एक महिला ने अमेरिका से अपनी बच्ची की जन्म तारीख भेजी और जानना चाहा कि इसकी कुंडली में कोई दोष है क्या ? मैने कुंडली देखी और जबाब जैसा लिखता आया हूँ वैसा लिख दिया कि इस बच्ची का शनि अच्छा है और काम करने के बाद सीखने वाली लडकी है,शिक्षा मे थोडा धीरे चलेगी क्योंकि शनि की दशा चल रही है। उसने अमेरिका और भारत के अन्य ज्योतिषियों के बार में कहा कि इस लडकी के लिये कह दिया गया है कि यह छ: महिने से अधिक जिन्दा नही रहेगी,मुझे आश्चर्य हुआ कि मौत का मालिक अगर लगन में गुरु की द्रिष्टि से पूर्ण हो और उसके बारे में कह दिया जाये कि वह मर जायेगी,"दिवाल बनकर जिसकी रक्षा हवा करे,वह शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे",इस मामले में सोचना पडा,उसने दूसरे ईमेल में लिखा कि उसके पहले बच्चे के प्रति भी इसी प्रकार की भविष्यवाणी की गयी थी,और अमेरिका में उसने उस बच्चे का ज्योतिषीय उपाय करवाने के चक्कर में तीन हजार डालर खर्च कर दिये,तथा भारत में उस बच्चे के उपाय के लिये तीस हजार रुपये खर्च कर दिये थे। ईमेल की कापी संलग्न फ़ोटो मे आप देख सकते हैं।इसे पढने के बाद सोचना पडता है कि जिस विद्या को हमारे ऋषि मुनि पूर्वज केवल मनुष्य के हित के लिये प्रदान करके गये है और उसे अगर अपने स्वार्थ के लिये इस तरीके से डराकर प्रयोग किया जायेगा तो विद्या का अन्त निश्चित है,कारण लोगों का भाव इस विद्या के प्रति भी व्यवसायिक हो जायेगा,और धर्म को बेच कर खाने वाली बात से फ़िर मुकरा नही जा सकता है। एक बहुत ही प्रसिद्ध ज्योतिषी जी से मेरी इस मामले में बात हुयी तो उन्होने मेरे से उल्टा सवाल ही कर डाला,-"एक डाक्टर अपनी पढाई किसलिये करता है,उसे अपनी फ़ीस देनी पडती है,उसे अपने समय को खराब करना पडता है वह मरीज को देखने और सलाह देने के ही पैसे लेता है,उसी तरीके से जब हमने ज्योतिष की पढाई की है और उस पर नये नये कारण खोजे है,तो हम पैसा क्यों नही ले सकते",मैने उनसे फ़िर सवाल किया कि फ़िर पैसा लेना है तो केवल अपनी फ़ीस ही लो,डराकर धन बटोरने से तो पाप ही लगेगा,वे फ़िर तमक कर बोले,-" एक डाक्टर को तबियत खराब होने पर दिखाने जाते है,वह कई प्रकार की जाचें करने के लिये अलग अलग जगह पर बनी लेब्रोटरियों में भेज देता है,उसके बाद जब जांच पूरी हो जाती है तो इलाज करता है,इलाज में लगने वाले दवाई और मशीनों के खर्चे को वह लेता है कि नहीं,और जब कोई ग्राहक अच्छे पैसे वाला होता है तो डाक्टर भी उससे धन केवल इसीलिये कमाता है क्योंकि पैसे वाले का धन अगर डाक्टर नही कमायेगा तो वह उसे खर्च कहाँ करेगा,डाक्टर को भी धन की जरूरत होती है वह दवाइयों की एवज में लेब्रोटरी की जाचों के दौरान मिलने वाले कमीशन के रूप में,दवाई किसी मेडिकल स्टोर से खरीदने के लिये कहने पर उससे भी कमीशन के रूप में प्राप्त करता है,तो ज्योतिषी भी मेहनत करता है पढाई करता है,रत्नों को बताता है,रत्नों की परख को पहिचानता है,तो वह भी डाक्टर की तरह से ही धन कमा सकता है",मेरा उनकी बात सुनकर दिमाग खराब हो गया,मैने दूसरे ज्योतिषी से पूँछा भाई तुम आज कल क्याकर रहे हो,वे तपाक से बोले अपनी आफ़िस का अपग्रेडेशन