शनि कैसे शिक्षा को आगे बढाता है?

प्रस्तुत कुंडली कन्या लगन की है और कन्या ही राशि है,कन्या लगन के मालिक बुध स्वगृही होकर शुक्र जो धनेश और भाग्येश है के साथ कार्येश के साथ विराजमान है। जातक ने इसी साल केट CAT में 98.99% नम्बर प्राप्त किये हैं। विद्या का मालिक शनि है लेकिन शनि बुद्धि का मालिक भी है,विद्या और बुद्धि का मालिक जब कोई ठंडा और अन्धेरा देने वाला ग्रह हो तो जातक के लिये मुशीबत देने वाला ही कहा जा सकता है,लेकिन शनि गुरु के भाव मे है,और धनु राशि का प्रभाव बक्री शनि पर आने से जातक की बुद्धि को प्रबल बनाने में सहयोग कर रहा है। गुरु जो विद्या का कारक है,वह अष्टम यानी मृत्यु भाव तथा रिस्क लेने के भाव में अपना योगात्मक रूप वक्री शनि को दे रहा है,मतलब गूढ ज्ञान त्रिक भाव से आ रहा है,जातक के लिये और भी योगात्मक रूप बन रहे है जैसे मंगल जो पराक्रम का मालिक है,मंगल जो रिस्क लेने के भाव का मालिक है,विद्या की गूढता के भाव का मालिक है,ने राहु के साथ मिलकर जातक को जीवन में तरक्की में ले जाने का भूत सिर पर सवार कर रखा है। जातक के खून में एक नशा भरा हुआ है कि वह किस प्रकार से तरक्की करे,उसे गूढ विषयों में जाने का नशा सवार है,वह चाहता है कि वह एम बी ए करे और आगे अपने नाम को यश के कारणों मे ले जाये। विद्या के तीन स्थान माने जाते है,पहला चौथा भाव होता है दूसरा उसके पंचम में यानी मृत्यु का आठवां भाव होता है और सबसे महत्वपूर्ण बारहवां भाव होता है। विद्या के लिये अपने को पहले सबसे नीचे यानी मृत्यु भाव मे ले जाना पडता है,और समझना पडता है कि हम कुछ नही है,जिसके अन्दर हम का भाव पैदा हो जाता है वह विद्या को प्राप्त नही कर सकता है। दूसरे विद्या के प्रति जो भी शरीर या शरीर से प्राप्त साधन होते है सभी को तिलांजलि देनी पडती है। इन तीन भावों में अगर किसी भी एक में गुरु का प्रभाव हो जाता है तो जातक जीवन में विद्या में सफ़लता ले लेता है। गुरु को बल देने के लिये जो ग्रह सामने आते है वे भी अपनी अपनी योगात्मक शक्तियां देकर जातक को अपने अपने क्षेत्र में ले जाने की कोशिश करते हैं। गुरु जो ज्ञान का राजा कहा जाता है वह जब अष्टम में बैठ जाता है तो जातक को बाल में खाल निकालने की आदत भी होती है,वह अपने ज्ञान को कूडे के ढेर से भी निकाल सकता है,राहु मंगल की युति खून के अन्दर बल देने वाली होती है,लेकिन खून के अन्दर बल देने के कारकों में अगर शुक्र का समावेश हो जाता है तो वह नशा बजाय शिक्षा के अनैतिक रिस्तों की तरफ़ अपना झुकाव बना लेता है,इस जातक की कुंडली में शुक्र बुध और मंगल राहु का प्रभाव भी है लेकिन शुक्र के बक्री हो जाने से शुक्र का असर राहु के पास नही जा पा रहा है,शुक्र बुध की तरफ़ जा रहा है और बुध शुक्र की तरफ़ जा रहा है,इस काम को जातक की बहिने पूरा कर रही है जातक को अपने घर परिवार या औकात से कोई लेना देना नही है उसके सिर पर तो केवल ऊंची शिक्षा का भूत सवार है। जातक के जीवन में लगातार बढोत्तरी का एक कारण और भी बनता है कि वह अपने केतु को बारहवे भाव में लेकर पैदा हुआ है,केतु का स्थान सूर्य की सिंह राशि में है,वह सरकारी शिक्षा संस्थानों में अकेला रहकर पढा है,वह अपने सभी काम अकेले कर सकता है,उसी किसी का भी यह सहारा लेने की जरूरत नही है कि उसे कोई चाय देगा तो वह अपनी पढाई को करेगा,उसे कोई चिन्ता नही है कि खाने में आज क्या बना है,उसे कोई चिन्ता नही है कि वह आज चटाई पर सो रहा है,उसके अन्दर तो एक ही भूत भरा है कि वह अच्छी सी अच्छी शिक्षा लेकर सबसे ऊंची पोस्ट पर जाकर विराजमान हो जाये,गुरु ने जो रिस्क के भाव में बैठा है उसे अपनी पंचम द्रिष्टि से आगे से आगे बढाने की कोशिश कर रहा है,वह अन्धेरे स्थान में रहकर भी पढने के लिये अपनी योग्यता को बता रहा है। कालपुरुष का कार्य तीन भावों से जाना जाता है,एक कालपुरुष दूसरे भाव के धन और भौतिक साधनों का प्रयोग करने के बाद अपने जीवन को चलाने के लिये प्रयोग करता है,दूसरे कालपुरुष अपने द्वारा दूसरों की सेवा करने से प्राप्त धन को प्रयोग करने के बाद