बुध केतु + शुक्र राहु = मीडिया

कल्पना भाभी की आदत है कि वे मुहल्ले मे किसी की भी बात को या तो इतना उछाल देतीं है कि सामने वाला मुहल्ला छोड कर भाग जाता है,या बात को इतनी जोर से बना देती है कि अजनबी भी आकर मुहल्ले मे राज करने लगता है। उनकी बात में इतनी दम है कि अमीर गरीब बूढा जवान स्त्री पुरुष सभी उनकी बातों को बडे गौर से सुनते है और बात को सुनकर अमल भी करते है। उनके बात करने में एक बात और होती है कि वे अपने साथ बात करने की गवाही जरूर रखती है,अगर कहीं गवाही नही मिलती है तो -"भगवान की सौगंध" उनके साथ जरूर चलती है। बात करने मे उनके अन्दर बुजुर्गो के साथ सम्मान होता है,जवान पुरुषों के साथ मजाक होती है,स्त्रियों में बडी बूढी महिलाओं के साथ पैर दबाकर सलीके से सिर पर पल्ला लेकर बात करने की तहजीब होती है,बराबर की महिलाओं से कटाक्ष भरे सैन मटक्के होते है और बच्चों के साथ उनका सलीका इतना मधुर होता है कि कोई भी बच्चा उनके आने के बाद अपनी अम्मा की गोद छोड कर उनकी गोद मे जा बैठता है।

कल्पना भाभी के पतिदेव किसी कचहरी मे बाबू है,जितनी कल्पना भाभी बात करती है उतने ही वे चुप रहते है,जितना कल्पना भाभी आसपास के माहौल के प्रति सजग रहती है उतना ही वे अपने मे ही मस्त रहने वाले आदमी है,उनके पास तीन लडकियां ही सन्तान के रूप मे है,जब पति देव नौकरी पर चले जाते है,लडकियां घर के काम को निपटा लेती है,घर आकर कल्पना भाभी अपनी लडकियों से भी मुहल्ले की बातों को बताती है जिससे उनकी लडकियां भी आसपास की राजनीति घरों के माहौल तथा बुजुर्ग जवान बच्चों के बारे मे पूरी जानकारी रखती है,समय पर जब कल्पना भाभी किसी मुद्दे को लेकर बात करते समय भूलती है तो उनकी लडकियां उन्हे याद दिला देती है,उन्हे इस बात से बहुत खुशी होती है कि उनकी लडकियां अपनी याददास्त को बहुत अच्छी तरह से कायम रखती है। कल्पना भाभी को गाने बजाने नाचने में भी ईश्वर ने अच्छी योग्यता दे रखी है,किसी भी उत्सव में अगर कल्पना भाभी नही है तो वह उत्सव फ़ीका सा ही लगता है,किसी की रसोई में अगर कल्पना भाभी का हस्तक्षेप नही है तो वह रसोई भी बिना मिर्च मशाले के मानी जा सकती है,किसी प्रतियोगिता में अगर कल्पना भाभी अपनी हाजिरी मुख्य सदस्य के रूप में नही रखती है तो वह मुहल्ले की प्रतियोगिता भी रूखी रूखी सी लगती है।

मुहल्ले की राजनीति में कल्पना भाभी को किसी पद से मतलब नही है। वे अपनी उपस्थिति से मुहल्ले के अध्यक्ष के पद के लिये जिसे भी मनोनीत कर देती है वही बिना किसी हील हुज्जत के अध्यक्ष बन जाता है। अगर उन्हे किसी बात से दिक्कत होती है तो वे जरा सी सरगर्मी फ़ैला कर अध्यक्ष पद वाले व्यक्ति को हटाकर दूसरे व्यक्ति को भी चुनने मे अपनी योग्यता को दिखा सकती है। उनके अन्दर यह कला भी है कि उनके पति देव तो जो सैलरी लाते है वह तो उनके कपडों की धुलाई में ही खर्च हो जाती है। बाकी की कमाई का स्त्रोत आजतक किसी मुहल्ले वाले को पता नही है। हाँ इतना जरूर है कि अगर किसी को कैसा भी काम पडता है तो कल्पना भाभी अपनी जान पहिचान और राजनीति से किसी के भी काम को पूरा करवा देती है। कुछ समय पहले की ही बात है शुक्ला जी को मुहल्ले के बारे मे राजनीति करने की बहुत बुरी आदत थी,कल्पना भाभी ने कई बार उन्हे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मना भी किया लेकिन नही माने। कल्पना भाभी के पास श्रीवास्तव जी का आना जाना था,उन्होने पता नही क्या गुड कल्पना भाभी को खिला दिया कि श्रीवास्तव जी तो अध्यक्ष बन गये और शुक्ला जी मकान बेच कर चले गये।

