दीपावली

क्या है लक्ष्मी पूजा (दीपावली)

भारत वर्ष देवभूमि है,इस धरती पर शक्तियों पर हमेशा से विश्वास किया जाता रहा है,शक्ति ही जीवन है,और जब शक्ति नही है तो जीवन भी निरर्थक है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां मानव जीवन के साथ चलती है,शक्तियों के तालमेल से ही व्यक्ति आगे बढता है,नाम कमाता है,प्रसिद्धि प्राप्त करता है,जब शक्ति पर विश्वास नही होता है तो जीवन भी हवा के सहारे की तरह से चलता जाता है,और जरा भी विषम परिस्थिति पैदा होती है तो जीवन के लिये संकट पैदा हो जाते हैं।

किस प्रकार की शक्तियों का होना जरूरी है

हर व्यक्ति के लिये तीन प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करना जरूरी होता है,पहली मानव शक्ति,दूसरी है भौतिक शक्ति,और तीसरी है देव शक्ति। मानव शक्ति भी दिखाई देती है,भौतिक शक्ति भी दिखाई देती है लेकिन देव शक्ति दिखाई नही देती है बल्कि अद्रश्य होकर अपना बल देती है।

कौन देवता किस शक्ति का मालिक है?

भगवान गणेशजी मानव शक्ति के प्रदाता है,माता लक्ष्मी भौतिक शक्ति की प्रदाता है और माता सरस्वती पराशक्ति यानी देव शक्ति की प्रदाता हैं,इन्ही तीन शक्तियों की पूजा का समय दीपावली के दिन प्राचीन काल से माना जाता रहा है।

दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को ही मनाया जाता है

भारत मे तीन ऋतुओं का समय मुख्य माना जाता है,सर्दी गर्मी और बरसात,सर्दी की ऋतु कार्तिक अमावस्या से चैत्र की अमावस्या तक,गर्मी की ऋतु चैत्र अमावस्या से श्रावण अमावस्या तक,और बरसात की ऋतु श्रावण अमावस्या से कार्तिक अमावस्या तक मानी जाती है।बरसात के बाद सभी वनस्पतियां आकाश से पानी को प्राप्त करने के बाद अपने अपने फ़लों को दीवाली तक प्रदान करती है,इन वनस्पतियों के भण्डारण के समय की शुरुआत ही दीपावली के दिन से की जाती है,आयुर्वेद में दवाइयां और जीवन वर्धक वनस्पतियों को पूरी साल प्रयोग करने के लिये इसी दिन से भण्डारण करने का औचित्य ऋग्वेद के काल से किया जाता है। इसके अलावा उपरोक्त तीनो शक्तियों का समीकरण इसी दिन एकान्त वास मे बैठ कर किया जाता है,मनन और ध्यान करने की क्रिया को ही पूजा कहते है,एक समानबाहु त्रिभुज की कल्पना करने के बाद,साधन और मनुष्य शक्ति के देवता गणेशजी,धन तथा भौतिक सम्पत्ति की प्रदाता लक्ष्मीजी,और विद्या तथा पराशक्तियों की प्रदाता सरस्वतीजी की पूजा इसी दिन की जाती है। तीनो कारणों का समीकरण बनाकर आगे के व्यवसाय और कार्य के लिये योजनाओं का रूप दिया जाता है,मानव शक्ति और धन तथा मानवशक्ति के अन्दर व्यवसायिक या कार्य करने की विद्या तथा कार्य करने के प्रति होने वाले धन के व्यय का रूप ही तीनों शक्तियों का समीकरण बिठाना कहा जाता है। जैसे साधन के रूप में फ़ैक्टरी का होना,धन के रूप में फ़ैक्टरी को चलाने की क्षमता का होना,और विद्या के रूप में उस फ़ैक्टरी की जानकारी और पैदा होने वाले सामान का ज्ञान होना जरूरी है,साधन विद्या और लक्ष्मी तीनो का सामजस्य बिठाना ही दीपावली की पूजा कहा जाता है।

