विवाह मिलान

वर कन्या के गुणों का मिलान दोनो की नाम राशि से मिलान करना ठीक रहता है,ज्योतिष से मिलान करने से अक्सर किसी न किसी प्रकार के समय की गणना सटीक नही बैठती है,एक पल की चूक से भी वर कन्या की जिन्दगी तबाह हो जाती है। चलने वाले नाम प्रकृति ने दिये होते है जबकि कभी कभी आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति की कुण्डली कालान्तर में बनायी गयी है और नाम राशि जो कुंडली में है वह किसी भी प्रकार से भी चन्द्र राशि से नही मिलती है,जब कुंडली की नाम राशि मिलती ही नही है तो कुंडली से गुण दोष मिलाने का अर्थ क्या रह जाता है। इसलिये जो नाम प्रकृति के द्वारा रखे गये है,उन्ही नामों से विवाह मिलाना हितकर होता है। प्रकृति के द्वारा नाम रखने का मतलब होता है कि घर परिवार या बाहरी लोगों के द्वारा किसी नाम से जातक को बुलाया जाने वाला नाम,वह नाम चाहे रोजाना के लिये बुलाकर लिया जाता हो या फ़िर स्कूल के रजिस्टर में सबसे पहले लिखाया जाने वाला नाम हो। समय जब सटीक मिलता हो और किसी भी प्रकार की शंका समय के प्रति न हो तो जन्म राशि से विवाह मिलाया जा सकता है,वैसे मेरे देखने में आया है कि सौ में से नब्बे जन्म राशियों में चन्द्रमा की गणना गलत ही मिलती है,नक्षत्र में पाये का विचार मुख्य माना जाता है और जन्म समय में अगर तीन मिनट का भी फ़ेर हो जाता है तो पाया कहीं का कहीं मिलता है। इसके अलावा दक्षिण भारत में नाडी की गति के अनुसार भी एक राशि के एक सौ पचास भाग करने पर व्यक्ति के स्वभाव और कर्म कहीं के कहीं जाकर मिलते है।
१. वर्ण निर्णय
२. वश्य निर्णय
३.तारा निर्णय
४.योनि निर्णय
५.ग्रह मैत्री निर्णय
६.गण निर्णय
७.भकूट निर्णय
८.नाडी निर्णय.

चलते हुये नामों के अन्दर इन आठ कारणों को आराम से देखा जाता है,सबसे पहले विवाह मिलान के लिये वर्ग का समाधान कर लेना ठीक रहता है। वर्ग भी आठ बनाये गये है,इनमें नामाक्षर और वर्ग को इस प्रकार से देखा जाता है:-
  1. गरुण वर्ग में नामाक्षर अ इ उ ए ओ
  2. बिडाल वर्ग में नामाक्षर क ख ग घ ड.
  3. सिंह वर्ग में नामाक्षर च छ ज झ यं
  4. श्वान वर्ग में नामाक्षर ट ठ ड ढ ण
  5. सर्प वर्ग में नामाक्षर त थ द ध न
  6. मूषक वर्ग में नामाक्षर प फ़ ब भ म
  7. हिरण वर्ग में नामाक्षर य र ल व
  8. मेढा वर्ग में नामाक्षर श ष स ह
इन वर्गों में शत्रु मित्र और समान वर्ग माने जाते है.