अपने जीवन को चलाने की कोशिश करता है,तीसरा कालपुरुष अपने पैतृक व्यवसाय को प्रयोग करने के बाद अपने जीवन को चलाने की कोशिश करता है,इस जातक की कुंडली में अगर आप ध्यान से देखेंगे तो जीवन को चलाने के लिये कन्या राशि जो जीवन को नौकरी या सेवा करने के लिये जानी जाती है के अन्दर चन्द्रमा का स्थान है,चन्द्रमा माता से सम्बन्धित है,माता का नवें भाव से सम्बन्ध है,नवे भाव में वृष राशि का सूर्य विद्यमान है,जातक की माता को वित्त की प्राप्ति सूर्य यानी सरकार और सूर्य यानी पिता से प्राप्त होती है,उस वित्त को जातक की माता खर्च करने के लिये बारहवे भाव के केतु का प्रयोग करती है,बारहवे भाव का केतु सिंह राशि का है और यह केतु सरकारी शिक्षण संस्थानों को सम्भालने वाला भी माना जाता है और ईसाई मिसनरी वाले स्कूलों के सम्भालने वाले के रूप में भी माना जाता है,केतु का सम्बन्ध जब धनु के बक्री शनि से होता है तो वह माता के द्वारा किये खर्चे को जातक के विद्या के लिये और जातक के अस्थाई निवास के लिये भी खर्च करता है,इस शनि से पंचम में गुरु होने और गुरु का स्थान प्राइवेट स्थान में होने से जातक को उस संस्था के ही अध्यापकों द्वारा ट्यूशन आदि पढाकर भी ज्ञान दिया जाता है। माता के लिये शिक्षण संस्थान में रहने और विद्या के लिये खर्च करना लिखा है तो सूर्य यानी पिता के लिये ट्यूशन आदि के रूप में जातक की शिक्षा के प्रति धन खर्च करना लिखा है इस प्रकार से दोनो ही माता पिता जिनका सम्बन्ध पारिवारिक और धार्मिक है के प्रति जातक के प्रति ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभानी जरूरी हो जाती है। सूर्य से चन्द्रमा जब पंचम में होता है तो माता का पारिवारिक होना जरूरी है,लेकिन माता का पारिवारिक होना और माता के प्रति जातक के पिता का पूर्ण सहयोग होना तभी सम्भव है जब गुरु पिता के त्रिक भावों में अपना योगात्मक रूप दे रहा हो।
नवे भाव का सूर्य चाहे जिस राशि में हो लेकिन उसका तेज पीलापन लिये होता है,पीलापन लेकर सूर्य मर्यादा मे रहकर चलने वाला होता है,सूर्य के अन्दर पीलापन तभी होता है या तो वह अस्त हो रहा हो या सूर्य उदय हो रहा हो,जातक की कुन्डली में सूर्य के द्वारा शनि को पूर्ण अष्टम द्रिष्टि से देखा जाना भी एक विशिष्ट बात को पैदा करता है कि सूर्य को भी रिस्क लेने की आदत है,रिस्क वही ले सकता है जिसके अन्दर यह भावना हो कि जो मेरा है वह तो मेरे ही पास रहेगा,और जो मेरा नही है वह तो चला ही जाना है। अक्सर जो यह भावना रखते है वे सफ़ल होने के रास्ते पर अपने अनुसार चले जाते है। मेष राशि का सूर्य उच्च का होता है और तुला राशि का शनि उच्च का माना जाता है,राशि से आगे के तीन घरों में सूर्य अपनी उच्चता को कायम रखता है,जैसे कि मिथुन राशि के दस अंश तक सूर्य अपनी उच्चता को कायम रखता है,इस सूर्य का प्रबल प्रताप भी कभी कभी देखने को जब मिलता है जब सूर्य गुरु के घर में ही जाकर बैठ गया हो,जब ईश्वर भलाइयां देता है सुख देता है तो उसी हिसाब से ईश्वर उसे बुराइयां और और दुख भी देता है,इस जातक के साथ जैसे उच्च पदवी वाले कारण दिये गये है तो निम्न प्रकार के कठोर दुख भी दिये गये है,राहु से आगे गुरु तक बीच में कोई ग्रह नही होने के कारण जातक के साथ हमेशा कोई ना कोई हादसा होता ही रहेगा,इन हादसों में जातक के बडे भाई के साथ हादसा मिलता है,जातक की पत्नी के हादसा मिलता है जातक को जीवन से कभी कभी अरुचि होने के कारण भी गुरु केतु का आपस का सम्बन्ध देता है,जातक के अन्दर खून का उबाल उसे कहीं से कहीं लेजाकर पटक सकता है,जातक के अन्दर नशे वाली आदतें पनप सकती है जातक अपनी कर्णधार माता के लिये अपमान दे सकता है,जातक के अन्दर खून की खराबियां पैदा हो सकती है,शुक्र का बक्री हो जाना और बुध का साथ होना जातक के लिये राजयोग का बाधक भी बन सकता है,जातक की पत्नी अधिक गुस्सा के कारण जातक का साथ छोड सकती है,शुक्र बुध की युति जातक को अवैद्य सम्बन्धों की तरफ़ भी  ले जा सकता है,आदि बातें भी सोचनीय होती हैं।

दोषी ज्योतिषी या ज्योतिष पूँछने वाला ?