विभिन्न राशियों के विभिन्न गणेश,लक्ष्मी,और सरस्वती रूप

संसार का कोई एक काम सभी के लिये उपयुक्त नही होता है,प्रकृति के अनुसार अलग अलग काम अलग अलग व्यक्ति के लिये लाभदायक होते है,कोई किसी काम को फ़टाफ़ट कर लेता है और कोई जीवन भर उसी काम को करने के बाद भी नही कर पाता है,इस बाधा के निवारण के लिये ज्योतिष के अनुसार अगर व्यक्ति अपने काम और विद्या के साथ अपने को साधन के रूप में समझना शुरु कर दे तो वह अपने मार्ग पर निर्बाध रूप से आगे बढता चला जायेगा,व्यक्ति को मंदिर के भोग,अस्पताल में रोग और ज्योतिष के योग को समझे बिना किसी प्रकार के कार्य को नही करना चाहिये।आम आदमी को लुभावने काम बहुत जल्दी आकर्षित करते है,और वह उन लुभावने कामों के प्रति अपने को लेकर चलता है,लेकिन उसकी प्रकृति के अनुसार अगर वह काम नही चल पाता है तो वह मनसा वाचा कर्मणा अपने को दुखी कर लेता है। आगे हम आपको साधन रूपी गणेशजी,धन रूपी लक्ष्मी जी और विद्या रूपी सरस्वतीजी का ज्ञान करवायेंगे,कि वह किस प्रकार से केवल आपकी ही प्रकृति के अनुसार आपके लिये काम करेगी,और किस प्रकार से विरोधी प्रकृति के द्वारा आप को नेस्तनाबूद करने का काम कर सकती है।
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घर की रीचार्जिंग

घर व्यवसाय स्थान धार्मिक स्थान के ईशान में गंदगी

ईशान दिशा में उगते सूर्य की किरणे सकारात्मक सोच देती है,सकारात्मकता के अन्दर अगर गंदगी मिलती है तो गंदे विचारों के प्रति सकारात्मक सोच मिलेगी,जैसे माता पिता की सेवा करना सकारात्मक अच्छी सोच है लेकिन इस सोच में गंदगी मिल जाती है तो माता पिता से क्या प्राप्त किया जा सकता है,कैसे प्राप्त किया जा सकता है इसके प्रति सोच शुरु हो जायेगी,जब माता पिता किसी बात को नही मानेगे तो सकारात्मक गंदी सोच में उनके साथ मारपीट और अत्याचार किये जायेंगे,जब वे किसी प्रकार से नही मानेंगे तो उनके पास हो भी साधन धन आदि है वे उनसे जबरदस्ती लिये जायेंगे,इसलिये कहा गया है कि निवास के ईशान में अगर कोई गंदगी है तो बच्चे माता पिता को जूते मारते है। इस गंदगी को अगर किसी धर्म स्थान के ईशान में इकट्ठा किया जाता है तो उस धर्म स्थान में बजाय पूजा पाठ या धार्मिक कामों के चरित्रहीनता का काम अधिक होता है,इसी प्रकार से जिस व्यवसाय स्थान फ़ैक्ट्री आदि के ईशान में अगर कोई गंदगी का स्थान है तो काम करने वाले लोग ही मालिक की बात नही मानते है और किसी न किसी प्रकार का कारण बनाकर मालिक को तन से या धन से या अन्य कारण से परेशान करने के लिये जिम्मेदार माने जाते है। ईशान में गंदगी घर की महिलाओं पर सबसे अधिक असर कारक होती है इसका कारण है कि वे ही सबसे अधिक घर के अन्दर निवास करती है,और इस असर के कारण उनके अन्दर दुश्चरित्रता का भी होना पाया जाता है,उनके विचार हमेशा भटकाव वाले रास्ते की तरफ़ जाते रहते है। इसी प्रकार से सोने वाले कमरे में जूते चप्पल और झाडू आदि ईशान दिशा में रखी गयी है तो सोने वाले व्यक्ति के दिमाग में उत्तेजना और गलत बातें आनी शुरु हो जायेंगी,महिलाओं के अन्दर बुरी भावना भरने लगेंगी। सकारात्मक इनर्जी मिलने के कारण जो भावनायें उनके अन्दर आयेंगी,उन भावनाओं को वे करके भी दिखा देंगी। मुझे याद है कि एक बार जिला मैनपुरी उत्तर प्रदेश के एक गांव उमरैन के गुप्ताजी अपने यहां मुझे लेकर गये थे,वे मुझे एरवा कटरा नामक स्थान पर भी लेकर गये,वहां उन्होने मुझे एक मकान की तरफ़ इशारा करके बताया कि इस घर के लोग कैसे होंगे ? मैने उस घर के बाहर ईशान में लेट्रिन बनी देखी तथा उसी से सटा दरवाजा था,साथ ही उस लेट्रिन के साथ ही कुट्टी काटने की मशीन लगाई गयी थी,एक तख्त दरवाजे के बायें यानी अग्नि दिशा की तरफ़ पडा था। मैने उस घर की स्त्री और पुरुषों को चरित्रहीन बताया,तथा यह भी बताया कि इस घर में जो भी लोग रहते होंगे वे धर्म के नाम पर चरित्रहीनता की तरफ़ जा रहे होंगे,घर के बुजुर्ग को सभी कुछ पता होने के बाद वह कुछ नही कर पा रहा होगा। गुप्ताजी ने मुझे धन्यवाद देते हुये कहा कि यह बात बिलकुल सही है,उस घर के मुखिया को लकवा मार गया है एक लडका है जो किसी महिला को भगाकर लाया है और घर में उस महिला ने चरित्रहीनता को फ़ैला रखा है,उसकी तीन बहिने जो कहने को तो स्कूल में पढाने का काम करती है लेकिन उनके बारे में कहा जाता है कि वे कभी किसी बदमाश के साथ तो कभी किसी बदमाश के साथ देखी जाती है।

