शिव पार्थिव पूजन

पार्थिव पूजन के लिये स्नान संध्योपासन आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर शुभासन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। पूजा की सामग्री को सम्भालकर रख दें। अच्छी मिट्टी भी रख लें। भस्म का त्रिपुण्ड्र लगाकर रुद्राक्ष की माला पहन लें। पवित्री धारण कर आचमन और प्राणायाम करे। इसके बाद विनियोग सहित "ऊँ अपवित्र:...." मंत्र का जाप करे,और अपने को तथा पूजन सामग्री को स्वच्छ करें। रक्षादीपक जला ले । विनियोग सहित "ऊँ पृथिव्य त्वा...."इस मंत्र से आसन को पवित्र करे.हाथ मे अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन तथा गणपति का स्मरण करें। इसके बाद दाहिने हाथ में अर्घ्य पात्र लेकर उसके अन्दर कुशत्रय पुष्प अक्षत जल और द्रव्य रखकर निम्नलिखित संकल्प करें:-
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य: (दिन महिना साल का नाम) मम (अपना नाम मय पिता और गोत्र के साथ) सर्वारिष्टनिरसनपूर्वकसर्वपापक्षयार्थं दीर्घायुरारोग्यधनधान्यपुत्रपौत्रादिसमस्तसम्पत्प्रवृद्ध्यर्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफ़लप्राप्त्यर्थं श्रीसाम्बसदाशिवप्रीत्यर्थं पार्थिवलिंगपूजनमहं करिष्ये।

भूमि प्रार्थना
इस प्रकार संकल्प करने के बाद इस मंत्र से भूमि की प्रार्थना करें:-
ऊँ सर्वाधारे देवि त्वद्रूपां म्रुत्तिकामिमाम,ग्रहीष्यामि प्रसन्ना त्वं लिंगार्थं भव सुप्रभे॥
ऊँ ह्राँ पृथिव्यै नम:।
मिट्टी का ग्रहण:-
उद्ध्रतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना,मृत्तिके त्वां च गृहण्यामि प्रजया च धनेन च॥
ऊँ हराय नम: इस मंत्र को पढकर मिट्टी ले,मिट्टी को अच्छी तरह देखकर कर कंकड आदि निकाल दें,कम से कम बारह ग्राम मिट्टी हो,जल मिलाकर मिट्टी को गूंद लें।

लिंग गठन:- ऊँ महेश्वराय नम: कहकर लिंग का गठन करे,यह अंगूठे से न छोटा हो और वित्ते से बडा,मिट्टी की नन्ही सी गोली बनाकर लिंग के ऊपर रखें,यह वज्र कहलाता है,कांसा आदि के पात्र में बिल्वपत्र रखकर उस पर इस मंत्र को पढकर लिंग की स्थापना करें:-
प्रतिष्ठा:- ऊँ शूलपाणये नम:,हे शिव ! इह प्रतिष्ठतो भव। यह कहकर लिंग की प्रतिष्ठा करें। ( यह सामान्य रूप से पार्थिव पूजन में सुगमता की नजर से प्रतिष्ठा की सूक्ष्म विधि है,किंतु पूजन के अवसरों पर या हमेशा के लिये शिवलिंग की स्थापना के लिये जो प्राण प्रतिष्ठा की जाती है वह इस प्रकार से है :- प्राणप्रतिष्ठा का मंत्र विनियोग :- ऊँ अस्य श्री प्रानप्रतिष्ठामन्त्रस्य ब्रह्माविष्णुमहेश्वरा ऋषय: ऋग्यजु:सामानिच्छन्दांसि क्रियामयवपु: प्राणाख्या देवता आँ बीजं ह्रीं शक्ति: क्रौं कीलकं देव (देवी) प्राणप्रतिष्ठापने विनियोग:। (इतना कहकर जल भूमि पर छोड देवें). प्राणप्रतिष्ठा :- हाथ में पुष्प लेकर उसे मूर्ति पर स्पर्श करते हुये इस मंत्र को बोले :- ऊँ ब्रह्माविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नम: शिरसि। ऊँ ऋग्यजु:सामच्छन्दोभ्यो नम:,मुखे। ऊँ प्राणाख्यदेवतायै नम:,ह्रदि। ऊँ आँ बीजाय नम:,गुह्ये। ऊँ ह्रीं शक्तये नम:,पादयो:। ऊँ क्रौं कीलकाय नम:,सर्वांगेषु। इस प्रकार न्यास करने के बाद इन मंत्रों को बोलते हुये पुष्प से ही लिंग को स्पर्श करें:- ऊँ आँ ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षँ सँ हँ स: सोऽहं शिवस्य प्राणा इह प्राणा:।  ऊँ आँ ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षँ सँ हँ स: सोऽहं शिवस्य जीव इह स्थित:। ऊँ आँ ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षँ सँ हँ स: सोऽहं शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि वांगमन्स्त्वक्वक्षु:श्रोत्रघ्राणजिव्हापाणिपादयायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा। इसके बाद अक्षत (चावल बिना टूटे हुये) से आवाहन करें :- ऊँ भू: पुरुषं साम्बसदाशिवमावाहयामि। ऊँ भू: पुरुषं साम्बसदाशिवमावाहयामि । ऊँ भू: पुरुषं साम्बसदाशिवमावाहयामि । ऊँ स्वामिन सर्वजगन्नाथ यावत्पूजावसानकम,तावत्वम्प्रीतिभावेन लिंगेऽस्मिन संनिधिं कुरु॥ )


