उल्लू की लकडी

बहुत पुरानी बात है,एक व्यक्ति को कोई काम धन्धा नही मिल रहा था,वह बेचारा मारा फ़िर रहा था,कोई उसे खाने को नही देता रहने के लिये मना कर देता,किसी भी काम को करने के लिये कोई भी हाँ नही करता। थक हार कर और बहुत ही गरीबी में वह अपना जीवन जीने के लिये बेवस था। उसने सुना कि पास के गाँव मे एक बहुत पहुँचे महात्मा आये है और वे सभी की समस्या का समाधान कर देते है,वह व्यक्ति भी उन महात्मा के पास गया और अपने दुखो का बखान करने लगा। महात्मा जी द्रवित हो गये और उसे एकान्त मे लेजाकर इक सुन्दर सी लकडी दी,और कहा कि यह उल्लू की लकडी है,बडे जतन से इसे बनाया है,अभी तक मैं इससे ही काम लेता रहा तुम भी अब इससे काम लो,इसे जिसके सिर पर घुमा दोगे वह तुम्हारे अनुसार काम करने लगेगा और तुम्हारी मन की मुराद पूरी होने लगेगी। अन्धा क्या चाहे दो आँखें,उसने उस लकडी को प्रयोग करने का तरीका महात्मा जी से जान लिया था और वह खुशी खुशी अपने घर वापस आया।
उल्लू की लकडी अपने समय अपना रूप बदल लेती थी,जिस समय जो भी काम होता उसी के अनुसार वह अपना रूप बदल कर काम करना शुरु कर देती थी। वह व्यक्ति उस लकडी को लेकर सबसे पहले अपने राजा के दरबार में गया,वहाँ उस लकडी ने एक अप्सरा का रूप धारण कर लिया और राजा के सामने जाकर अपना नृत्य बहुत ही मोहक मुद्रा में प्रस्तुत करना शुरु कर दिया,राजा ने अपने दरबार में कभी इस प्रकार का नृत्य नही देखा था सभी दरबारी वाह वाह के नारे लगाने लगे और कितने ही उस नृत्य को देखकर मदहोसी की हालत में चले गये,उस अप्सरा से राजा ने पुरस्कार के लिये कहा तो उसने पुरस्कार के रूप में राजा से अपने राजमहल में अपने अंतरंग स्थान में रहने के लिये एक दिन की मोहलत मांगी। राजा को भी उस अप्सरा के मद भरे यौवन को भोगने का मोह हो गया उसने इजाजत देदी। अप्सरा राजमहल में राजा के अन्तरंग स्थान में पहुंच गयी,राजा जब उसके रूप में मदहोस हुआ तो उसने उस मदहोसी की हालत में राजा से अपने राजपाट को छोड कर उसके साथ चलने को कहा और राज्य का भार उस आदमी को देने को कहा जो लकडी को महात्मा से राजदरबार में लेकर आया था। राजा सहर्ष तैयार हो गया और राज्य के भार को उस आदमी को सौंप कर उस अप्सरा रूपी लकडी के साथ महल से चल दिया। वह अप्सरा रूपी लकडी राजा को अपने मोह जाल में फ़ांस कर घने जंगल में ले गयी और राजा को गहरे कुँये में धक्का देकर गिरा दिया,और वापस फ़िर लकडी का भेष बनाकर उसी राज्य करने वाले व्यक्ति के पास आ गयी। वह आदमी मजे से राज करने लगा,उसे जो भी मुशीबत आती वह उस उल्लू की लकडी से कह कर मुशीबत को दूर कर लेता। उस आदमी को एक ही चिन्ता खाये जा रही थी कि अगर वह महात्मा किसी तरह से मिल गया तो वह अपनी इस उल्लू की लकडी को वापस ले जायेगा। उसने उस उल्लू की लकडी को उस महात्मा को भी समाप्त करने का काम दिया,वह लकडी उस महात्मा को खोजते हुये घने जंगल में पहुंची,महात्मा समझ गये थे कि वह आदमी अपनी करतूत से उस लकडी से ही उन्हे समाप्त करने की कोशिश करेगा,इसलिये उन्होने अपनी तपस्या करने के स्थान में अपने चारों तरफ़ आग जला रखी थी,उस लकडी ने पनिहारिन का वेष बनाया और कुंये से जल लाकर वह जलती हुयी आग को बुझाने लगी,वह जितनी आग को बुझाती उतनी ही आग महात्मा और जला लेते,महात्मा का काम आग को जलाने का हो गया और उस लकडी का काम पानी से आग को बुझाने का हो गया,यह क्रम लगातार चलने से उस आदमी को चिन्ता हुयी कि आखिर लकडी को इतना समय क्यों लग रहा है,वह अपनी फ़ौज को लेकर लकडी को खोजता हुआ उसी जंगल में जा पहुंचा जहाँ महात्मा जी और उस लकडी में पानी और आग का युद्ध चल रहा था। लकडी पनिहारिन के वेष में पानी ला कर आग बुझा रही थी और महात्मा जी आग को लगातार जलाने के लिये जंगल की लकडियों का बन्दोबस्त कर रहे थे। वह व्यक्ति पहले महात्मा जी के पास पहुँचा और उनसे बहुत सारी लकडियों को काटने का कारण पूँछा,महात्मा जी कहा कि वह बहुत सारी उल्लू की लकडियां बनाने का प्रयास कर रहे है और एक पनिहारिन लगातार लकडियां बनाने से रोकने के लिये पानी से आग को बुझाये जा रही है,उस राजा बने व्यक्ति ने उस पनिहारिन जो खुद उल्लू की लकडी थी को अपने सेनापति से पकड कर लाने को आदेश दिया,वह सेनापति जैसे ही उस लकडी जो पनिहारिन बनी थी को पकडने पहुंचा,उस लकडी ने अपने सम्मोहन से अपने बस में कर लिया और उस सेनापति से उस आदमी और उस महात्मा को मारने के लिये राजी कर लिया,सेनापति ने अपने सैनिकों को आदेश दिया,उन सैनिकों ने उस राजा बने आदमी और उस महात्मा को खत्म कर दिया,वह उल्लू की लकडी और सेनापति वापस अपने राज्य में आकर मजे से रहने लगे। सेनापति जो राजा बन गया था की रानी को उस पनिहारिन से जलन होने लगी,उसका कारण था कि वह सेनापति बना राजा हर काम को उसी लकडी रूपी पनिहारिन से पूँछ कर ही करता था और उसे दरकिनार कर दिया था। सेनापति ने उस लकडी का भेद अपनी पत्नी को पहले ही बता दिया था,उसकी पत्नी ने अपनी चाल चली और एक दिन उसी पनिहारिन का रूप बनाकर राजा से कहा कि तुम्हारी पत्नी मेरा रूप बनाकर तुम्हारे सामने आज रात को आयेगी,उसे पकड कर सिर के बाल काट लेना,राजा ने वही काम किया,जैसे ही उस पनिहारिन के वेष वाली उल्लू की लकडी के बाल काटे गये उसकी सभी शक्ति बरबाद हो गयी,राजा और रानी के सामने वह केवल पनिहारिन ही बन कर रह गयी,इस तरह से एक छोटी सी भूल उसकी सभी शक्तियों को बरबाद कर गयी।

1 comment:

Unknown said...

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