विवाह में राशियों की पूरकता (3)

पिछले पेज मे मैने मेष राशि का वर्णन अन्य राशियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध के लिये प्रस्तुत किया था इस पेज में मैं आपको वृष राशि का वैवाहिक सम्बन्ध अन्य राशियों से करने और उनसे मिलने वाले फ़लों के लिये बताऊँगा।
  • वृष राशि धन और भौतिक कारणों तथा कुटुम्ब के मामले में अपनी पहिचान रखने वाली राशि कही जाती है,इस राशि का स्वभाव बैल की तरह से होता है और यह राशि भचक्र के दूसरे भाव की कारक है। इस राशि का सम्बन्ध अगर मेष राशि के जातकों से कर दिया जाता है तो जातक एक दूसरे के लिये पूरक नही हो पाते है,जैसे मेष राशि का प्रमुख कारक मनुष्य शरीर से माना जाता है तो यह राशि अपने जीवन काल में जीवन साथी के प्रति सही नही मानी जाती है। मेष राशि वाला इस राशि के जातक से केवल धन और भौतिक सुखों की आशा ही करता है,उसे अन्य बातों से कोई लेना देना नही होता है,जातक इस राशि वालों के लिये जीवन भर अपने शरीर धन कुटुम्ब आदि के मामले में केवल खर्च करने के लिये माना जाता है और मेष राशि वाला जातक इस राशि से सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिये ही सम्बन्ध रखता है जैसे ही जीवन साथी का स्वार्थ पूरा होता है जातक या तो इस राशि वाले की अवहेलना करने लगता है अथवा किसी न किसी कारण से अपने को दूर रखता है। अगर सामाजिक या शारीरिक बल इस राशि वाले में अधिक होता है तो जीवन साथी का जीवन से दूर जाना निश्चित माना जाता है,वह शरीर से दूर नही जाता है तो मन से जरूर दूर चला जाता है। अगर शादी के पहले इस राशि के जीवन साथी के साथ कोई बहुत ही बडी बौद्धिक ताकत होती है तो इस राशि वाले सम्बन्ध बनाने के बाद उसकी बौद्धिक शक्ति बेकार सी हो जाती है वह अपने को बिलकुल असहाय समझने लगता है। पाराशर ऋषि के अनुसार हर भाव का बारहवां भाव उसका विनाशक होता है उस का प्रभाव भी इस राशि के जातकों पर प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। इस राशि का जीवन साथी पहले तो अपने पराक्रम को इस राशि वाले की धन सम्पत्ति से मानता है,दूसरे इस राशि वाले की कमन्यूकेशन शैली का बडे आराम से फ़ायदा लेता है,उसके द्वारा बोल चाल से कमाया गया धन या बोलचाल के द्वारा बनाई गयी प्रतिष्ठा को अपने हित के लिये प्रयोग करता है। अक्सर वृष राशि स्वभाव पेट भरा होने पर अधिक की चाहत नही करने वाला होता है लेकिन बार बार कोई इस प्रकार का जीवन साथी अगर अपनी जरूरतों को आगे पीछे करने वाला होता है तो इस राशि वाले जातकों को काफ़ी मेहनत करनी पडती है और समय से पहले कार्य की अधिकता से जातक की कमर झुक जाती है अथवा वह किसी बडी बीमारी से ग्रस्त होकर कालकवलित हो जाता है। मेष राशि वाला जीवन साथी इस राशि के भावनात्मक प्रभाव को अपने मन के अनुसार खर्च करने वाला होता है,उसी भावनात्मक प्रभाव के अन्दर रहने की कोशिश करता है,जो इस राशि वाले ने कहा है उसके लिये वह अडिग रहना चाहता है। और इस राशि वाले की बात कभी कम हो सकती है कभी अधिक इस बात को वह अपनी इज्जत मानकर अपने भावों को घर से बाहर रहने और अपने द्वारा अन्य सम्बन्ध बनाने के वक्त प्रयोग करता है।
  • वृष राशि वाले का सम्बन्ध वृष राशि वाले जीवन साथी से होने पर दोनो जीवन एक दूसरे को हराने के चक्कर में रहते है लेकिन दोनो ही अपने अपने स्थान पर मजबूत होने के कारण एक दूसरे को हरा नही पाते है,अक्सर एक ही राशि का सम्बन्ध होने के बाद जो दुख एक पर आता है वही दुख किसी भी रूप में दूसरे पर भी आना शुरु हो जाता है।
  • वृष राशि का समबन्ध अगर मिथुन राशि वाले से होता है तो परिणाम में मेष राशि वाले जैसा ही प्रभाव सामने आता है.