कल्पना भाभी को वैसे तो सभी जगह जाने का शौक है लेकिन उन्हे पता नही अपने वास्तविक धर्म से कितनी अरुचि है। कहीं भी सत्संग होता है तो वे जाती जरूर है और केवल भगवान की सजी हुयी झांकी की सराहना करती है किसने कितने भाव से कीर्तन को गाया,किसने कितने अच्छी तरह से अपने नृत्य को प्रस्तुत किया,कौन सा गीत किस फ़िल्मी गीत की तर्ज पर था,यह सब बातें वे कर सकती है लेकिन भगवान के प्रति श्रद्धा के बारे मे उनसे पूंछा जाये तो वे केवल यही जबाब देती है कि यह सब अपनी अपनी मान्यता है,जितना काम करोगे उतना ही कमा लोगे अपने आप तो आ नही जायेगा। किसी की शादी समारोह मे वे अपने आशीर्वाद को केवल आने वाले व्यवहार की रकम से जोडती है,लडका या लडकी के प्रति उनकी यही भावना रहती है कि आज के जमाने के अनुसार अगर लडका लडकी नहे चले तो कोई बात नही तलाक ले कर दूसरी शादी करने मे अच्छा है। कल्पना भाभी को अपनी हिन्दी भाषा बोलने मे कभी कभी तकलीफ़ होती है वे अपनी भाषा को बोलने मे अक्सर तभी तकलीफ़ महसूस करती है जब वहां सभी हिन्दी बोलने वाले हों तो वे अपनी बात को अपना इम्प्रेसन जमानेके लिये विदेशी भाषाओं में करने लगती है। जो लोग पहले से जाकर कल्पना भाभी को न्यौता देकर आते है उन्हे यह अपने नजरिये से बिलकुल सही देखती है,या जो लोग ऊंची पहुंच रखने वाले होते है अच्छे पदो पर स्थिति होते है उनके लिये कल्पना भाभी सभी को एक तरफ़ करने के बाद उनकी प्रसंशा जरूर करती है। उनके सामने धन और मान सम्मान की मर्यादा बहुत अच्छी है,अगर कोई बुद्धिमान है और उसके पास धन या अपने को प्रसिद्ध करने का तरीका नही है तो कल्पना भाभी की आदत है कि उसे किसी न किसी प्रकार से नीचा दिखा सकती है और जो कुछ नही जानता है केवल कल्पना भाभी की जी हुजूरी करता रहता है उसे कल्पना भाभी आसमान की ऊंचाइयों मे पहुंचाने की हिम्मत रखती है,उसके बारे कितने ही प्रकार के वक्तव्य वे अपने कथन मे लाती है कि एक प्रकार से वह ही सब मे सर्वोपरि है।

जब कभी चुनाव होते है तो राजनीतिक लोग सबसे पहले कल्पना भाभी को ही पुकारते है। उनके घर पर आने जाने वाले लोगों की भीड इकट्ठी हो जाती है और जो भी कल्पना भाभी को खुश करना जानता है उसे ही मुहल्ले के पूरे वोट मिलते है,जो भी उस समय कल्पना भाभी के सामने आता है,उसके सामने ही कल्पना भाभी को पहले गुहारने वाले के लिये शब्दो का जंजाल फ़ैलना शुरु हो जाता है। जो भी उस समय कल्पना भाभी की बात को सुनता है वह कुछ समय के लिये तो सोचने लगता है कि आखिर मे कल्पना भाभी को क्या हो गया जो इतने बुरे आदमी के लिये कल्पना भाभी इतने अच्छे शब्दो का प्रयोग कर रही है और जो वास्तव मे अच्छा आदमी है उसके लिये भी वे कोई खराब बात नही कहती है केवल थोडा बहुत जिक्र कर देती है और जिक्र भी इस प्रकार का होता है कि सामने वाले को बुरा भी नही लगे और सामने वाले को जिक्र करने से कोई लाभ भी नही हो। कल्पना भाभी की बात का जबाब देने के लिये किसी मे भी हिम्मत नही है,कारण पता नही कल्पना भाभी का खोपडा घूम जाये और कल्पना भाभी किसे कहां किस प्रकार से पहुंचा दें।

हमारे अनुसार हर मुहल्ले मे हर गांव में हर शहर में हर प्रान्त मे हर देश मे कितनी ही कल्पना भाभियां है जो अपनी पहुँच बनाने के लिये अपने अपने अनुसार केवल अपने लाभ और अपनी पहिचान बनाने के लिये प्रयास रत है। कोई कल्पना भाभी बनकर अखबार के रूप मे सामने है कोई कल्पना भाभी बनकर चैनल के रूप मे है,कोई कल्पना भाभी बनकर कम्पयूटर पर बेव साइट के रूप मे है,इन कल्पना भाभी को पहिचानने के लिये खास मेहनत करने की जरूरत नही पडती है। हमारी ज्योतिष की भाषा में कल्पना करना और मूर्त रूप देकर उसे शब्दो मे द्रश्य मे बनावटी रूप से प्रकाशित करने में कल्पना भाभी को शुक्र राहु और उन्हे जो सूचना देने का काम करते है उन्हे बुध केतु के रूप मे देखा जाता है,कल्पना भाभी की तीनो लडकियां जो दत्तक संतान के रूप मे है,वे किसी दिन अपने अपने घर चली जायेंगी,उनसे आगे के जीवन मे कल्पना भाभी का कोई सरोकार नही होगा,जैसे किसी अखबार मे चैनल मे खबरो को लाने वाले रिपोर्टर होते है,अपने अपने समय मे आते है अपने अनुसार अपनी अपनी औकात को दिखाकर क्या अच्छा है क्या बुरा है का रूप नही समझ कर लोगों को क्या अच्छा लग सकता है उसे ही बताने का उद्देश्य रखकर कहते है और चले जाते है।