एक महिला ने अमेरिका से अपनी बच्ची की जन्म तारीख भेजी और जानना चाहा कि इसकी कुंडली में कोई दोष है क्या ? मैने कुंडली देखी और जबाब जैसा लिखता आया हूँ वैसा लिख दिया कि इस बच्ची का शनि अच्छा है और काम करने के बाद सीखने वाली लडकी है,शिक्षा मे थोडा धीरे चलेगी क्योंकि शनि की दशा चल रही है। उसने अमेरिका और भारत के अन्य ज्योतिषियों के बार में कहा कि इस लडकी के लिये कह दिया गया है कि यह छ: महिने से अधिक जिन्दा नही रहेगी,मुझे आश्चर्य हुआ कि मौत का मालिक अगर लगन में गुरु की द्रिष्टि से पूर्ण हो और उसके बारे में कह दिया जाये कि वह मर जायेगी,"दिवाल बनकर जिसकी रक्षा हवा करे,वह शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे",इस मामले में सोचना पडा,उसने दूसरे ईमेल में लिखा कि उसके पहले बच्चे के प्रति भी इसी प्रकार की भविष्यवाणी की गयी थी,और अमेरिका में उसने उस बच्चे का ज्योतिषीय उपाय करवाने के चक्कर में तीन हजार डालर खर्च कर दिये,तथा भारत में उस बच्चे के उपाय के लिये तीस हजार रुपये खर्च कर दिये थे। ईमेल की कापी संलग्न फ़ोटो मे आप देख सकते हैं।इसे पढने के बाद सोचना पडता है कि जिस विद्या को हमारे ऋषि मुनि पूर्वज केवल मनुष्य के हित के लिये प्रदान करके गये है और उसे अगर अपने स्वार्थ के लिये इस तरीके से डराकर प्रयोग किया जायेगा तो विद्या का अन्त निश्चित है,कारण लोगों का भाव इस विद्या के प्रति भी व्यवसायिक हो जायेगा,और धर्म को बेच कर खाने वाली बात से फ़िर मुकरा नही जा सकता है। एक बहुत ही प्रसिद्ध ज्योतिषी जी से मेरी इस मामले में बात हुयी तो उन्होने मेरे से उल्टा सवाल ही कर डाला,-"एक डाक्टर अपनी पढाई किसलिये करता है,उसे अपनी फ़ीस देनी पडती है,उसे अपने समय को खराब करना पडता है वह मरीज को देखने और सलाह देने के ही पैसे लेता है,उसी तरीके से जब हमने ज्योतिष की पढाई की है और उस पर नये नये कारण खोजे है,तो हम पैसा क्यों नही ले सकते",मैने उनसे फ़िर सवाल किया कि फ़िर पैसा लेना है तो केवल अपनी फ़ीस ही लो,डराकर धन बटोरने से तो पाप ही लगेगा,वे फ़िर तमक कर बोले,-" एक डाक्टर को तबियत खराब होने पर दिखाने जाते है,वह कई प्रकार की जाचें करने के लिये अलग अलग जगह पर बनी लेब्रोटरियों में भेज देता है,उसके बाद जब जांच पूरी हो जाती है तो इलाज करता है,इलाज में लगने वाले दवाई और मशीनों के खर्चे को वह लेता है कि नहीं,और जब कोई ग्राहक अच्छे पैसे वाला होता है तो डाक्टर भी उससे धन केवल इसीलिये कमाता है क्योंकि पैसे वाले का धन अगर डाक्टर नही कमायेगा तो वह उसे खर्च कहाँ करेगा,डाक्टर को भी धन की जरूरत होती है वह दवाइयों की एवज में लेब्रोटरी की जाचों के दौरान मिलने वाले कमीशन के रूप में,दवाई किसी मेडिकल स्टोर से खरीदने के लिये कहने पर उससे भी कमीशन के रूप में प्राप्त करता है,तो ज्योतिषी भी मेहनत करता है पढाई करता है,रत्नों को बताता है,रत्नों की परख को पहिचानता है,तो वह भी डाक्टर की तरह से ही धन कमा सकता है",मेरा उनकी बात सुनकर दिमाग खराब हो गया,मैने दूसरे ज्योतिषी से पूँछा भाई तुम आज कल क्याकर रहे हो,वे तपाक से बोले अपनी आफ़िस का अपग्रेडेशन करवा रहा हूँ,उसमे नया फ़र्नीचर लगवा रहा हूँ,रिसेप्सनिष्ट को बैठने की जगह बना रहा हूँ,उसे एयरकण्डीशन वाला बना रहा हूँ,मैने उनसे पूंछा कि ज्योतिष में इन चीजों की क्या जरूरत पड गयी,वे बोले आज की दुनिया बहुत आरामतलब हो गयी है,लोगों को पूंछने के लिये समय देना पडता है,अगर कोई जब तक घंटा दो घंटा इन्तजार ना कर ले तब तक काहे की प्रसिद्धि,भले ही केबिन में बैठ कर कम्पयूटर से चेटिंग की जा रही हो,लेकिन बाहर बैठे सज्जन को यही पता होगा कि मैं किसी काम में व्यस्त हूँ,मेरा माथा तुनक गया कि एक साल में कम से कम बीस हजार लोगों को लिखता हूँ,कोई दो चार लोग अपनी इच्छा से दक्षिणा भेजदेते है.इसकी एवज में क्या करना चाहिये,लोगों को डराकर धन कमाने से अच्छा है डकैती डालनी शुरु कर देनी चाहिये,या फ़िर जो मर रहा है उसका इन्तजार कर लेना चाहिये या जल्दी से उसे और मारने का उपाय करना चाहिये,जिससे कम से कम उसके अंग तो काम आ ही जायेंगे,डाक्टरों की बुद्धि से किडनी भी बिक जायेगी,आंखे भी बिक जायेंगी,और न जाने क्या क्या बिक जायेगा। अंकुश लगाने की बजाय लोगों को इनपर इतना भरोसा हो जाता है कि अपने घर की पूरी रामायण तो इन्हे बता ही देते है,और जब ज्योतिषी जी पूरी घर की गाथा को सुन लेते है तो उन्हे अच्छी तरह से काटने का मौका भी मिल जाता है।