विवाह मिलान में राशियों की पूरकता (2)

पिछले पेज मे मैने आपको मेष राशि से तुला राशि पर्यन्त भेद जो मेरे सामने अधिकतर आते रहे उनके वारे में बताया आगे आपको मेष राशि से अन्य राशियों के बारे में किये जाने वाले वैवाहिक सम्बन्धों के लिये समझाने की कोशिश करूंगा।
  • मेष राशि से वृश्चिक राशि वालों के सम्बन्ध में जो बातें सामने आयीं उनमे अधिकतर वर या वधू ने अपने जीवन साथी को अपमान की द्रिष्टि से देखा,किसी न किसी प्रकार के जोखिम वाले काम करने के लिये उत्प्रेरित किया,मृत्यु के बाद की सम्पत्तियों को प्राप्त करने बीमा करवाने लोगों से धन लेकर उसे वापस नही करने के प्रति अथवा जासूसी और जमीनी काम करने के लिये आगे बढाने का काम किया। वर या वधू ने सामाजिक सम्बन्धों को कम निभाया और शारीरिक सुख के लिये अपने अपने शरीरों को बरबाद किया,शरीर के सम्बन्धों को अधिक बनाने के कारण एक के शरीर में बीमारियां घर करने लगीं और एक दिन वह व्यक्ति वर या वधू विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त होकर या तो बिलकुल नकारात्मक हो गया है या फ़िर अपने पीछे जमा धन को या पीछे की सम्पत्तियों को छोड कर चला गया.
  • मेष राशि वालों का सम्बन्ध जब धनु राशि वालों से हुया तो वर या वधू ने सामाजिक रिस्तों पर चलने के लिये जीवन साथी को आगे बढाया। जीवन साथी ने भी पारिवारिक और सन्तान के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरी तरह से निभाया। जीवन साथी ने अपने धन को अपने द्वारा किये गये कार्यों से प्राप्त किया,कर्म पर अधिक विश्वास किया,उसी स्थान पर वर या वधू ने अपने जीवन साथी के द्वारा किये जाने वाले कार्यों के अन्दर चाहे वह घर के रहे हो या बाहर के सभी मे कर्जा दुश्मनी बीमारी निपटाने का काम किया इस प्रकार से जीवन की गति सामान्य बनकर चलती रही,धर्म भी मिला समाज भी मिला,सन्तान भी मिली और जीवन का इतिहास आगे बढने के लिये साधन भी मिले ।
  • मेष राशि वालों की शादी जब मकर राशि वालों से हुयी तो वर या वधू ने अपने जीवन साथी को काम करने की मशीन ही समझा। यहाँ तक कि घर के कामों में भी और बाहर के कामों में भी हाथ बटाने की क्रिया को जारी रखा,कार्य और मकान जायदाद बनाने के अलावा और कुछ समझ में ही नही आया,कभी फ़ालतू का समय बच गया तो जनता ने भी अपने लिये सहायतायें ली। कभी राजनीति से जुड गये कभी सरकारी कामों के अन्दर अपने बल को प्रयोग करने लगे,कभी पानी की समस्या तो कभी घर के अन्दर के सदस्यों की समस्या,अगर माता अधिक दिन तक जिन्दा रही तो उसकी तीमारदारी का काम भी बडे आराम से किया। अधिक काम करने के कारण और रति सुख से दूर रहने के कारण जीवन साथी के प्रति शंकायें बनने लगी,क्लेश केवल उन्ही आक्षेपों की वजह से हुये जो स्त्री को पुरुष से और पुरुष को स्त्री से जल्दी से लगा दिये जाते है,पिता और पिता जैसे लोगों से शक वाले कारण देखने को मिले,परिणाम में इस प्रकार के रिस्ते अधिकतर नि:संतान बनकर ही रह गये,बडे भाग्य से अगर संतान हुई भी तो वह कन्या संतान सामने आयी और बडी होकर अपने घर चली गयी।
  • मेष राशि वालों की शादी जब कुंभ राशि वाले जीवन साथी से हुयी तो इस राशि वालों ने अपने जीवन साथी को मित्र के रूप में माना,अपने जीवन साथी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना उनके लिये सुखमय हो गया। एक ने अपने को मित्र माना तो दूसरे ने अपने जीवन साथी को समझकर और लोगों के सामने प्रस्तुत करने के बाद जीवन का सर्वोत्तम उदाहरण पेश किया। अधिकतर रहने वाले स्थान से जीवन साथी की परेशानियां ही रहीं,कोई न कोई तर्क वितर्क घर परिवार में चलता रहा लेकिन दोनो ने अपने अपने दिमाग से एक दूसरे के प्रति समर्पण से अपने जीवन को मजे से जिया,चूंकि जीवन साथी की लगातार की द्रिष्टि संतान पर रही इसलिये संतान ने भी अपने कर्तव्य को पूरी तरह से निभाकर अपना फ़र्ज पूरा किया।
