बुध केतु + शुक्र राहु = मीडिया

कल्पना भाभी की आदत है कि वे मुहल्ले मे किसी की भी बात को या तो इतना उछाल देतीं है कि सामने वाला मुहल्ला छोड कर भाग जाता है,या बात को इतनी जोर से बना देती है कि अजनबी भी आकर मुहल्ले मे राज करने लगता है। उनकी बात में इतनी दम है कि अमीर गरीब बूढा जवान स्त्री पुरुष सभी उनकी बातों को बडे गौर से सुनते है और बात को सुनकर अमल भी करते है। उनके बात करने में एक बात और होती है कि वे अपने साथ बात करने की गवाही जरूर रखती है,अगर कहीं गवाही नही मिलती है तो -"भगवान की सौगंध" उनके साथ जरूर चलती है। बात करने मे उनके अन्दर बुजुर्गो के साथ सम्मान होता है,जवान पुरुषों के साथ मजाक होती है,स्त्रियों में बडी बूढी महिलाओं के साथ पैर दबाकर सलीके से सिर पर पल्ला लेकर बात करने की तहजीब होती है,बराबर की महिलाओं से कटाक्ष भरे सैन मटक्के होते है और बच्चों के साथ उनका सलीका इतना मधुर होता है कि कोई भी बच्चा उनके आने के बाद अपनी अम्मा की गोद छोड कर उनकी गोद मे जा बैठता है।

कल्पना भाभी के पतिदेव किसी कचहरी मे बाबू है,जितनी कल्पना भाभी बात करती है उतने ही वे चुप रहते है,जितना कल्पना भाभी आसपास के माहौल के प्रति सजग रहती है उतना ही वे अपने मे ही मस्त रहने वाले आदमी है,उनके पास तीन लडकियां ही सन्तान के रूप मे है,जब पति देव नौकरी पर चले जाते है,लडकियां घर के काम को निपटा लेती है,घर आकर कल्पना भाभी अपनी लडकियों से भी मुहल्ले की बातों को बताती है जिससे उनकी लडकियां भी आसपास की राजनीति घरों के माहौल तथा बुजुर्ग जवान बच्चों के बारे मे पूरी जानकारी रखती है,समय पर जब कल्पना भाभी किसी मुद्दे को लेकर बात करते समय भूलती है तो उनकी लडकियां उन्हे याद दिला देती है,उन्हे इस बात से बहुत खुशी होती है कि उनकी लडकियां अपनी याददास्त को बहुत अच्छी तरह से कायम रखती है। कल्पना भाभी को गाने बजाने नाचने में भी ईश्वर ने अच्छी योग्यता दे रखी है,किसी भी उत्सव में अगर कल्पना भाभी नही है तो वह उत्सव फ़ीका सा ही लगता है,किसी की रसोई में अगर कल्पना भाभी का हस्तक्षेप नही है तो वह रसोई भी बिना मिर्च मशाले के मानी जा सकती है,किसी प्रतियोगिता में अगर कल्पना भाभी अपनी हाजिरी मुख्य सदस्य के रूप में नही रखती है तो वह मुहल्ले की प्रतियोगिता भी रूखी रूखी सी लगती है।

मुहल्ले की राजनीति में कल्पना भाभी को किसी पद से मतलब नही है। वे अपनी उपस्थिति से मुहल्ले के अध्यक्ष के पद के लिये जिसे भी मनोनीत कर देती है वही बिना किसी हील हुज्जत के अध्यक्ष बन जाता है। अगर उन्हे किसी बात से दिक्कत होती है तो वे जरा सी सरगर्मी फ़ैला कर अध्यक्ष पद वाले व्यक्ति को हटाकर दूसरे व्यक्ति को भी चुनने मे अपनी योग्यता को दिखा सकती है। उनके अन्दर यह कला भी है कि उनके पति देव तो जो सैलरी लाते है वह तो उनके कपडों की धुलाई में ही खर्च हो जाती है। बाकी की कमाई का स्त्रोत आजतक किसी मुहल्ले वाले को पता नही है। हाँ इतना जरूर है कि अगर किसी को कैसा भी काम पडता है तो कल्पना भाभी अपनी जान पहिचान और राजनीति से किसी के भी काम को पूरा करवा देती है। कुछ समय पहले की ही बात है शुक्ला जी को मुहल्ले के बारे मे राजनीति करने की बहुत बुरी आदत थी,कल्पना भाभी ने कई बार उन्हे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मना भी किया लेकिन नही माने। कल्पना भाभी के पास श्रीवास्तव जी का आना जाना था,उन्होने पता नही क्या गुड कल्पना भाभी को खिला दिया कि श्रीवास्तव जी तो अध्यक्ष बन गये और शुक्ला जी मकान बेच कर चले गये।