करवा रहा हूँ,उसमे नया फ़र्नीचर लगवा रहा हूँ,रिसेप्सनिष्ट को बैठने की जगह बना रहा हूँ,उसे एयरकण्डीशन वाला बना रहा हूँ,मैने उनसे पूंछा कि ज्योतिष में इन चीजों की क्या जरूरत पड गयी,वे बोले आज की दुनिया बहुत आरामतलब हो गयी है,लोगों को पूंछने के लिये समय देना पडता है,अगर कोई जब तक घंटा दो घंटा इन्तजार ना कर ले तब तक काहे की प्रसिद्धि,भले ही केबिन में बैठ कर कम्पयूटर से चेटिंग की जा रही हो,लेकिन बाहर बैठे सज्जन को यही पता होगा कि मैं किसी काम में व्यस्त हूँ,मेरा माथा तुनक गया कि एक साल में कम से कम बीस हजार लोगों को लिखता हूँ,कोई दो चार लोग अपनी इच्छा से दक्षिणा भेजदेते है.इसकी एवज में क्या करना चाहिये,लोगों को डराकर धन कमाने से अच्छा है डकैती डालनी शुरु कर देनी चाहिये,या फ़िर जो मर रहा है उसका इन्तजार कर लेना चाहिये या जल्दी से उसे और मारने का उपाय करना चाहिये,जिससे कम से कम उसके अंग तो काम आ ही जायेंगे,डाक्टरों की बुद्धि से किडनी भी बिक जायेगी,आंखे भी बिक जायेंगी,और न जाने क्या क्या बिक जायेगा। अंकुश लगाने की बजाय लोगों को इनपर इतना भरोसा हो जाता है कि अपने घर की पूरी रामायण तो इन्हे बता ही देते है,और जब ज्योतिषी जी पूरी घर की गाथा को सुन लेते है तो उन्हे अच्छी तरह से काटने का मौका भी मिल जाता है।
एक संत अगर तपस्या करने के बाद अपनी तपस्या से प्राप्त सिद्धि को बेचने का काम करने लगते है तो तपस्या का कोई औचित्य तो रहा नहीं,उसी प्रकार से जो सितारों की विद्या को सीख लेता है और सितारों की एवज में लोगों को काटने का इन्तजाम अपने स्वार्थ के लिये करता है तो उन्हे क्या सितारों के द्वारा दिये जाने वाले कष्टों का भी भान नही होता है।धार्मिक प्रवचन देने वाला,अगर कुछ किताबों का अध्ययन करके और बोलने की क्लास ज्वाइन करने के बाद एक सभा बनाकर धार्मिक प्रवचनों को लय बद्ध तरीके से करता है और अधिक से अधिक जनता को बटोरने का काम करता है तो वह भी धर्म को बेचकर खाने वाला हो गया ? अगर धर्म बिकने लगा है तो धर्म के अन्दर ही भगवान आते है,यानी भगवान भी बिकने लगे । भगवान के बिकने पर केवल जो धनी है या फ़िर चालाकी जानते है वे ही भगवान को मना सकते है,ज्योतिषी जिस बात से डराकर धन वसूलते है और अपने ठाट बाट को चलाकर नाम कमाने की इच्छा से जायदाद इकट्ठी करने पर विश्वास करते है क्या उन्हे नही पता होता है कि कल उन्हे भी अपने कार्यों का जबाब देना पडेगा। हर व्यक्ति को पता है कि समयानुसार ही कार्य होता है,उसे कम या अधिक अपने अपने विवेक से बनाया जाता है,लेकिन विवेक का प्रयोग नही करने पर केवल धोखा खाना ही होता है। मैने एक बार पढा था कि "चमक दमक और मीठी मीठी बातें स्त्री और मूर्खों को ही पसंद होती है"यह बात आज सोलह आने सही मिल रही है। मुझे लगता है कि अगर लोग इसी तरह से इस ज्योतिष को डराकर कमाने वाली विद्या के रूप में प्रयोग करते रहे,तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब लोग ज्योतिष या ज्योतिषी के नाम से डरकर अपने बारे में जो दिग्दर्शन लेना भी उसे भी लेना पसंद नहीं करेंगे.
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