मानवीय मशीन

शरीर एक बायोकैमिकल प्लांट की तरह से काम करता है। जिस प्रकार से एक मशीन को चलाने के लिये फ़्यूल की जरूरत पडती है उसी प्रकार से शरीर को चलाने के लिये भोजन और पानी की जरूरत पडती है। शरीर के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं और दिमाग से सोचने से शरीर में ऊर्जा का विकास होता है,अधिक सोचने वाले के दिमाग में ऊर्जा का विकास अधिक होता है,जिस प्रकार से मोबाइल से अधिक बात करने के बाद वह बैटरी के अधिक प्रयोग करने के बाद गर्म होने लगता है उसी प्रकार से दिमाग से अधिक सोचने के कारण सिर भारी होने लगता है और माथा गर्म होने लगता है। इस शरीर में जो गतियां है वे कम्पयूटर की तरह से मानने पर दिमाग एक हार्ड डिस्क की तरह से है,भेजा जिसे कहा जाता है वह एक कठोर हड्डियों के आवरण के अन्दर अलग अलग विभागों में प्रकृति के द्वारा बनाकर स्थापित किया गया है। हर विभाग का कार्य अलग अलग होता है। भेजा जिसका बजन लगभग मात्र आधा किलो का होता है,जिसका रूप एक लिसलिसे आकार में होता है,और उसके अन्दर अगर सूक्षमदर्शी यन्त्र से देखा जाये तो अरबों खरबों चान्दी जैसे चमकते सितारे से दिखाई देते है,वे ही भेजा में सभी प्रकार की यादें इकट्टी करने के लिये शरीर के द्वारा प्रयोग में लाये जाते है। जो हम जीवन में आंखों से देखते है,कानो से सुनते है,नाक से सूंघते है और भोजन करने के समय जिव्हा से स्वाद के रूप में महसूस करते है,त्वचा से स्पर्श करने के बाद जो अनुभव मिलता है उसका एक एक हिस्सा अपने अपने स्थान पर जाकर इकट्ठा हो जाता है। और यह इकट्ठा हुआ भाग ही याददास्त के रूप में कहा जाता है,जैसे कम्पयूटर के अन्दर मेमोरी होती है और वह उसे तेज या धीमा चलाने के लिये मुख्य मानी जाती है,उसी प्रकार से माथे के अन्दर नाक से ऊपर और दोनो आंखों के बीच के भाग में आज्ञा चक्र में स्थापित ग्रन्थियां काम करती हैं। वह ग्रन्थियां ही सिर के अन्दर स्थापित भेजा को आपरेट करती है। एक जीवन में अरबों जीबी की याददास्त इस भेजा के अन्दर स्थापित होने के पीछे एक राज माना जाता है कि हर प्राणी के सिर से एक हाथ की ऊंचाई पर गोलाई में ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली चला करती है,अक्सर हम यात्रा या किसी प्रकार से जागृत अवस्था में नही होते है और हमारा अवचेतन मन भी किसी प्रकार से सो गया होता है तो वह पोटली भी अपने सभी कपाटों को बंद कर लेती है और हम जब किसी नये स्थान पर गये होते है तो हमे याद नही रहता है और हम कहने लगते है कि दिशा भ्रम हमारे अन्दर पैदा हो गया है,उसी रास्ते पर कई बार जाने के बाद भी हम उस रास्ते को पहिचान नही पाते है। यही ’श्वेताश्वेत’नामकी पोटली हमारे पीछे के जन्मों का वृतांत अपने अन्दर समेट कर रखती है,और हमारे द्वारा किये गये कार्यों व्यवहारों का पूरा लेखा जोखा अपने अन्दर रखती है,जब हम साधना या ध्यान मुद्रा में होते है तो वह पोटली हमारे शरीर के आसपास ’औरा’के रूप में फ़ैल जाती है,और हमारे विचारों को स्थिर रखने की कोशिश करती है। जैसे ही हम विचार शून्य हो जाते है उसी समय हम अपनी उस पोटली के अन्दर की बातें जानने लगते है कि हम पहले क्या थे और इसके अलावा जो गणित हमने पिछले जीवनों के अन्दर प्राप्त किया है उसका केलकुलेशन आगे के जीवन में क्या होगा।
हमारी तन्द्रा नामकी सोचने की शक्ति जब वापस आती है तो हम आज की जिन्दगी में होते है और अपनी इस शरीर रूपी मशीन को पहिचानने लगते है। हमारे आसपास जो भी होता है उसे हम उसे समझने और करने की क्रिया को करते है। जो अनुभव हमे पिछले समय से मिलता है उसी के अनुसार हमारी क्रियायें होने लगती है। अक्सर कभी कभी देखा होगा कि हम किसी के घर पर गये होते है और हमे लगने लगता है कि यह सब हमने पहले से देखा है या जो भी हम देख रहे है वह जाना पहिचाना सा लग रहा है,यह सब बाते पिछले जन्म से सम्बन्धित होती है। मैने खुद अनुभव किया है कि जब ध्यानावस्था में जाते है तो एक प्रकाश बिन्दु जो पहले काफ़ी दूर दिखाई देता है फ़िर वह धीरे धीरे नजदीक आता जाता है और उसके नजदीक आते ही एक विचित्र सा प्रकास चारों तरफ़ होता है,इस क्रिया को करने के लिये और समझने के लिये पहले आपको