कल्पना भाभी को वैसे तो सभी जगह जाने का शौक है लेकिन उन्हे पता नही अपने वास्तविक धर्म से कितनी अरुचि है। कहीं भी सत्संग होता है तो वे जाती जरूर है और केवल भगवान की सजी हुयी झांकी की सराहना करती है किसने कितने भाव से कीर्तन को गाया,किसने कितने अच्छी तरह से अपने नृत्य को प्रस्तुत किया,कौन सा गीत किस फ़िल्मी गीत की तर्ज पर था,यह सब बातें वे कर सकती है लेकिन भगवान के प्रति श्रद्धा के बारे मे उनसे पूंछा जाये तो वे केवल यही जबाब देती है कि यह सब अपनी अपनी मान्यता है,जितना काम करोगे उतना ही कमा लोगे अपने आप तो आ नही जायेगा। किसी की शादी समारोह मे वे अपने आशीर्वाद को केवल आने वाले व्यवहार की रकम से जोडती है,लडका या लडकी के प्रति उनकी यही भावना रहती है कि आज के जमाने के अनुसार अगर लडका लडकी नहे चले तो कोई बात नही तलाक ले कर दूसरी शादी करने मे अच्छा है। कल्पना भाभी को अपनी हिन्दी भाषा बोलने मे कभी कभी तकलीफ़ होती है वे अपनी भाषा को बोलने मे अक्सर तभी तकलीफ़ महसूस करती है जब वहां सभी हिन्दी बोलने वाले हों तो वे अपनी बात को अपना इम्प्रेसन जमानेके लिये विदेशी भाषाओं में करने लगती है। जो लोग पहले से जाकर कल्पना भाभी को न्यौता देकर आते है उन्हे यह अपने नजरिये से बिलकुल सही देखती है,या जो लोग ऊंची पहुंच रखने वाले होते है अच्छे पदो पर स्थिति होते है उनके लिये कल्पना भाभी सभी को एक तरफ़ करने के बाद उनकी प्रसंशा जरूर करती है। उनके सामने धन और मान सम्मान की मर्यादा बहुत अच्छी है,अगर कोई बुद्धिमान है और उसके पास धन या अपने को प्रसिद्ध करने का तरीका नही है तो कल्पना भाभी की आदत है कि उसे किसी न किसी प्रकार से नीचा दिखा सकती है और जो कुछ नही जानता है केवल कल्पना भाभी की जी हुजूरी करता रहता है उसे कल्पना भाभी आसमान की ऊंचाइयों मे पहुंचाने की हिम्मत रखती है,उसके बारे कितने ही प्रकार के वक्तव्य वे अपने कथन मे लाती है कि एक प्रकार से वह ही सब मे सर्वोपरि है।