एक संत अगर तपस्या करने के बाद अपनी तपस्या से प्राप्त सिद्धि को बेचने का काम करने लगते है तो तपस्या का कोई औचित्य तो रहा नहीं,उसी प्रकार से जो सितारों की विद्या को सीख लेता है और सितारों की एवज में लोगों को काटने का इन्तजाम अपने स्वार्थ के लिये करता है तो उन्हे क्या सितारों के द्वारा दिये जाने वाले कष्टों का भी भान नही होता है।धार्मिक प्रवचन देने वाला,अगर कुछ किताबों का अध्ययन करके और बोलने की क्लास ज्वाइन करने के बाद एक सभा बनाकर धार्मिक प्रवचनों को लय बद्ध तरीके से करता है और अधिक से अधिक जनता को बटोरने का काम करता है तो वह भी धर्म को बेचकर खाने वाला हो गया ? अगर धर्म बिकने लगा है तो धर्म के अन्दर ही भगवान आते है,यानी भगवान भी बिकने लगे । भगवान के बिकने पर केवल जो धनी है या फ़िर चालाकी जानते है वे ही भगवान को मना सकते है,ज्योतिषी जिस बात से डराकर धन वसूलते है और अपने ठाट बाट को चलाकर नाम कमाने की इच्छा से जायदाद इकट्ठी करने पर विश्वास करते है क्या उन्हे नही पता होता है कि कल उन्हे भी अपने कार्यों का जबाब देना पडेगा। हर व्यक्ति को पता है कि समयानुसार ही कार्य होता है,उसे कम या अधिक अपने अपने विवेक से बनाया जाता है,लेकिन विवेक का प्रयोग नही करने पर केवल धोखा खाना ही होता है। मैने एक बार पढा था कि "चमक दमक और मीठी मीठी बातें स्त्री और मूर्खों को ही पसंद होती है"यह बात आज सोलह आने सही मिल रही है। मुझे लगता है कि अगर लोग इसी तरह से इस ज्योतिष को डराकर कमाने वाली विद्या के रूप में प्रयोग करते रहे,तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब लोग ज्योतिष या ज्योतिषी के नाम से डरकर अपने बारे में जो दिग्दर्शन लेना भी उसे भी लेना पसंद नहीं करेंगे.

शरीर पर तिल मस्से और उनका प्रभाव

शरीर पर प्रकृति द्वारा बनाये निशान अपने आप व्यक्ति की आदतों और उसके अन्दर वाली भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिये पुराने जमाने से मानी जाती हैं। सिर से लेकर पैर तक प्रकृति अपना कोई न कोई निशान बना ही देती है और जानने वाले लोग उस निशान से व्यक्ति की आदत और स्वभाव तथा भूत वर्तमान भविष्य समझ जाते है,अक्सर थोथी बातें तब लगती है जब वह सत्यता की तरफ़ नही जाती हो,और केवल कपोल कल्पना के आधार पर लिखी गयीं हों। स्त्री पुरुष दोनो के शरीर के अंगों पर विभिन्न स्थानों पर तिल मस्से तो कहीं न कहीं उग ही जाते है,अथवा जन्म से ही होते है,कई निशान बन कर समय पर समाप्त हो जाते है और कई निशान जीवन की अलग अलग श्रेणियों में बनते भी रहते है। पहले हम आपको तिल और मस्सों के बारे में विभिन्न प्रान्तों की धारणाओं के प्रति बताने जा रहे हैं। तिल या मस्सा शरीर के किसी भी हिस्से में होते है। लेकिन चेहरे के तिल और मस्से अपने अनुसार पहिचान बना लेते है। उन्हे किसी भी प्रकार से शरीर से सर्जरी आदि से अलग भी कर दिया जाये तो भी उनका प्रभाव तो कम होते नही देखा गया है। ज्योतिष के अनुसार तिल को शनि केतु की श्रेणी में रखा गया है और मस्से को शनि केतु बुध की श्रेणी में रखा गया है। उसी जगह लहसन जो काली त्वचा के रूप में जो शरीर में कहीं भी हो सकती है के बारे में धारणा बनाई जाती है,लहसन भी काले और नीले अथवा कत्थई रंग के होते है यही हाल तिल और मस्सों में पाया जाता है। पुरुष के दाहिने और स्त्री के बायें तिल मस्सा लहसन उत्तम माने जाते है जबकि पुरुष के बायें और स्त्री के दाहिने खराब माने जाते हैं। चेहरे से पहिचान के रूप में तिलों का वर्गीकरण पहले करते हैं। जिस स्त्री के