मूषक यानी चूहा और बिडाल यानी बिल्ली दोनो शत्रु है.
हिरण और सिंह दोनो आपस में शत्रु है.
गरुण और सर्प आपस में शत्रु है.
स्वान यानी कुत्ता और हिरण आपस में शत्रु है.
वर के नाम के पहले अक्षर से वधू के नाम का अक्षर अगर पांचवा हैं तो विवाह कदापि नही करना चाहिये,भले ही वह सर्वगुण सम्पन्न क्यों ना हो।
वर के नाम से चौथा वर्ग वधू के नाम का हो तो शादी जरूर कर देनी चाहिये,चाहे वह गरीब क्यों ना हो,वर और वधू के मिलते ही वे आपस में मिलकर नया सृजन करने लगेगे.
वर के नाम से वधू के नाम का तीसरा वर्ग उदासीन होता है,शादी कर भी जाये तो जीवन नीरसता से भरा होगा.
यही बात वर से वधू और वधू से वर के लिये देखी जानी चाहिये.
आपस की राशि को देखना
वर की राशि से कन्या की राशि और कन्या की राशि से वर की राशि अगर आठवीं है तो आठ प्रकार की मृत्यु हमेशा दोनो के बीच बरकरार रहेगी.
वर की राशि और कन्या की राशि अगर एक दूसरे से नवीं और पांचवी है तो जीवन कलह से पूर्ण होगा.
पाराशर के नियम के अनुसार अगर वर की राशि से कन्या की राशि और कन्या की राशि से वर की राशि दूसरी या बारहवीं है तो दोनो में एक दूसरे का विनाशक होगा।
आपस का वर्ण यानी जाति निर्णय
वर और वधू की आपस की नाम राशि से जाति निर्णय किया जाता है,जाति का अर्थ किसी समाज विशेष से नही होकर दोनो की प्रकृति से माना जाता है। चार प्रकार की प्रकृति को जाति के नाम से बताया गया है:-
१. ब्राह्मण जाति की प्रकृति
२. क्षत्रिय जाति की प्रकृति
३. वैश्य जाति की प्रकृति
४. शूद्र जाति की प्रकृति
१. ब्राह्मण जाति की प्रकृति
इस जाति की प्रकृति के लिये माना जाता है कि वह सात्विक विचारों से पूर्ण होती है,मर्यादा में चलना माता पिता और समाज को समझना हितू नातेदारी रिस्तेदारी को निभाना छोटे और बडे का भेद समझना अपने को दुखी रखकर भी दूसरे को सुखी रखना शिक्षा और वैदिक नियम या पुराने उच्चतम विचारों की मान्यता को बनाकर चलना,इज्जत मान मर्यादा देना,सफ़ाई से रहना भोजन पानी रहने के स्थान को धर्म मय रखना किसी प्रकार से हिंसा को नही अपनाना आदि कारण इस प्रकृति के अन्दर आते है.
२. क्षत्रिय जाति की प्रकृति
इस जाति की प्रकृति होती है वह सभी के हित और अनहित की परवाह करना रक्षा करना और शत्रु को मारना काटना बलपूर्वक अपने ही शरीर से सभी काम करने की इच्छा रखना तामसी कारणों के प्रति लापरवाह होना हिंसा से सम्बन्ध रखना चाहे वह कर्म से हो या सोचने से हो या कहने से हो,जिन कारकों में शरीर का प्रयोग करना होता है वहां यह वर्ण माना जाता है.
३. वैश्य जाति की प्रकृति
व्यापारिक दिमाग को वैश्य प्रकृति का कहा जाता है इस प्रकृति के लोगों में भौतिकता को अधिक महत्व दिया जाता है,औकात को पैसे से तोला जाता है,किसके पास कितना धन है और किसने कितनी जायदाद बनाली वह इस जाति के लोगों का अहम का रूप होता है इस प्रकृति के लोगों के सामने मान अपमान सभी धन से सम्बन्धित होते है।
४. शूद्र प्रकृति 
इस प्रकृति मे सेवा भावना की अधिकता होती है व्यक्ति को सेवा करने में ही अच्छा लगता है और अधिकतर इसी प्रकृति के लोग नौकरी करते हुये पाये जाते है। इस प्रकार के लोग सेवा को महत्व इसलिये देते है क्योंकि उनके अन्दर जोखिम लेने की हिम्मत नही होती है,वे काम कर सकते है लेकिन जोखिम को लेना उनके वश की बात नही होती है.
चार वर्ण की राशियां
कर्क वृश्चिक मीन यह चार राशियां ब्राह्मण वर्ण की है
मेष सिंह और धनु यह तीन राशियां क्षत्रिय वर्ण की है.
मिथुन तुला और कुम्भ यह वैश्य वर्ण की जातियां है
कन्या वृष और मकर यह शूद्र वर्ण की जातियां है.
 