जब कभी चुनाव होते है तो राजनीतिक लोग सबसे पहले कल्पना भाभी को ही पुकारते है। उनके घर पर आने जाने वाले लोगों की भीड इकट्ठी हो जाती है और जो भी कल्पना भाभी को खुश करना जानता है उसे ही मुहल्ले के पूरे वोट मिलते है,जो भी उस समय कल्पना भाभी के सामने आता है,उसके सामने ही कल्पना भाभी को पहले गुहारने वाले के लिये शब्दो का जंजाल फ़ैलना शुरु हो जाता है। जो भी उस समय कल्पना भाभी की बात को सुनता है वह कुछ समय के लिये तो सोचने लगता है कि आखिर मे कल्पना भाभी को क्या हो गया जो इतने बुरे आदमी के लिये कल्पना भाभी इतने अच्छे शब्दो का प्रयोग कर रही है और जो वास्तव मे अच्छा आदमी है उसके लिये भी वे कोई खराब बात नही कहती है केवल थोडा बहुत जिक्र कर देती है और जिक्र भी इस प्रकार का होता है कि सामने वाले को बुरा भी नही लगे और सामने वाले को जिक्र करने से कोई लाभ भी नही हो। कल्पना भाभी की बात का जबाब देने के लिये किसी मे भी हिम्मत नही है,कारण पता नही कल्पना भाभी का खोपडा घूम जाये और कल्पना भाभी किसे कहां किस प्रकार से पहुंचा दें।

हमारे अनुसार हर मुहल्ले मे हर गांव में हर शहर में हर प्रान्त मे हर देश मे कितनी ही कल्पना भाभियां है जो अपनी पहुँच बनाने के लिये अपने अपने अनुसार केवल अपने लाभ और अपनी पहिचान बनाने के लिये प्रयास रत है। कोई कल्पना भाभी बनकर अखबार के रूप मे सामने है कोई कल्पना भाभी बनकर चैनल के रूप मे है,कोई कल्पना भाभी बनकर कम्पयूटर पर बेव साइट के रूप मे है,इन कल्पना भाभी को पहिचानने के लिये खास मेहनत करने की जरूरत नही पडती है। हमारी ज्योतिष की भाषा में कल्पना करना और मूर्त रूप देकर उसे शब्दो मे द्रश्य मे बनावटी रूप से प्रकाशित करने में कल्पना भाभी को शुक्र राहु और उन्हे जो सूचना देने का काम करते है उन्हे बुध केतु के रूप मे देखा जाता है,कल्पना भाभी की तीनो लडकियां जो दत्तक संतान के रूप मे है,वे किसी दिन अपने अपने घर चली जायेंगी,उनसे आगे के जीवन मे कल्पना भाभी का कोई सरोकार नही होगा,जैसे किसी अखबार मे चैनल मे खबरो को लाने वाले रिपोर्टर होते है,अपने अपने समय मे आते है अपने अनुसार अपनी अपनी औकात को दिखाकर क्या अच्छा है क्या बुरा है का रूप नही समझ कर लोगों को क्या अच्छा लग सकता है उसे ही बताने का उद्देश्य रखकर कहते है और चले जाते है।