  • मेष राशि वालों की शादी जब मीन राशि वालों से हुयीं तो जीवन साथी ही इस राशि वालों का विनाशक बन गया,उसने सि राशि वाले को केवल सुख और बनाव श्रंगार के साधनों भौतिक कारणों और उनकी प्राप्ति के लिये उससे प्रयास रखे,कहीं न कहीं से धन की कुटुम्ब की चिन्तायें इस राशि वाले को दी जाने लगीं,एक वजन की तरह इस राशि वाले अपने जीवन साथी को लेकर चलने लगे। घूमने में बाहर का भोजन करने में सार्वजनिक संस्थाओं में अपने को जीवन भर लगाये रहे,केवल एक ही बात दिमाग में रही कि अपने अनुसार किस प्रकार से जीवन को आगे बढाया जाये,और अपना नाम किस प्रकार से किया जाये,संतान को पैदा करने में रोग लगने लगे,जिस भी काम से कर्जा हो दुश्मनी हो बीमारी हो उन्ही कामों को पैदा किया जाने लगा। पति ने पत्नी या पत्नी ने पति को कुछ समय की शारीरिक तुष्टि का साधन समझा,जब भी कोई घरेलू या पारिवारिक या सामाजिक बातों का दौर चालू हुआ तो एक कोई अलग सा मुद्दा उठाकर जीवन साथी ने अपमानित किया,कुछ समय बाद या तो बहुत बडा हर्जाना देकर जीवन साथी से दूरियां मिली या जीवन भर के लिये जेल या बेकार होकर जीवन को जिया,अगर संतान हुयी भी तो कन्या संतान की बाहुल्यता हुयी,जीवन के अन्तिम समय में वही सार्वजनिक संस्थायें या घर परिवार के सहायता देने वाले लोग सामने आये।

विवाह मिलान में राशियों की पूरकता

विवाह मिलान में अगर नामकी राशि से विवाह मिलाया जाता है तो जीवन पूर्णता से निकलता है,लेकिन नाम की राशि को राशि की पूर्णता से देखकर ही विवाह को मिलाना चाहिये। प्राचीन काल में स्त्री पुरुष से निर्बल मानी जाती थी,लेकिन वर्तमान में स्त्री भी अपने में पूर्ण है,इसलिये पुरुष जब पूर्णता को नही दे पाता है तो स्त्री स्वयं के प्रयासों से पूर्णता को प्राप्त कर लेती है। वह पूर्णता चाहे धन की हो परिवार की हो या समाज की हो या मर्यादाओं की हो,परिवार की पूर्णता को जानने के लिये आज कितनी ही स्त्रियां अपने अपने परिवार को अकेले चलाने की हिम्मत रखती है,कितनी ही आज उच्च पदासीन है और कितनी ही इस समाज को सुधारने के काम में लगीं है। यहाँ तक कि पुरुष के अन्दर किसी बडे काम को करने का अहम होता है वहीं स्त्री उस काम को दिमाग से कर लेती है और अहम की मात्रा कहीं भी नही मिलती है,पुरुष अगर किसी काम को अहंकार से करना चाहता है तो स्त्री उसी काम को अपनी आदत के अनुसार सेवा से कर लेती है।
पूर्णता और अपूर्णता का भेद
पूर्णता वर और वधू के लिये समझने के लिये राशियों को समझना जरूरी है,पहले मेष राशि को ही लेते है,इस राशि के वर या वधू अपने शरीर से अपने स्वयं के प्रयासों से आगे बढना चाहते है,इन्हे भौतिक साधनों की सामने जरूरत होती है,अपने को संसार में दिखाने के लिये यह दोहरे स्वभाव को अपना लेते है,ठंडे के सामने गर्म और गर्म के सामने ठंडे होकर चलना इनका नियम होता है,मानसिक भावनायें अनन्त होती है माता के प्रति यह जीवन के पच्चिस साल तक समर्पित होते है,इस राशि की सम्पूर्णता उन्ही राशियों से मानी जायेगी जो इसके लिये सम्मुख साधन देने के लिये तैयार होती है,जैसे कन्या राशि सेवा भाव से जुडी राशि है,अगर मेष राशि के वर के लिये कन्या राशि की वधू से सम्बन्ध कर दिया जायेगा तो वधू इस राशि की सेवा के लिये सम्मुख खडी होगी,और कन्या राशि इस राशि की माता की राशि से तीसरी होने के कारण माता भी कन्या राशि की वधू को अपना पराक्रम मानेगी,बिना बहू के आगे नही चल पायेगी,इसके विपरीत अगर मेष राशि के वर से वृश्चिक राशि की वधू से कर दी जायेगी तो मेष राशि तो सकारात्मक राशि और वृश्चिक राशि नकारात्मक राशि है,मेष राशि मेहनत करने के बाद अपने को शो करने की इच्छा रखती है तो वृश्चिक राशि बिना मेहनत के शो करने की आदत रखती है,मेष राशि की आदत खुला रूप है तो वृश्चिक राशि की आदत गुप्त रूप से काम करने की है,मेष राशि जो भी करेगी वह चिल्ला कर करेगी और वृश्चिक राशि चुप रहकर वह काम करेगी। इसी प्रकार से अगर मेष राशि की शादी मीन राशि की वधू से कर दी जाये तो वह अपने प्रभाव से केवल पुरुष को स्त्री और स्त्री को पुरुष की चाहत को लेकर तथा शरीर को बरबाद करने के कारण पैदा करने के उपाय करने लगेगी। इस प्रकार से राशि का मिलान समझकर ही शादी करने से वर और वधू की सफ़लता प्रकट होने लगती है। इसी प्रकार से वृष राशि के सम्मुख भौतिकता का प्रदर्शन करना होता है वह लोगों के अन्दर अपने भावुकता पूर्ण विचार रखने की कोशिश करती है,उसका मन शेर की प्रकृति का होता