उसके दिमाग मे दाहिने हिस्से में इतिहास पीछे के हिस्से में जो उसे करना था,बायें हिस्से का काम केवल सोचना और सामने के हिस्से में अपने मानने वाले भगवान का रूप हुआ करता था,एक श्रंखला को वह कभी तोडता नही था,और यही एक बात किसी भी ध्यान समाधि लगाने वाले को भी मानना चाहिये,किसी भी विचार की श्रंखला को तोडने के समय जो आगे की श्रंखला बनती है उसके बनने और उसे क्रिया मे लेने तथा उसके अन्दर तह तक जाने में जो समय पहले लगा था वह अधूरा रहने के कारण आगे की श्रंखला को भी पूरा नही कर पायेगा। इसी लिये जीवन में जो भी टारगेट एक बार बन जाते है उन्हे बीच में समाप्त करने वाले लोग अक्सर सफ़ल नही हो पाते है,यह बात उन लोगों में अक्सर देखी जाती है जो अपने विचारों के टूटते रहने के कारण अपनी गृहस्थी तक नही बसा पाते,आज बसाना कल खत्म कर लेना भी माना जा सकता है,इसके अलावा उनके विचार कई आते है और कई चले जाते है,विचारों को जानने के लिये सबसे पहले हमे दिमाग के उस हिस्से में भी जाना पडेगा जहाँ से दिमाग का संचालन किया जाता है। दिमाग को चलाने के लिये आंखे की-बोर्ड की तरह से काम करती है,आंखो की निगायें माउस जैसा काम करती है,कान ध्वनि को महसूस करने वाले सेंसर है,नाक इन्वोइर्मेंट सेंसर के रूप में काम करती है। त्वचा टच-की-पेड की तरह से काम करती है,इन सब अंगों से प्राप्त होने वाले संदेश भेजे के अन्दर सीधे नही जाते है उनको पहले आज्ञा चक्र से समझा जाता है फ़िर उन्हे शरीर के पीछे स्थापित शेषनाग नामक मेडुलाआबलम्बगेटा में भेजा जाता है जहां से सुषुम्ना नामक ग्रंथि के द्वारा शरीर से क्रिया करने के लिये आदेशित किया जाता है। उन आदेशों को मानने के लिये शरीर के सभी अंग अपने अपने अनुसार कार्य करने लगते है जो किया जाता है वह भेजा मे इकट्ठा हो जाता है,लेकिन जब श्रंखला समाप्त हो जाती है तो वह दिमाग में एक आदत की तरह से होने लगता है जैसे पहली श्रंखला को हटाया गया और फ़िर दूसरी श्रंखला को हटाया गया तो तीसरी श्रंखला को दिमाग अपने आप से ही हटाने लगता है,वह उस ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली को भी नही खोलता है और व्यक्ति किसी भी काम में सफ़ल नही हो पाता है। इसलिये पहली बात होती है कि शरीर को मजबूत और जीवन में सफ़लता लेने के लिये किसी भी दिमाग में चलने वाली श्रंखला को तोडा नही जाये।

गति से गति की प्राप्ति

शरीर और साधनों से भौतिक ऊर्जा का उत्पादन

प्रकृति ने जहाँ बल प्रयोग करने पर ऊर्जा को खर्च करना बताया है वहीं पर मानवीय दिमाग से उसी प्रकृति से कैसे ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है इसका एक छोटा सा विवेचन आपके सामने प्रस्तुत है,शरीर से भौतिक ऊर्जा को उत्पादित करने के लिये अपने प्रयासों को तेज करना पडेगा। सरकारी तंत्रों से प्राप्त ऊर्जा बहुत महंगी और वहन नही कर पाने के कारण शरीर की ऊर्जा को अन्य प्रकार से बनाने और प्रयोग करने के लिये जो साधन प्रयोग करने पड सकते है उनके लिये अपने दिमाग को थोडा सा घुमाने की जरूरत है,इसके लिये किसी बडे वैज्ञानिक या बडे प्रोडक्ट की जरूरत नही पडती है। शरीर की गतिमान स्थिति में शरीर से भौतिक ऊर्जा को किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है उसके लिये अलग अलग तरीके से सोचने की आवश्यकता है।

शरीर द्वारा प्राप्त की जाने वाली ऊर्जा

मनुष्य शरीर सुबह को जागने से लेकर सोने तक गतिमान होता है,उस गतिमान अवस्था में विभिन्न तरीकों से विद्युत पैदा की जा सकती है। जैसे हाथ के हिलने से पैर के चलने से उठने पर बैठने पर व्यायाम करने पर कार्य के समय सभी जगह शरीर की गति रहने से विद्युत को पैदा किया जा सकता है,छोटे छोटे डायनोमा बनाकर शरीर की गति के अनुसार उन्हे चलाने से जो ऊर्जा प्राप्त होगी उसे शरीर की पहनी जाने वाली ड्रेस के अन्दर रीचार्जेबल बैटरी को चार्ज किया जा सकता है।

घर के अन्दर के साधनों से पैदा की जाने वाली ऊर्जा

रात को सोने के समय जिस बिस्तर को प्रयोग में लेते है उस बिस्तर के अन्दर फ़्लेक्सेबल गद्दा लगाकर या सोने वाली सतह की प्लाई के नीचे उन डायनोमा को लगाकर बिजली पैदा की जा सकती है,जैसे ही व्यक्ति करवट बदलता है,उठता है बैठता है बच्चा कूदता है,कोई भी क्रिया बिस्तर पर होते ही वह लघे हुये डाइनोमा अपना काम करने लगेंगे और पलंग के किसी भी उपयुक्त भाग में बिजली एकत्रित होती रहेगी। इसके अलावा पहनी जाने वाली चप्पलों के अन्दर लगे डायनोमाओं से बिजली बनती रहेगी जो चप्पल के अन्दर ही लगी बैटरी में एकत्रित होती रहेगी। इसके अलावा घर के फ़र्स को चलने वाली सतह के नीचे फ़्लेक्सेबल सतह बनाकर डायनोमा लगाये जा सकते है जिनसे चलने के समय भी बिजली पैदा हो सकती है। किवाडों को खोलने बन्द करने के समय भी डोर क्लोजर की तरह के डायनोमा बना कर उनसे बिजली बनाई जा सकती है। रसोई के फ़र्स को भी फ़्लेक्सेबल बनाकर उसके नीचे छोटे छोटे डायनोमा लगा कर बिजली पैदा की जा सकती है। जहाँ बरसात अधिक होती है वहाँ छत से निकलने वाले पानी को नीचे गिरने वाले स्थानों में छोटे छोटे फ़्लेट पंखडियों वाले डायनोमा लगाकर भी बिजली बनाई जा सकती है। जहाँ बर्फ़ अधिक पडती है वहाँ की छतों को वर्टिकल बनाने और वजन पडने पर एक तरफ़ झुकने तथा बर्फ़ पिघलने पर अपनी वास्तविक पोजीसन में आजाने वाली स्थिति का बनाकर उनके नीचे मूवमेण्ट के समय भी डायनोमा को चलाया जा सकता है। घर के अन्दर आने वाले पानी के नलों और छत पर रखी पानी की टंकियों से नीचे पानी के प्रेसर को भी नलों के अन्दर छोटे छोटे डायनोमा लगाकर बिजली को बनाया जा सकता है। चलने वाली हवा और गर्मी का प्रयोग भी बिजली बनाने के लिये पहले से ही प्रयोग में किया जाने लगा है लेकिन उनके लिये बडे रूप में ही साधन मिलते है छोटे रूप में नही मिलते है,इनके लिये छोटे छोटे उपकरणों का प्रयोग किया जाना बेहतर रहेगा। सोलर लाइट को लगाने के लिये सरकारी मशीनरी को और गति लाने की जरूरत है।