माथे पर तिल होता है वह किसी भी हिस्से में हो तो वह स्त्री को परिश्रमी बनाता है,यही बात मस्से के लिये मानी जाती है लेकिन लहसन के लिये यह बात उल्टी होती है,स्त्री के लिये माथे पर लहसन घर समाज के रीति रिवाज से बिलग होकर चलने वाली बातों के लिये माना जाता है,माथे का लहसन स्त्री को जननांगों की बीमारियों के लिये भी सूचित करता है,वह भी कोई छोटी बीमारी नही बल्कि किसी बडी बीमारी के रूप में स्त्री की जवान अवस्था में देता है। पुरुष के लिये यह लहसन अधिक कामुकता को और दुर्भाग्य को देने वाला होता है,वह हमेशा किसी न किसी नकारात्मक विचार में ही ग्रसित रहता है,सकारत्मक विचारों के आते ही उसे क्रोध आना शुरु हो जाता है। स्त्री के बायें गाल पर तिल सौभाग्यवती बनाता है,उसके पति की उम्र लम्बी होती है और वह सभी तरह के अपने कार्य पूरे करके ही मरती है लेकिन सौभाग्यवती ही मरती है। अधिकतर इस प्रकार की स्त्रियां दुराचार से दूर रहती है और अपने परिवार को भी दुराचार की तरफ़ जाने से रोकती रहती है,बिगडी स्त्रियों के लिये वह हमेशा कांटे की तरह ही चुभती रहती है,इस प्रकार की स्त्री को खरी बात कहने से कोई रोक नही सकता है,और अपने परिवार कुटुम्ब के लिये वह जान भी दे सकती है। इस प्रकार की स्त्री को हमेशा चलने की आदत होती है,जिसके बायें गाल पर तिल होता है उसकी बायीं कोख में भी तिल होता है,लेकिन काला तिल हमेशा सही रहता है लेकिन लाल तिल होने से प्रभाव उल्टे मिलते है। खून की बीमारियां घर के भेद को बाहर कहना,चोरी से घर की वस्तुओं को बरबाद करना और झूठ बोलने की आदत भी देखी जाती है। नाक के अग्रभाग पर लाल मस्सा या तिल हो तो वह गरीब घर में जन्म लेने के बाद भी वैभवशाली जिन्दगी को जीती है,और आगे ही आगे बढने में उसका हमेशा मन रहता है,संसार की लडाइयों से लडने के लिये उसने पूरे पूरे प्रयास किये होते है,अक्सर इस प्रकार की स्त्रियों के पिता का सुख नही के बराबर होता है,माता के द्वारा ही इस प्रकार की स्त्रियां पाली पोषी गयी होती है,बहिनों की संख्या भी अधिक होती है और बडी बहिन का जीवन भी इसी प्रकार की स्त्री के द्वारा संभाला जाता है। लेकिन काला तिल हो तो स्त्री को व्यभिचारिणी बनाता है वह अपने अनुसार ही चलने वाली होती है माता पिता को तभी तक मानती है जब तक वह अपने पैरों पर खडी नही हो जाती है,उसे रोकना टोकना कतई पसंद नही होता है,वह छुपे रूप से कार्य करना पसंद करती है और धनी से धनी घर में पैदा होने के बाद भी उसे गरीब और भटकने वाली स्थिति में पहुंचना पडता है। उसके ख्वाब बहुत ही लम्बे होते है,अधिक से अधिक पुरुषों से प्रीत करना और अपने स्वार्थ को पूरा करने के बाद छोड देना उसकी आदत होती है,बातों में चपलता होती है,किसी भी मोड पर पलट जाना उसकी आदत होती है। खाने पीने के मामले में उसकी आदत चटोरी होती है,तामसी भोजन की तरफ़ उसका ध्यान अधिक जाता है,घर के अन्दर कौन सी कीमती चीज कहां रखी है,प्रवेश करते ही उसका ध्यान उसी तरफ़ जाता है,खाना खाते समय चपर चपर करने की आदत होती है।
होंठ पर तिल होना भी अय्यास होने की निशानी है अक्सर इस प्रकार की स्त्रियों की शादी होते ही उनके पति का झुकाव अन्य स्त्री की तरफ़ हो जाता है और घर में क्लेश ही पैदा होते रहते है,नीचे के होंठ पर तिल पति की आयु को हरता है और ऊपर के होंठ का बीच का तिल महसूस करने की शक्ति को प्रदान करता है,और पति की आयु को भी बढाने वाला होता है। नाक के मध्य में लटकने वाला तिल भी इसी प्रकार की बात को सूचित करता है। आंख में तिल होने पर व्यक्ति परिश्रमी होता है,इसके अलावा उसे नजर से पहिचान लेने की आदत होती है,घर के लोगों के लिये समर्पित होता है,उसे अपने परिवार के प्रति कतई बुराई सुनने की आदत नही होती है,तथा इस प्रकार का व्यक्ति बात का भी पक्का होता है,यह बात स्त्री और पुरुष दोनो प्रकार के जातकों में देखी गयी है। अक्सर देखा जाता है कि स्त्री या पुरुष जातक के नीचे के होंठ पर तिल होने पर उसके घुटने पर भी तिल होता है। थोडी पर तिल होने