शुद्ध साधना मन की साधना

शरीर रूपी ब्रह्माण्ड की तीन वृत्तियां है,परा,विराट और अपरा। परा ह्रदय से ऊपर का भाग कहा जाता है,विराट ह्रदय से नाभि पर्यंत का भाग कहा जाता है और अपरा नाभि से नीचे का भाग कहा जाता है। चित्त वृत्ति की उपस्थिति इन तीनो ब्रह्माण्डो मे पायी जाती है,तथा द्रश्य वृत्ति केवल परा ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत ही आती है। चित्त वृत्ति के स्थिर रहने पर देखना श्रवण करना मनन करना सूंघना आदि सूक्ष्म रूप से महसूस किया जा सकता है,द्रश्य वृत्ति को अगर चित्त वृत्ति मे शामिल कर लिया जाये तो कर्म वृत्ति का उदय होना शुरु हो जाता है। अगर चित्त वृत्ति और द्रश्य वृत्ति मे भिन्नता पैदा हो जाती है तो कर्म वृत्ति का नही होना माना जाता है। जिसे साधारण भाषा मे अनदेखा कहा जाता है। चित्त वृत्ति को साधने की क्रिया को ही साधना के नाम से पुकारा जाता है,और जो अपनी चित्त वृत्ति को साधने मे सफ़ल हो जाते है वही अपने कर्म पथ पर आगे बढते चले जाते है और नाम दाम तथा संसार मे प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेते है। चित्त वृत्ति को साधने मे जो रुकावटें आती है,उनमे सबसे बडी बाधा मानसिक भ्रम को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के रूप मे बच्चे से अगर माता कहती है वह खिलौना उठाकर ले आओ,उसी समय पिता अगर बच्चे से कह देता है कि पढाई करो,बच्चे के दिमाग मे भ्रम पैदा हो जाता है कि वह खिलौना उठा कर लाये या पढाई करे,इस भ्रम के अन्दर अगर बच्चे से बाद मे पूंछा जाये कि पहले खिलौना उठाकर लायेगा या पढाई करेगा,बच्चा अगर माता से डरता है तो पहले खिलौना उठाकर लायेगा और पिता से डरता है तो माता की बात को अनसुना करने के बाद पढने बैठ जायेगा। इसी प्रकार से अगर किसी को कहा जाये कि अमुक काम को करना है,अमुक को नही,तो मानसिक धारणा के अन्दर उन दोनो कामो को करने के पहले उनके बीच का अर्थ निकालने मे मन लग जायेगा और वही समय मानसिक भ्रम का माना जायेगा। कारण जब समझ मे आयेगा तब तक या तो मना किये गये काम का रूप बदल चुका होगा या बताये गये काम का करना मुनासिब नही हो पायेगा। इसके अलावा एक और बात मानी जाती है कि किसी व्यक्ति से कह दिया जाये कि वह अमुक कार्य को अमुक तरीके से करो,और उसी समय दूसरा व्यक्ति उसी काम को पहले बताये गये व्यक्ति के तरीके से भिन्न हो जाता है तो भी मानसिक भ्रम की उत्पत्ति हो जाती है। इस भ्रम की स्थिति को बच्चो मे तो खेल कूद और मनोरंजन के साधन तथा नई नई चीजों को देखने के रूप मे मानी जाती है जो जिज्ञासा के नाम से जानी जाती है। वही बात अगर युवाओं मे देखी जाये तो उनकी भ्रम वाली स्थिति शादी विवाह करने अपनी नई दुनिया को बसाने तथा एक दूसरे के ज्ञान धन परिवार रहन सहन समाज मे चलने वाले कारणो को समाप्त करने आदि के प्रति भ्रम बनना माना जायेगा,जब व्यक्ति वृद्ध होता है तो उसके दिमाग मे युवाओ को बदलने वाले कारणो का भ्रम बना रहेगा,कि अमुक कार्य से उसे हानि हो सकती है अमुक वस्तु को खाने पीने से उसके अन्दर बुराई पैदा हो सकती है अमुक सम्बन्ध को बनने के बाद उसकी वैवाहिक जिन्दगी मे बरबादी का कारण बन सकता है या अमुक कार्य करने से बडी हानि या किसी को कष्ट भी पहुंच सकता है,इन भ्रमो के अलावा और भी कई प्रकार के भ्रम माने जाते है जो हर व्यक्ति के जीवन मे अपने अपने रूप मे उपस्थित होते है और उन भ्रमो के कारण ही प्रगति के पथ पर लोग या तो गलत रूप से आगे बढ जाते है या फ़िर कार्य मे तमाम बाधाये प्रस्तुत कर लेते है और कार्य पूरा नही हो पाता है उनके द्वारा पहले की गयी मेहनत बरबाद हो जाती है।