है यानी उसे डर नही लगता है,वह चाहे अनचाहे कामो के अन्दर अपने को प्रवेश कर लेती है,वह सामाजिकता के नाते केवल यौन सम्बन्ध धर्म और रीतिरिवाज से ही स्थापित कर सकती है उसे दुनियादारी की छीछा लेदर से बहुत नफ़रत होती है,कर्म में भाग्य दिखाई देता है वह कभी भी एक काम को एक बार में नही करती है वह दो काम एक साथ लेकर चलने वाली राशि है,एक के अन्दर अगर उसे फ़ायदा होता है तो दूसरे काम के अन्दर नुकसान भी हो जाये तो उसे दिक्कत नही होती है,समाज के अन्दर अपने को प्रदर्शित करने का कारण केवल मर्यादा से ही होता है,अगर इस राशि के साथ कर्क राशि का समब्न्ध स्थापित कर दिया जाये तो दोनो राशियां एक दूसरे की पूरक हो जायेंगी और उसी जगह इस राशि वाले का साथ धनु राशि से कर दिया जाये तो एक तो धर्म और भाग्य के लिये अपना जीवन निकालने की कोशिश में होगी तो दूसरे को केवल कर्म पर विश्वास होगा,वह कर्म चाहे किसी प्रकार का क्यों न हो। इस राशि वालों का सम्बन्ध अगर मकर राशि वालों से हो जाता है तो जीवन तबाह हो जायेगा कारण मकर राशि वाला इस राशि के सामने अपने को बहुत बडा प्रदर्शित करने की कोशिश करेगा,अपने अन्दर ईगो को पाल कर चलेगा,और जीवन के अन्दर एक दूसरे की कमियां एक दूसरे को अपने आप सामने आने लगेगीं। हमने कई नाम राशियों वाले पति पत्नियों को आपस में मिलाकर प्रत्यक्ष में देखा,उनके अन्दर जो समानतायें असमानतायें सामने मिली वे इस प्रकार से है:-
  1. मेष राशि की शादी वृष राशि वाले के साथ होने पर मेष राशि ने वृष राशि से धन की और भौतिक साधनों की कल्पना से जीवन को निकालने की कोशिश की,या तो वृष वाला जातक मेष राशि की जरूरतों को पूरा करने के लिये धन और भौतिक साधनों की पूर्ति यहां तक कि खाने पीने का सामान भी अपने मायके या पैत्रिक खानदान से पूरा करता रहा,मेष राशि के द्वारा वृष राशि वाले जातक को लगातार सामने रखने से सन्तान की मात्रा मिस कैरिज और गर्भपात वाली समस्यायें लगातार पैदा होती रही,और एक दिन मेष राशि को वृष वाला वर या वधू कमजोरी और बीमारी के कारण परलोक सिधार गया,और अधिक जीवन को भोगने के लिये रहा भी तो केवल अपने द्वारा नौकरी व्यवसाय करने के बाद मेष राशि वाले के खर्चों को पूरा करने के लिये अधिक जीवन को भोगा.
  2. मेष राशि वाले की शादी अगर मिथुन राशि वाले के साथ कर दी गयी तो मेष राशि वाला अपने परिवार में भले ही छोटा था लेकिन जीवन साथी की उपाधि उसके परिवार में बडी हो गयी,मेष राशि वाला अपने जीवन साथी को अपना बल समझकर साथ लेकर चलता रहा और जीवन के रास्तों में तरक्की को प्राप्त करता गया,लेकिन जहां भी मित्र और लाभ वाली बात आयी वहां पर मेष राशि वाले के जीवन साथी ने उसे पूरा सहयोग दिया तथा उससे अपने हमेशा के फ़ायदे के लिये कोई न कोई सहारा प्राप्त करने के बाद ही उसके साथ जीवन की शुरुआत की। अक्सर आदर्श वैवाहिक जीवन मेष और मितुन राशि वाले का देखने को मिला।
  3. मेष राशि वाले जातक का विवाह अगर कर्क राशि वाले के साथ हुआ तो दोनो ने मिलकर घर मकान जायदाद और जनता के अन्दर अपनी पैठ बनायी,जिस दिन से मेष राशि वाले की शादी हुयी उस दिन से ही चाहे मेष राशि वाला जातक कितना ही कामचोर था लेकिन उसे जीवन के प्रति काम करने की आदत पडने लग गयी और वह तादात से अधिक काम धन्धों को करने लगा। बाहर के काम मेष राशि वाले जातक ने संभाले तो घर के काम और निजी व्यवसाय को जीवन साथी ने संभाला,उम्र की दूसरी श्रेणी में जाकर दोनो संतान के लिये सोच पाये।
  4. मेष राशि वाले जातक का विवाह अगर सिंह राशि वाले के साथ हो गया तो सम्बन्धो में तनाव केवल इसलिये पैदा हुआ क्योंकि आने वाले जीवन साथी ने अपने परिवार की मर्यादायें और रीति रिवाज अपने अनुसार मेष राशि वाले पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश की और दोनो के परिवारों और समाज के अन्दर बतकही बनने लगी दोनो के अन्दर आक्षेप विक्षेप बनने लगे,जीवन साथी की राजनीति और काम करने के तरीकों से तंग आकर जीवन की तीसरी श्रेणी तक आपस के सम्बन्ध या तो विलग हो गये,या फ़िर मेष राशि वाले अन्य सम्बन्धों के अन्दर चले गये,या फ़िर उनकी अकाल मृत्यु किन्ही असमान्य कारणों से हो गयी.