से दायें पैर में भी तिल होता है,पुरुष के लिये अधिक संतति जो नर संतान के रूप में होती है और स्त्री के कम संतति के लिये माना जाता है। जननांग वाली बीमारियां अधिकतर लगी रहती है,पेट में गांठ बनने और उसके आपरेशन का भी योग होता है। इसी प्रकार से कान के तिल के बारे में कहा जाता है,किसी भी जातक के कान का तिल आयु को कम करता है,बायीं भौंह पर तिल होना अधिक यात्रा का सूचक माना जाता है,स्त्री के स्वभाव को समझने के लिये दाहिनी तरफ़ की स्त्री घर बाहर को जाने वाली और बायीं तरफ़ का तिल घर के अन्दर की मर्यादाओं में रहने वाली होती है। गर्दन पर तिल बार बार स्थान बदलने और घर की समस्याओं के प्रति हमेशा चिन्ता में रहने वाले के लिये देखा गया है,छाती का तिल साहस और वीरता वाले कामो के लिये माना जाता है लेकिन स्त्री पुरुष के बायीं और दाहिनी ओर का अच्छा और बुरा प्रभाव भी देखा जाता है। व्यक्ति की हथेली पर तिल का होना भी एक प्रकार से जल्दी से पहिचान करने के लिये माना जाता है,हाथ पर बने तिलों में काले रंग का तिल बहुधा मिलता है लेकिन इसका रंग कभी कभी पीले रंग का या सफ़ेद रंग का भी मिलता है,काले रंग के तिल बहुत अच्छा या बुरा प्रभाव डालने वाले होते है जबकि सफ़ेद और पीले तिल कम प्रभाव देने वाले होते हैं। हाथ के अन्दर सफ़ेद बिन्दु जैसे धब्बे अधिक सफ़लता देने वाले भी माने गये है,जबकि पीले बिन्दु दुर्भाग्य और कठिनाई वाला जीवन जीने के लिये सूचना देने वाले होते हैं। हाथ पर लाल रंग के तिल ब्लड प्रेसर की बीमारी को भी सूचित करने वाले होते है,अधिक पीले तिल शरीर में खून की कमी को भी दर्शाते हैं। हथेली के अन्दर पुरुष के दाहिने और स्त्री के बायें होने का भी अधिक महत्व माना जाता है,जिस पुरुष के दाहिने हाथ में तिल है और मुट्ठी को बन्द करते ही वह बन्द हो जाता है तो गरीब घर में भी जन्म लेने के बाद वह एक अच्छा अमीर आदमी बनता है और यही बात स्त्री के बायें हाथ में जानी जा सकती है,लेकिन मुट्ठी से बाहर होने पर वह चाहे लाख रोजाना कमाये लेकिन उसके पास धेला बचाने को नही रहता है। हथेली में गुरु क्षेत्र में काला तिल होना कार्य को करने पर बाधाओं को देने वाला होता है,लेकिन कार्य पूरा हो जाता है,वह अपनी मर्जी से चलने वाला नही होता है हमेशा दूसरों के कहने पर चला करता है,वह अपनी बुद्धि का प्रयोग नही कर पाता है। शनि पर्वत के आसपास तिल होना प्रेम सम्बन्धो के कारण बदनामी देने वाला माना जाता है,वह किसी भी आयु में बदनामी को दे सकता है। अक्सर बदनामियों के मिलने का समय उम्र के पैंतीसवें साल से शुरु होता है। अक्सर इस प्रकार के जातकों के घर परिवार में कलह अधिक होती है और आत्महत्या तक देखने को मिली हैं। यही काला तिल अगर सूर्य पर्वत के आसपास होता है तो मान सम्मान में हमेशा दिक्कत आती है,किसी न किसी बात पर उसे अपमानित होना पडता है,अच्छा काम करने के बाद भी उसे बुराई मिलती है। बुध क्षेत्र में होने वाला काला तिल व्यवसाय में हानि और बातचीत में बुराई देने वाला होता है,शुक्र क्षेत्र में होने वाले तिल से व्यक्ति का अधिक कामुक होना भी पाया जाता है।


यत्र तत्र सर्वत्र

मैनपुरी जिला के मकरन्दपुर गांव में श्रीरामनरेश सिंह के यहां गया हुआ था। उनके घर के ईशान में एक मन्दिर बना था,उस मन्दिर के नैऋत्य में एक उजाड घर बना हुआ था,गांव में पक्का घर था,लेकिन उजाड पडा था,कोई रिहायस नही थी। वास्तु का नियम है कि ईशान कोण का मन्दिर या चोटी रखने वाला भवन कभी भी नैऋत्य को फ़लीभूत नही करता है। यह बात और जगह भी देखी,मन्दिर के नैऋत्य के अन्दर रिहायस हो ही नही सकती है। इसी प्रकार से नैऋत्य दिशा में पानी का कुंआ उत्तर के घर में नर संतान को पैदा नही होने देती,अगर कोई नर संतान हो भी जाती है तो वह या तो घर छोड कर चली जाती है अथवा नई पीढी आने के पहले वह किसी आक्समिक हादसे में गुजर जाती है। अग्निकोण का निवास भी नकारात्मक बनाने के लिये काफ़ी है,जिन घरो में सम्मिलित परिवार रहते है,और उन घरों में जो भी परिवार का सदस्य