रामेश्वर धाम की यात्रा

कहते है कि काशी यात्रा तभी पूरी होती है जब रामेश्वर की पूजा और धनुष कोटि में समुद्र स्नान करें। इससे मालुम होता है कि काशी और रामेश्वर की महिमा समान है,मतलब भी यही निकलता है कि उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य भी दोनो धर्म स्थानों ने किया है। जितनी पुरानी रामायण है उतना ही पुराना रामेश्वर धाम है।

सेतु शब्द का अर्थ पुल से लिया जाता है। भगवान श्रीरामचन्द्र ने लंका जाते समय तथा समुद्र को पार करने के लिये इसी स्थान पर पुल बनाने के लिये धनुष से इशारा किया था। इसलिये समुद्र संगम का स्थान का नाम धनुष कोटि रखा गया,कुछ मतालम्बियों के अनुसार जब श्रीरामचन्द्र जी लंका की विजय प्राप्त करने के बाद वापस अयोध्या के लिये चले तो स्वर्ण की चाह से लोगों का लंका की तरफ़ भागना न हो इसलिये उन्होने अपने धनुष से इस स्थान के पुल को तोड दिया था,जो भी हो आज भी यह स्थान अपने में एक अनौखी मान्यता रखता है।धनुष कोटि में स्थान करने के बाद ही रामेश्वर के दर्शन करने की मान्यता है लेकिन लोग पहले रामेश्वर के दर्शन करने के बाद घूमने के उद्देश्य से ही धनुष कोटि जाते है।  धनुष कोटि में पितृ ऋण चुकाने और अस्थि विसर्जन का स्थान भी है।

रामेश्वर,रामलिंगम,रामनाथ आदि कई नामों से इस स्थान को पुकारा जाता है। इस स्थान पर राम से आराधित शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है। रामेश्वरम के बारे में यहाँ के निवासियों के अन्दर एक कहानी कही जाती है कि जब श्रीराम रावण का वध करने के बाद वापस इस स्थान पर आये तो गंधमादन पर्वत पर स्थित तपस्वियों ने राम पर ब्रह्म हत्या जैसे दोष को बताया,इस पाप से मुक्त होने के लिये शिवलिंग की स्थापना करने के बाद उसकी पूजा अर्चना करने के बाद इस दोष से मुक्ति का उपाय बताया। लेकिन रेत से शिवलिंग की स्थापना कैसे की जाये,उसी समय हनुमानजी को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने के लिये हनुमान जी को भेजा गया। ब्राह्मणों के द्वारा शिवलिग की स्थापना का मुहूर्त निकले जाने से बचने के लिये जल्दी शिवलिंग की स्थापना के लिये कहा गया,उसी समय श्रीसीता जी ने रेत से ही शिवलिंग को बनाकर उसकी स्थापना कर दी। कुछ समय बाद जब हनुमान जी कैलास से शिवलिंग को लेकर आये तो वहाँ रेत के शिवलिंग को स्थापित दखकर उन्हे गुस्सा आया,श्रीसीताजी ने कहा कि इस रेत से बने शिवलिंग को हटा सको तो हटा दो,हनुमान जी ने पूरी ताकत से उस रेत से बने शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया लेकिन उसे हटा नही पाये,उनके लाये गये शिवलिंग को बाद में मुख्य शिवलिंग की बायीं तरफ़ स्थापित कर दिया गया। आज भी हनुमान जी के लाये शिवलिंग की पूजा पहले होती है उसके बाद ही मुख्य शिवलिंग की पूजा होती है। भारत के द्वादस शिवलिंगों में यह एक शिवलिंग माना जाता है।

रामेश्वर एक छोटा द्वीप है,यह भारत की भूमि से हटकर दक्षिण-पूर्व दिशा (अग्निकोण) में स्थापित है। मण्डपम और पम्बन के बीच में समुद्र में पुल बनाकर रेलवे और सडक मार्ग से इस द्वीप को जोडा गया है। समुद्र के अन्दर से रेलवे मार्ग से गुजरने पर एक अजीब सी अनुभूति होती है,इस रेलवे पुल को बीच से जहाजों के आने और जाने के समय खोला और बन्द भी किया जाता है। रामेश्वरम से धनुष कोटि के लिये भी रेलवे लाइन बिछायी गयी थी,सन 1964 ई. में आये हुये समुद्री जलजले से धनुष कोटि और बिछायी गयी रेलवे लाइन तथा रामेश्वरम से धनुष कोटि के बीच में बनाये गये सभी रेलवे स्टेशन नष्ट हो गये थे,साथ ही लगभग बीस हजार लोगों की मौत भी उस जलजले से हुयी थी।