नदी नहर समुद्र के पानी से प्राप्त की जाने वाली ऊर्जा

अक्सर हवा चलने के समय समुद्र के अन्दर लहरें पैदा होती है और हर लहर के अन्दर एक गति होती है। उस गति का प्रयोग एक ऊर्जा को प्राप्त करने वाले यंत्र की तरह डायनोमा या अन्य तरफ़ के यंत्र लगाकर किया जा सकता है। नदी के बहाव में जहाँ बडे बडे बान्ध नही बनाये जा सकते है वहाँ छोटे छोटे डायनोमा लगाकर नहरों,नदियों के पानी की गति का लाभ लिया जा सकता है।

सडकों वाहनों नालियों गलियों आफ़िसों हाई-वे के द्वारा प्राप्त की जाने वाली ऊर्जा

भीडभाड वाले क्षेत्रों में फ़र्स को फ़्लेक्सेबल बनाकर उनके नीचे छोटे छोटे डायनोमा लगाकर बहुत सारी बिजली बनाई जा सकती है। बडे बडे हई-वे भी इसी तरह से काम में लाये जा सकते है,रेल की पटरियों के नीचे पडने वाले भार को वर्टिकल बनाने पुलों के ऊपर पडने वाले भार की गति को प्रयोग में लाकर भी बिजली बनाई जा सकती है। वाहनों के पहियों में कम दाब वाले चुम्बकीय पटल बनाकर भी असीमित बिजली बनाई जा सकती है। शहरों के अन्दर या फ़ैक्टरियों में होने वाले शोर को डायफ़्रेम टेकनोलोजी से भी बिजली बनायी जा सकती है। गलियों में चलने वाली नालियों और बगीचों में खडे पेडों के आसपास फ़्लेक्सेबल डायनोमा लगाकर भी बिजली बनायी जा सकती है। आफ़िस में काम करने वाले स्थान पर बार बार खुलने वाले गेटों में और कार के दरवाजों में तथा सिटीबसों के गेटों में पायदानों में डायनोमा फ़िट करने के बाद भी बिजली का निर्माण किया जा सकता है।

उपरोक्त साधनों के अलावा भी कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ से आराम से बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इनके लिये माइक्रोडायनोमा से लेकर छोटे बडे डायनोमा और उनके जैसे वायब्रेसन को महसूस करने वाले साधनों से हर स्थान और हर उस कार्य से बिजली बनाई जा सकती है जहाँ बल का प्रयोग किया जाता है।

कुमुदिनी

ज्योतिष में कभी कभी भाव और ग्रह युति बहुत ही लुभावना द्रश्य पैदा कर देते है,उन भावों को समझने के बाद बडे बडे ज्ञानी भी अपने मन को नहीं संभाल पाते है। एक कुंडली के अन्दर मैने बहुत ही सुन्दर भावनात्मक पहलू को देखा और समझा भी,दूर से भी और पास से भी,सभी पहलुओं में उस भावना को परमपिता परमात्मा की कृति के अलावा और कुछ कहा भी नही जा सकता है। अगर किसी जातक के चौथे भाव में बुध शनि का योग हो,और बारहवें भाव में चन्द्रमा की उपस्थति हो तो एक फ़ूल की कल्पना बडे आराम से की जा सकती है,बारहवें भाव का चन्द्रमा आकाश में चन्द्रमा का होना आभासित करता है,और उस चन्द्रमा की रोशनी चौथा भाव जो तालाब और पानी के स्थान के रूप में माना जाता है,के अन्दर बुध जो हरे पत्ते के रूप में और शनि जो हरे रंग को गहरे हरे रंग का बनाने में अपना सहयोग करता वह भी अपनी सख्त कालिमा लेकर। पूरा भावार्थ लगाने पर यही द्रश्य सामने आता है एक तालाब के अन्दर चांदनी रात में सुशोभित कुमुदिनी का फ़ूल,कमल तो दिन में सूर्य के उदय होने पर और कुमुदिनी रात को चन्द्रमा के उदय होने पर खिलती है। शनि का योगात्मक रूप बुध के साथ अगर चन्द्रमा से जोड दिया जाये तो वह एक भावनात्मक कलाकार का भी जन्म लेना माना जायेगा। बुध मजाकिया है,चन्द्रमा भावना से भरा हुआ,और शनि के मिल जाने से वह भावना मजाकिया रूप से दिल की बात भी कह जायेगी और हमेशा के लिये पत्थर पर तरासे अक्षरों की भांति रह भी जायेगी। माता,मन,मकान,पानी,आन बान शान,वाहन,आसपास के लोग आदि सभी तो इस चौथे भाव में आजाते है,यह कुमुदिनी का पुष्प किन किन रूपों में अपना द्रश्य उत्पन्न करेगा यह बात सोचने के बाद ही पता चलेगी। चौथा भाव दूध के लिये भी जाना जाता है,दूध के अन्दर काला और हरे रंग का पुट मिलाकर अगर कुछ बनाया जा सकता है तो वह एक ही चीज मानी जाती है,काजू पिस्ता मिली दूध की खीर,और वास्तव में जब भावनात्मक तरीके से वह पिस्ता वाली खीर ऐसे ही व्यक्ति के द्वारा खिलायी जाये तो कितना हर्ष अनुभव होगा। चौथे भाव का शनि मन के अन्दर अन्धेरा देता है,अगर ऐसा व्यक्ति कविता करने लग जाये तो सभी कवितायें अन्धेरे में कुछ खोजने जैसी तो होंगी। उन कविताओं को पढ कर लगेगा कि जो अन्धेरा मन के अन्दर है उसके अन्दर कुछ चीज खोजी जा रही है,वह खोजी जाने वाली चीज कोई और नही बल्कि मन के अन्दर दूर से देखी जाने वाली एक बहुत ही मुलायम वस्तु होगी।