अग्नि कोण में निवास करता होगा,वह कितना भी पढा लिखा या ज्ञानवान हो लेकिन बाकी सदस्यों के लिये नकारात्मक ही होगा। नैऋत्य का बरगद का पेड भी नर संतान को हरने वाला होता है,केवल स्त्री संतान होती है और घर का मुखिया जवानी में या अधेड अवस्था में नेत्र हीन हो जाता है। घर के अग्नि में पानी होने से घर की स्त्री को कोई ना कोई बीमारी लगी ही रहती है। घर के ईशान में रखे जूते चप्पल झाडू कचरादान बाप बेटे में जूते चलवाते है,घर की संतान आचार विचार विहीन हो जाती है,यही हाल घर के ईशान में टायलेट आदि बनवाने के बाद भी देखने को मिले है। दक्षिण दिशा के दरवाजे वाले मकान मन्दिरों अस्पतालों इन्जीनियरिंग स्थानों लोन देने वालों और भोजन बनाकर बेचने वालों के लिये दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की देते है,इस दिशा वाले पुलिस स्टेशन अन्य दिशा वाले पुलिस स्टेशनों से अधिक नाम कमा लेते हैं। उत्तर दिशा वाले स्थानों में धन का कार्य करने वाले और पबल्सिंग करने वाले संस्थान अधिक फ़लीभूत होते है।


अग्नि कोण के गेट वाले घरों में और उत्तर की तरफ़ सीढियों वाले मकान कभी भी कर्जे से मुक्त नही हो पाते है। जिन घरों के दरवाजे नैऋत्य में होते है और उनके नैऋत्य में ही अगर पानी के टेंक अन्डरग्राउंड बना दिये गये हैं तो उस मकान के रहने वाले जीवन भर कोर्ट केशों और सरकारी कर्जों से मुक्त नही हो पाते है। अक्सर इस दिशा के दरवाजे वालों के दो ही पुत्र होते है जिनके अन्दर बडे पुत्र के कारण पूरे घर की सम्पत्ति का विनाश हो जाता है,और अंत में वह भी एक पुत्री के होने के बाद अपनी लीला किसी तामसी कारण से समाप्त कर लेता है। अग्नि कोण में हवादार कमरा बना लेने से घर की एक महिला राजनीति या समाज में अपना स्थान बना लेती है लेकिन उस घर की अन्य स्त्रियों के ऊपर अपने आप कष्ट आते रहते हैं। जिस घर के अन्दर उल्लू निवास कर लेते है उन घरों में अक्सर आगे की पीढी में उजाड ही हो जाते हैं। अग्नि का पानी चलने वाली पीढी से भी आगे की पीढी को नुकसान करता है। पूर्व दिशा का भाग अधिक ऊंचा होने पर या बरामदा आदि को ऊंचा बनाने पर संतान की बुद्धि मंद होती चली जाती है। आर्थिक तंगी भी अक्सर इस दिशा में ऊंची जगह बनाने पर देखी जाती है। पूर्व उत्तर में अगर रिक्त स्थान नही होगा तो पुत्र संतान नही होगी,अगर होगी भी तो विकालांग होगी,पूर्व दिशा में किसी भवन से सट कर मकान बनाया जायेगा और पश्चिम में खुला स्थान रखा जायेगा तो भवन का मालिक रोगी और अल्पायु होगा। मकान के अग्नि कोंण में कोई द्वार नही बनाया जाता है,अगर रखा जाता है तो घर में आग का भय अथवा आग वाले कारणॊं में अधिक खर्चा होता है,घर में मुकद्दमे आदि चलते रहते हैं। आर्थिक तंगी और स्त्रियों सम्बन्धी परेशानी आती रहती है। पूर्व दिशा के खाली होने पर अगर पश्चिम दिशा भी खाली है तो मकान के मालिक को लकवा जैसी बीमारी हो सकती है,अथवा वह आंखों के रोग से पीडित रह सकता है। अगर घर में किरायेदार रखना है तो खुद तो ऊंचे हिस्से में रहे और किरायेदार को नीचे हिस्से में रखें,किरायेदार के न होने पर नीचे स्थान को खाली नही रखें,अगर खाली रहता है और प्रयोग में नही लाया जा रहा है तो अनचाही समस्या से घिरना लाजमी हो जाता है। पूर्व पश्चिम लम्बा मकान सूर्य वेधी और उत्तर दक्षिण मकान चन्द्र वेधी कहलाता है,चन्द्र वेधी मकान ही शुभ माना जाता है,सूर्य वेधी मकान कुल का नाशक माना जाता है।

मकान की बनावट और वास्तु