रामेश्वरम के निवासियों का जीवन मंदिर और आने वाले यात्रियों पर अधिक निर्भर है। इसके अलावा भी तमिलनाडु सरकार ने यहाँ के निवासियों के लिये काफ़ी सुविधायें दी है। आने जाने वाले यात्रियों के लिये चेन्नई से रामेश्वरम के लिये सीधी रेलगाडियां चलाईं गयी है,इसके अलावा प्राइवेट यात्रा कम्पनियां भी अपनी अपनी सेवाये बसों और कारों से देती है। सुबह और शाम को चेन्नई से कोयमबेट नामक अन्तर्राजीय बस अड्डा से बसे सीधे रामेश्वरम को मिलती है। रामेश्वरम के लिये उक्त बस अड्डा से मदुरै और त्रिचनापल्ली से होकर भी यात्रा की जाती है। मदुरै और त्रिचनापल्ली से वातानुकूलित बसे भी तमिलनाडु सरकार ने चला रखीं है। वाराणसी के लिये भी रेलगाडी सीधी चलती है। रामेश्वरम की बनावट भगवान विष्णु के हाथ में स्थित दक्षिणावर्ती शंख के रूप में होने से भी अपनी मान्यता रखती है।

मन्दिर में देखे जाने वाले स्थान

मंदिर में देखने लायक स्थानों में सबसे पहले मुख्य शिवलिंग के सामने नंदी जी की वृहद मूर्ति है,नन्दी जी के ठीक सामने खडे होने पर दाहिनी तरफ़ विघ्नेश्वर गणेश जी की मूर्ति है,इनकी सूंड दक्षिणा वर्ती है,सबसे पहले इन्ही की पूजा होती है और शिवजी के दर्शन के लिये अनुज्ञा लेनी पडती है,उसके बाद बायी तरफ़ कार्तिकेयजी की मूर्ति है,जिन्हे दक्षिण भारत में सुब्रह्मण्य स्वामी के नाम से जाना जाता है,मुरु भगवान के नाम से पुकारे जाने वाले कार्तिकेय जी की पूजा करने से उत्तर भारत की महिलायें डरती है,कारण वे हमेशा ही ब्रह्मचारी के रूप में अपनी उपस्थिति देते है।

रामनाथ स्वामी मंदिर

नन्दी के सामने ही श्री सीताजी के द्वारा बनाया गया शिवलिंग है,श्रीरामचन्द्रजी के हाथों के द्वारा पूजित इस शिवलिंग की महत्ता सबसे अधिक है,इसी मंदिर में रामदरबार की स्थापना भी है,हनुमानजी अपने हाथों से इस शिवलिंग को पकडे खडे दिखाये गये है। सुग्रीव के द्वारा भी विनीत भाव में इस लिंग को पकडे दिखाया गया है,साथ ही ऊपर के तीन मण्डपों में हनुमान,अगस्त्य ऋषि और गन्धमादन लिंग की भी स्थापना है।

माता पार्वती का मंदिर

मंदिर के दाहिनी तरफ़ माता पार्वती का मन्दिर है,इसके अन्दर जाने से पहले अष्टल्क्ष्मी की मूर्तिया काले रंग में बनी है। इसी मंदिर में श्रीचक्र की स्थापना है,माता पार्वती के पीछे दाहिनी तरफ़ संतान गणपति है तथा सामने नन्दी जी स्थापित है लोग अपनी अपनी कामनायें इनके कान में कह कर जाते है और पूर्ण होने पर उनके लिये प्रसाद आदि चढाने आते है। पार्वती जी के बायीं तरफ़ शयन गृह है जहां रोजाना शाम को रामनाथ मंदिर से सोने की मूर्ति को देवी की मूर्ति के बगल में झूले पर रखा जाता है और सुबह जल्दी उन्हे लेजाकर वापस रामनाथ मंदिर में रखा जाता है। यहीं विशालाक्षी माता का विग्रह भी पूजा के लिये रखा गया है। सप्त मातृका और नवनिधि का पूजन भी यहीं होता है।

