उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो किसानो का हितकारी होता है,और दिन में बेचारा किसी को भी परेशान नही करता है चुपचाप किसी बडे पेड की खोखर में पडा रहता है,शाम होते ही वह अपने को खोखर से बाहर निकालता है चारों तरफ़ से अपनी घुमाने वाली आंखों से देखता है और जिधर रात्रिचर शिकार देखा उधर ही अपने झपट्टे को मारकर अपनी छुधा पूर्ति करता है और सुबह का उजाला होने के पहले अपनी खोखर को देख कर उसी में घुस जाता है,दिन भर की आराम की नींद लेता है,शाम होते ही फ़िर पहले दिन जैसा काम करता है,और अपना जीवन जीता है। कई किंवदन्तिया उल्लू के बारे में सुनी है,कि उल्लू को रात में दिखाई देता है उसकी आंख में रात में देखने का एक विशेष पदार्थ होता है,उस पदार्थ को रात को चोरी करने वाले लोग प्रयोग में लाते है और उसकी आंख का तत्व निकाल कर काजल बनाकर लगाकर रात को चोरी करने निकलते है और उन्हे सब कुछ दिखाई देता है लेकिन बाकी के लोगों को कुछ भी नही दिखाई देता है,दूसरी कहानी सुनी है कि उल्लू रात को रोने वाले बच्चे की आवाज को हूबहू में नकल करने के बाद बोलता है,और जब तक वह रोने वाला बच्चा मर नही जाता है तब तक उल्लू उसी की आवाज में रोता रहता है। इसके बाद एक और बात सुनी कि उल्लू के अगर कोई पत्तर मार दिया जाये तो उल्लू उस पत्थर को उठाकर किसी पास के तालाब में गिरा देता है और जैसे जैसे वह पत्थर पानी में गलता जाता है उसी तरह से उसे पत्थर मारने वाला गल गल कर मर जाता है। यह एक विचित्र बात है कि उल्लू की शैतानी भरी बातों पर गांव के लोग काफ़ी विश्वास करते है,और अक्सर उल्लू को देखकर डरते भी है,लेकिन क्या उल्लू ऐसी हरकत करता है,यह भी एक समझने वाली बात है।
काठ का उल्लू भी एक बडी कहावत के रूप में उन लोगों के लिये कही जाती है जो कितनी ही बार समझाने पर भी नही समझते है,और जब उनसे पूंछा जाता है वे पहले जैसा ही जबाब देते है,इसलिये उन्हे बेवकूफ़ों की श्रेणी मे लेजाने के लिये काठ का उल्लू कहा जाता है। "पढत पढत पडरा भये लिखत लिखत भये काठ,पंडित जी ने पहाडा पूँछा सोलह दूनी आठ",यह कहावत का आधा रूप है,लेकिन इसके अन्दर उल्लू तो कहीं नही आया,उल्लू की आंखों में देखकर पता करना है कि वास्तव में वह उल्लू है तो ठीक है लेकिन काठ का उल्लू कहीं इसलिये तो नही कि वह पेडों की खोखर में निवास करता है,पेड की लकडी को भी काठ कहा जाता है।
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