प्रतिष्ठा के बाद विनियोग करते हैं :- ऊँ अस्य श्रीशिवपंचाक्षर मंत्रस्य वामदेव ऋषिरनुष्ट्रुपछन्द: श्रीसदाशिवो देवता,ओंकारो बीजम नम: शक्ति:,शिवाय इति कीलकम,मम साम्बसदाशिवप्रीत्यर्थं न्यासे पार्थिवलिंगपूजने जपे च विनियोग:। इस विनियोग से अपने और देवता को दूर्वा अथवा कुश से स्पर्श करते हुये तत्तद अंगो में न्यास करें।
ऋष्यादिन्यास:-
ऊँ वामदेवर्षये नम: सिरसि.
ऊँ अनुष्टुपछन्दसे नम: मुखे.
ऊँ बीजाय नम: गुह्ये.
ऊँ शक्तये नम: पादयो:.
ऊँ शिवाय कीलकाय नम:,सर्वांगे.
ऊँ नं तत्पुरुषाय नम:.ह्रदये.
ऊँ मं अघोराय नम:,पादयो.
ऊँ शिं सद्योजाताय नम: गुह्ये.
ऊँ वां वामदेवाय नम: मूर्घ्नि.
ऊँ यं ईशानाय नम:,मुखे.
करन्यास:-
ऊँ अंगुष्ठाय नम:
ऊँ नं तर्जनीभ्याम नम:.
ऊँ मं मध्यमाभ्याम नम:
ऊँ शिं अनामिकाभ्यां नम:
ऊँ वां कनिष्ठिकाभ्याम नम:
ऊँ यं करतलकरपृष्ठाभ्याम नम:
षडंगन्यास:-
ऊँ ह्रदयाय नम:
ऊँ नं सिरसे स्वाहा.
ऊँ मं शिखायै वषट.
ऊँ शिं कवचाय हुम.
ऊँ वां नेत्रत्राय वौषट
ऊँ यं अस्त्राय फ़ट.

इस प्रकार से न्यास करने के बाद भगवान सदाशिव का ध्यान पूर्वक पूजन करें.

ध्यान
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचन्द्रावतंसं,रत्नाकल्पोज्ज्वलांगम परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समन्तात स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृतिं वसानं,विश्ववाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥


ध्यान करने के बाद आवाहन
ऊँ पिनाकधृषे नम:,श्रीसाम्बसदाशिव पार्थेश्वर इहागच्छ इह प्रतिष्ठ इह संनिहितो भव। कहकर फ़ूल चढायें।
आसन
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय (साम्बसदाशिवपार्थेवेश्वराय भी बोला जा सकता है) नम: आसनार्थे अक्षतान समर्पयामि। बिना टूटे चावल चढायें।
पाद्य
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,पादयो: पाद्यं समर्पयामि। जल चढायें।
अर्घ्य
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,हस्तयोरर्घ्य समर्पयामि। जल चढायें।
आचमन
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल चढावें।
मधुपर्क
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,मधुपर्क समर्पयामि। मधुपर्क चढावें।
स्नान
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,स्नानीयं जलं समर्पयामि। जल से स्नान करवायें।
पंचामृत स्नान
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,पंचामृत स्नानं समर्पयामि। दूध दही घी शहद गंगाजल मिलाकर स्नान करवायें।
शुद्धोदक स्नान
ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम: शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि। शुद्ध जल से स्नान करवायें।
आचमन
 ऊँ नम: शिवाय श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नम:,आचमनीयं जलं समर्पयामि। आचमन के लिये शुद्ध जल चढायें।
महाभिषेक

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