कर्म

कर्म
कार्य का दूसरा नाम ही कर्म कहा जाता है,कर्म के विभिन्न नाम और दिये गये है,विरति,कारज,काज और जो भी संसार का जीवित जगत कर रहा है,वही कर्म कहलाता है,बिना कर्म के कोई अच्छा या बुरा परिणाम नही होसकता है,अच्छा कर्म किया जायेगा तो अच्छा फ़ल मिलेगा,और खराब कार्म को करने पर खराब फ़ल मिलेगा,"जो जस करिय सो तस फ़ल चाखा",गोस्वामी तुलसी दासजी की रामायण में बहुत ही अच्छी तरह से समझाकर लिखा गया है,रामायण में ही ज्योतिष शास्त्र के गूढ शब्दों का भी विवेचन किया गया है,जो लोग रामायण को अपने जीवन का आदर्श ग्रंथ मानकर चलते है,वास्तव में वे सदाचारी होते है.तुलसीकृत रामायण में कर्म के लिये बहुत ही अच्छी चौपाई लिखी गयी है,"धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना",संसार मे सभी किये जाने वाले कर्म केवल धर्म से ही पैदा होते है,और जब धर्म से कर्म पैदा होते हैं,तो कर्म को किये जाने के बाद उनसे ज्ञान नाम फ़ल मिलता है,और जो ज्ञान नाम फ़ल का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों मे किया जाता है,तो मोक्ष नाम शांति मिलती है.यह चौपाई ज्योतिष के नवें भाव धर्म,और दसवें भाव कर्म,ग्यारहवें भाव फ़ल की प्राप्तियां,और बारहवें भाव खर्च करने की क्रिया को बहुत ही सुन्दर रूप से प्रस्तुत करती है.
===धर्म से कर्म===
[[धर्म]] को समझने के लिये [[धर्म]] को ही पढना पडेगा,लेकिन जो बृह्त रूप से अर्थ लिया जाता है,वह सुबह से लेकर शाम तक की क्रियायें,महिने के शुरुआत से लेकर महिने के अन्त तक की क्रियायें,और साल के शुरु से लेकर साल के अन्त तक की क्रियायें,जीवन के शुरु से लेकर जीवन के अन्त तक की क्रियाओं के अन्दर जो मुख्य बात छुपी है वह [[धर्म]] ही छुपा हुआ है,[[हिन्दू]] [[धर्म]] के अन्दर पैदा होने वाला जातक जो भी कर्म करेगा वह [[हिन्दू]] [[धर्म]] के अनुसार ही करेगा,अपने को जो प्राथमिक रूप से ध्यान रखने वाली बात के अन्दर रखेगा वह [[धर्म]] पहली बात ही होगी,[[धर्म]] का [[अर्थ]] केवल मन्दिर,मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारा में पूजा पाठ या इबादत करने से ही नही लिया जाता है,सबसे बडा [[अर्थ]] जो लिया जाता है वह अपने पिछले [[संस्कार]],पुरानी मान्यतायें,और पूर्वजों के अनुसार ही माना जा सकता है.[[हिन्दू]] के कर्म होंगे वे पहले अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाये गये कर्मों के अनुसार ही माने जायेंगे,अधिक नही तो जीवन की पहली सीढी तक तो अपनाने जरूरी ही माने जा सकते हैं,जैसे बच्चा जब समझदार होता जाता है,वैसे ही जो भी कर्म करता है,वे अपने माता पिता के अनुसार ही करता जाता है,वह बात अलग है कि जब वह अपने में इतना सक्षम हो जाता है कि वह अलावा धर्म के अनुसार अपने को ढालना चाहता है,तो ढाल भी लेता है,लेकिन अगर वह अलावा धर्मों की तरफ़ जाता है तो या तो वह अपने को अपने धर्म से पीछे रख देता है,या फ़िर अपने [[धर्म]] से बिमुख ही हो जाता है.जैसे एक उदाहरण है कि मैं खुद ही एक क्षत्रिय राजपूत खानदान भदौरिया जाति में पैदा हुआ हूँ,जबतक समर्थ नही हुआ,पिता के साथ मिलकर घर के कामों के लिये जो भी काम खेती आदि के होते हैं करता रहा,शादी होने के बाद जब [[अर्थ]] की जरूरत पडी तो माता पिता को छोडने के लिये मजबूर होना पडा,गांव जन्म स्थान सभी को छोड कर जयपुर में आकर बसा,और मेहनत वाले काम जानने के कारण केवल मेहनत करने वाले लोगों के साथ ही रहना पडा,मेहनत करने वाले कर्मों का एक ही उद्देश्य होता है,वह होता है केवल [[अर्थ]] सिद्धि,पैसा कमाना,मेहनत मे अपने शरीर को प्रयोग करना और बुद्धि का प्रयोग केवल मेहनत वाले कामों के अन्दर किस तरह से मेहनत करनी है में ही लगाना,जिन लोगो के साथ मेहनत वाले कर्म करने थे,वे सभी पूजा पाठी धर्मों के लोग थे,लेकिन उनका केवल एक ही [[धर्म]] था,और वह था,पेट पूजा का [[धर्म]],पेट पूजा के [[धर्म]] में कर्म का करना बहुत ही जरूरी हो जाता है,वह कर्म चाहे मेहनत करने के द्वारा फ़ावडा चलाकर शाम को मिलने वाली मजदूरी के द्वारा हो या फ़िर हाथ ठेली से लोगों का सामान ढोकर मिलने वाली मजदूरी से हो,इस मेहनत वाले कर्मों के अन्दर कितने ही काम आ जाते है,जो शरीर को प्रयोग करने के बाद [[अर्थ]] साधन की जरूरत को पूरा करदेते है.लेकिन इन सब कामों के अन्दर शरीर की बहुत अधिक जरूरत पडती है,शरीर को पालने के लिये माता पिता और समाज की जरूरत पडती है,शरीर की रक्षा करने के लिये भी समाज और गांव की जरूरत पडती है,तो जिस जगह पर मनुष्य निवास करता है,उस स्थान की खुशी में खुश रहना,उस स्थान की गमी में गम करना भी मुख्य [[धर्म]] माना जाता है,[[धर्म]] को न पालने पर कर्म के अन्दर हील हुज्जत आ जाती है,जैसे एक ईसाई मुहल्ले मे रहना है,क्रिसमिस के दिन सभी अपने घरों को गुब्बारों और सितारों से सजाते हैं,"ईसामसीह" जिनका उल्टा नाम समझने से "हंसी मे सांई" का सीधा [[अर्थ]] आ जाता है,की इबादत और प्रार्थना करनी पडती है,को न करने पर बगल वाला पडौसी ही नफ़रत भरी द्रष्टि से देखना चालू कर देता है,और कोई मिलने वाला भी आता है बगल वाले पडौसी से पता पूंछता है,तो वह पता नही है कहकर सीधा मानसिक प्रहार करता है,मानसिक प्रहार के कारण जो मिलने जुलने वाले लोग है,वे भी दूर और दूर होते जाते हैं,अक्सर कहा जाता है,कि अगले को तो पडौसी भी नही जानते,तो उसका क्या भरोसा,और कर्म के अन्दर कितनी ही दखलंदाजी पैदा हो जाती हैं.आज के राजनीतिक लोग जो फ़ायदा उठा रहे हैं वह [[धर्म]] का फ़ायदा ही तो उठा रहे हैं,[[काग्रेस]] मुसलमानों और पंडितों का फ़ायदा उठा रही है,मुसलमानों का इसलिये के भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादाजी,का असली नाम ग्यासुद्दीन गाजी था,और उन्होने ब्रिटिस सेना से बचने के लिये अपना नाम बदल कर "गंगाधर" रख लिया था,इन्हीं बने हुए ब्राहम्ण गंगाधर के मोतीलाल हुए और कालचक्र की कसौटी पर पंडित बन गये,फ़िर इतिहास स्वर्गीय इन्दिरा गांधी ने अपनाया और फ़िरोजखांन से शादी करने के बाद उन्हें गांधी जी ने गांधी बना दिया.[[भाजपा]] भी [[धर्म]] को भुनाकर अपनी राजनीति कर रही है,सुश्री मायावती भी समाज को वर्गीकृत करने के बाद राजनीति कर रही है.लेकिन जो सबसे बडा [[धर्म]] पेट पूजा वाला [[धर्म]] न किया जाये,तो किये जाने वाले कर्म को व्यक्ति कहां से कर पायेगा.
===कर्म से अर्थ===
कर्म के कितने ही रूप आज सामने है,कोई नौकरी करने को कर्म मानते है,नौकरी दूसरों की सेवा करने के बाद मिली हुई तन्खाह यानी [[अर्थ]] है,और कोई अपने सामान को बेचने और दूसरों का खरीदने का कर्म कर रहे है,वे व्यवसायी कहलाते है,कोई खेती का कर्म करने के बाद लोगों का पेट पालने के लिये अन्न आदि का उत्पादन कर रहे है, और बदले में अन्न को बेच कर अपने परिवार की अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे है,कुन्डली का दूसरा भाव ही भौतिक धन का का कारक कहा जाता है,और व्यक्ति के शरीर और नाम के बाद धन की मात्रा का ही ज्ञान किया जाता है,वह धन जो भौतिक रूप से दिखाई देने वाले होता है,सोना,चांदी,जेवरात,हीरे जवाहारात,नगद रुपया आदि इसी भाव से देखे जाते है.व्यक्ति का प्रत्येक कार्य धन कीमापना से देखने के कारण जो लोग दूसरों के प्रति उनकी भलाई आदि का भाव भी रखते है वह भी समय आने पर भुनाने की कोशिश करते है,एक बाप अपने बेटे को पालता है पढाता है लिखाता है और जब वह समर्थ हो जाता है तो बुढापे के लिये आशा रखता है, कि वह उनकी कमजोरी की हालात में सहायता करता है,लेकिन वही लडका अगर किसी कारण से उस समाज में जाकर घिर जाता है,जहां पर माता पिता को मान्यता ही नही देते है,माता और पिता बच्चे को पैदा जरूर करते है उनकी समय की जरूरतों को भी पूरा करते है लेकिन अधिकतर मामलो मे वे जब स्वतन्त्र प्रकृति के हो जाते है तो उनको ख्याल ही नही रहता है कि कोई उनके लिये जीवन रूपी रास्ते मे आशा लगाकर भी बैठा है,कर्म किया जाता है,कर्म का मतलब अगर हर तरह से अर्थ से लिया जायेगा तो माता पिता का प्यार बच्चे को पैदा करने के बाद प्रसव की पीडा उसकी हर प्रकार की परवरिश का परिमाप किसी भी प्रकार से धन से तो लगाया नही जा सकता है,अपने से छोटे भाई बहिनो को बताये जाने वाले रास्तों के लिये उनसे समाधान की फ़ीस तो नही ली जा सकती है,अपने साथ अपने घर मे रखने पर उनसे किराया तो नही लिया जा सकता है,उनको जो भी शिक्षात्मक बातें बताईं जाती है,उनके लिये चार्ज तो नही किया जाता है,बीमारी कर्जा और दुश्मनी मे उनसे सभी खर्च तो नही लिये जाते है,उनकी शादी करने और और उनके लिये पति या पत्नी खोजने के लिये मैरिज ब्यूरो की तरह् से धन का कमीशन तो नही लिया जाता है,उनमे अगर किसी की मृत्यु हो जाती है,तो उनसे शमशानघात तक लेजाने और उनकी क्रिया कर्म करने की फ़ीस तो चार्ज नही की जा सकती है,उनके जन्म के बाद जो भी जायदाद का हिस्सा होत अहै उसमे से उनको बेदखल तो नही किया जा सकता है,वे जिसे पिता कहते है वही पिता सामने वाले का भी होता है,उससे अंकल कह कर तो नही बुलाया जाता है,अगर रास्ते में कोई मित्र मिल जात अहै और पूंछता है कि क्या आप अमुक के ब्डे भाई है तो आप यह तो नही कह सकते कि नही उससे मेरा कोई रिस्ता नही है,और वक्त पर जब उसे कही जाना होता है तो वह अगर आपकी सहायता चाहता है,तो आप मना तो नही कर सकते है कि नही आप किसी अजनबी की तरह यह कह देम्गे कि अभी आपके पास समय नही है,यह सब बाते कर्म और कर्म के बदले में धन की चाहत परिवार और खासकर अपने लोगो के साथ नही मानी जाती है,मैने कितने ही राजस्थानी लोगो को देखा है,हम सब तो भाई बहिनो तक ही सीमित होकर रह गये है,यहां पर जब जमात जुडती है तो पिता के भाई की पत्नी के भाई का साला और उसके भी रिस्ते दारों का ख्याल किया जाता है,और इसका प्रभाव यह भी होता है कि कोई भी काम सरकारी रूप मे अटक जाता है,या पुलिस आदि किसी को परेशान करती है तो व्यक्ति सीधी जान पहिचान करने के बाद ही बेदाग बच जाता है और उसी जगह पर जो राजस्थान का निवासी नही है,कितनी ही कोशिश करे,वह नही बच पाता है,तो जो फ़ायदा वंशानुगत जान पहिचान से कर्म करने से होता है,वह साधारण रूप से केवल मुद्रा तक ही सीमित होता है,उस मुद्रा में अपनत्व नही होता है.
===अर्थ से संतुष्टि===
कार्य करने के बाद जो भी बदले मे पारिश्रमिक मिलता है,उसे ही किये जाने वाले कार्य की संतुष्टि या फ़ल कहते हैं,नौकरी करने के बाद जो तन्खाह मिली उसे अपने परिवार या निजी इच्छा पूर्ति के लिये खर्च करने के बाद जो मानसिक प्रतिफ़ल मिला वही अर्थ की सम्तुष्ति कहलाती है.यह बात ज्योतिष के अनुसार ग्यारहवां घर तो फ़ल का है और उस मिले फ़ल को प्रयोग करना,जैसे पैसे के रूप में फ़ल मिला तो खर्च करने से और अगर खाने के रूप मे फ़ल मिला तो शरीर को पालने के लिये,और नाम के रूप मे फ़ल मिला तो उसे समाज मे बताकर आगे की प्रभुता लेने के लिये प्रयोग करने पर जो भावनात्मक इच्छापूर्ति होती है वही शांति या मोक्ष कहलाती है.इस प्रकार से तुलसीदास जी की रचित चौपाई का अर्थ धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,और ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना,को माना जकता है.
नोट:- यह लेख मैने विश्व की प्रसिद्ध साइट विकिपीडिया के लिये लिखा था,उसके अन्दर प्रकाशित भी है.

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