संसार में व्यक्ति का जन्म होता है और जन्म के बाद पहले माता फ़िर पिता और पिता के बाद घर के अन्य सदस्यों से व्यक्ति की मुलाकात होती है। माता का लगाव संतान के प्रति आजीवन रहता है,पिता का लगाव संतान से रहता तो आजीवन है लेकिन वह अपनी संतान को आगे बढने के लिये लगातार प्रयत्न करता रहता है,लेकिन संतान पारिवारिक या अन्य कारणो से अलग दूर रहना शुरु कर देती है तो पिता केवल संतान से अपने बुढापे का सहारा ही लेने की इच्छा करता है अगर संतान उसे सहारा देती है तो ठीक है अन्यथा वह अपने मानसिक आघात को अपने अन्दर ही छिपाकर अपनी वेदना के अन्दर खुद को ही धीरे धीरे समाप्त कर लेता है।
भाई बहिन
भाई बहिन भी व्यक्ति को परिवार में सहारा देने के लिये मिलते है,और उनके अन्दर लगाव भी एक समय तक रहता है,जब तक व्यक्ति अपने अन्दर अपने भाई बहिनो के प्रति दया का भाव और सहायता का भाव रखता है तो वे भी उस व्यक्ति के प्रति अपनी दया और सहानुभूति को रखते है,लेकिन व्यक्ति जब परिवार मर्यादाओं और घर की समझ से दूर हो जाता है तो भाई बहिन भी धीरे धीरे दूर होते चले जाते है। लेकिन एक खून और एक खानपान होने के कारण रिस्ते का अट्रेक्सन दूर नही हो पाता है जब भी दूर रहने वाले भाई या बहिन के बारे में बातें चलती है तो व्यक्ति के द्वारा किये गये कार्य व्यवहार सभी का ध्यान भाई बहिनो के अन्दर आता है और वह अपने अपने अनुसार दूर रहने की व्यथा को अपने अन्दर ही अन्दर झेलते रहते है। अक्सर भाई बहिनो के प्रति खून के सम्बन्ध वाले लोग अपने अनुसार ही मान्यता रखते है और कुटुम्ब की धारणा के अनुसार अपने को उनके अनुसार वक्त पर साथ आते रहते है लेकिन धारणा अगर भाई की भाई के प्रति अति कटु हो जाती है तो भाई या बहिन दूर रहने में ही अपनी भलाई इसीलिये समझते है क्योंकि अगर कुछ बुरा हो जाता है तो घर के सदस्य जो व्यक्ति के साथ नये जुडे होते है वे सीधा आक्षेप करने से नही चूकते हैं।
भाई भाई को दूर करने के लिये जीवन साथी की भूमिका
अक्सर शादी के बाद विवाहित व्यक्ति का रुख परिवार से दूर होता चला जाता है,परिवार में आने वाली अन्य कुटुम्ब की स्त्रियां अपने अनुसार परिवार को चलाने की भूल कर बैठती है। उन्हे यह पता होता है कि उनके परिवार और परिवेश में पहले जैसा होता रहा है अगर पति के परिवार में उसी तरह का माहौल चलाया जायेगा तो उनके लिये आरामदायक हो जायेगा। वे अपने अनुसार परिवार के लोगों के साथ बर्ताव करने लगती है और जब उनका किया जाने वाला किसी तरह का आक्षेप विक्षेप वाला बर्ताव परिवार के लोगों से सहन नही होता है तो व्यक्ति को परिवार से दूर कर दिया जाता है,वह दूरियां चाहे जीवन यापन के लिये की जाने वाली नौकरी से हों या किसी भी प्रकार के व्यापार या रोजगार से सम्बन्धित हों। जैसे ही व्यक्ति परिवार और अपने भाई बहिनो से दूर होता है दूसरे परिवार के लोग जो उस व्यक्ति के परिवार से द्वेष की भावना शुरु से रख रहे होते है वे उसके साथ मिलना शुरु कर देते है और परिवार के लोगों के प्रति उससे तरह तरह की बातें करने के बाद उसे और परिवार से दूर करते चले जाते है। अक्सर यह भी एक अजीब सा व्यवहार देखा जाता है कि व्यक्ति के अलावा उसकी पत्नी का ऐसे लोग भरपूर उपयोग करते है और किसी भी घरेलू कारण को नमक मिर्च लगाकर बखान करते है और अपने अपने अनुसार समय समय पर कान भरते रहते है,दूसरे परिवार से आने वाली स्त्री के अन्दर कोई खून का रिस्ता तो होता नही है,उसके साथ परिवार के लिये केवल