  5. मेष राशि वाले जातकों की शादी कन्या राशि के जातकों से होने पर जीवन साथी के द्वारा हर सुख दुख कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के कामो को अपने ऊपर धारण कर लिया गया,परिवार सन्तान और जल्दी से धन कमाने की रीतियों को जीवन साथी के द्वारा परिवार में प्रचलन में लाया गया है सन्तान की शिक्षा और बुद्धि पर उन्होने अनाप सनाप खर्च करने के बाद संतान को समाज में स्थान दिया,लेकिन घर और परिवार की छिपी हुयी राजनीति पर अपनी नजर रखने के कारण वे समाज या परिवार के कुछ लोगों के लिये बुरे भी हो गये,मेष राशि वाले अपनी इस प्रकार के जीवन साथी के व्यवहार से या तो जल्दी बुजुर्ग हो गये या किसी भी जोखिम मे जाने से अपने शरीर या धन से जल्दी बरबाद हो गये,अंत का समय बीमारी या दयनीय स्थिति में गुजारना पडा संतान के अति शिक्षित होने पर वह अपने कर्तव्यों को ही भूल गयी.
  6. मेष राशि वालों की शादी तुला राशि वालों से होने पर जीवन साथी के द्वारा परिवार में आते ही दोहरी नीति को सामने लाया जाने लगा,अथवा शादी के बाद मेष राशि वाले अपने ससुराल खान्दान के लिये दोहरी नीति से काम करने लगे,उनके अन्दर जीवन साथी के द्वारा व्यवसाय के प्रति अधिक झुकाव होने के कारण परिवार की प्रोग्रेस मे अपने जीवन को लगाया जाने लगा।
आगे -2

मेरा भारत एक स्वर्णिम भविष्य की ओर

किसान खेती की बात और उसकी उन्नति और अवनति के बारे में बात करेगा,व्यापारी व्यापार के बारे में घाटे और मुनाफ़े की बात करेगा,इन्जीनियर तकनीक के प्रति उन्नत या रद्दी के बारे में बात करेगा,डाक्टर रोग और उसके निवारण के बारे में बात करेगा,वकील कानून और फ़ैसले के बारे में बात करेगा,कवि कविता और लेखक कहानी और लेख के बारे में सोचने के लिये मजबूर होगा,नौकरी वाला अपने मालिक और नौकरी के मामले में बात करेगा,नेता भाषण और सीट के लिये वोटर अच्छे या बुरे नेता के लिये तथा समाज शास्त्री समाज के निर्माण और सामाजिक बुराइयों भलाइयों के लिये बात करेगा। मतलब जो जिस भाव में चला गया है उसी भाव की बात करेगा। मेरे अनुसार मैने केवल ज्योतिष के बारे में सीखा है तो मै केवल ज्योतिष के बारे में ही योग और कुयोग के बारे में बात करूंगा। पन्द्रह अगस्त और आजादी का चौसठवा पर्व है इसलिये आजाद भारत के बारे में बात करने के लिये आप सभी के सामने हूँ,लेकिन उपरोक्त सभी कारकों के लिये बात को करना और सोचना भी जरूरी है,किसानी की है इसलिये किसानी की बात कर सकता हूँ व्यापार किया है इसलिये व्यापार की बात कर सकता हूँ इन्जीनियरी की है इसलिये इन्जीनियरी की बात कर सकता हूँ डाक्टरी को देखा भी है अंजवाया भी है रोगी भी हुआ हूँ दवा के बारे में पता भी किया है इसलिये डाक्टरी के बारे में भी बात करूंगा,लेखों को लिखा है तो लिखने के बारे में बात करूंगा,कविता के लिये शब्दों को सोचा है इसलिये कविता की भी बात करूंगा,आजादी को समझा है इसलिये आजादी की बात करूंगा।
भारत की स्वतंत्रता
भारत की स्वतंत्रता पन्द्रह अगस्त उन्निस सौ सैंतालीस को रात बारह बजकर एक मिनट पर मिली थी,जिस समय स्वतंत्रता मिली थी उस समय भारतीय ज्योतिष लहली के अनुसार वृष लगन थी,इस लगन का स्वामी शुक्र तीसरे भाव में यानी कर्क राशि में था,धन का मालिक बुध भी कर्क राशि में था,अपने को प्रदर्शन करने वाले भाव तीसरे का मालिक चन्द्रमा भी कर्क राशि में था,जनता के हित और जनता का मालिक सूर्य भी कर्क राशि में था,शिक्षा का मालिक भी सूर्य में है विद्या और बुद्धि का मालिक बुध भी कर्क राशि में है,कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक शुक्र भी कर्क राशि में है,साझेदारी और देश को आजादी के बाद जिन समस्याओं उसका मालिक मंगल देश के धन भाव में विराजमान है और केतु जूझने के लिये सामने खडा है,देश के लिये अपमान जोखिम और जनता के लिये जो बरबाद होने के कारण है उनका स्वामी गुरु है वह कर्जा दुश्मनी बीमारी में विराजमान है,देश का भाग्य देश का धर्म देश के विदेशी कारणों उच्च शिक्षा कानून और कानूनी राय पर चलने के कारण का मालिक शनि है वह भी कर्क राशि में है,देश में किये जाने वाले कार्य