एक करोड बनाम नौ करोड

कभी राजनीति वाली बात आती है तो धरती की सीमाओं को बांट कर देशवाद फ़िर प्रान्त की बात आती है तो प्रान्तवाद फ़िर जिलावाद फ़िर तहसीलवाद ब्लाकवाद शहर है तो मुहल्लावाद और घर के अन्दर हिस्सावाद मेरे ख्याल से सृष्टि के शुरु होने से वाद का चलन शुरु हो गया होगा। इस वाद के कारण ही आज हर आदमी के अन्दर कोई न कोई वाद का चलना पाया जाता है। यह वाद और कोई नही चलाता है बल्कि हमारे अन्दर के बैठे मुफ़्तखोर ही इस वाद का रूप प्रकट करते है। हमारे शरीर के अन्दर हमारी कुल दस करोड कोशिकाओं ही अपनी कोशिकायें होती है बाकी की नौ करोड कोशिकायें मुफ़्तखोर कोशिकाओं के रूप में हमारे शरीर मे अपना निवास करती है। जब भी उनकी चलने लगती है तो अपनी खुद की कोशिकाओं को अपनी मानसिक स्थिति को  चलान से मजबूर कर देती है और खुद की चलाने लगती है उसी समय से दिमाग वाद को प्रकट करने लगता है। इस वाद के कारण ही शरीर कई प्रकार के विवादों में फ़ंस कर दुख प्राप्त करने लगता है और हम यह कहने लगते है कि यह आखिर में वाद आया कहां से। हमने अपने को हर प्रकार से इन मुफ़्तखोरों के चंगुल में फ़ंस कर बांध रखा है। कभी हम अपने धर्म में बंध गये है,हमे पता होता है कि हम इस संसार में आये है और जैसे हमारे से पहले आने वाले चले गये है और हमे भी चले जाना है लेकिन यह मुफ़्तखोर हमें अहम से पूर्ण कर देते है और हमे हमारे मुख्य उद्देश्य से भटकाकर दूर कर देते है,इसके साथ ही हमारे अन्दर एक प्रकार का बंधन पैदा हो जाता है और उस बंधन के कारण हम जो हमें नही करना होता है उसे भी करने लगते है और जो करना है उसे भूल जाते है। बात भी सही है कि हमारे से नौ गुने परजीवी हमारा ही खाकर हमे ही भटकाने की नीयत से कुछ भी कर सकते है और जब दस लोग एक साथ बैठ जाते है और उनके अन्दर कोई अनीति वाली बात होती है तो नौ एक को बरबाद कर अपनी संख्या को नौ में ही रखना चाहते है।
यह सीमा विवाद भी एक तरह से व्यक्ति के लिये फ़लदायी भी है और नुकसान दायक भी है। इस कारण को वैसे ही समझा जा सकता है जैसे सूर्य के सामने रहकर प्रकाश को नही समझ पाते है लेकिन जैसे ही सूर्य छुपता है प्रकाश का महत्व समझ मे आजाता है। सूर्य के छुपने के बाद हम प्रकाश की व्यवस्था करते है और जहां तक प्रकाश जाता है वहां तक का तो सब कुछ समझ मे आता है लेकिन जहां अन्धेरा होता है वह स्थान केवल अंदाज से ही समझा जा सकता है। अन्धेरे मे अन्धेरे को नही देखा जा सकता है तो प्रकाश मे प्रकाश को नही देखा जा सकता है। कम और अधिक प्रकाश तथा अन्धेरे को बदलाव के रूप मे देखते है और वही बदलाव हमे रंगो के रूप मे समझ मे आता है। यह रंग की परिभाषा के रूप मे समझा जा सकता है। आपके दिमाग में शायद इस बात का ज्ञान नही था कि रंग की परिभाषा क्या होती है तो आज भदौरियाजी ने आपके सामने रंग की परिभाषा का रूप भी रख दिया है। यह रंग की परिभाषा ही वाद का कारक है और इस वाद को समझने के लिये मानसिक विवाद की भी जरूरत है। जब तक प्रकाश में अन्धेरे का कारण नही होता है आपको प्रत्यक्ष दर्शन भी नही हो सकता है जैसे आप इस ब्लाग में जो भी पढ रहे है वह प्रकाश में अन्धेरे की उपस्थिति से ही सम्भव है अगर पूरा प्रकाश ही प्रयोग में लाया जाता है तो आप स्क्रीन को साफ़ और क्लीयर ही देख सकते थे अक्षर जो काले रंग का लिखा हुआ है वह आपको दिखाई ही नही देता,तो समझ मे आगया होगा कि प्रकाश में अन्धेरे का और अन्धेरे मे प्रकाश का कितना महत्व है। अब आपक अन्दर यह भी प्रश्न उत्पन्न हो रहा होगा कि आखिर मे इस प्रकाश और अन्धेरे का महत्व सीमा विवाद और घर के मुफ़्त खोरो से कैसे जुडा है।
जो लोग अपने को उन्नत मानते है और अपने समाझ धर्म मर्यादा को अपनी सीमा तक सुरक्षित रखना चाहते है वे नही चाहते है कि उनकी मर्यादा धर्म और समाज के साथ उनके खुद के कानून जिनके अन्दर वे बंधे है और बंधे रहकर ही जीना चाहते है उन्हे कोई आकर उनके बन्धन को खोले और वे फ़्री होकर कुछ और देख सकें,इसलिये लोग अपनी अपनी सीमा में बंधे रहकर जीने के लिये मजबूर है और वे यह भी चाहते है कि वे केवल अपनी बंधी हुयी दुनिया में ही रहें उन्हे कोई किसी प्रकार से छेडे भी नही। यही कारण सीधा सीमा विवाद के कारण पैदा हो जाता है। हमारे शरीर मे एक करोड तत्व जो कोशिकाओं के रूप मे उपस्थित होते है वह हमारे रूप को रंग को हाथ पैर और दिमाग के संचालन का काम तो सभी की तरह से करते है और पैदा होना आगे की सन्तति को पैदा करना पेट भरना और शरीर को चलाना यह सभी बाते उन एक करोड कोशिकाओं की बदौलत एक सा चलता है लेकिन नौ करोड जो मुफ़्त खोर हमारे अन्दर निवास करते है वे नही चाहते है कि उन्हे किसी अन्य प्रकार से छेडा जाये। कारण अगर उन नौ करोड को छेड दिया जाता है तो उनके अन्दर बदलाव भी शुरु हो सकता है और आदमी को बजाय बंधन में जीने के उसे खुलकर भी जीना पड सकता है। यह उसी प्रकार का बंधन माना जाता है जैसे एक पति अगर विदेश मे नौकरी करने के लिये जाना चाहता है तो उसकी पत्नी को डर लगता है कि उसका पति अगर विदेश मे चला गया तो उसके अन्दर विदेश के रीति रिवाज और कारण पैदा हो जायेंगे वह अपने परिवार को भूल जायेगा और वह वापस अपने देश को वापस नही आयेगा। इस कारण से पति को पत्नी विदेश नही भेजना चाहती है। यही प्रकार पति के अन्दर भी देखा जाता है कि अगर पत्नी को अकेला छोड दिया गया तो कोई दूसरा उसकी पत्नी को ले जायेगा और वह अपनी पत्नी को दूसरे के पास कैसे देख सकता है। जबकि उसे यह भी पता है कि पत्नी के अन्दर भी उतना ही दिमाग है जितना उसके अन्दर है,अगर पत्नी के शरीर मे मुफ़्त खोरों की चलती है तो पत्नी अपने एक करोड की सहायता नही ले पायेगी और बाकी के नौ करोड के चक्कर में फ़ंस कर अपने को दूर ले जाकर अपने नाम निशान और औकात को भुला देगी। अगर पत्नी के अन्दर वह एक करोड सबल है और वह मजबूत है तो किसी प्रकार से उसकी पत्नी उन नौ करोड को भी झुठलाकर अपने ही घर मे रहेगी।