सामाजिक रिस्ता होता है और परिवार के प्रति उसकी मन के अन्दर भरी गयीं दुर्भावनायें उसे और परिवार से दूर कर देती है इन मामलों में अधिकतर देखा जाता है कि चुगली के द्वारा व्यक्ति के भाई बहिन उसके लिये हमेशा के लिये दूर होते चले जाते है,जो भी दोष दिया जाता है वह अक्सर पैतृक सम्पत्ति के प्रति दिया जाता है,और उसके लिये अलग अलग समय की गाथा अलग अलग समय पर जब कोई जरूरत वाला काम पडता है तभी कही जाती है। और उस गाथा के प्रभाव को असरदार करने के लिये समय का हिसाब किताब घर वाले सदस्यों के पास नही होता लेकिन द्वेष रखने वाले अपने पास हमेशा रखते है।
सम्बन्धी ही पारिवारिक दुर्भावना का कारण होते है
अक्सर परिवार में जो सम्बन्ध बनाये जाते है वे अपने अपने अनुसार स्वार्थ पूर्ति की कामना रखते है,व्यक्ति की ससुराल वाले चाहते है कि उनकी बहिन बुआ बेटी जो भी व्यक्ति को ब्याही गयी है उसका आधिपत्य रहे और वे लोग समय पर अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये उसका उपयोग करते रहें। दूसरी तरफ़ व्यक्ति के परिवार वाले केवल उनसे इसलिये दूरियां चाहते है कि वे कहीं व्यक्ति का बेकार में उपयोग करने के बाद उनके परिवार का खात्मा ना कर दें। इसी जद्दोजहद के अन्दर दोनो परिवार आपस में उलझते रहते है। और तरह तरह की समय के अनुसार बुराइयां दोनो के अन्दर पैदा होती रहती है।
उदाहरण
एक व्यक्ति नाम मालीराम तीन लडके एक लडकी,चारों संतानो की परवरिश एक ही घर में हुयी। एक को ठेकेदार दूसरे को डाक्टर तीसरे को मा्र्केटिंग में महारत हासिल हुयी और तीनो ही अपने अपने क्षेत्र में काम धन्धे में व्यस्त हो गये। एक लडकी उसकी भी शादी कर दी,दामाद भी खाता कमाता मिला कोई परेशानी नही रही। ठेकेदार का काम भला चंगा चला वह घर से दूर चला गया,उसकी शादी के बाद पत्नी का झुकाव हमेशा अपने पीहर के लिये केवल इसलिये रहा कि उसके परिवार में सभी अव्यवस्थित थे,किसी के पास कोई रोजगार नही सभी खेती किसानी करने के बाद पेट पालने वाले मिले,जब भी ठेकेदार की पत्नी अपने पीहर जाती उसके पीहर वाले उनके लिये कोई ना कोई फ़रमाइस कर देते,वह अपने द्वारा ठेकेदार की कमाई से होने वाली आय का अधिकतर हिस्सा अपने भाई बहिनो और माता पिता के लिये खर्च करने लगी,ठेकेदार को जब पता लगा तो पत्नी को पीहर से रिस्ता नही रखने के लिये दबाब दिया जाने लगा। पत्नी का पीहर नही जाने के कारण उसका रोजाना का नाटक चालू हो गया वह किसी ना किसी बात का बहाना लेकर रोजाना परिवार में खटर पटर चालू कर दी,लेकिन जब उसकी कोई बात नही चली तो वह बीमारी का बहाना बनाकर एक दम चुप हो गयी। डाक्टर की भी शादी ऐसे घर में जहां सभी घर वाले शराबी और बेरोजगार मिले,बडी जेठानी को अपने पीहर से रिस्ता रखने के कारण और सास के द्वारा उसे पूरी बात ठेकेदार की पत्नी के लिये बताने के कारण उसके अन्दर भी यह भावना भर गयी कि वह भी अपने पीहर वालों की सहायता करे। वह भी अपने अपने समय पर पीहर को सहायता देने लगी,तीसरे लडकी की शादी भी हो गयी और उसकी पत्नी एक पढे लिखे खानदान से थी,उसे रीति रिवाज और व्यवहार का पूरा ज्ञान था लेकिन वह अपनी जेठानियों के व्यवहार से एक भरे पूरे परिवार में रोजाना का क्लेश होने के कारण दुखी रहने लगी और वह परिवार के व्यवहार से तथा रोजाना की टेंसन से बीमार रहने लगी। डाक्टर की पत्नी के व्यवहार को देख कर और मालीराम की बीमारी के कारण बडे लडके ने जो ठेकेदार है ने अपनी पत्नी को अपने साथ काम करने वाले