घर की गंदगी को रखने का स्थान

मैने कहा है कि घर में चार वर्ण की चार दिशा है,ईशान को ब्राह्मण की दिशा,दक्षिण को क्षत्रिय की दिशा,उत्तर को वैश्य की दिशा और पश्चिम को शूद्र की दिशा कहा जाता है। घर की गंदगी को पश्चिम दिशा में रखना अच्छा उपाय है लेकिन जिनके दरवाजे पश्चिम दिशा में ही है उन्हे दरवाजे से निकलते वक्त बायीं तरफ़ गंदगी का स्थान बना लेना चाहिये,इसके अलावा अन्य दिशाओं की फ़ेसिंग वाले मकान मालिक या व्यवसाय स्थान के मालिक इसी दिशा में दक्षिण पश्चिम दिशा की तरफ़ गंदगी को रखने का स्थान बना सकते है। गंदगी को जिस दिशा या कोण में रखा जायेगा उस दिशा की सकारात्मक इनर्जी गंदगी से पूर्ण होने लगेगी। जैसे वायव्य में गंदगी को रखा गया है तो घर की प्रसिद्धि गंदी होने लगेगी,बनाये जाने वाले उत्पादन को बेचने में केवल इसलिये ही परेशानी आयेगी क्योंकि उस के प्रति लोगों के अन्दर गंदी भावना भरी होगी,उत्तर दिशा में गंदगी होने पर जो भी धन घर में आयेगा वह गंदगी से पूर्ण होगा यानी या तो उसे झूठ बोलकर लाया जा रहा होगा या फ़िर किसी प्रकार की गंदी बातें धन के प्रति की जाती होंगी,दक्षिण दिशा में गंदगी रखने के कारण जो भी घर की सुरक्षा है या जो भी घर में भोजन बनता है उसके अन्दर कोई ना कोई गंदी बात होगी,अथवा जो भी घर के सदस्य है वे किसी ना किसी कारण से खून के इन्फ़ेक्सन से जुडे होंगे या खून की इन्फ़ेक्सन की बीमारियां होंगी। अग्नि कोण में गंदगी होने से घर की महिलायें किसी न किसी प्रकार की प्रसव वाली बीमारियों से जुडी होंगी,नैऋत्य में गंदगी होने से घर की महिलायें किसी न किसी प्रकार की अचानक पैदा होने वाली बीमारी से जुडी होंगी,घर के बीच में गंदगी होने से जो भी घर के सदस्य होंगे वे किसी न किसी प्रकार से गंदे विचार सोचने वाले होंगे और जो भी रिस्तेदारी वाली बातें होंगी वे किसी न किसी कारण से आशंका या भ्रम की बजह से परेशान करने वाली होंगी।

