जब शुभ भावों के स्वामी बली होते है,तो धन मिलता है,यह तो सभी जानते है,लेकिन ऐसा भी देखा गया है,कि जो भाव कुन्डली में अनिष्ट का संकेत करते है,और अगर उनके स्वामी अगर किसी प्रकार से कमजोर है तो भी धन शुभ भावों के स्वामियों से अधिक मिलता है.कुन्डली के ६,८,और १२ भाव अनिष्ट भाव माने जाते है,इन तीनो को त्रिक भी कहा जाता है,इन किसी भी स्थान का स्वामी किसी त्रिक में या अनिष्ट ग्रह से देखा जाता है,तोबहुत ही निर्बल हो जाता है,इस कारण से विपरीत राजयोग की प्राप्ति हो जाती है,माना जाता है कि छथा भाव ऋण का है,और किसी पर लाखों रुपयों का ऋण है,और किसी आदमी द्वारा अक्समात उस ऋण को उतार दिया जाता है,तो उसको एक तो ऋण से छुटकारा मिला और दूसरे धन का लाभ भी हुआ,इसी प्रकार से आठवां स्थान गरीबी का माना जाता है,यदि किसी की गरीबी का अक्समात निवारण हो जाये तो वह भी विपरीत राजयोग की गिनती मे ही गिना जायेगा.इसी प्रकार से बारहवां भाव भी व्यय का है,और किसी का व्यय रुक कर अगर बैंक में जमा होना चालू हो जाये तो भी इसी विपरीत राजयोग की गिनती में गिना जायेगा.गणित का नियम सभी को पता होगा कि दो नकारात्मक एक सकारात्मक का निर्माण करते है,और दो सकारात्मक भी एक सकारात्मक का निर्माण करते है,लेकिन एक नकारात्मक और एक सकारात्मक मिलकर नकारात्मक का ही निर्माण करेंगे,इसी प्रकार का भाव इस विपरीत राजयोग मे प्रतिपादित किया जाता है.
इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी की जा सकती है:-आठवें भाव के स्वामी व्यय अथवा ऋण में हों,छठे भाव के स्वामी गरीबी या व्यय के स्थान में हो,और बारहवें भाव के स्वामी ऋण अथवा गरीबी में हों,अथवा अपने ही क्षेत्र में होकर अपने ही प्रभाव से परेशान हो,तो वह जातक धनी लोगो से भी धनी होता है.इसका विवेचन इस कुन्डली के द्वारा भी कर सकते है:- कन्या लगन की कुन्डली में बुध लगन में है,सूर्य केतु दूसरे भाव में तुला में है,गुरु शुक्र तीसरे भाव में वृश्चिक राशि में है,राहु शनि आठवें भाव में मेष राशि के है,मंगल चन्द्र नवें भाव में वृष राशि के है,इस कुन्डली में ऋण भाव के मालिक शनि मेष राशि के नीच भी है और गरीबी के भाव में भी विराजमान है तथा राहु से ग्रसित भी है,साथ ही सूर्य जो व्यय का मालिक है,से भी देखे जा रहे है,और कोई भी अच्छा ग्रह उसे नही देख रहा है,इसी प्रकार से सूर्य भी तुला का होकर नीच है,और केतु का साया भी है,अपने ही स्थान से तीसरे स्थान में है,राहु,शनि और केतु का पूरा पूरा ध्यान सूर्य के ऊपर है,और सूर्य के लिये कोई भी सहारा कही से नही दिखाई दे रहा है,यह उदाहरण विपरीत राजयोग का श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है.जातक लगनेश बुध के चलते बातो से कमा रहा है,पराक्रम में गुरु और शुक्र का बल है,गुरु ज्ञान है और शुक्र दिखावा है,मंगल चन्द्र नवें भाव से जो कि धन के मामले में परेशान जनता का उदाहरण है,को अपनी राय देकर मनमानी फ़ीस लेकर जनता को धन के कारणो जैसे कर्जा और धन के कारण चलने वाले कोर्ट केशो से फ़ायदा दिलवा रहा है,इधर शनि जो कि कमजोर होकर राहु का साथ लेकर बैठा है,सरकारी कारिन्दो की सहायता से मुफ़्त की जमीनो से और उनको खरीदने बेचने से भी धन की उपलब्धि करवा रहा है.
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guruji mera vipreet raj you ashtam sthan me ho raha hai.uska kya fal hai
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