ज्योतिष मे इस भ्रम नाम की बीमारी को पैदा करने वाला राहु है।राहु एक छाया ग्रह है जिसका प्रभाव उल्टे रूप मे पडता है। जैसे एक व्यक्ति को जंगल के रास्ते जाना है और उसे कोई पहले बता देता है कि रास्ते मे शेर मिल सकता है। व्यक्ति को भले ही शेर नही मिले लेकिन उसके दिमाग मे शेर का भय पैदा हो जायेगा कि शेर अगर मिल गया तो वह उसे मार भी सकता है या उसके शरीर को क्षति भी पहुंचा सकता है। वह व्यक्ति अपनी सुरक्षा के चक्कर मे अपने दिमाग का प्रयोग करेगा,और अपने को सतर्क करने के बाद ही जंगल का रास्ता तय करेगा। इस सोचने की क्रिया के अन्दर जो मुख्य भाव आया वह मृत्यु का भय,जीवन चलने का नाम है और मृत्यु समाप्ति का नाम है,जीवन का नाम सीधा है तो मृत्यु का नाम उल्टा है। यही राहु का कार्य होता है। उल्टा सोचने के कारण ही लोग अपने लिये सुरक्षा का उपाय करते है,उल्टा सोच कर ही लोग समय पर पढने का कार्य करते है या उल्टा सोच कर ही लोग किसी भी कार्य को समय से पहले करने की सोचते है या अपने जीवन के प्रति सजग रहने की बात करते है। जब इस प्रकार की बाते आती है तो राहु कुंडली मे अच्छी स्थिति मे होता है और जब राहु गलत भाव मे होता है तो वह बजाय सीधे रास्ते जाने के उल्टे रास्ते से जाने के लिये अपनी गति देने लगता है। जैसे कुंडली मे चन्द्रमा के साथ राहु किसी खराब भाव मे है तो वह मन के अन्दर एक छाया सी पैदा करे रहेगा। मन का एक स्थान मे रहना नही हो पायेगा। जब मन का बंटवारा कई स्थानो मे हो जायेगा तो याददास्त पर असर पडेगा। रास्ता चलते हुये जाना कहीं होगा तो पहुंच कहीं जायेंगे। करना कुछ होगा तो करने कुछ लगेंगे। किसी रखी हुयी वस्तु को भूल जायेंगे,या रखी कहीं थी खोजने कहीं लग जायेंगे,इस बीच मे बुराइयां भी बनने लगती है,जैसे वस्तु को आफ़िस मे रखा था और खोजने घर मे लगेंगे,फ़िर जब नही मिलेगी तो तरह तरह की शंकाओं के चलते जो भी पास मे रहा होगा उस पर झूठा आक्षेप लगाया जाने लगेगा। यह स्थिति राहु के भावानुसार मानी जायेगी,जैसे राहु धन स्थान मे है और चन्द्रमा से युति ले रहा है तो पर्स को रखा तो टेबिल की दराज मे आफ़िस में जायेगा और खोजा घर के अन्दर जायेगा,घर के किसी सदस्य पर आक्षेप लगेगा और बुराई अपमान आदि की बाते उस सदस्य के पल्ले पडेंगी। इसी प्रकार से लडके लडकियां जब बडे हो जाते है तो उनके अन्दर बडी शिक्षा मे जाने के बाद एक सोच पैदा हो जाती है कि वे अपने सहपाठी से नीचे क्यों है,उसका सहपाठी तो बडी और लक्जरी गाडी मे आता है,वह पैदल या बस से आता है,उसके पास कोई आजकल का चलने वाला साधन नही है,जबकि उसके साथी सभी साधनो से पूर्ण है। यह भाव अपने ही मन मे लाने के कारण पढाई लिखाई तो एक तरफ़ रखी रह गयी,अपने को और भी नीचे ले जाने के लिये सोच को पैदा कर लिया। मन के अन्दर माता पिता दादा दादी और परिवार को जिम्मेदार मान लिया गया,और उनके प्रति मन के अन्दर एक अजीब सी नफ़रत पैदा हो गयी। यह कारण अष्टम मे राहु के होने से और ग्यारहवे भाव के स्वामी से युति लेने के कारण बन जाती है। इसी प्रकार से जब राहु का गोचर पंचम भाव मे होता है या वह पांचवे भाव मे शुरु से ही बैठा होता है या चन्द्र मंगल की युति धन भाव मे होती है और राहु का स्थान पंचम मे होता है अथवा राहु का प्रभाव पंचम से शुक्र के साथ हो रहा होता है तो व्यक्ति के अन्दर बचपन मे मनोरंजन के साधनो का और वाहन सम्बन्धी कारण पैदा होता है,जवानी मे इश्क का भूत सवार हो जाता है और वह या तो अपने लिये नये नये लोगो पर छा जाने वाले कारण पैदा करने लगता है या अपनी दहसत से लोगो के अन्दर भय को पैदा करना शुरु कर देता है। इसी प्रकार से अन्य भाव मे विराजमान राहु अपनी विचित्रता से उल्टे काम करने के लिये अपना प्रभाव देने लगता है।