देश के लिये उन्नति अवनति देने के कारण बनाने का मालिक भी शनि है जो कर्क राशि में है,देश के लिये लाभ और देश के लिये मित्रता को देने का कारण वाला ग्रह गुरु है वह भी देश के कर्जा दुश्मनी और बीमारी के भाव में विराजमान है,देश को खर्चा करवाने वाले कारणों देश की उन्नति और अवनति को रास्ता देने वाले तथा देश के लिये उच्च सीमा तक पहुंचाने के लिये जो ग्रह माना जाता है वह भी धन और देश के कुटुम्बीय भाव में है। राहु देश की लगन में है,राहु के द्वारा देश की तरक्की को देने वाले और देश की पहिचान बनाने वाले कारकों पर भाव पर अपनी छाया डाली जा रही है।
देश की जातियां
ग्रहों के अनुसार जातियों के लिये जो ग्रहों का रूप दिया गया है उनके अन्दर राहु को मुस्लिम जैसी जातियों से सम्बन्धित किया गया है,इसके साथ ही वे जातियां भी शामिल की जा सकती है जो अपने शारीरिक सम्बन्धो रिस्तेदारियों को अपने ही समाज के अन्दर करना जानते है और अपने को शक्तिशाली बनाने के लिये इन्सानी ताकत का सहारा लेना जानते है,राहु से बारहवें भाव में इन्सानी राशि मेष होने के कारण तथा राहु का कुटुम्ब की राशि वृष में उपस्थिति होने के कारण राहु का वर्चस्व देश के तीसरे भाव में विराजमान अन्य जातियों से सम्बन्धित ग्रहों पर अपना प्रभाव डाला जा रहा है,चन्द्रमा से खेती करने वाले लोग बनिया वृत्ति को अपनाने वाले लोग,पानी को प्रयोग करने के बाद अपनी जीविका चलाने वाले लोग माने जाते है,बुध से जैन बौद्ध तथा बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाले लोग,शुक्र से साज संवार करने वाले लोग नाच कूद मनोरंजन कला शारीरिक हाव भाव आदि से अपने को प्रदर्शित करने वाले लोग गुरु पुरुष जातकों के लिये और शुक्र स्त्री जातकों के लिये मान्यता रखता है,इसलिये इस भाव में जो शुक्र के होने से स्त्री जातकों को भी सूचित करता है,सूर्य क्षत्रिय जाति से सम्बन्ध रखता है चाहे वे किसी भी जाति से सम्बन्धित हों लेकिन उनके अन्दर राजनीति को भी माना जा सकता है,शनि को नौकरी पेशा करने वाले लोगों से तथा पुराने जमाने से चली आ रही एस सी एस टी जातियों के लिये कहा जाता है,जो बुद्धि से मंद होते है या जो कार्य को धीरे करते है या जो काम करते समय चालाकियों को अपने साथ रखते है उनके लिये भी शनि को माना जाता है,मिट्टी खोदने चमडा काटने और नीचा करने वालो को भी शनि की श्रेणी में लाया जाता है। यह जातियां देश की हिम्मत वाले भाव मे है लेकिन सभी पर देश की लगन का राहु विराजमान होने के कारण ग्रहण तो माना जी जा सकता है। अन्य जातियों के मामले में जो जातियां धर्म समाज भाग्य और वैदिक जानकारियों के लिये जानी जाती है वे सभी गुरु के द्वारा मानी जाती है,गुरु का देश के छठे भाव में होना इन जातियों को कर्जा दुश्मनी और बीमारी आदि से ग्रस्त माना जा सकता है। इन जातियों को देश की सेवा भाव वाली और रोजाना के काम करने वाली राशि में होने के कारण वर्चस्व उच्चता से नीचता के लिये भी माना जा सकता है। जैसे कोई ब्राह्मण वेदों का ज्ञाता है लेकिन वह जीविका के लिये नौकरी करता है और लोगों की सेवा करता है,कोई सम्बन्धी के लिये भला काम करता है लेकिन सम्बन्ध का मालिक गुरु होने के कारण उसे बदले में बुराई मिलती है,और बेकार में भलाई करने के बाद दुश्मनी मिलती है। गुरु का न्याय करने के लिये भी माना जाता है,न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल हो जाये कि रोजाना के लिये न्याय वाले काम करने के लिये गुरु के समय तक भागना पडे आदि पहिचान मानी जा सकती है।
देश की सीमाओं के लिये पहिचानी जाने वाली राशियां
सीमाओं के लिये उत्तर में वृष राशि उत्तर पश्चिम में मिथुन राशि पश्चिम में उत्तर से सटी कर्क राशि पश्चिम में सिंह राशि पश्चिम दक्षिण से जुडी कन्या राशि,नैऋत्य में तुला राशि,दक्षिण में वृश्चिक राशि,दक्षिण पूर्व से जुडी धनु राशि अग्नि कोण में मकर राशि पूर्व में कुम्भ राशि,पूर्व उत्तर से जुडी मीन राशि और ईशान में मेष राशि देश की सीमाओं पर विराजमान है। इन राशियों में जो राशियां जिन भावों से पहिचानी जाती है वे इस प्रकार से हैं:-