कहावत है कि "कमाना हर किसी को आता है खर्च करना किसी किसी को आता है",शरीर और मकान की रूपरेखा को समझना और सजाना संवारना एक जैसा ही है। आज के जमाने में जब व्यक्ति को एक समय का भोजन जुटाना भारी है उसके बाद मकान का बन्दोबस्त करना कितनी टेढी खीर होगी इसका अन्दाज एक मध्यम वर्गीय परिवार आराम से लगा सकता है। हाँ उन लोगों को कोई फ़र्क नही पडता है जिनके बाप दादा कमा कर रख गये है और वे अपने जीवन में मनमाने तरीके से खर्च कर रहे है,लेकिन उनकी औलादों के लिये भी सोचना तो पडेगा ही। मकान बनाने के लिये जीवन की गाढी कमाई को प्रयोग में लेना पडता है,उस गाढी कमाई को अगर समझ बूझ कर खर्च नही किया तो वह एक दिन अपने ही कारण से रोना बन कर रह जाती है। मकान का ढांचा इस प्रकार से बनाना चाहिये कि वह किसी भी तरह के बोझ को आराम से सहन कर ले। जून की गर्मी हो या अगस्त की बरसात अथवा दिसम्बर का जाडा,सभी ऋतुओं की जलवायु को मकान का ढांचा सहन कर लेता है तो वह आराम से निवास करने वालों के लिये दिक्कत वाला नही होता है। प्रकृति के नियम के अनुसार अक्सर जाडे में बनाये हुये मकान गर्मी में अपनी बनावट में परिवर्तन करते है,अक्सर भारत के मध्य में जो मकान गर्मी में बन जाते है वे दिसम्बर में अपने अन्दर बदलाव करते है। मकान का ढांचा अपने स्थान से कुछ ना कुछ घटता है,इस घटाव के कारण अगर मकान का ढांचा बनाकर फ़टाफ़ट पलस्तर कर दिया गया है और उसके बाद फ़टाफ़ट रंग रोगन कर दिया गया है तो वह कहीं ना कहीं से चटक दिखायेगा जरूर,मकान की चटक किसी भी तरह से रंग रोगन के बाद दबाने से नही दबती है,वह अगली साल में अपनी फ़िर से रंगत दिखा देती है और अच्छा पैसा लगाने के बाद भी समझ में नही आता है कि मकान की चटक को कैसे दबाया जाये। अक्सर बडे बडे कारीगर और मकान का निर्माण करने वाले कह देते है कि मकान ने सांस ले ली है। भूतकाल में जो मकान बनाये जाते थे,वे धीरे धीरे बनाये जाते थे,जैसे जैसे हाथ फ़ैलता था मकान का निर्माण कर लिया जाता था,और जब मकान धीरे धीरे बनता था जो लाजिमी है कि मकान का पहले ढांचा बनता था फ़िर कुछ समय बाद पलस्तर होता था उसके बाद महीनो या सालों के बाद उसके अन्दर रंग रोगन किया जाता था। वे मकान आज भी सही सलामत है कोई उनके अन्दर दरार या कमी नही मिलती है। किसी प्रकार से वास्तु का प्रभाव भी होता था तो उसे समय रहते बदल दिया जाता था,लेकिन आज के भागम भाग युग में हर कोई आज ही मकान बनाकर उसके अन्दर ग्रह-प्रवेश कर लेना चाहता है। कई मंजिला मकान बनाने के लिये जो ढांचा बनाना पडता है उसके लिये पहले जमीन में जाल भरा जाता है,उस जाल को भरने के बाद बीम भरे जाते है,उन बीमों को भरने के बाद कुछ समय के लिये उन्हे छोड दिया जाता है,उसके बाद उनकी कार्य लेने की गति के अनुसार बाकी का साज सज्जा वाला काम किया जाता है। बीम के अन्दर या जाल के अन्दर जो सरिया सीमेंट बजरी और रोडी आदि प्रयोग में ली जाती है उसे मानक दंडों से माप कर ही प्रयोग में लाया जाता है,बडे बडे जो पुल बनाये जाते है उनके अन्दर भले ही दो इन्च की जगह रखी जाये लेकिन जगह जरूर छोडी जाती है,जिससे गर्मी के मौसम में अगर बीम अपने स्थान से बढता है तो वह अपनी जगह पर ही बना रहे,नीचे नही गिरे,जैसे रेलवे लाइनों के बीच में जगह छोडी जाती है,उसी प्रकार से घर बनाने के समय डाले गये बीम में किसी ना किसी प्रकार की जगह छोडी जाती है,इसके अलावा गर्मी और सर्दी का असर देखने के लिये रोजाना की तराई भी अपना काफ़ी काम करती है,जून के महिने में अगर मकान को बनाया जाता है तो रोजाना की जाने वाली पानी की तराई उस लगे हुये सीमेंट और सरिया के अन्दर अपना घटाने और बढाने वाला औसत बनाने के लिये काफ़ी अच्छा माना जाता है,तराई करते वक्त सीमेंट बजरी और सरिया रोडी अपने स्थान से सिकुडते भी है और पानी की तरावट पाकर सीमेंट अपने अन्दर पानी के बुलबुलों से जगह भी बनाता है,इस प्रकार से दिवाल में एक फ़ोम जैसा माहौल बन जाता है जो किसी भी मौसम में उसी प्रकार से काम करता है जैसे फ़ोम को दिशा के अनुसार घटाया बढाया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि मकान का झुकाव हमेशा ईशान की तरफ़ होता है,कितनी ही डिग्री को संभाल कर बनाया जाये लेकिन कुछ समय उपरान्त मकान ईशान की तरफ़ कुछ ना कुछ डिग्री में झुकेगा जरूर,इसका कारण सूर्य की गर्मी वाली किरणें शाम के साम पश्चिम दिशा की तरफ़ से पडती है और रात हो जाने के बाद ईशान दिशा सबसे पहले ठंडी हो जाती है,गर्मी हमेशा ठंड की तरफ़ भागती है,इसी प्रक्रिया के कारण मकान का झुकाव ईशाव की तरफ़ हो जाता है।