कर्म

कर्म
कार्य का दूसरा नाम ही कर्म कहा जाता है,कर्म के विभिन्न नाम और दिये गये है,विरति,कारज,काज और जो भी संसार का जीवित जगत कर रहा है,वही कर्म कहलाता है,बिना कर्म के कोई अच्छा या बुरा परिणाम नही होसकता है,अच्छा कर्म किया जायेगा तो अच्छा फ़ल मिलेगा,और खराब कार्म को करने पर खराब फ़ल मिलेगा,"जो जस करिय सो तस फ़ल चाखा",गोस्वामी तुलसी दासजी की रामायण में बहुत ही अच्छी तरह से समझाकर लिखा गया है,रामायण में ही ज्योतिष शास्त्र के गूढ शब्दों का भी विवेचन किया गया है,जो लोग रामायण को अपने जीवन का आदर्श ग्रंथ मानकर चलते है,वास्तव में वे सदाचारी होते है.तुलसीकृत रामायण में कर्म के लिये बहुत ही अच्छी चौपाई लिखी गयी है,"धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना",संसार मे सभी किये जाने वाले कर्म केवल धर्म से ही पैदा होते है,और जब धर्म से कर्म पैदा होते हैं,तो कर्म को किये जाने के बाद उनसे ज्ञान नाम फ़ल मिलता है,और जो ज्ञान नाम फ़ल का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों मे किया जाता है,तो मोक्ष नाम शांति मिलती है.यह चौपाई ज्योतिष के नवें भाव धर्म,और दसवें भाव कर्म,ग्यारहवें भाव फ़ल की प्राप्तियां,और बारहवें भाव खर्च करने की क्रिया को बहुत ही सुन्दर रूप से प्रस्तुत करती है.
===धर्म से कर्म===
[[धर्म]] को समझने के लिये [[धर्म]] को ही पढना पडेगा,लेकिन जो बृह्त रूप से अर्थ लिया जाता है,वह सुबह से लेकर शाम तक की क्रियायें,महिने के शुरुआत से लेकर महिने के अन्त तक की क्रियायें,और साल के शुरु से लेकर साल के अन्त तक की क्रियायें,जीवन के शुरु से लेकर जीवन के अन्त तक की क्रियाओं के अन्दर जो मुख्य बात छुपी है वह [[धर्म]] ही छुपा हुआ है,[[हिन्दू]] [[धर्म]] के अन्दर पैदा होने वाला जातक जो भी कर्म करेगा वह [[हिन्दू]] [[धर्म]] के अनुसार ही करेगा,अपने को जो प्राथमिक रूप से ध्यान रखने वाली बात के अन्दर रखेगा वह [[धर्म]] पहली बात ही होगी,[[धर्म]] का [[अर्थ]] केवल मन्दिर,मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारा में पूजा पाठ या इबादत करने से ही नही लिया जाता है,सबसे बडा [[अर्थ]] जो लिया जाता है वह अपने पिछले [[संस्कार]],पुरानी मान्यतायें,और पूर्वजों के अनुसार ही माना जा सकता है.[[हिन्दू]] के कर्म होंगे वे पहले अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाये गये कर्मों के अनुसार ही माने जायेंगे,अधिक नही तो जीवन की पहली सीढी तक तो अपनाने जरूरी ही माने जा सकते हैं,जैसे बच्चा जब समझदार होता जाता है,वैसे ही जो भी कर्म करता है,वे अपने माता पिता के अनुसार ही करता जाता है,वह बात अलग है कि जब वह अपने में इतना सक्षम हो जाता है कि वह अलावा धर्म के अनुसार अपने को ढालना चाहता है,तो ढाल भी लेता है,लेकिन अगर वह अलावा धर्मों की तरफ़ जाता है तो या तो वह अपने को अपने धर्म से पीछे रख देता है,या फ़िर अपने [[धर्म]] से बिमुख ही हो जाता है.जैसे एक उदाहरण है कि मैं खुद ही एक क्षत्रिय राजपूत खानदान भदौरिया जाति में पैदा हुआ हूँ,जबतक समर्थ नही हुआ,पिता के साथ मिलकर घर के कामों के लिये जो भी काम खेती आदि के होते हैं करता रहा,शादी होने के बाद जब [[अर्थ]] की जरूरत पडी तो माता पिता को छोडने के लिये मजबूर होना पडा,गांव जन्म स्थान सभी को छोड कर जयपुर में आकर बसा,और मेहनत वाले काम जानने के कारण केवल मेहनत करने वाले लोगों के साथ ही रहना पडा,मेहनत करने वाले कर्मों का एक ही उद्देश्य होता है,वह होता है केवल [[अर्थ]] सिद्धि,पैसा कमाना,मेहनत मे अपने शरीर को प्रयोग करना और बुद्धि का प्रयोग केवल मेहनत वाले कामों के अन्दर किस तरह से मेहनत करनी है में ही लगाना,जिन लोगो के साथ मेहनत वाले कर्म करने थे,वे सभी पूजा पाठी धर्मों के लोग थे,लेकिन उनका केवल एक ही [[धर्म]] था,और वह था,पेट पूजा का [[धर्म]],पेट पूजा के [[धर्म]] में कर्म का करना बहुत ही जरूरी हो जाता है,वह कर्म चाहे मेहनत करने के द्वारा फ़ावडा चलाकर शाम को मिलने वाली मजदूरी के द्वारा हो या फ़िर हाथ ठेली से लोगों का सामान ढोकर मिलने वाली मजदूरी से हो,इस मेहनत वाले कर्मों के अन्दर कितने ही काम आ जाते है,जो शरीर को प्रयोग करने के बाद [[अर्थ]] साधन की जरूरत को पूरा करदेते है.लेकिन इन सब कामों के अन्दर शरीर की बहुत अधिक जरूरत पडती है,शरीर को पालने के लिये माता पिता और समाज की जरूरत पडती है,शरीर की रक्षा करने के लिये भी समाज और गांव की जरूरत पडती है,तो जिस जगह पर मनुष्य निवास करता है,उस स्थान की खुशी में खुश रहना,उस स्थान की गमी में गम करना भी मुख्य [[धर्म]] माना जाता है,[[धर्म]] को न पालने पर कर्म के अन्दर हील हुज्जत आ जाती है,जैसे एक ईसाई मुहल्ले मे रहना है,क्रिसमिस के दिन सभी अपने घरों को गुब्बारों और सितारों से सजाते हैं,"ईसामसीह" जिनका उल्टा नाम समझने से "हंसी मे सांई" का सीधा [[अर्थ]] आ जाता है,की इबादत और प्रार्थना करनी पडती है,को न करने पर बगल वाला पडौसी ही नफ़रत भरी द्रष्टि से देखना चालू कर देता है,और कोई मिलने वाला भी आता है बगल वाले पडौसी से पता पूंछता है,तो वह पता नही है कहकर सीधा मानसिक प्रहार करता है,मानसिक प्रहार के कारण जो मिलने जुलने वाले लोग है,वे भी दूर और दूर होते जाते हैं,अक्सर कहा जाता है,कि अगले को तो पडौसी भी नही जानते,तो उसका क्या भरोसा,और कर्म के अन्दर कितनी ही दखलंदाजी पैदा हो जाती हैं.आज के राजनीतिक लोग जो फ़ायदा उठा रहे हैं वह [[धर्म]] का फ़ायदा ही तो उठा रहे हैं,[[काग्रेस]] मुसलमानों और पंडितों का फ़ायदा उठा रही है,मुसलमानों का इसलिये के भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादाजी,का असली नाम ग्यासुद्दीन गाजी था,और उन्होने ब्रिटिस सेना से बचने के लिये अपना नाम बदल कर "गंगाधर" रख लिया था,इन्हीं बने हुए ब्राहम्ण गंगाधर के मोतीलाल हुए और कालचक्र की कसौटी पर पंडित बन गये,फ़िर इतिहास स्वर्गीय इन्दिरा गांधी ने अपनाया और फ़िरोजखांन से शादी करने के बाद उन्हें गांधी जी ने गांधी बना दिया.[[भाजपा]] भी [[धर्म]] को भुनाकर अपनी राजनीति कर रही है,सुश्री मायावती भी समाज को वर्गीकृत करने के बाद राजनीति कर रही है.लेकिन जो सबसे बडा [[धर्म]] पेट पूजा वाला [[धर्म]] न किया जाये,तो किये जाने वाले कर्म को व्यक्ति कहां से कर पायेगा.
===कर्म से अर्थ===
कर्म के कितने ही रूप आज सामने है,कोई नौकरी करने को कर्म मानते है,नौकरी दूसरों की सेवा करने के बाद मिली हुई तन्खाह यानी [[अर्थ]] है,और कोई अपने सामान को बेचने और दूसरों का खरीदने का कर्म कर रहे है,वे व्यवसायी कहलाते है,कोई खेती का कर्म करने के बाद लोगों का पेट पालने के लिये अन्न आदि का उत्पादन कर रहे है, और बदले में अन्न को बेच कर अपने परिवार की अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे है,कुन्डली का दूसरा भाव ही भौतिक धन का का कारक कहा जाता है,और व्यक्ति के शरीर और नाम के बाद धन की मात्रा का ही ज्ञान किया जाता है,वह धन जो भौतिक रूप से दिखाई देने वाले होता है,सोना,चांदी,जेवरात,हीरे जवाहारात,नगद रुपया आदि इसी भाव से देखे जाते है.व्यक्ति का प्रत्येक कार्य धन कीमापना से देखने के कारण जो लोग दूसरों के प्रति उनकी भलाई आदि का भाव भी रखते है वह भी समय आने पर भुनाने की कोशिश करते है,एक बाप अपने बेटे को पालता है पढाता है लिखाता है और जब वह समर्थ हो जाता है तो बुढापे के लिये आशा रखता है, कि वह उनकी कमजोरी की हालात में सहायता करता है,लेकिन वही लडका अगर किसी कारण से उस समाज में जाकर घिर जाता है,जहां पर माता पिता को मान्यता ही नही देते है,माता और पिता बच्चे को पैदा जरूर करते है उनकी समय की जरूरतों को भी पूरा करते है लेकिन अधिकतर मामलो मे वे जब स्वतन्त्र प्रकृति के हो जाते है तो उनको ख्याल ही नही रहता है कि कोई उनके लिये जीवन रूपी रास्ते मे आशा लगाकर भी बैठा है,कर्म किया जाता है,कर्म का मतलब अगर हर तरह से अर्थ से लिया जायेगा तो माता पिता का प्यार बच्चे को पैदा करने के बाद प्रसव की पीडा उसकी हर प्रकार की परवरिश का परिमाप किसी भी प्रकार से धन से तो लगाया नही जा सकता है,अपने से छोटे भाई बहिनो को बताये जाने वाले रास्तों के लिये उनसे समाधान की फ़ीस तो नही ली जा सकती है,अपने साथ अपने घर मे रखने पर उनसे किराया तो नही लिया जा सकता है,उनको जो भी शिक्षात्मक बातें बताईं जाती है,उनके लिये चार्ज तो नही किया जाता है,बीमारी कर्जा और दुश्मनी मे उनसे सभी खर्च तो नही लिये जाते है,उनकी शादी करने और और उनके लिये पति या पत्नी खोजने के लिये मैरिज ब्यूरो की तरह् से धन का कमीशन तो नही लिया जाता है,उनमे अगर किसी की मृत्यु हो जाती है,तो उनसे शमशानघात तक लेजाने और उनकी क्रिया कर्म करने की फ़ीस तो चार्ज नही की जा सकती है,उनके जन्म के बाद जो भी जायदाद का हिस्सा होत अहै उसमे से उनको बेदखल तो नही किया जा सकता है,वे जिसे पिता कहते है वही पिता सामने वाले का भी होता है,उससे अंकल कह कर तो नही बुलाया जाता है,अगर रास्ते में कोई मित्र मिल जात अहै और पूंछता है कि क्या आप अमुक के ब्डे भाई है तो आप यह तो नही कह सकते कि नही उससे मेरा कोई रिस्ता नही है,और वक्त पर जब उसे कही जाना होता है तो वह अगर आपकी सहायता चाहता है,तो आप मना तो नही कर सकते है कि नही आप किसी अजनबी की तरह यह कह देम्गे कि अभी आपके पास समय नही है,यह सब बाते कर्म और कर्म के बदले में धन की चाहत परिवार और खासकर अपने लोगो के साथ नही मानी जाती है,मैने कितने ही राजस्थानी लोगो को देखा है,हम सब तो भाई बहिनो तक ही सीमित होकर रह गये है,यहां पर जब जमात जुडती है तो पिता के भाई की पत्नी के भाई का साला और उसके भी रिस्ते दारों का ख्याल किया जाता है,और इसका प्रभाव यह भी होता है कि कोई भी काम सरकारी रूप मे अटक जाता है,या पुलिस आदि किसी को परेशान करती है तो व्यक्ति सीधी जान पहिचान करने के बाद ही बेदाग बच जाता है और उसी जगह पर जो राजस्थान का निवासी नही है,कितनी ही कोशिश करे,वह नही बच पाता है,तो जो फ़ायदा वंशानुगत जान पहिचान से कर्म करने से होता है,वह साधारण रूप से केवल मुद्रा तक ही सीमित होता है,उस मुद्रा में अपनत्व नही होता है.
===अर्थ से संतुष्टि===
कार्य करने के बाद जो भी बदले मे पारिश्रमिक मिलता है,उसे ही किये जाने वाले कार्य की संतुष्टि या फ़ल कहते हैं,नौकरी करने के बाद जो तन्खाह मिली उसे अपने परिवार या निजी इच्छा पूर्ति के लिये खर्च करने के बाद जो मानसिक प्रतिफ़ल मिला वही अर्थ की सम्तुष्ति कहलाती है.यह बात ज्योतिष के अनुसार ग्यारहवां घर तो फ़ल का है और उस मिले फ़ल को प्रयोग करना,जैसे पैसे के रूप में फ़ल मिला तो खर्च करने से और अगर खाने के रूप मे फ़ल मिला तो शरीर को पालने के लिये,और नाम के रूप मे फ़ल मिला तो उसे समाज मे बताकर आगे की प्रभुता लेने के लिये प्रयोग करने पर जो भावनात्मक इच्छापूर्ति होती है वही शांति या मोक्ष कहलाती है.इस प्रकार से तुलसीदास जी की रचित चौपाई का अर्थ धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,और ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना,को माना जकता है.
नोट:- यह लेख मैने विश्व की प्रसिद्ध साइट विकिपीडिया के लिये लिखा था,उसके अन्दर प्रकाशित भी है.