कुछ समय अपने कार्य के जीवन से निकालने पडेंगे और आपको पहले एकान्त में बैठ कर अपनी दोनों आंखों को बन्द करने के बाद नाक के ऊपर अपनी बन्द आंखों की द्रिष्टि को जमाना पडेगा,उसके बाद आपको अपने मन के अन्दर चलने वाले विचारों को शून्य करना पडेगा,और जैसे ही आपके विचार शून्य होने लगेंगे अक्समात आपको एक झटका सा लगेगा,और महसूस होगा कि आप धडाम से नीचे गिर गये है,जिन्हे पता होता है कि यह क्रिया होती है और वह ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली सिर पर आकर गिरती है तो हम अपनी भारहीनता को भी महसूस करते है। उसी का परिणाम यह होता है कि हमे लगता है कि हम गिर गये है। अगर व्यक्ति आने वाले विचारों से या भय से डिगता नही है तो वह आगे के प्रकास में जाकर अपने जीवन और बाहरी जीवन के लिये जानने का अनुभव ले सकता है। अगर वह अपने को विचारों से शून्य करने में असमर्थ रखता है तो वह पूरे जीवन भी लगा रहे तो वह सम्भव नही है कि वह किसी प्रकार के प्रकास को देख सके या किसी बात को महसूस कर सके। शरीर का मुख्य भाग सिर ही कहलाता है,गर्दन के ऊपर पीछे के भाग में जिसे मेडलाआबलम्बगेटा कहा जाता है के द्वारा एक सुषुम्ना नामकी पतली सी सूत जैसी सफ़ेद ग्रंथि रीढ की हड्डी से गुजरती है,और वह शरीर के तंत्रिका तंत्र को सम्भालने और संचालित करने के लिये मुख्य मानी जाती है। इस ग्रंथि के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को साधा जाता है और शरीर से क्रियायें करवायी जाती है,रात को सीधा बिना तकिया के सोने से यह तन्त्रिका तन्त्र के पीछे के किये गये कार्यों का सम्पादन करने का काम करती है,और दूसरे दिन के लिये शरीर के तन्त्रों को संचालित करने के लिये अपना योगदान देती है।
विश्व प्रसिद्ध लेखक शेक्सपीयर के दिमाग का विवेचन करने के बाद पता चला था कि उसके दिमाग मे दाहिने हिस्से में इतिहास पीछे के हिस्से में जो उसे करना था,बायें हिस्से का काम केवल सोचना और सामने के हिस्से में अपने मानने वाले भगवान का रूप हुआ करता था,एक श्रंखला को वह कभी तोडता नही था,और यही एक बात किसी भी ध्यान समाधि लगाने वाले को भी मानना चाहिये,किसी भी विचार की श्रंखला को तोडने के समय जो आगे की श्रंखला बनती है उसके बनने और उसे क्रिया मे लेने तथा उसके अन्दर तह तक जाने में जो समय पहले लगा था वह अधूरा रहने के कारण आगे की श्रंखला को भी पूरा नही कर पायेगा। इसी लिये जीवन में जो भी टारगेट एक बार बन जाते है उन्हे बीच में समाप्त करने वाले लोग अक्सर सफ़ल नही हो पाते है,यह बात उन लोगों में अक्सर देखी जाती है जो अपने विचारों के टूटते रहने के कारण अपनी गृहस्थी तक नही बसा पाते,आज बसाना कल खत्म कर लेना भी माना जा सकता है,इसके अलावा उनके विचार कई आते है और कई चले जाते है,विचारों को जानने के लिये सबसे पहले हमे दिमाग के उस हिस्से में भी जाना पडेगा जहाँ से दिमाग का संचालन किया जाता है। दिमाग को चलाने के लिये आंखे की-बोर्ड की तरह से काम करती है,आंखो की निगायें माउस जैसा काम करती है,कान ध्वनि को महसूस करने वाले सेंसर है,नाक इन्वोइर्मेंट सेंसर के रूप में काम करती है। त्वचा टच-की-पेड की तरह से काम करती है,इन सब अंगों से प्राप्त होने वाले संदेश भेजे के अन्दर सीधे नही जाते है उनको पहले आज्ञा चक्र से समझा जाता है फ़िर उन्हे शरीर के पीछे स्थापित शेषनाग नामक मेडुलाआबलम्बगेटा में भेजा जाता है जहां से सुषुम्ना नामक ग्रंथि के द्वारा शरीर से क्रिया करने के लिये आदेशित किया जाता है। उन आदेशों को मानने के लिये शरीर के सभी अंग अपने अपने अनुसार कार्य करने लगते है जो किया जाता है वह भेजा मे इकट्ठा हो जाता है,लेकिन जब श्रंखला समाप्त हो जाती है तो वह दिमाग में एक आदत की तरह से होने लगता है जैसे पहली श्रंखला को हटाया गया और फ़िर दूसरी श्रंखला को हटाया गया तो तीसरी श्रंखला को दिमाग अपने आप से ही हटाने लगता है,वह उस ’श्वेताश्वेत’ नामकी पोटली को भी नही खोलता है और व्यक्ति किसी भी काम में सफ़ल नही हो पाता है। इसलिये पहली बात होती है कि शरीर को मजबूत और जीवन में सफ़लता लेने के लिये किसी भी दिमाग में चलने वाली श्रंखला को तोडा नही जाये।

No comments: