भारत की स्वतंत्रता
भारत की स्वतंत्रता पन्द्रह अगस्त उन्निस सौ सैंतालीस को रात बारह बजकर एक मिनट पर मिली थी,जिस समय स्वतंत्रता मिली थी उस समय भारतीय ज्योतिष लहली के अनुसार वृष लगन थी,इस लगन का स्वामी शुक्र तीसरे भाव में यानी कर्क राशि में था,धन का मालिक बुध भी कर्क राशि में था,अपने को प्रदर्शन करने वाले भाव तीसरे का मालिक चन्द्रमा भी कर्क राशि में था,जनता के हित और जनता का मालिक सूर्य भी कर्क राशि में था,शिक्षा का मालिक भी सूर्य में है विद्या और बुद्धि का मालिक बुध भी कर्क राशि में है,कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक शुक्र भी कर्क राशि में है,साझेदारी और देश को आजादी के बाद जिन समस्याओं उसका मालिक मंगल देश के धन भाव में विराजमान है और केतु जूझने के लिये सामने खडा है,देश के लिये अपमान जोखिम और जनता के लिये जो बरबाद होने के कारण है उनका स्वामी गुरु है वह कर्जा दुश्मनी बीमारी में विराजमान है,देश का भाग्य देश का धर्म देश के विदेशी कारणों उच्च शिक्षा कानून और कानूनी राय पर चलने के कारण का मालिक शनि है वह भी कर्क राशि में है,देश में किये जाने वाले कार्य देश के लिये उन्नति अवनति देने के कारण बनाने का मालिक भी शनि है जो कर्क राशि में है,देश के लिये लाभ और देश के लिये मित्रता को देने का कारण वाला ग्रह गुरु है वह भी देश के कर्जा दुश्मनी और बीमारी के भाव में विराजमान है,देश को खर्चा करवाने वाले कारणों देश की उन्नति और अवनति को रास्ता देने वाले तथा देश के लिये उच्च सीमा तक पहुंचाने के लिये जो ग्रह माना जाता है वह भी धन और देश के कुटुम्बीय भाव में है। राहु देश की लगन में है,राहु के द्वारा देश की तरक्की को देने वाले और देश की पहिचान बनाने वाले कारकों पर भाव पर अपनी छाया डाली जा रही है।
देश की जातियां
ग्रहों के अनुसार जातियों के लिये जो ग्रहों का रूप दिया गया है उनके अन्दर राहु को मुस्लिम जैसी जातियों से सम्बन्धित किया गया है,इसके साथ ही वे जातियां भी शामिल की जा सकती है जो अपने शारीरिक सम्बन्धो रिस्तेदारियों को अपने ही समाज के अन्दर करना जानते है और अपने को शक्तिशाली बनाने के लिये इन्सानी ताकत का सहारा लेना जानते है,राहु से बारहवें भाव में इन्सानी राशि मेष होने के कारण तथा राहु का कुटुम्ब की राशि वृष में उपस्थिति होने के कारण राहु का वर्चस्व देश के तीसरे भाव में विराजमान अन्य जातियों से सम्बन्धित ग्रहों पर अपना प्रभाव डाला जा रहा है,चन्द्रमा से खेती करने वाले लोग बनिया वृत्ति को अपनाने वाले लोग,पानी को प्रयोग करने के बाद अपनी जीविका चलाने वाले लोग माने जाते है,बुध से जैन बौद्ध तथा बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाले लोग,शुक्र से साज संवार करने वाले लोग नाच कूद मनोरंजन कला शारीरिक हाव भाव आदि से अपने को प्रदर्शित करने वाले लोग गुरु पुरुष जातकों के लिये और शुक्र स्त्री जातकों के लिये मान्यता रखता है,इसलिये इस भाव में जो शुक्र के होने से स्त्री जातकों को भी सूचित करता है,सूर्य क्षत्रिय जाति से सम्बन्ध रखता है चाहे वे किसी भी जाति से सम्बन्धित हों लेकिन उनके अन्दर राजनीति को भी माना जा सकता है,शनि को नौकरी पेशा करने वाले लोगों से तथा पुराने जमाने से चली आ रही एस सी एस टी जातियों के लिये कहा जाता है,जो बुद्धि से मंद होते है या जो कार्य को धीरे करते है या जो काम करते समय चालाकियों को अपने साथ रखते है उनके लिये भी शनि को माना जाता है,मिट्टी खोदने चमडा काटने और नीचा करने वालो को भी शनि की श्रेणी में लाया जाता है। यह जातियां देश की हिम्मत वाले भाव मे है लेकिन सभी पर देश की लगन का राहु विराजमान होने के कारण ग्रहण तो माना जी जा सकता है। अन्य जातियों के मामले में जो जातियां धर्म समाज भाग्य और वैदिक जानकारियों के लिये जानी जाती है वे सभी गुरु के द्वारा मानी जाती है,गुरु का देश के छठे भाव में होना इन जातियों को कर्जा दुश्मनी और बीमारी आदि से ग्रस्त माना जा सकता है। इन जातियों को देश की सेवा भाव वाली और रोजाना के काम करने वाली राशि में होने के कारण वर्चस्व उच्चता से नीचता के लिये भी माना जा सकता है। जैसे कोई ब्राह्मण वेदों का ज्ञाता है लेकिन वह जीविका के लिये नौकरी करता है और लोगों की सेवा करता है,कोई सम्बन्धी के लिये भला काम करता है लेकिन सम्बन्ध का मालिक गुरु होने के कारण उसे बदले में बुराई मिलती है,और बेकार में भलाई करने के बाद दुश्मनी मिलती है। गुरु का न्याय करने के लिये भी माना जाता है,न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल हो जाये कि रोजाना के लिये न्याय वाले काम करने के लिये गुरु के समय तक भागना पडे आदि पहिचान मानी जा सकती है।
देश की सीमाओं के लिये पहिचानी जाने वाली राशियां
सीमाओं के लिये उत्तर में वृष राशि उत्तर पश्चिम में मिथुन राशि पश्चिम में उत्तर से सटी कर्क राशि पश्चिम में सिंह राशि पश्चिम दक्षिण से जुडी कन्या राशि,नैऋत्य में तुला राशि,दक्षिण में वृश्चिक राशि,दक्षिण पूर्व से जुडी धनु राशि अग्नि कोण में मकर राशि पूर्व में कुम्भ राशि,पूर्व उत्तर से जुडी मीन राशि और ईशान में मेष राशि देश की सीमाओं पर विराजमान है। इन राशियों में जो राशियां जिन भावों से पहिचानी जाती है वे इस प्रकार से हैं:-
- वायव्य राशि उत्तर दिशा से जुडी है और राहु विराजमान है,राहु की स्थिति सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका में है,और कृतिका नक्षत्र का तीसरा पाया बुध से सम्बन्धित है,राहु की स्थिति उच्च की मानी जाती है,लेकिन राहु की अवस्था मृत है। इस राहु का मालिक मुख्य रूप से बुध है,बुध को कानून के रूप में माने तो यह दिशा कानून से बंधी मानी जाती है। नक्षत्र का स्वामी सूर्य है,इसलिये यहाँ पर जो भी कानून होगा वह राज्य के प्रति सरकारी कानून होगा वह किसी समुदाय का कानून नही माना जा सकता है। बुध का रूप हरे भरे रूप से और सूर्य का रूप लकडी और उन्नत पहिचान के लिये माना जाता है इसलिये इस दिशा में उन्नत लोगों की पहिचान मानी जा सकती है। कुंडली को सामने से देखने पर दाहिने हाथ की तरफ़ मेष राशि का होना भी बताता है कि देश के ईशान में जन बाहुल्य देश की स्थापना है,यह देश चीन के रूप में माना जा सकता है। साथ ही गुरु की सप्तम नजर इस देश और इस भूभाग पर होने के कारण धर्म से सम्बन्धित देश नेपाल को भी माना जाता है जो अपनी धर्म और मर्यादा को समय समय पर बदलने के लिये तथा राहु के प्रभाव से ग्रस्त होने के कारण जन बाहुल्यता की श्रेणी में गिना जायेगा लेकिन गुरु के इस भाग में प्रवेश करते ही यह देश फ़िर से अपने वास्तविक रूप में आजयेगा। जैसे वर्तमान में यह नेपाल देश कमन्युस्टों यानी जनबाहुल्य के रूप में प्रजातंत्र देश के रूप में है लेकिन गुरु के इस देश की सीमा में मई ग्यारह से प्रवेश करते ही यह अपने पहले वाले वास्तविक रूप में धर्म से आच्छादित हो जायेगा। गुरु मोक्ष का कारक भी है,इसलिये बदलती हुयी राजनीतिक परिस्थियों के कारण और शनि के द्वारा देखे जाने के कारण नवम्बर ग्यारह के बाद या आसपास इस देश का विलय भी माना जा सकता है।
- वायव्य दिशा में मंगल के स्थापित होने के कारण यह दिशा लडाई झगडे और बलिदानी दिशा के रूप में भी मानी जा सकती है,मिथुन राशि का मंगल होने के कारण यह लडाइयां केवल नाम के लिये ही होती है,रहन सहन के लिये और जलवायु के परिवर्तन या किसी भी आर्थिक परिवेश के प्रति कोई सजगता नही होती है केवल नाम को एक निश्चित भूभाग के प्रति जोडने के लिये ही होती है,इस कारण को पैदा करने वाला मुख्य ग्रह राहु ही माना जाता है,राहु में बल नही होने के कारण और बुध के साथ सूर्य से जुडा होने के कारण वह कर कुछ भी नही पाता है,गुरु जो हिन्दू धर्म से सम्बन्धित है वह भी देश की कुंडली में मृत है,गुरु के ही नक्षत्र विशाखा में होने और विशाखा के दूसरे पाये में स्थापित होने के कारण जो केतु के रूप में जाना जाता है पर निर्भर होता है,यानी कुंडली का केतु जो करेगा वह गुरु को मानना पडेगा,केतु की स्थिति दक्षिण में होने के कारण तथा केतु के द्वारा मंगल को मारक द्रिष्टि से देखने के कारण इन लडाइयों को दक्षिण का केतु ही निपटा सकता है।
- उत्तर पश्चिम में ही चन्द्रमा बुध प्लूटो शनि शुक्र सूर्य की उपस्थिति कर्क राशि में है,चन्द्र से पानी बुध से हरी भरी जमीन प्लूटो से मशीनों का प्रयोग किया जाना शनि से पानी वाले कार्यों के लिये की जाने वाली मेहनत शुक्र से खेती वाली जमीन सूर्य से उन्नत खेती और गेंहूँ आदि के लिये गणना मान्य है,पंजाब को इस ग्रह युति का कारक माना जाता है.चन्द्र बुध से मजाकिया,पानी वाली खेती,लोक कलाकार,भाव पूर्ण गीत गाया जाना जिससे शरीर अपने आप धुन के साथ पुलकित होने लगे,यात्रा और कानूनी कार्य करने वाले व्यापार को खेती से सम्बन्धित उपज को प्रयोग में लेने वाले,कर्क राशि का चन्द्रमा समतल स्थान में बहता हुआ पानी,कर्क राशि का बुध पानी वाली हरी फ़सलें,चन्द्र प्लूटो से खेती में प्रयोग आने वाले मशीने,पानी से पैदा की जाने वाली बिजली और बिजली से चलने वाली मशीने,चन्द्र शनि से खेती वाले कामो के लिये किये जाने वाले कार्य,मन के अन्दर जाति पांति से अधिक योग्यता के प्रति विश्वास,चन्द्र शनि से जमा हुआ पानी और चन्द्र शनि से दूध वाली भैंस आदि के लिये भी माना जाता है,चन्द्र शुक्र से लोक कलाकारी और लोक नृत्यों के जानकार सूर्य से राज्य के प्रति जानकार लेकिन सूर्य के बाल होने के कारण बुद्धि का बाल स्वभाव का होना,बुध शुक्र से गाना बजाना और नृत्य करना,बुध शनि से ऐतिहासिक कार्य करना,बुध प्लूटो से ऊन आदि को बुनने के काम मशीनो से करना,बुद्धिमान मशीनो का निर्माण करना,बुध सूर्य से गेंहूं से बने उत्पादनों का व्यापार करना,जनता से सम्बन्धित कानून और कानूनी रूप से सेवा करने वाला आदि बातें भी ग्रहों के अनुसार मानी जाती है। लेकिन इन सभी पर राहु की द्रिष्टि होने के कारण चन्द्र राहु से शराब,राहु बुध से गणना और कम्पयूटर अन्तरिक्ष आदि के क्षेत्र में नाम करना,राहु शुक्र से प्रेम प्यार का नशा रखना,चमक दमक वाले नृत्य और भावनाओं की तरफ़ आकर्षित होना,राहु आकाश के लिये और शुक्र वाहन से माना जाये तो हवाई कम्पनियों के लिये अधिक से अधिक पायलेट पैदा करना,राहु प्लूटो के कारनों को अगर समझा जाये तो वह मशीने जिनसे असीमित काम किया जा सके,आकाशीय कारणों को उत्पन्न करना आदि भी माना जाता है,लेकिन राहु सूर्य के कारणो को अगर समझा जाये तो दाढी रखने वाले पुरुष,जब भी राज्य को राजकीय कारणों को देखा जाये तो इन्ही कारकों के शुरु होते ही राहु यानी मुसलमानी समुदाय का अक्समात जनता पर हावी हो जाना,आदि बातें मानी जाती है।
- पश्चिम दिशा में सिंह राशि होने के कारण और इस राशि पर धनु और मेष राशि का प्रभाव होने के कारण इस राशि का स्वामी इसी राशि से बारहवें भाव में होने के कारण जो भी प्रसिद्ध लोग इस भूभाग पर है,वे सभी किसी न किसी कारण से उत्तर पश्चिम दिशा के लोगों पर निर्भर है,कला संस्कृति भवन निर्माण सामग्री के लिये और रूखा था जलीय कारणों से दूर भूभाग माना जाता है,इस प्रान्त को राजस्थान कहा जाता है.
- कन्या राशि के लिये गुजरात को माना जाता है,इस राशि का स्वभाव मीठा बोलना और मीठा खाना,कर्जा दुश्मनी करने और बीमारी पालने के लिये मुख्य माना जाता है,बैंकिंग और फ़ायनेन्स वाले कारणों के लिये भी माना जाता है,दिमागी कामो को करने सेवा के कार्यों से सम्बन्धित कार्यों को संभालने के प्रति भी इस भूभाग को माना जाता है,गुजरात को कन्या राशि के गुणों से पूर्ण माना जाता है।
- नैऋत्य दिशा में तुला राशि होने से मुंबई आदि क्षेत्र माने जाते है,यह राशि व्यापारिक राशि है और मुंबई को व्यापारिक राशि के लिये माना जाता है,इस राशि से वर्तमान में शनि बारहवां है इसलिये निवास के कारणों और व्यापार की चाल के प्रति जो व्यापार धन आदि से सम्बन्धित है वे फ़्रीज हो रहे है,वहाँ पर रहने वालों के लिये निवास की समस्या को भी देखा जाता है,शनि इस व्यापारिक स्थान पर नवम्बर ग्यारह से बैठ जायेगा,व्यापारिक कारणों के लिये गुरु भी इस राशि से छठा है जो धन आदि के लिये बाहरी सहायताओं और धर्म आदि की लडाइयों के चलने से भी दिक्कत वाला माना जा सकता है.
- दक्षिण दिशा में केरल कर्नाटक और तमिल आदि प्रदेशों से माना जाता है इस दिशा में लगन का प्रतिद्वंदी केतु विराजमान है केतु ने वायव्य से अपनी युति जोड रखी है,राहु को संभालने के लिये यह केतु गोचर से अपना सही कार्य करता जा रहा है,केतु की सिफ़्त वृश्चिक राशि की होने के कारण शमशान का काला बांस लालकिताब में बताया गया है,अधिकतर जो भी दक्षिण के नेता है वे अपनी औकात को तभी प्रदर्शित करने के लिये सामने आते है जब देश की लगन का राहु अपने भावों को अधिक प्रदर्शित करने के लिये सामने आता है,यह राहु मई ग्यारह के बाद दक्षिण के केतु से मिलने के लिये सामने जा रहा है,और इस कारण से यह धन वाले कारणों से दक्षिण के नेताओं को अपने बस में करने के लिये उकसायेगा,डेढ्साल तक वह इन नेताओं को अपने आगोस में लेगा तो लेकिन उसके बाद वह मुम्बई आदि स्थान पर अपनी निगाह फ़ैलायेगा,इस निगाह फ़ैलाने के कारण दक्षिण के केतु के लिये भय वाली बात पैदा होगी,लेकिन जैसे ही यह कन्या राशि में प्रवेश करेगा,गुजरात आदि प्रान्तों में यह अपनी उच्चता को प्रदर्शित करेगा,और दूसरे भाव के मंगल के द्वारा कंट्रोल में कर लिया जायेगा,इस कारण को अधिक खून खराबा भी माना जा सकता है। जब भी राहु वृश्चिक कन्या मकर वृष पर अपना असर देगा इस देश में खून खराबे के समय के लिये जाना जायेगा.
2 comments:
well written
धन्यवाद माधव जी.
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