घर की गंदगी के निस्तारण का समय

गहों के हिसाब से और सामान्य रूप से समझा जाये तो दिन का स्वामी सूर्य होता है और रात का स्वामी शनि को माना जाता है। सूर्य कर्म करने के लिये ताकत देता है और शनि कर्म करने के बाद थकान को उतारने का कारक होता है शनि सेवा वाले कामों को करता है और सूर्य निर्माण तथा प्रगति के काम करता है। जो लोग रात की नींद पूरी नही कर पाते है वे किसी न किसी बीमारी के कारण शनि के समय यानी बुढापे में भारी कष्ट उठाते है। अक्सर आज के भौतिक युग में लोग रात की पारियों में काम करते है और दिन के अन्दर अपनी नींद निकालने का काम करते है,उन लोगों को जब खून की गर्मी समाप्त होती है तो वे थकान महसूस करने लगते है और उनका शरीर किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। सूर्योदय से पहले शरीर और घर की गंदगी को निकालने का समय होता है,जिससे जो भी सूर्य की सकारात्मक किरणें जमीन की सतह से ऊंची होती हुयी ऊपर की तरफ़ बढे वे शरीर और घर के लिये सकारत्मकता को भर जायें। जो लोग सुबह सूर्योदय से पहले नहा धोकर सूर्य दर्शन का मानस बनाकर चलते है और सूर्य को जल आदि देते है वे घर के अन्दर सबसे अधिक बलशाली और समय पर काम को करने वाले माने जाते है,कहा जाता है कि जो लोग सुबह की सूर्य की किरणें प्राप्त कर लेते है वे दिन में कोई ऐसा काम जरूर करते है जो कोई जीवन में भी पूरा नही कर पाता है,उनके अन्दर अथाह इनर्जी इकट्ठी होती रहती है और वे किसी समय में अपना नाम उसी इनर्जी के सहारे बहुत ऊंचा बना लेते है। घर के अन्दर झाडू बर्तन पौंछा आदि सूर्योदय से पहले हो जाना चाहिये,बच्चे जल्दी जागकर अपने दिनचर्या वाले कामों को पूरा कर लेते है वे जल्दी से अपने को आगे बढा ले जाते है उनके शरीर को कोई बीमारी नही परेशान करती है और वे बिना कुछ अलग से प्रयास किये अधिक से अधिक नम्बरों से पास होते देखे गये है। घर की गंदगी सुबह सूर्योदय से पहले निकालने से रात के अन्दर शनि की गंदगी सुबह की सूर्य की सकारात्मक इनर्जी में नही मिलती है,और घर के अन्दर वातावरण सकारात्मक रहता है।

सुबह की पूजा पाठ

आप जिस भी धर्म से सम्बन्धित है और आपके जो भी भगवान है अगर आप सूर्योदय के समय भगवान की पूजा आराधना और ध्यान आदि लगा रहे है तो जरूर ही भगवान आपको उचित फ़ल प्रदान करेंगे,जो लोग सुबह जाकर मन्दिर में पूजा करते है उनकी इच्छा जरूर पूरी होती है। मैने इस कारण को खुद अंजवा कर देखा है,मुझे अक्सर बैठे रहने के कारण पेट की बीमारी होने लगी थी,खाना पचता नही था और मै सिर दर्द से परेशान रहा करता था,मैं रामेश्वरम की यात्रा पर गया,वहा सुबह ही मणि दर्शन होते है सुबह सात बजे के बाद मणि दर्शन बन्द कर दिये जाते है उनके दर्शन करने के लिये नहा धोकर सुबह पांच बजे ही तैयार होना पडता है जब कहीं जाकर मंदिर में लाइन लगाकर दर्शन होते है,वहां जाकर मैने सुबह ही नहा धोकर मणि दर्शन करने के लिये चला गया,उनके दर्शन करने के दौरान मैने मणि रूप में भगवान शिव से आराधना की मैं सिर दर्द से बहुत परेशान हूँ,अचानक होता है और इतना होता है कि लगता है कि सिर को फ़ोड डाला जाये,शिवजी ने मेरी सुनी और उस दिन के बाद मेरे सिर में दर्द नही हुआ,लेकिन एक बात और शुरु कर दी थी,कि मैं सुबह सूर्योदय से पहले ही नहा धोकर तैयार होकर पूजा पाठ में लग जाता हूँ चाहे मुझे कितना ही कम्पयूटर पर लिखना पडे।
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रामेश्वर धाम की यात्रा