वर्ण गुण बोधक चक्र (Varna Gun Bodhak Chakra)

वर्ण गुण बोधक चक्र (Varna Gun Bodhak Chakra)

वर्ण चक्र (Varna Chakra) से किस प्रकार गुण मिलाये जाते हैं, इसके परिणाम की यहां विवेचना करते हैं। अष्टकूट मिलान करते समय वर्ण गुण बोधक चक्र में अगर वर का राशि वर्ण शूद्र एवं कन्या का राशि वर्ण ब्राह्मण ज्ञात होता है तब स्थिति अनुलोम मानी जाती है क्योंकि कन्या की राशि पुरूष की राशि से पहले हुई। इस स्थिति में वर कन्या के वर्ण गुण का योग शून्य आता है। इस योग को सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इस स्थिति में अगर विवाह (Marriage) सम्पन्न किया जाता है तब पति को कष्ट होता है या विदेश जाना पड़ता है साथ ही संतान सम्बन्धी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।

वर्ण गुण बोधक चक्र में योग द्वारा अंकों का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है इसे आप उदाहरण से स्पष्ट समझ सकते हैं मान लीजिए वर का जन्म स्वाति नक्षत्र (Swati Nakshatra) में एवं तुला राशि में हुआ हो और कन्या का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र (Punarvashu Nakshatra) के चतुर्थ चरण एवं कर्क राशि में हुआ है तो इस स्थिति में अष्टकूट मिलान करने पर वर का राशि वर्ण शूद्र एवं कन्या का राशि वर्ण ब्राह्मण होता है।

शास्त्रों की मानें तो उनमें निर्देश दिया गया है कि कन्या की राशि अगर पुरूष की राशि से पहले हो तो विवाह नही करना चाहिए। इस सम्बन्ध में यह बताया गया है कि अनुलोम विवाह से वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति बनी रहती है। इन स्थितियों में दोष नहीं लगता है: 1. यदि वर और कन्या दोनों की राशि एक हो।

2.वर-वधू के राशीश (Lord of Zodic Sign) परस्पर मित्र हों।

3.वर-वधू के नवांशेश परस्पर मित्र हों।

4.वर-वधू के नवांशेश एक हों।

कुन्डली मिलान

कुन्डली मिलान

हम सभी चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन में सौहार्द एवं परस्पर सामंजस्य बना (Astrology for marriage compatibility) रहे। परंतु कई बार वैवाहिक जीवन में इस तरह गतिरोध उत्पन्न होने लगता है कि पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ती चली जाती हैं और सम्बन्ध विच्छेद तक हो जाता है।
इस तरह की स्थिति न आये और वैवाहिक जीवन सुखमय रहे इसके लिए हमारे समाज में कुण्डली मिलान (Marriage kundali matching) किया जाता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि विवाह के संदर्भ में जब कुण्डली मिलान किया जाता है तब इसमें मुख्य रूप से अष्टकूट मिलान किया जाता है और इसी से निष्कर्ष निकाला जाता है कि जिन दो स्त्री-पुरूष की कुण्डली मिलायी जा रही है उनका वैवाहिक जीवन सफल रहेगा अथवा नहीं।

ज्योतिर्विद कहते हैं कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपनी साधना एवं योग शक्ति के आधार पर जिन सूत्रों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उन्हें अष्टकूट के नाम से जाना जाता है। अष्टकूटों में 36 गुणों का योग होता है। अष्टकूट (Asht Kuta) कौन-कौन से एवं कितने प्रकार के होते हैं तथा किस प्रकार वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं, आइये इसकी व्याख्या करते हैं।

1. वर्णकूट विचार: (Varna kuta Consideration)

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशियों के चार वर्ण होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। राशियों में वर्ण विभाजन क्रमश: इस प्रकार से किया गया है, कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशियों को ब्राह्मण वर्ण की श्रेणी में रखा गया है। सिंह, धनु एवं मेष राशियों का वर्ण क्षत्रीय होता है, कन्या, मकर एवं वृष राशियों को वैश्य वर्ण का नाम दिया गया है जबकि तुला, कुम्भ एवं मिथुन राशियों को शूद्र वर्ण की संज्ञा दी गयी है।