विपरीत राजयोग से असाधारण धन

जब शुभ भावों के स्वामी बली होते है,तो धन मिलता है,यह तो सभी जानते है,लेकिन ऐसा भी देखा गया है,कि जो भाव कुन्डली में अनिष्ट का संकेत करते है,और अगर उनके स्वामी अगर किसी प्रकार से कमजोर है तो भी धन शुभ भावों के स्वामियों से अधिक मिलता है.कुन्डली के ६,८,और १२ भाव अनिष्ट भाव माने जाते है,इन तीनो को त्रिक भी कहा जाता है,इन किसी भी स्थान का स्वामी किसी त्रिक में या अनिष्ट ग्रह से देखा जाता है,तोबहुत ही निर्बल हो जाता है,इस कारण से विपरीत राजयोग की प्राप्ति हो जाती है,माना जाता है कि छथा भाव ऋण का है,और किसी पर लाखों रुपयों का ऋण है,और किसी आदमी द्वारा अक्समात उस ऋण को उतार दिया जाता है,तो उसको एक तो ऋण से छुटकारा मिला और दूसरे धन का लाभ भी हुआ,इसी प्रकार से आठवां स्थान गरीबी का माना जाता है,यदि किसी की गरीबी का अक्समात निवारण हो जाये तो वह भी विपरीत राजयोग की गिनती मे ही गिना जायेगा.इसी प्रकार से बारहवां भाव भी व्यय का है,और किसी का व्यय रुक कर अगर बैंक में जमा होना चालू हो जाये तो भी इसी विपरीत राजयोग की गिनती में गिना जायेगा.गणित का नियम सभी को पता होगा कि दो नकारात्मक एक सकारात्मक का निर्माण करते है,और दो सकारात्मक भी एक सकारात्मक का निर्माण करते है,लेकिन एक नकारात्मक और एक सकारात्मक मिलकर नकारात्मक का ही निर्माण करेंगे,इसी प्रकार का भाव इस विपरीत राजयोग मे प्रतिपादित किया जाता है.
इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी की जा सकती है:-आठवें भाव के स्वामी व्यय अथवा ऋण में हों,छठे भाव के स्वामी गरीबी या व्यय के स्थान में हो,और बारहवें भाव के स्वामी ऋण अथवा गरीबी में हों,अथवा अपने ही क्षेत्र में होकर अपने ही प्रभाव से परेशान हो,तो वह जातक धनी लोगो से भी धनी होता है.इसका विवेचन इस कुन्डली के द्वारा भी कर सकते है:- कन्या लगन की कुन्डली में बुध लगन में है,सूर्य केतु दूसरे भाव में तुला में है,गुरु शुक्र तीसरे भाव में वृश्चिक राशि में है,राहु शनि आठवें भाव में मेष राशि के है,मंगल चन्द्र नवें भाव में वृष राशि के है,इस कुन्डली में ऋण भाव के मालिक शनि मेष राशि के नीच भी है और गरीबी के भाव में भी विराजमान है तथा राहु से ग्रसित भी है,साथ ही सूर्य जो व्यय का मालिक है,से भी देखे जा रहे है,और कोई भी अच्छा ग्रह उसे नही देख रहा है,इसी प्रकार से सूर्य भी तुला का होकर नीच है,और केतु का साया भी है,अपने ही स्थान से तीसरे स्थान में है,राहु,शनि और केतु का पूरा पूरा ध्यान सूर्य के ऊपर है,और सूर्य के लिये कोई भी सहारा कही से नही दिखाई दे रहा है,यह उदाहरण विपरीत राजयोग का श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है.जातक लगनेश बुध के चलते बातो से कमा रहा है,पराक्रम में गुरु और शुक्र का बल है,गुरु ज्ञान है और शुक्र दिखावा है,मंगल चन्द्र नवें भाव से जो कि धन के मामले में परेशान जनता का उदाहरण है,को अपनी राय देकर मनमानी फ़ीस लेकर जनता को धन के कारणो जैसे कर्जा और धन के कारण चलने वाले कोर्ट केशो से फ़ायदा दिलवा रहा है,इधर शनि जो कि कमजोर होकर राहु का साथ लेकर बैठा है,सरकारी कारिन्दो की सहायता से मुफ़्त की जमीनो से और उनको खरीदने बेचने से भी धन की उपलब्धि करवा रहा है.