चिन्तन करिये !

रावण को तपस्या का अहंकार था     आज हमरा अहंकार ही तपस्या है
शबरी के जूठन में ही प्रेम था            आज हमारे प्रेम में ही जूठन है
जटायु की लडाई में धर्म था             आज हमारे धर्म की लडाई है
उर्मिला के मौन में कर्तव्य था         आज हम कर्तव्य के प्रति मौन हैं

शब्द अंगार होता है
शब्द श्रंगार होता है
शब्द पुरस्कार होता है
शब्द तिरस्कार होता है
शब्द की साधना में ईश्वर का साक्षात्कार होता है.

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