विवाह के सम्बन्ध में जब कुण्डली मिलायी जाती है तब राशिगत तौर पर पुरूष का वर्ण स्त्री के वर्ण से पहले होने पर वैवाहिक जीवन में तारतम्य बने रहने का संकेत मिलता है अर्थात राशिगत तौर पर यह स्थिति होने पर विवाह संस्कार सम्पन्न किया जा सकता है। उपरोक्त स्थिति के विपरीत अगर कन्या की राशि पुरूष की राशि से पहले हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है अत: इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्र विवाह की आज्ञा नहीं देता है।

अगर कन्या (Bride) की राशि (Zodic Sign) "वैश्य" है और पुरूष (Groom) की राशि (Zodic Sign) "ब्राह्मण" है तो इस स्थिति में स्त्री अपने पति पर हावी नहीं रहती है अर्थात अपने पति की बातों को मानती व समझती है। कुण्डली मिलान करते समय अगर कन्या उच्च राशि यानी क्षत्रीय हो और पुरूष की राशि शूद्र हो तो इस स्थिति में शादी होने पर स्त्री अपने पति पर प्रभावी होती है यानी घर में पति की नहीं, पत्नी की कही चलती है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार राशियों के इस अनुलोम विवाह में वैवाहिक जीवन सुखमय रहने की संभावना कम रहती है अर्थात पति पत्नी में सामंजस्य की कमी रहती है इस तरह की समस्या से बचने के लिए ही कुण्डली (Birth Chart) में अष्टकूट (Astkut) मिलान करते समय राशियों के वर्ण (Cast) का विचार किया जाता है।

भूतवर्ग का विचार

भूतवर्ग का विचार

ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि आमतौर पर इस तरह की घटना इसलिए होती है क्योंकि हम बाहरी तौर पर गुणों का आंकलन (Assessment of Characterstic) करते हैं और कुण्डली में स्थित ग्रहों(Stages of Planets) के गुणों को नज़र अंदाज़ कर जाते हैं। आप चाहते हैं कि आपका वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण और सुखमय हो तो इसके लिए विवाह पूर्व कुण्डली मिलान (Kundli Matching) जरूर करलें। कुण्डली मिलान के लिए आप उत्तर भारतीय पद्धति (Method of North Indians) का चयन कर सकते हैं या चाहें तो दक्षिण भारतीय पद्धति(South Indians method) को अपना सकते हैं अगर आप दोनों से आंकलन करना चाहते हैं तो यह भी कर सकते हैं। उत्तर भारतीय पद्धति के आठ वर्ग से आंकलन(Assessment of North Indians from 8 Varg)(Assessmet of South indians methods from 20 koot) करने के पश्चात आप अगर दक्षिण भारत के 20 कूटों से आंकलन करना चाहें तो इसके अन्तर्गत भूतवर्ग से भी विचार करलें तो अच्छा रहेगा।

भूतवर्ग से किस तरह कुण्डली मिलायी (Kundli Matching from Bhoot Koot) जाती है तथा इससे कैसे फलादेश देखा जाता है आइये इसे समझते हैं। ज्योतिष ग्रंथ (Astrological Granth) प्रश्न मार्ग के अनुसार 27 नक्षत्रों को पंच महाभूतों में बॉटा(Division of 27 nakshatras in Five Muhurats) गया है। सबसे पहले महाभूतों का नाम जान लेते हैं, ये पंच भूत हैं क्रमश: 1. पृथ्वी तत्व (prithvi Tatv) 2. जल तत्व (Jal Tatv);3.अग्नि तत्व (Agni Tatv) 4.वायु तत्व(Vayu Tatv) और 5. आकाश तत्व (Akash Tatav)। भूतवर्ग में नक्षत्रों को क्रमश: 5, 6,5,6,5 के क्रम में रखा गया है, इस प्रकार देखें तो पृथ्वी तत्व के हिस्से में पांच नक्षत्र आते हैं अश्विनी, भरणी Bhrni), कृतिका (kritika), रोहिणी (Rohini) और मृगशिरा (Mrigshira)। जल तत्व के अन्तर्गत 6 नक्षत्र आते है आर्द्रा (Ardra), पुनर्वसु (Punrvasu), पुष्य (Pushay), आश्लेषा (Ashlesha), मघा (Mgha), पूर्वा फा.(Purva Phalguni)। अग्नि तत्व के अन्तर्गत उ. फा.(Utra Phalguni), हस्त (Hast), चित्रा (Chitra), स्वाती (Swati) और विशाखा(Vishakha) ये पांच नक्षत्र आते हैं। वायु तत्व के अन्तर्गत 6 नक्षत्र अनुराधा (Anuradha), ज्येष्ठा( jayeshtha), मूल (Mool), पूर्वाषाढ़ा (Purva Shada), उत्तराषाढ़ा (utra Shada) श्रवण  (Sharvan) आते हैं और आकाश तत्व(Akash Tatv) के हिस्से में घनिष्ठा (Ghnishtha), शतभिषा (Shatbisha), पूर्वाभाद्र.(Purva Bhadr), उ. भा (Utra Bhadr). और रेवती (Raevti) ये पांच नक्षत्र आते हैं।

फलादेश की दृष्टि (Aspect of prediction)  से देखा जाए तो वर और वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक भूतवर्ग में हो तो बहुत ही अच्छा माना जाता है, यह विवाह के श्रेष्ठ कहा जाता है। पृथ्वी तत्व सभी के साथ शुभ सम्बन्ध बनाता है अत: इसे भी अच्छा माना जाता है। अगर स्त्री- पुरूष में से कोई भी पृथ्वी तत्व का है तो विवाह किया जा सकता है। पृथ्वी तत्व के पश्चात आकाश तत्व को रखा गया है इसे सामान्य माना जाता है। मेलापक की दृष्टि से भूतवर्ग में जल और अग्नि तत्व में नक्षत्र होने पर अशुभ होता है अर्थात विवाह की इज़ाजत नहीं दी जाती है क्योंकि यह घातक होता है।

विवाह मिलान

वर कन्या के गुणों का मिलान दोनो की नाम राशि से मिलान करना ठीक रहता है,ज्योतिष से मिलान करने से अक्सर किसी न किसी प्रकार के समय की गणना सटीक नही बैठती है,एक पल की चूक से भी वर कन्या की जिन्दगी तबाह हो जाती है। चलने वाले नाम प्रकृति ने दिये होते है जबकि कभी कभी आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति की कुण्डली कालान्तर में बनायी गयी है और नाम राशि जो कुंडली में है वह किसी भी प्रकार से भी चन्द्र राशि से नही मिलती है,जब कुंडली की नाम राशि मिलती ही नही है तो कुंडली से गुण दोष मिलाने का अर्थ क्या रह जाता है। इसलिये जो नाम प्रकृति के द्वारा रखे गये है,उन्ही नामों से विवाह मिलाना हितकर होता है। प्रकृति के द्वारा नाम रखने का मतलब होता है कि घर परिवार या बाहरी लोगों के द्वारा किसी नाम से जातक को बुलाया जाने वाला नाम,वह नाम चाहे रोजाना के लिये बुलाकर लिया जाता हो या फ़िर स्कूल के रजिस्टर में सबसे पहले लिखाया जाने वाला नाम हो। समय जब सटीक मिलता हो और किसी भी प्रकार की शंका समय के प्रति न हो तो जन्म राशि से विवाह मिलाया जा सकता है,वैसे मेरे देखने में आया है कि सौ में से नब्बे जन्म राशियों में चन्द्रमा की गणना गलत ही मिलती है,नक्षत्र में पाये का विचार मुख्य माना जाता है और जन्म समय में अगर तीन मिनट का भी फ़ेर हो जाता है तो पाया कहीं का कहीं मिलता है। इसके अलावा दक्षिण भारत में नाडी की गति के अनुसार भी एक राशि के एक सौ पचास भाग करने पर व्यक्ति के स्वभाव और कर्म कहीं के कहीं जाकर मिलते है।
१. वर्ण निर्णय
२. वश्य निर्णय
३.तारा निर्णय
४.योनि निर्णय
५.ग्रह मैत्री निर्णय
६.गण निर्णय
७.भकूट निर्णय
८.नाडी निर्णय.