  • वायव्य राशि उत्तर दिशा से जुडी है और राहु विराजमान है,राहु की स्थिति सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका में है,और कृतिका नक्षत्र का तीसरा पाया बुध से सम्बन्धित है,राहु की स्थिति उच्च की मानी जाती है,लेकिन राहु की अवस्था मृत है। इस राहु का मालिक मुख्य रूप से बुध है,बुध को कानून के रूप में माने तो यह दिशा कानून से बंधी मानी जाती है। नक्षत्र का स्वामी सूर्य है,इसलिये यहाँ पर जो भी कानून होगा वह राज्य के प्रति सरकारी कानून होगा वह किसी समुदाय का कानून नही माना जा सकता है। बुध का रूप हरे भरे रूप से और सूर्य का रूप लकडी और उन्नत पहिचान के लिये माना जाता है इसलिये इस दिशा में उन्नत लोगों की पहिचान मानी जा सकती है। कुंडली को सामने से देखने पर दाहिने हाथ की तरफ़ मेष राशि का होना भी बताता है कि देश के ईशान में जन बाहुल्य देश की स्थापना है,यह देश चीन के रूप में माना जा सकता है। साथ ही गुरु की सप्तम नजर इस देश और इस भूभाग पर होने के कारण धर्म से सम्बन्धित देश नेपाल को भी माना जाता है जो अपनी धर्म और मर्यादा को समय समय पर बदलने के लिये तथा राहु के प्रभाव से ग्रस्त होने के कारण जन बाहुल्यता की श्रेणी में गिना जायेगा लेकिन गुरु के इस भाग में प्रवेश करते ही यह देश फ़िर से अपने वास्तविक रूप में आजयेगा। जैसे वर्तमान में यह नेपाल देश कमन्युस्टों यानी जनबाहुल्य के रूप में प्रजातंत्र देश के रूप में है लेकिन गुरु के इस देश की सीमा में मई ग्यारह से प्रवेश करते ही यह अपने पहले वाले वास्तविक रूप में धर्म से आच्छादित हो जायेगा। गुरु मोक्ष का कारक भी है,इसलिये बदलती हुयी राजनीतिक परिस्थियों के कारण और शनि के द्वारा देखे जाने के कारण नवम्बर ग्यारह के बाद या आसपास इस देश का विलय भी माना जा सकता है।
  • वायव्य दिशा में मंगल के स्थापित होने के कारण यह दिशा लडाई झगडे और बलिदानी दिशा के रूप में भी मानी जा सकती है,मिथुन राशि का मंगल होने के कारण यह लडाइयां केवल नाम के लिये ही होती है,रहन सहन के लिये और जलवायु के परिवर्तन या किसी भी आर्थिक परिवेश के प्रति कोई सजगता नही होती है केवल नाम को एक निश्चित भूभाग के प्रति जोडने के लिये ही होती है,इस कारण को पैदा करने वाला मुख्य ग्रह राहु ही माना जाता है,राहु में बल नही होने के कारण और बुध के साथ सूर्य से जुडा होने के कारण वह कर कुछ भी नही पाता है,गुरु जो हिन्दू धर्म से सम्बन्धित है वह भी देश की कुंडली में मृत है,गुरु के ही नक्षत्र विशाखा में होने और विशाखा के दूसरे पाये में स्थापित होने के कारण जो केतु के रूप में जाना जाता है पर निर्भर होता है,यानी कुंडली का केतु जो करेगा वह गुरु को मानना पडेगा,केतु की स्थिति दक्षिण में होने के कारण तथा केतु के द्वारा मंगल को मारक द्रिष्टि से देखने के कारण इन लडाइयों को दक्षिण का केतु ही निपटा सकता है। 
  • उत्तर पश्चिम में ही चन्द्रमा बुध प्लूटो शनि शुक्र सूर्य की उपस्थिति कर्क राशि में है,चन्द्र से पानी बुध से हरी भरी जमीन प्लूटो से मशीनों का प्रयोग किया जाना शनि से पानी वाले कार्यों के लिये की जाने वाली मेहनत शुक्र से खेती वाली जमीन सूर्य से उन्नत खेती और गेंहूँ आदि के लिये गणना मान्य है,पंजाब को इस ग्रह युति का कारक माना जाता है.चन्द्र बुध से मजाकिया,पानी वाली खेती,लोक कलाकार,भाव पूर्ण गीत गाया जाना जिससे शरीर अपने आप धुन के साथ पुलकित होने लगे,यात्रा और कानूनी कार्य करने वाले व्यापार को खेती से सम्बन्धित उपज को प्रयोग में लेने वाले,कर्क राशि का चन्द्रमा समतल स्थान में बहता हुआ पानी,कर्क राशि का बुध पानी वाली हरी फ़सलें,चन्द्र प्लूटो से खेती में प्रयोग आने वाले मशीने,पानी से पैदा की जाने वाली बिजली और बिजली से चलने वाली मशीने,चन्द्र शनि से खेती वाले कामो के लिये किये जाने वाले कार्य,मन के अन्दर जाति पांति से अधिक योग्यता के प्रति विश्वास,चन्द्र शनि से जमा हुआ पानी और चन्द्र शनि से दूध वाली भैंस आदि के लिये भी माना जाता है,चन्द्र शुक्र से लोक कलाकारी और लोक नृत्यों के जानकार सूर्य से राज्य के प्रति जानकार लेकिन सूर्य के बाल होने