स्थान पर ले जाकर रख लिया,और अपने अनुसार चलने लगा,जैसे ही मालीराम को कोई जरूरत पडती वह आकर अपनी सहायता देता और चला जाता। डाक्टर की पत्नी ने अपनी जेठानी को देखा तो वह भी अपने पिता के घर जाकर केवल इसलिये बैठ गयी कि जब उसे भी परिवार से अलग कर दिया जायेगा तभी वह पति के पास जायेगी। माता पिता को भी के बहाना मिल गया और वह अपने अनुसार जैसे भी उनका कमन्यूकेशन का साधन था,उससे मालीराम को खबरें करने लगे कि अगर उसकी लडकी की बात को नही माना गया तो वे अदालत का सहारा लेकर डाक्टर की कमाई को लेंगे तो वह तो है ही,लेकिन उनके प्रति भी पुलिस में कम्पलेन करने के बाद दहेज एक्ट और स्त्री प्रताडना का मुकद्दमा करने के बाद जेल भी भेज देंगे। मालीराम ने पूरी जिन्दगी इज्जत की जिन्दगी जी थी,इसलिये उन्होने भी अपने डाक्टर लडके को अलग कर दिया और उससे कह दिया कि अपने परिवार के साथ जाकर खाओ कमाओ। इधर जो लडका मार्केटिंग का काम करता था वह भी अपने साथ अपनी पत्नी को ले गया और अपने काम में फ़ंसे होने के कारण तथा उसकी पत्नी का शिक्षित होने के कारण और पत्नी द्वारा भी शिक्षिका का काम करने के कारण मालीराम से दूरियां अपने आप बन गयीं। जब घर के अन्दर अपने आप ही अलगाव हो गया तो लडकों को भी समझ में आने लगा कि उनकी पत्नियां कहां क्या चाहती थी। सम्मिलित परिवार में खर्चे का पता नही चलता था और जब कोई चीज घर के अन्दर खत्म हो जाती थी तो एक दूसरे पर आक्षेप लगाकर दुबारा से चीज को मंगवा लिया जाता था,लेकिन जब वे अलग अलग रहने लगे तो उनके अन्दर भी समझ में आया कि गल्ती कहां हुआ करती थी,अपने अपने लिये परिवार को बसाने और अपने अपने लिये घर मकान का सपना देखने के कारण सबने अपने अपने खर्चे दबा लिये। परिवार फ़िर भी सही सलामत चलता रहा। लेकिन जो पडौसी या परिवार वाले पहले से ही मालीराम के परिवार को सुखी देखकर दुखी थे,उन्हे अब अपने कार्यों को अंजाम देने का मौका मिल गया। बडे लडके के केवल लडकियां ही थीं और डाक्टर के कोई संतान नही थी,तथा मारकेटिंग वाले लडके के भी कोई संतान नही थी। जो जलन रखते थे उन्होने डाक्टर की पत्नी को भरना चालू कर दिया कि उसके ससुर को तांत्रिक क्रियायें आती है और उन्ही के द्वारा ही उसे संतान से बिमुख रखा गया है,जो गल्ती किये होता है उसे फ़ौरन अपने व्यवहार का भान होना जरूरी होता है,वह एक धार्मिक मौके पर मालीराम के पास घर पर आयी और बिना सोचे समझे मालीराम को गालियां देने लगी,मालीराम को कुछ भी पता नहीं था वे अपनी सामाजिक और पारिवारिक मर्यादा में रहने वाले व्यक्ति है,लेकिन उनकी पत्नी को यह सहन नही हुआ कि उनके पति को बिना किसी कारण के कोई आक्षेप दिया जाये,दोनो सास और बहू में पहले तो बतकही हुयी और बाद में दोनो के अन्दर मारपीट भी हो गयी। डाक्टर की बहू उसी मारपीट का फ़ायदा उठाकर अपने पीहर चली गयी और अपने पीहर वालों से कहा,वे भी बिना सोचे समझे एक गाडी में भर कर आ गये और सीधे से मालीराम और उनके अलावा लडकों पर हमला बोल दिया,बात घर की घर में रही और पुलिस या थाने तक मामला नहीं पहुंचा। मालीराम को कभी यह बात हजम नही हुयी और वे अकेले ही अपने को रखने लगे,एक तो चिन्ता और दूसरे चिन्ता के कारण लगने वाली बीमारियां,दोनो पति पत्नी आज भी अकेले है और जब वे किसी कारण से दुखी होते है तो जो लोग उनसे द्वेष रखते है तो बहुत खुश होते है। एक भला चंगा परिवार बिना किसी कारण के टूट गया।
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