चलते हुये नामों के अन्दर इन आठ कारणों को आराम से देखा जाता है,सबसे पहले विवाह मिलान के लिये वर्ग का समाधान कर लेना ठीक रहता है। वर्ग भी आठ बनाये गये है,इनमें नामाक्षर और वर्ग को इस प्रकार से देखा जाता है:-
  1. गरुण वर्ग में नामाक्षर अ इ उ ए ओ
  2. बिडाल वर्ग में नामाक्षर क ख ग घ ड.
  3. सिंह वर्ग में नामाक्षर च छ ज झ यं
  4. श्वान वर्ग में नामाक्षर ट ठ ड ढ ण
  5. सर्प वर्ग में नामाक्षर त थ द ध न
  6. मूषक वर्ग में नामाक्षर प फ़ ब भ म
  7. हिरण वर्ग में नामाक्षर य र ल व
  8. मेढा वर्ग में नामाक्षर श ष स ह
इन वर्गों में शत्रु मित्र और समान वर्ग माने जाते है.

मूषक यानी चूहा और बिडाल यानी बिल्ली दोनो शत्रु है.
हिरण और सिंह दोनो आपस में शत्रु है.
गरुण और सर्प आपस में शत्रु है.
स्वान यानी कुत्ता और हिरण आपस में शत्रु है.
वर के नाम के पहले अक्षर से वधू के नाम का अक्षर अगर पांचवा हैं तो विवाह कदापि नही करना चाहिये,भले ही वह सर्वगुण सम्पन्न क्यों ना हो।
वर के नाम से चौथा वर्ग वधू के नाम का हो तो शादी जरूर कर देनी चाहिये,चाहे वह गरीब क्यों ना हो,वर और वधू के मिलते ही वे आपस में मिलकर नया सृजन करने लगेगे.
वर के नाम से वधू के नाम का तीसरा वर्ग उदासीन होता है,शादी कर भी जाये तो जीवन नीरसता से भरा होगा.
यही बात वर से वधू और वधू से वर के लिये देखी जानी चाहिये.
आपस की राशि को देखना
वर की राशि से कन्या की राशि और कन्या की राशि से वर की राशि अगर आठवीं है तो आठ प्रकार की मृत्यु हमेशा दोनो के बीच बरकरार रहेगी.
वर की राशि और कन्या की राशि अगर एक दूसरे से नवीं और पांचवी है तो जीवन कलह से पूर्ण होगा.
पाराशर के नियम के अनुसार अगर वर की राशि से कन्या की राशि और कन्या की राशि से वर की राशि दूसरी या बारहवीं है तो दोनो में एक दूसरे का विनाशक होगा।
आपस का वर्ण यानी जाति निर्णय
वर और वधू की आपस की नाम राशि से जाति निर्णय किया जाता है,जाति का अर्थ किसी समाज विशेष से नही होकर दोनो की प्रकृति से माना जाता है। चार प्रकार की प्रकृति को जाति के नाम से बताया गया है:-
१. ब्राह्मण जाति की प्रकृति
२. क्षत्रिय जाति की प्रकृति
३. वैश्य जाति की प्रकृति
४. शूद्र जाति की प्रकृति
१. ब्राह्मण जाति की प्रकृति
इस जाति की प्रकृति के लिये माना जाता है कि वह सात्विक विचारों से पूर्ण होती है,मर्यादा में चलना माता पिता और समाज को समझना हितू नातेदारी रिस्तेदारी को निभाना छोटे और बडे का भेद समझना अपने को दुखी रखकर भी दूसरे को सुखी रखना शिक्षा और वैदिक नियम या पुराने उच्चतम विचारों की मान्यता को बनाकर चलना,इज्जत मान मर्यादा देना,सफ़ाई से रहना भोजन पानी रहने के स्थान को धर्म मय रखना किसी प्रकार से हिंसा को नही अपनाना आदि कारण इस प्रकृति के अन्दर आते है.
२. क्षत्रिय जाति की प्रकृति
इस जाति की प्रकृति होती है वह सभी के हित और अनहित की परवाह करना रक्षा करना और शत्रु को मारना काटना बलपूर्वक अपने ही शरीर से सभी काम करने की इच्छा रखना तामसी कारणों के प्रति लापरवाह होना हिंसा से सम्बन्ध रखना चाहे वह कर्म से हो या सोचने से हो या कहने से हो,जिन कारकों में शरीर का प्रयोग करना होता है वहां यह वर्ण माना जाता है.
३. वैश्य जाति की प्रकृति
व्यापारिक दिमाग को वैश्य प्रकृति का कहा जाता है इस प्रकृति के लोगों में भौतिकता को अधिक महत्व दिया जाता है,औकात को पैसे से तोला जाता है,किसके पास कितना धन है और किसने कितनी जायदाद बनाली वह इस जाति के लोगों का अहम का रूप होता है इस प्रकृति के लोगों के सामने मान अपमान सभी धन से सम्बन्धित होते है।
४. शूद्र प्रकृति 
इस प्रकृति मे सेवा भावना की अधिकता होती है व्यक्ति को सेवा करने में ही अच्छा लगता है और अधिकतर इसी प्रकृति के लोग नौकरी करते हुये पाये जाते है। इस प्रकार के लोग सेवा को महत्व इसलिये देते है क्योंकि उनके अन्दर जोखिम लेने की हिम्मत नही होती है,वे काम कर सकते है लेकिन जोखिम को लेना उनके वश की बात नही होती है.
चार वर्ण की राशियां
कर्क वृश्चिक मीन यह चार राशियां ब्राह्मण वर्ण की है
मेष सिंह और धनु यह तीन राशियां क्षत्रिय वर्ण की है.
मिथुन तुला और कुम्भ यह वैश्य वर्ण की जातियां है
कन्या वृष और मकर यह शूद्र वर्ण की जातियां है.
 