इसके अलावा एकादश रुद्र का स्थान इसी मंदिर में है और मुख्य मंदिर के वायव्य में इनका स्थान दिया गया है। यही भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन का और गरुड जी को द्वारपाल के रूप में तथा माता लक्ष्मी को शयन के समय उनके पैरों के पास बैठा दिखाया गया है।

बाइस कुंडो के स्नान में सभी तीर्थों को सम्मिलित किया गया है। सबसे पहले महालक्ष्मी तीर्थ है उसके बाद सावित्री गायत्री और सरस्वती तीर्थ है। महालक्ष्मी तीर्थ में स्नान करने के बाद कुबेर ने नव निधियों को पाया था,यही तपस्या करने के बाद धर्मपुत्र ने राजसूयज्ञ के लिये धन को प्राप्त किया था। इसके बाद माधव तीर्थ है,जिसके अन्दर गन्धमादन कवाक्ष कव नल नील तीर्थ है,इन सभी तीर्थों के स्नान करने के दौरान एक सौ आठ शिवलिंग के दर्शन होते है इनके अन्दर विभिन्न आकार की जललहरी विभिन प्रकार के लोगों के जीवन के बारे में सूचना देतीं है। इसके बाद चक्र तीर्थ है जहां जाने अन्जाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है तथा शंख तीर्थ में जाने अन्जाने से धोखा होने या छलकपट होने से मिले पाप से मुक्ति मिलती है। कहते है इस तीर्थ के स्नान के बाद अगर कोई फ़िर भी जानबूझ कर छल कपट करता है तो उसे शरीर की हड्डियों के गलने का रोग पैदा हो जाता है,और वह सूख कर शंख जैसा ही दिखाई देने लगता है। ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ में स्नान करने के बाद मानव हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है,कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने रावण की हत्या से दोष मुक्ति इसी तीर्थ में स्नान करने से प्राप्त की थी। इस तीर्थ में स्नान करने से पहले मानसिक संकल्प लेना पडता है कि जानबूझ कर किसी प्रकार से मनसा वाचा कर्मणा मनुष्य की हत्या नही की जायेगी। इसके बाद सूर्य तीर्थ में स्नान किया जाता है जिससे पिता के प्रति किसी प्रकार के ऋण की मुक्ति मिलती है तथा चन्द्र तीर्थ में स्नान करने से माता और बडी बहिन के प्रति किसी भी ऋण से मुक्ति मिलती है। गंगा तीर्थ और यमुना तीर्थ भी अपनी अपनी मान्यता रखते है। गया तीर्थ भी इसी के अन्दर है इन सब तीर्थों में स्नान करने के बाद गर्मी वाले रोग पागलपन शीत रोग मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। साध्यामृत तीर्थ में स्नान करने के लिये स्नान करवाने वाले व्यक्ति से कहना पडता है,इस तीर्थ का पानी अन्य तीर्थों से साफ़ सुथरा रहता है। सर्वतीर्थ में स्नान करने से सभी जाने अन्जाने में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है। इस तीर्थ की स्थापना जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने की थी,साथ ही मान्यता है कि सबसे पहले इस तीर्थ की स्थापना सुचरित्री नामक ऋषि ने सभी जलदेवताओं को बुलाकर इस तीर्थ में स्थापित किया था। आज भी मान्यता है कि इस तीर्थ के स्नान को जाते समय अगर जललहरी से अपने आप जल गिरने लगे तो इस तीर्थ का पुण्य मिलने में कमी नही रहती है। कोटि तीर्थ के जल से ही शिवलिंग को स्नान करवाया जाता है। सेतु माधव तीर्थ के जल से स्वर्ण कितना भी काला हो वह अपने आप चमकने लगता है। सभी तीर्थों का जल स्नान करते वक्त पीने से कालान्तर के लिये शरीर में सभी पानी अपना अपना कार्य करते है,साथ ही सभी तीर्थों का जल अलग अलग स्वाद का मिलता है।

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