कहते है कि काशी यात्रा तभी पूरी होती है जब रामेश्वर की पूजा और धनुष कोटि में समुद्र स्नान करें। इससे मालुम होता है कि काशी और रामेश्वर की महिमा समान है,मतलब भी यही निकलता है कि उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य भी दोनो धर्म स्थानों ने किया है। जितनी पुरानी रामायण है उतना ही पुराना रामेश्वर धाम है।

सेतु शब्द का अर्थ पुल से लिया जाता है। भगवान श्रीरामचन्द्र ने लंका जाते समय तथा समुद्र को पार करने के लिये इसी स्थान पर पुल बनाने के लिये धनुष से इशारा किया था। इसलिये समुद्र संगम का स्थान का नाम धनुष कोटि रखा गया,कुछ मतालम्बियों के अनुसार जब श्रीरामचन्द्र जी लंका की विजय प्राप्त करने के बाद वापस अयोध्या के लिये चले तो स्वर्ण की चाह से लोगों का लंका की तरफ़ भागना न हो इसलिये उन्होने अपने धनुष से इस स्थान के पुल को तोड दिया था,जो भी हो आज भी यह स्थान अपने में एक अनौखी मान्यता रखता है।धनुष कोटि में स्थान करने के बाद ही रामेश्वर के दर्शन करने की मान्यता है लेकिन लोग पहले रामेश्वर के दर्शन करने के बाद घूमने के उद्देश्य से ही धनुष कोटि जाते है।  धनुष कोटि में पितृ ऋण चुकाने और अस्थि विसर्जन का स्थान भी है।

रामेश्वर,रामलिंगम,रामनाथ आदि कई नामों से इस स्थान को पुकारा जाता है। इस स्थान पर राम से आराधित शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है। रामेश्वरम के बारे में यहाँ के निवासियों के अन्दर एक कहानी कही जाती है कि जब श्रीराम रावण का वध करने के बाद वापस इस स्थान पर आये तो गंधमादन पर्वत पर स्थित तपस्वियों ने राम पर ब्रह्म हत्या जैसे दोष को बताया,इस पाप से मुक्त होने के लिये शिवलिंग की स्थापना करने के बाद उसकी पूजा अर्चना करने के बाद इस दोष से मुक्ति का उपाय बताया। लेकिन रेत से शिवलिंग की स्थापना कैसे की जाये,उसी समय हनुमानजी को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने के लिये हनुमान जी को भेजा गया। ब्राह्मणों के द्वारा शिवलिग की स्थापना का मुहूर्त निकले जाने से बचने के लिये जल्दी शिवलिंग की स्थापना के लिये कहा गया,उसी समय श्रीसीता जी ने रेत से ही शिवलिंग को बनाकर उसकी स्थापना कर दी। कुछ समय बाद जब हनुमान जी कैलास से शिवलिंग को लेकर आये तो वहाँ रेत के शिवलिंग को स्थापित दखकर उन्हे गुस्सा आया,श्रीसीताजी ने कहा कि इस रेत से बने शिवलिंग को हटा सको तो हटा दो,हनुमान जी ने पूरी ताकत से उस रेत से बने शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया लेकिन उसे हटा नही पाये,उनके लाये गये शिवलिंग को बाद में मुख्य शिवलिंग की बायीं तरफ़ स्थापित कर दिया गया। आज भी हनुमान जी के लाये शिवलिंग की पूजा पहले होती है उसके बाद ही मुख्य शिवलिंग की पूजा होती है। भारत के द्वादस शिवलिंगों में यह एक शिवलिंग माना जाता है।

रामेश्वर एक छोटा द्वीप है,यह भारत की भूमि से हटकर दक्षिण-पूर्व दिशा (अग्निकोण) में स्थापित है। मण्डपम और पम्बन के बीच में समुद्र में पुल बनाकर रेलवे और सडक मार्ग से इस द्वीप को जोडा गया है। समुद्र के अन्दर से रेलवे मार्ग से गुजरने पर एक अजीब सी अनुभूति होती है,इस रेलवे पुल को बीच से जहाजों के आने और जाने के समय खोला और बन्द भी किया जाता है। रामेश्वरम से धनुष कोटि के लिये भी रेलवे लाइन बिछायी गयी थी,सन 1964 ई. में आये हुये समुद्री जलजले से धनुष कोटि और बिछायी गयी रेलवे लाइन तथा रामेश्वरम से धनुष कोटि के बीच में बनाये गये सभी रेलवे स्टेशन नष्ट हो गये थे,साथ ही लगभग बीस हजार लोगों की मौत भी उस जलजले से हुयी थी।