विपरीत राजयोग से असाधारण धन

जब शुभ भावों के स्वामी बली होते है,तो धन मिलता है,यह तो सभी जानते है,लेकिन ऐसा भी देखा गया है,कि जो भाव कुन्डली में अनिष्ट का संकेत करते है,और अगर उनके स्वामी अगर किसी प्रकार से कमजोर है तो भी धन शुभ भावों के स्वामियों से अधिक मिलता है.कुन्डली के ६,८,और १२ भाव अनिष्ट भाव माने जाते है,इन तीनो को त्रिक भी कहा जाता है,इन किसी भी स्थान का स्वामी किसी त्रिक में या अनिष्ट ग्रह से देखा जाता है,तोबहुत ही निर्बल हो जाता है,इस कारण से विपरीत राजयोग की प्राप्ति हो जाती है,माना जाता है कि छथा भाव ऋण का है,और किसी पर लाखों रुपयों का ऋण है,और किसी आदमी द्वारा अक्समात उस ऋण को उतार दिया जाता है,तो उसको एक तो ऋण से छुटकारा मिला और दूसरे धन का लाभ भी हुआ,इसी प्रकार से आठवां स्थान गरीबी का माना जाता है,यदि किसी की गरीबी का अक्समात निवारण हो जाये तो वह भी विपरीत राजयोग की गिनती मे ही गिना जायेगा.इसी प्रकार से बारहवां भाव भी व्यय का है,और किसी का व्यय रुक कर अगर बैंक में जमा होना चालू हो जाये तो भी इसी विपरीत राजयोग की गिनती में गिना जायेगा.गणित का नियम सभी को पता होगा कि दो नकारात्मक एक सकारात्मक का निर्माण करते है,और दो सकारात्मक भी एक सकारात्मक का निर्माण करते है,लेकिन एक नकारात्मक और एक सकारात्मक मिलकर नकारात्मक का ही निर्माण करेंगे,इसी प्रकार का भाव इस विपरीत राजयोग मे प्रतिपादित किया जाता है.
इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी की जा सकती है:-आठवें भाव के स्वामी व्यय अथवा ऋण में हों,छठे भाव के स्वामी गरीबी या व्यय के स्थान में हो,और बारहवें भाव के स्वामी ऋण अथवा गरीबी में हों,अथवा अपने ही क्षेत्र में होकर अपने ही प्रभाव से परेशान हो,तो वह जातक धनी लोगो से भी धनी होता है.इसका विवेचन इस कुन्डली के द्वारा भी कर सकते है:- कन्या लगन की कुन्डली में बुध लगन में है,सूर्य केतु दूसरे भाव में तुला में है,गुरु शुक्र तीसरे भाव में वृश्चिक राशि में है,राहु शनि आठवें भाव में मेष राशि के है,मंगल चन्द्र नवें भाव में वृष राशि के है,इस कुन्डली में ऋण भाव के मालिक शनि मेष राशि के नीच भी है और गरीबी के भाव में भी विराजमान है तथा राहु से ग्रसित भी है,साथ ही सूर्य जो व्यय का मालिक है,से भी देखे जा रहे है,और कोई भी अच्छा ग्रह उसे नही देख रहा है,इसी प्रकार से सूर्य भी तुला का होकर नीच है,और केतु का साया भी है,अपने ही स्थान से तीसरे स्थान में है,राहु,शनि और केतु का पूरा पूरा ध्यान सूर्य के ऊपर है,और सूर्य के लिये कोई भी सहारा कही से नही दिखाई दे रहा है,यह उदाहरण विपरीत राजयोग का श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है.जातक लगनेश बुध के चलते बातो से कमा रहा है,पराक्रम में गुरु और शुक्र का बल है,गुरु ज्ञान है और शुक्र दिखावा है,मंगल चन्द्र नवें भाव से जो कि धन के मामले में परेशान जनता का उदाहरण है,को अपनी राय देकर मनमानी फ़ीस लेकर जनता को धन के कारणो जैसे कर्जा और धन के कारण चलने वाले कोर्ट केशो से फ़ायदा दिलवा रहा है,इधर शनि जो कि कमजोर होकर राहु का साथ लेकर बैठा है,सरकारी कारिन्दो की सहायता से मुफ़्त की जमीनो से और उनको खरीदने बेचने से भी धन की उपलब्धि करवा रहा है.

तंत्र का रूप और तांत्रिक

शमशान की राख को बटोर कर अघोरियों को पूजा करते हुये देखा था,लोग कहते थे कि जादूगर है और इससे बच कर रहना। जादूगरों का काम होता था कि वे अपने सम्मोहन से पहले जनता को रिझाते और बाद में अपनी कुछ बात करते हुये कुछ दिखा देते,लोग हैरान और परेशान होकर डरने लगते कोई कहता शमशान सिद्धि है कोई कहता कि भूत सिद्धि है,कोई कहता कि जिन्न को पाल रखा है और कोई कहता कि डाकिनी को साथ रखे हैं। इस शमशान की सेवा और अघोरी का काम तब समझ में आया जब देखा कि पुराने जमान के शमशान साधक कुछ भी नही हुआ करते थे जितने बडे शमशान साधक आज की दुनियामें सामने फ़िर रहे है एक ही नही दो नही लाखों नही करोडों नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व इन तांत्रिकों के जाल में उलझ कर रह गया है। और सभी को उलझाने और अपना उल्लू सीधा करने के लिये पता नही कितनी तरह की तकनीकी तांत्रिक क्रियायें इनके दिमाग में घुस गयीं है कि हर काम भूत को करने के लिये दे दियाहै। घर से लेकर बाहर तक जितना भूत का मंत्र फ़ूंक दिया जाता है उतना ही वह आगे चलता रहता है और जैसे ही भूत का मंत्र समाप्त भूत का काम बन्द। भूत को खाने के लिये कोई विशेष प्रसाद की जरूरत नही होती है,भूत के लिये केवल शुद्ध बिना हवा के अग्नि की जरूरत होती है,ऐसी अग्नि जिसके अन्दर हवा की मात्रा कतई नहीं हो,अगर हवा की मात्रा आ गयी तो भूत का बेडा गर्क होने में देर नही लगेगी,भूत की इतनी बडी शक्ति हो गयी है कि वह लाखों की संख्या के आदमियों को एक बार में ही अपने करतब दिखाने की औकात रखता है। जब कम्पयूटर के हार्डवेयर को देखेंगे तो पायेंगे कि उसके अन्दर कोई जीव नही बैठा है,एक ही चीज काम कर रही है वह है गर्मी,तरह तरह के सेमीकंडक्टर को गर्म करने के बाद जो प्रभाव ऊष्मा का होता है,वही प्रभाव हमे कम्पयूटर पर काम करने के लिये तैयार होने वाले प्रोग्राम यानी सोफ़्टवेयर का माना जाता है। उस गर्मी के रहने तक तो काम किया जा सकता है,और गर्मी के समाप्त होते ही वह भी बन्द हो जाता है। बाबाजी भी क्या करते है,लकडी जला कर धुंआ के सहारे बैठे रहते है,आग की तपन धीरे धीरे उनके शरीर में जाती रहती है,वही तपन उनकी शरीर की ऊर्जा को एक समान बनाये रखती है,गर्मी हो या बरसात सर्दी हो या तूफ़ान बाबा की धूनी नही बुझती है,फ़िर बाबा का शरीर भी कम्पयूटर की तरह से काम करना चालू कर देता है,बिजली की गर्मी से चलने वाले कम्पयूटर तो बिजली वाले कम्पयूटर से ही जुडे रहते है लेकिन आदमी का कम्पयूटर तो अन्न की गर्मी के रहने तक ही चलता है,उसी तरीके से बाबाजी का कम्पयूटर भी अपनी गर्मी को धीरे धीरे सोख कर वही काम करता है,बाबा जी की शरीर की पावर बढ जाती है,और आकशीय तरंगे उनके शरीर से निकल कर ब्रह्माण्ड में जा पहुंचती है,बाबाजी को कल का होने वाला दिखाई देने लगता है,और जब बाबाजी की मशीन पुरानी हो जाती है और इतनी गर्म हो जाती है कि कबाडा बन कर बिखरने को होती है तो जमीन के अन्दर समाधि ले ली जाती है। पहले समझा करता था कि बाबाजी पागल बनाने के लिये ही धूनी के सहारे बैठते है और उनके लिये यह भी सोचता था कि उन्हे अपनी चिलम को चलाने के लिये बार बार आग की जरूरत पडती है इसलिये ही वे अपने आगे आग को जलाकर रखते है। लेकिन जब कम्पयूटर के अन्दर चलने वाले सरकिट को देखा तो मेरे माथे का सरकिट पूरा का पूरा ही बदल गया। मेरे सरकिट बदलने के साथ बाबाजी की धूनी पर जाकर बैठने लगा और देखा कि वे चिलम को कम पीते है और शांत होकर किसी से हवा में बातें अधिक करते है,वे फ़ुसफ़ुसाहट की भाषा में बातें करते है,वह बातें करने वाला कौन है,मै भी पता नहीं कर पाता हूँ,मोबाइल का नम्बर हो तो ट्रेस भी किया जाये लेकिन बाबाजी जिससे बात कर रहे थे,वह तो बिना मोबाइल के ही कर रहे थे,कुछ बातें समझ में आ रहीं थी,उन्होने किसी से कहा कि परसों एक आदमी आयेगा वह यज्ञ करने के लिये बोलेगा,उसे क्या जबाब देना है,फ़िर हाँ हूँ में सिर हिलाते रहे। मैं तीसरे दिन भी बाबाजी के पास जा बैठा दोपहर के समय गाँव के ही सज्जन आये और बोले कि बाबाजी एक आपकी धूनी पर यज्ञ हो जानी चाहिये। बाबाजी ने देखा और कहा कि वह तो हो ही जानी चाहिये,लेकिन सम्भालने वाला कौन कौन है,वह आदमी बोला कि सम्भालने के लिये आप जिसे हुकुम करेंगे वही सामने आ कर काम करना शुरु कर देगा,दूसरे दिन ही पूरे गांव में मुनादी लग गयी कि बाबा की धूनी पर यज्ञ होगा। दो चार लोग बाबाजी के पास गये और यज्ञ के बारे मे जानने और सामान आदि इकट्ठा करने की धुन सभी लोगों में सवार होने लगी,बाबा जी कहते जाते जिससे कहते वही तैयार होकर सामान जुटाने में लग गया था। आसपास के गाँव के लोग भी इकट्ठा होने लगे,उन्हे भी यह बात बहुत अच्छी लग गयी कि बाबाजी यज्ञ करवाने जा रहे है,गेंहूं गुड सब्जी घी सभी चीजें इकट्ठी होने लगीं बाबा जी ने तारीख की घोषणा कर दी,मालपुआ और खीर के साथ कद्दू की सब्जी और छाछ के आलू बनने का ब्यौरा बन गया,निश्चित तारीख को लोग आकर अपना अपना काम करने लगे,किसी चीज की जरूरत पडती तो लोग बाबाजी के पास जा पहुंचते बात करते और बाबा पास में ही बैठे किसी व्यक्ति से कह देते और वह काम पूरा हो जाता। मालपुआ बनने लगे,आसपास के गांवों में यज्ञा का न्यौता दे दिया गया,सडक पर चलने वाली बसों को रोका जाने लगा,कोई बिना खाये नही जाना चाहिये यह बाबा का हुकुम था,अक्समात शाम के छ: बजे के समय एक साथ चार बसें यात्रियों से खचाखच भर कर आ गयीं,बाबा जी अपनी चिलम के साथ मस्त थे,लोग जैसा कहते बाबाजी वैसा ही जबाब देदेते थे,तभी किसी ने आकर कहा कि बाबाजी घी खत्म हो गया है,बाबाजी ने एक हल्की सी और मुलायम सी गाली दी और कहा कि पास के तालाब से घी की जगह पर पानी जितने पीपा लगे डाल दो,लेकिन ध्यान रखना जो घी बजे उसी तालाब में नाप कर डाल देना और दूसरे दिन उतना ही घी बाजार से लाकर डाल देना। लोग चकित हो गये कि तालाब के पानी से कैसे मालपुआ बनेंगे,लेकिन यह मेरी आंखों के सामने का चमत्कार था,तालाब का पानी कडाही में डाला गया है वह बिलकुल घी जैसा ही बना रहा,और उसके अन्दर मालपुआ आराम से सिकने लगे,लोग टोकरियों में भर भर कर यात्रियों को खिलाने लगे,रात को करीब नौ बजे सभी भंडारे का प्रोग्राम समाप्त होने को हुआ तो बाबाजी को कहा गया कि वे भी भोजन कर लें,बाबाजी ने सभी को भोजन की पूंछी कि कोई रह गया है कि नहीं,सभी ने ना में सिर हिलाया,और बाबाजी ने चार मालपुआ और एक कटोरी खीर और छाछ के आलू और कद्दू की सब्जी लेकर अपनी धूनी में डाले और एक मालपुआ को कुछ सब्जी और छाछ के आलू के साथ खाने लगे,खीर की एक कटोरी ली और जब खाना पूरा किया तो एक से कहा कि पास में बैठे कुत्ते को एक मालपुआ डाल दिया जाये,लेकिन जो व्यक्ति भंडारे को संभाले था वह भंडारे में गया तो एक भी मालपुआ नही बचा था। उसने आकर बाबा से कहा कि वहां तो एक भी मालपुआ नही है,उन्होने फ़िर वही मुलायम सी गाली और बोले कि जाकर अपने घर से कुत्ते को खाना लाकर डाल दो,उसने जबाब दिया कि महाराज सभी लोग घर वाले यहीं से खाना खा कर गये है और अब कौन खाना बनायेगा। बाबाजी ने मुस्करा कर अपना हाथ जल्ती धूनी के अन्दर घुसेडा और एक मालपुआ निकाल कर कुत्ते को डाल दिया,कुत्ता भी उसी समय उस मालपुआ को खाने लगा,बाबाजी अपनी बातों में फ़िर मस्त हो गये,गांव वाले एक एक करके अपने अपने घर चले गये,बाबाजी और उस कुत्ते के अलावा और कोई वहाँ पर नहीं था। इन्सानी कम्पयूटर को देखने के बाद आज के बाजार के कम्पयूटरों से कितना अनमोल महंगा है यह इन्सानी कम्पयूटर इसकी बिसात को लोग भूल कर आकार को त्याग कर प्रकार में लग गये हैं।