धर्म स्थान और उनका महत्व

हर राशि की अपनी अपनी उन्नति की दिशा है और हर दिशा अपना अपना महत्व रखती है। मेष राशि अपनी उन्नति पूर्व दिशा मे करती है वृष राशि अपनी उन्नति वायव्य दिशा मे करती है मिथुन भी अपनी उन्नति वायव्य मे ही कर पाती है कर्क राशि उत्तर दिशा मे उन्नति के लिये मानी जाती है,सिंह राशि पूर्व के लिये कन्या राशि उत्तर के लिये तुला राशि पश्चिम के लिये वृश्चिक राशि नैऋत्य के लिये धनु राशि अग्नि के लिये मकर राशि दक्षिण के लिये कुम्भ राशि अग्नि कोण के लिये और मेन राशि भी अग्नि कोण के लिये उन्नति के लिये मानी गयी है. इसी प्रकार से धर्म स्थान भी हर राशि के लिये अपने अपने महत्व और उन्नति देने तथा पूजा पाठ के फ़लो के लिये भारत मे स्थापित किये गये है.उत्तर दिशा मे कुबेर का स्थान माना गया है और बद्रीनाथ वृष राशि केदार नाथ मिथुन राशि वालो के लिये उत्तम भाग्य को देने वाले है,जगन्नाथ पुरी मकर राशि वालो के लिये रामेश्वरम तुला राशि वालो के लिये द्वारका नाथ मीन राशि वालो के लिये सोमनाथ कुम्भ राशि वालो के लिये उत्तम फ़ल देने वाले माने गये है.बारह शिवलिंग अपनी अपनी राशि के अनुसार स्थापित किये गये है.चौसठ योगिनी आठ दिशाओं के चार चार भाग बनाकर स्थापित की गयी है.एक सौ आठ शक्ति पीठ सत्ताइस नक्षत्रों के अनुसार चारो दिशाओं में स्थापित किये गये है.राहु के लिये केवल सिर से युक्त भगवान की पूजा की जाती है जैसे बर्बरीक महाराज को श्याम बाबा के नाम से और केतु के लिये गणेशजी की पूजा को मान्यता दी गयी है.चन्द्र के लिये शिव स्थान तथा चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार (५४०००) शिव रूपों का स्थापन किया गया है,यह कलायें भारत मे कुछ ही बाकी रह गयी है अन्य का काल के अनुरूप लुप्त हो जाना भी मिलता है.बारह रवि बारह अर्क बारह भास्कर बारह दिनकर बारह तमारि और बारह मार्तण्ड बारह प्रभारि रूप में शिव स्थान है.