रामेश्वरम के निवासियों का जीवन मंदिर और आने वाले यात्रियों पर अधिक निर्भर है। इसके अलावा भी तमिलनाडु सरकार ने यहाँ के निवासियों के लिये काफ़ी सुविधायें दी है। आने जाने वाले यात्रियों के लिये चेन्नई से रामेश्वरम के लिये सीधी रेलगाडियां चलाईं गयी है,इसके अलावा प्राइवेट यात्रा कम्पनियां भी अपनी अपनी सेवाये बसों और कारों से देती है। सुबह और शाम को चेन्नई से कोयमबेट नामक अन्तर्राजीय बस अड्डा से बसे सीधे रामेश्वरम को मिलती है। रामेश्वरम के लिये उक्त बस अड्डा से मदुरै और त्रिचनापल्ली से होकर भी यात्रा की जाती है। मदुरै और त्रिचनापल्ली से वातानुकूलित बसे भी तमिलनाडु सरकार ने चला रखीं है। वाराणसी के लिये भी रेलगाडी सीधी चलती है। रामेश्वरम की बनावट भगवान विष्णु के हाथ में स्थित दक्षिणावर्ती शंख के रूप में होने से भी अपनी मान्यता रखती है।

मन्दिर में देखे जाने वाले स्थान

मंदिर में देखने लायक स्थानों में सबसे पहले मुख्य शिवलिंग के सामने नंदी जी की वृहद मूर्ति है,नन्दी जी के ठीक सामने खडे होने पर दाहिनी तरफ़ विघ्नेश्वर गणेश जी की मूर्ति है,इनकी सूंड दक्षिणा वर्ती है,सबसे पहले इन्ही की पूजा होती है और शिवजी के दर्शन के लिये अनुज्ञा लेनी पडती है,उसके बाद बायी तरफ़ कार्तिकेयजी की मूर्ति है,जिन्हे दक्षिण भारत में सुब्रह्मण्य स्वामी के नाम से जाना जाता है,मुरु भगवान के नाम से पुकारे जाने वाले कार्तिकेय जी की पूजा करने से उत्तर भारत की महिलायें डरती है,कारण वे हमेशा ही ब्रह्मचारी के रूप में अपनी उपस्थिति देते है।

रामनाथ स्वामी मंदिर

नन्दी के सामने ही श्री सीताजी के द्वारा बनाया गया शिवलिंग है,श्रीरामचन्द्रजी के हाथों के द्वारा पूजित इस शिवलिंग की महत्ता सबसे अधिक है,इसी मंदिर में रामदरबार की स्थापना भी है,हनुमानजी अपने हाथों से इस शिवलिंग को पकडे खडे दिखाये गये है। सुग्रीव के द्वारा भी विनीत भाव में इस लिंग को पकडे दिखाया गया है,साथ ही ऊपर के तीन मण्डपों में हनुमान,अगस्त्य ऋषि और गन्धमादन लिंग की भी स्थापना है।

माता पार्वती का मंदिर

मंदिर के दाहिनी तरफ़ माता पार्वती का मन्दिर है,इसके अन्दर जाने से पहले अष्टल्क्ष्मी की मूर्तिया काले रंग में बनी है। इसी मंदिर में श्रीचक्र की स्थापना है,माता पार्वती के पीछे दाहिनी तरफ़ संतान गणपति है तथा सामने नन्दी जी स्थापित है लोग अपनी अपनी कामनायें इनके कान में कह कर जाते है और पूर्ण होने पर उनके लिये प्रसाद आदि चढाने आते है। पार्वती जी के बायीं तरफ़ शयन गृह है जहां रोजाना शाम को रामनाथ मंदिर से सोने की मूर्ति को देवी की मूर्ति के बगल में झूले पर रखा जाता है और सुबह जल्दी उन्हे लेजाकर वापस रामनाथ मंदिर में रखा जाता है। यहीं विशालाक्षी माता का विग्रह भी पूजा के लिये रखा गया है। सप्त मातृका और नवनिधि का पूजन भी यहीं होता है।