चिन्तन करिये !

रावण को तपस्या का अहंकार था     आज हमरा अहंकार ही तपस्या है
शबरी के जूठन में ही प्रेम था            आज हमारे प्रेम में ही जूठन है
जटायु की लडाई में धर्म था             आज हमारे धर्म की लडाई है
उर्मिला के मौन में कर्तव्य था         आज हम कर्तव्य के प्रति मौन हैं

शब्द अंगार होता है
शब्द श्रंगार होता है
शब्द पुरस्कार होता है
शब्द तिरस्कार होता है
शब्द की साधना में ईश्वर का साक्षात्कार होता है.

काठ का उल्लू

उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो किसानो का हितकारी होता है,और दिन में बेचारा किसी को भी परेशान नही करता है चुपचाप किसी बडे पेड की खोखर में पडा रहता है,शाम होते ही वह अपने को खोखर से बाहर निकालता है चारों तरफ़ से अपनी घुमाने वाली आंखों से देखता है और जिधर रात्रिचर शिकार देखा उधर ही अपने झपट्टे को मारकर अपनी छुधा पूर्ति करता है और सुबह का उजाला होने के पहले अपनी खोखर को देख कर उसी में घुस जाता है,दिन भर की आराम की नींद लेता है,शाम होते ही फ़िर पहले दिन जैसा काम करता है,और अपना जीवन जीता है। कई किंवदन्तिया उल्लू के बारे में सुनी है,कि उल्लू को रात में दिखाई देता है उसकी आंख में रात में देखने का एक विशेष पदार्थ होता है,उस पदार्थ को रात को चोरी करने वाले लोग प्रयोग में लाते है और उसकी आंख का तत्व निकाल कर काजल बनाकर लगाकर रात को चोरी करने निकलते है और उन्हे सब कुछ दिखाई देता है लेकिन बाकी के लोगों को कुछ भी नही दिखाई देता है,दूसरी कहानी सुनी है कि उल्लू रात को रोने वाले बच्चे की आवाज को हूबहू में नकल करने के बाद बोलता है,और जब तक वह रोने वाला बच्चा मर नही जाता है तब तक उल्लू उसी की आवाज में रोता रहता है। इसके बाद एक और बात सुनी कि उल्लू के अगर कोई पत्तर मार दिया जाये तो उल्लू उस पत्थर को उठाकर किसी पास के तालाब में गिरा देता है और जैसे जैसे वह पत्थर पानी में गलता जाता है उसी तरह से उसे पत्थर मारने वाला गल गल कर मर जाता है। यह एक विचित्र बात है कि उल्लू की शैतानी भरी बातों पर गांव के लोग काफ़ी विश्वास करते है,और अक्सर उल्लू को देखकर डरते भी है,लेकिन क्या उल्लू ऐसी हरकत करता है,यह भी एक समझने वाली बात है।
काठ का उल्लू भी एक बडी कहावत के रूप में उन लोगों के लिये कही जाती है जो कितनी ही बार समझाने पर भी नही समझते है,और जब उनसे पूंछा जाता है वे पहले जैसा ही जबाब देते है,इसलिये उन्हे बेवकूफ़ों की श्रेणी मे लेजाने के लिये काठ का उल्लू कहा जाता है। "पढत पढत पडरा भये लिखत लिखत भये काठ,पंडित जी ने पहाडा पूँछा सोलह दूनी आठ",यह कहावत का आधा रूप है,लेकिन इसके अन्दर उल्लू तो कहीं नही आया,उल्लू की आंखों में देखकर पता करना है कि वास्तव में वह उल्लू है तो ठीक है लेकिन काठ का उल्लू कहीं इसलिये तो नही कि वह पेडों की खोखर में निवास करता है,पेड की लकडी को भी काठ कहा जाता है।