कहा जाता है कि नशे के अन्दर क्षत्रिय दाढी वाला बाबा शमशान मे निवास करने वाला पागल जैसा लगने वाला व्यक्ति की बराबरी उसी व्यक्ति से की जा सकती है जो नितांत अकेला बैठा सोचता रहता है,जिसे दिन मे सोचने से फ़ुर्सत नही होती और रात को नींद उससे कोशो दूर होती है। वह जब कभी सो भी जाता है तो स्वप्न भी बहुत ही अजीब अजीब आते है जैसे मुर्दो के बीच मे रहना आसमान मे पानी की तरह से चलना,जंगल बीहड वीराने क्षेत्र मे चलना,खतरनाक जानवर देखना या ऐसा लगना कि वह अक्समात ही नीचे गिरता चला जा रहा है यह एक राहु की सिफ़्त का उदाहरण है जो बारहवे भाव अष्टम भाव या चौथे भाव मे बैठ कर अपनी स्थिति को दर्शाता है। जैसे लोग अपने मन को साधने के लिये शराब का सेवन करते है या राशि के अनुसार जो चौथे भाव मे होती है उसके अनुसार नशे को करने लगते है का फ़ल चौथे राहु के द्वारा देखा जाता है,शमशानी राशि अष्टम मे बैठा राहु जिसे वृश्चिक राशि के नाम से जाना जाता है उसके साथ भी दिमाग का बंटवारा एक साथ कार्यों मे बाहरी खर्चो मे घर के लोगो मे धन के मामले मे तथा मानसिक सोच मे जाने के लिये अपनी एक साथ युति को देता है,इस युति के कारण अक्सर लोग या तो बडा एक्सीडेंट कर लेते है या कोई भयंकर जोखिम को ले लेते है,या फ़िर किसी ऊंचे स्थान से कूद जाते है या वाहन आदि को चलाते समय कहीं जाना होता है कहीं चलते है और अपने साथ साथ दूसरो के लिये भी आफ़त का कारण बन जाते है।

राहु को साधने का तरीका आज के युग के लोग अपने को शराब आदि के कारणो मे ले जाते है कोई नींद की गोली लेता है,कोई अफ़ीम आदि के आदी हो जाते है कोई नशे के विभिन्न कारण अपने मन को साधने के लिये लेना शुरु कर देते है,यह प्रभाव उनके ऊपर इतनी शक्ति से हावी हो जाता है कि यह ईश्वर का दिया हुआ रूप बल शक्ति मन दिमाग सभी बरबाद होने लगते है और जो कार्य यह शरीर अपने परिवेश के अनुसार कर सकता था उससे दूर रखने के बाद अपनी लीला को एक दूसरो पर बोझ के नाम से समाप्त कर लेने मे जल्दबाजी भी करते है। राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है,जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है।