इसके अलावा एकादश रुद्र का स्थान इसी मंदिर में है और मुख्य मंदिर के वायव्य में इनका स्थान दिया गया है। यही भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन का और गरुड जी को द्वारपाल के रूप में तथा माता लक्ष्मी को शयन के समय उनके पैरों के पास बैठा दिखाया गया है।

बाइस कुंडो के स्नान में सभी तीर्थों को सम्मिलित किया गया है। सबसे पहले महालक्ष्मी तीर्थ है उसके बाद सावित्री गायत्री और सरस्वती तीर्थ है। महालक्ष्मी तीर्थ में स्नान करने के बाद कुबेर ने नव निधियों को पाया था,यही तपस्या करने के बाद धर्मपुत्र ने राजसूयज्ञ के लिये धन को प्राप्त किया था। इसके बाद माधव तीर्थ है,जिसके अन्दर गन्धमादन कवाक्ष कव नल नील तीर्थ है,इन सभी तीर्थों के स्नान करने के दौरान एक सौ आठ शिवलिंग के दर्शन होते है इनके अन्दर विभिन्न आकार की जललहरी विभिन प्रकार के लोगों के जीवन के बारे में सूचना देतीं है। इसके बाद चक्र तीर्थ है जहां जाने अन्जाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है तथा शंख तीर्थ में जाने अन्जाने से धोखा होने या छलकपट होने से मिले पाप से मुक्ति मिलती है। कहते है इस तीर्थ के स्नान के बाद अगर कोई फ़िर भी जानबूझ कर छल कपट करता है तो उसे शरीर की हड्डियों के गलने का रोग पैदा हो जाता है,और वह सूख कर शंख जैसा ही दिखाई देने लगता है। ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ में स्नान करने के बाद मानव हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है,कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने रावण की हत्या से दोष मुक्ति इसी तीर्थ में स्नान करने से प्राप्त की थी। इस तीर्थ में स्नान करने से पहले मानसिक संकल्प लेना पडता है कि जानबूझ कर किसी प्रकार से मनसा वाचा कर्मणा मनुष्य की हत्या नही की जायेगी। इसके बाद सूर्य तीर्थ में स्नान किया जाता है जिससे पिता के प्रति किसी प्रकार के ऋण की मुक्ति मिलती है तथा चन्द्र तीर्थ में स्नान करने से माता और बडी बहिन के प्रति किसी भी ऋण से मुक्ति मिलती है। गंगा तीर्थ और यमुना तीर्थ भी अपनी अपनी मान्यता रखते है। गया तीर्थ भी इसी के अन्दर है इन सब तीर्थों में स्नान करने के बाद गर्मी वाले रोग पागलपन शीत रोग मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। साध्यामृत तीर्थ में स्नान करने के लिये स्नान करवाने वाले व्यक्ति से कहना पडता है,इस तीर्थ का पानी अन्य तीर्थों से साफ़ सुथरा रहता है। सर्वतीर्थ में स्नान करने से सभी जाने अन्जाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है। इस तीर्थ की स्थापना जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने की थी,साथ ही मान्यता है कि सबसे पहले इस तीर्थ की स्थापना सुचरित्री नामक ऋषि ने सभी जलदेवताओं को बुलाकर इस तीर्थ में स्थापित किया था। आज भी मान्यता है कि इस तीर्थ के स्नान को जाते समय अगर जललहरी से अपने आप जल गिरने लगे तो इस तीर्थ का पुण्य मिलने में कमी नही रहती है। कोटि तीर्थ के जल से ही शिवलिंग को स्नान करवाया जाता है। सेतु माधव तीर्थ के जल से स्वर्ण कितना भी काला हो वह अपने आप चमकने लगता है। सभी तीर्थों का जल स्नान करते वक्त पीने से कालान्तर के लिये शरीर में सभी पानी अपना अपना कार्य करते है,साथ ही सभी तीर्थों का जल अलग अलग स्वाद का मिलता है।