के कारण बुद्धि का बाल स्वभाव का होना,बुध शुक्र से गाना बजाना और नृत्य करना,बुध शनि से ऐतिहासिक कार्य करना,बुध प्लूटो से ऊन आदि को बुनने के काम मशीनो से करना,बुद्धिमान मशीनो का निर्माण करना,बुध सूर्य से गेंहूं से बने उत्पादनों का व्यापार करना,जनता से सम्बन्धित कानून और कानूनी रूप से सेवा करने वाला आदि बातें भी ग्रहों के अनुसार मानी जाती है। लेकिन इन सभी पर राहु की द्रिष्टि होने के कारण चन्द्र राहु से शराब,राहु बुध से गणना और कम्पयूटर अन्तरिक्ष आदि के क्षेत्र में नाम करना,राहु शुक्र से प्रेम प्यार का नशा रखना,चमक दमक वाले नृत्य और भावनाओं की तरफ़ आकर्षित होना,राहु आकाश के लिये और शुक्र वाहन से माना जाये तो हवाई कम्पनियों के लिये अधिक से अधिक पायलेट पैदा करना,राहु प्लूटो के कारनों को अगर समझा जाये तो वह मशीने जिनसे असीमित काम किया जा सके,आकाशीय कारणों को उत्पन्न करना आदि भी माना जाता है,लेकिन राहु सूर्य के कारणो को अगर समझा जाये तो दाढी रखने वाले पुरुष,जब भी राज्य को राजकीय कारणों को देखा जाये तो इन्ही कारकों के शुरु होते ही राहु यानी मुसलमानी समुदाय का अक्समात जनता पर हावी हो जाना,आदि बातें मानी जाती है।
  • पश्चिम दिशा में सिंह राशि होने के कारण और इस राशि पर धनु और मेष राशि का प्रभाव होने के कारण इस राशि का स्वामी इसी राशि से बारहवें भाव में होने के कारण जो भी प्रसिद्ध लोग इस भूभाग पर है,वे सभी किसी न किसी कारण से उत्तर पश्चिम दिशा के लोगों पर निर्भर है,कला संस्कृति भवन निर्माण सामग्री के लिये और रूखा था जलीय कारणों से दूर भूभाग माना जाता है,इस प्रान्त को राजस्थान कहा जाता है.
  • कन्या राशि के लिये गुजरात को माना जाता है,इस राशि का स्वभाव मीठा बोलना और मीठा खाना,कर्जा दुश्मनी करने और बीमारी पालने के लिये मुख्य माना जाता है,बैंकिंग और फ़ायनेन्स वाले कारणों के लिये भी माना जाता है,दिमागी कामो को करने सेवा के कार्यों से सम्बन्धित कार्यों को संभालने के प्रति भी इस भूभाग को माना जाता है,गुजरात को कन्या राशि के गुणों से पूर्ण माना जाता है।
  • नैऋत्य दिशा में तुला राशि होने से मुंबई आदि क्षेत्र माने जाते है,यह राशि व्यापारिक राशि है और मुंबई को व्यापारिक राशि के लिये माना जाता है,इस राशि से वर्तमान में शनि बारहवां है इसलिये निवास के कारणों और व्यापार की चाल के प्रति जो व्यापार धन आदि से सम्बन्धित है वे फ़्रीज हो रहे है,वहाँ पर रहने वालों के लिये निवास की समस्या को भी देखा जाता है,शनि इस व्यापारिक स्थान पर नवम्बर ग्यारह से बैठ जायेगा,व्यापारिक कारणों के लिये गुरु भी इस राशि से छठा है जो धन आदि के लिये बाहरी सहायताओं और धर्म आदि की लडाइयों के चलने से भी दिक्कत वाला माना जा सकता है.
  • दक्षिण दिशा में केरल कर्नाटक और तमिल आदि प्रदेशों से माना जाता है इस दिशा में लगन का प्रतिद्वंदी केतु विराजमान है केतु ने वायव्य से अपनी युति जोड रखी है,राहु को संभालने के लिये यह केतु गोचर से अपना सही कार्य करता जा रहा है,केतु की सिफ़्त वृश्चिक राशि की होने के कारण शमशान का काला बांस लालकिताब में बताया गया है,अधिकतर जो भी दक्षिण के नेता है वे अपनी औकात को तभी प्रदर्शित करने के लिये सामने आते है जब देश की लगन का राहु अपने भावों को अधिक प्रदर्शित करने के लिये सामने आता है,यह राहु मई ग्यारह के बाद दक्षिण के केतु से मिलने के लिये सामने जा रहा है,और इस कारण से यह धन वाले कारणों से दक्षिण के नेताओं को अपने बस में करने के लिये उकसायेगा,डेढ्साल तक वह इन नेताओं को अपने आगोस में लेगा तो लेकिन उसके बाद वह मुम्बई आदि स्थान पर अपनी निगाह फ़ैलायेगा,इस निगाह फ़ैलाने के कारण दक्षिण के केतु के लिये भय वाली बात पैदा होगी,लेकिन जैसे ही यह कन्या राशि में प्रवेश करेगा,गुजरात आदि प्रान्तों में यह अपनी उच्चता को प्रदर्शित करेगा,और दूसरे भाव के मंगल के द्वारा कंट्रोल में कर लिया जायेगा,इस कारण को अधिक खून खराबा भी माना जा सकता है। जब भी राहु वृश्चिक कन्या मकर वृष पर अपना असर देगा इस देश में खून खराबे के समय के लिये जाना जायेगा.