चित्त वृत्ति को साधने के लिये महापुरुषो ने कई उपाय बताये है। पहला उपाय योगात्मक उपाय बताया है। जिसे त्राटक के नाम से जाना जाता है। एक सफ़ेद कागज पर एक सेंटीमीटर का वृत बना लिया जाता है उसे जहां बैठने के बाद कोई बाधा नही पैदा होती है उस स्थान पर ठीक आंखो के सामने वाले स्थान पर चिपका कर दो से तीन फ़ुट की दूरी पर बैठा जाता है,उस वृत को एक टक देखा जाता है उसे देखने के समय मे जो भी मन के अन्दर आने जाने वाले विचार होते है उन्हे दूर रखने का अभ्यास किया जाता है,पहले यह क्रिया एक या दो मिनट से शुरु की जाती है उसके बाद इस क्रिया को एक एक मिनट के अन्तराल से पन्द्रह मिनट तक किया जाता है। इस क्रिया के करने के उपरान्त कभी तो वह वृत आंखो से ओझल हो जाता है कभी कई रूप प्रदर्शित करने लगता है,कभी लाल हो जाता है कभी नीला होने लगता है और कभी बहुत ही चमकदार रूप मे प्रस्तुत होने लगता है। कभी उस वृत के रूप मे अजीब सी दुनिया दिखाई देने लगती है कभी अन्जान से लोग उसी प्रकार से घूमने लगते है जैसे खुली आंखो से बाहर की दुनिया को देखा जाता है। वृत को हमेशा काले रंग से बनाया जाता है। दो से तीन महिनो के अन्दर मन की साधना सामने आने लगती है और जो भी याद किया जाता है पढा जाता है देखा जाता है वह दिमाग मे हमेशा के लिये बैठने लगता है। ध्यान रखना चाहिये कि यह दिन मे एक बार ही किया जाता है,और इस क्रिया को करने के बाद आंखो को ठंडे पानी के छींटे देने के बाद आराम देने की जरूरत होती है,जिसे चश्मा लगा हो या जो शरीर से कमजोर हो या जो नशे का आदी हो उसे यह क्रिया नही करनी चाहिये।

दूसरी क्रिया को करने के लिये किसी एकान्त स्थान मे आरामदायक जगह पर बैठना होता है जहां कोई दिमागी रूप से या शरीर के द्वारा अडचन नही पैदा हो। पालथी मारक बैठने के बाद दोनो आंखो को बन्द करने के बाद नाक के ऊपर अपने ध्यान को रखना पडता है उस समय भी विचारों को आने जाने से रोका जाता है,और धीरे धीरे यह क्रिया पहले पन्द्रह मिनट से शुरु करने के बाद एक घंटा तक की जा सकती है इस क्रिया के द्वारा भी अजीब अजीब कारण और रोशनी आदि सामने आती है उस समय भी अपने को स्थिर रखना पडता है। इस क्रिया को करने से पहले तामसी भोजन नशा और गरिष्ठ भोजन को नही करना चाहिये। बेल्ट को भी नही बांधना चाहिये। इसे करने के बाद धीरे धीरे मानसिक भ्रम वाली पोजीशन समाप्त होने लगती है।

तीसरी जो शरीर की मशीनी क्रिया के नाम से जानी जाती है,वह शब्द को लगातार मानसिक रूप से उच्चारित करने के बाद की जाती है उसके लिये भी पहले की दोनो क्रियाओं को ध्यान मे रखकर या एकान्त और सुलभ आसन को प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है,नींद नही आये या मुंह के सूखने पर पानी का पीना भी जरूरी है। बीज मंत्र जो अलग अलग तरह के है उन्हे प्रयोग मे लाया जाता है,भूमि तत्व के लिये केवल होंठ से प्रयोग आने वाले बीज मंत्र,जल तत्व को प्राप्त करने के लिये जीभ के द्वारा उच्चारण करने वाले बीज मंत्र,वायु तत्व को प्राप्त करने के लिये तालू से उच्चारण किये जाने वाले बीज मंत्र और अग्नि तत्व को प्राप्त करने के लिये दांतो की सहायता से उच्चारित बीज मंत्र का उच्चारण किया जाता है साथ ही आकाश तत्व को प्राप्त करने के लिये गले से उच्चारण वाले बीज मंत्रो का उच्चारण करना चाहिये।ज्योतिष भगवत प्राप्ति और भविष्य को देखने की क्रिया के लिये दूसरे नम्बर की क्रिया के साथ तालू से उच्चारित बीज मंत्र को ध्यान मे चलाना चाहिये। जैसे क्रां क्रीं क्रौं बीजो का लगातार मनन और ध्यान को दोनो आंखो के बीच मे नाक के ऊपरी हिस्से मे ध्यान को रखकर किया जाना लाभदायी होता है।