दक्षिण मुखी मकान कितना शुभ और कितना अशुभ

वास्तु जीवन को प्रभावित करता है यह कई प्रकार से देखने मे भी आता है और समझने मे भी आता है.लेकिन हर दिशा हर व्यक्ति के लिये अशुभ हो यह समझ मे नही आता है.अक्सर लोगो को कहते सुना है कि दक्षिण मुखी मकान अशुभ होता है और उसी जगह पर पूर्व फ़ेसिंग और उत्तर फ़ेसिंग मकान की कीमत अच्छी मिल जाती है लेकिन दक्षिण मुखी मकान का पूरा मूल्य नही मिल पाता है.आखिर ऐसा क्या है जो दक्षिण मुखी मकान से लोग घबडाते है कुछ बिन्दुओं को समझने के बाद और गहरे रूप मे देखने के बाद जो समझ मे आया है वह इस प्रकार से है:-

  • दक्षिण मुखी मकान में दोपहर का सूर्य अपनी रश्मियों को प्रसारित करता है इन रश्मियों को वही सहन कर सकता है जो दिमाग शरीर और भौतिकता मे बलवान होता है.कारण जो गर्मी और ऊष्मा सूर्य से प्रसारित होती है वह साधारण लोग हजम नही कर पाते है.
  • पुलिस सेना तकनीके क्षेत्र के लोग डाक्टर दवाई बनाने वाले होटल और आग वाला काम करने वाले मिठाई बनाने वाले दक्षिण मुखी मकान मे सफ़ल हो जाते है और उनकी बराबरी का कार्य अलावा दिशाओ वाले नही कर पाते है.
  • तकनीकी दिमाग का होना और गर्म दिमाग का होना इसी दिशा मे रहने वाले लोगों के पास होता है,अधिकतर देह बल का प्रयोग करने वाले और शरीर को धन औकात और नाम के लिये प्रयोग करने वाले लोग इसी दिशा को पसन्द करते है.
  • जो लोग विपरीत कार्यों से जुडे होते है वे उपरोक्त कारणो के कारण परेशान होते है,पूजा घर भी दक्षिण फ़ेस वाले सही माने गये है अगर उन घरो में हवन अखण्ड ज्योति को जलाकर रखा गया है.
  • अगर दक्षिण मुखी मकान का दरवाजा लाल रंग का है तो व्यक्ति आराम से रह सकता है.
  • लाल रंग के स्वास्तिक भी इस दिशा के दरवाजे वाले मकानो के लिये शुभ होते है.
  • मिर्च मशाले के व्यवसाय वाले इस दिशा के दरवाजों के मकान मे रहने के बाद अक्सर पनपते देखे गये है.
  • कर्जा देने वाले बैंकिंग का काम करने वाले और ब्याज तथा किराये से रहने वाले लोग इस दिशा के मकानो से हमेशा दुखी देखे गये है उनके धन को या सम्मान को शरीर को किसी न किसी प्रकार से आघात ही लगते देखे गये है.
  • अगर दक्षिण मुखी मकान के आगे टी क्रास भी है तो अक्सर मकान मालिक और किरायेदार के बीच मे लम्बी लडाई भी होती देखी गयी है,अक्सर मकान मालिक बाहर भटकता है और किरायेदार ऐश करता है.अगर इस घर मे कोई लडका मंगलवार के दिन पैदा हो जाये तो किरायेदार घर छोड कर भागने में ही अपनी भलाई समझते है.
  • आफ़तो की दिशा से मानी जाने वाली यह दिशा माता काली की दिशा बतायी जाती है लेकिन मंगल के सम्मुख होने से मंगला काली की दिशा भी यही कही गयी है.

बुध केतु + शुक्र राहु = मीडिया

कल्पना भाभी की आदत है कि वे मुहल्ले मे किसी की भी बात को या तो इतना उछाल देतीं है कि सामने वाला मुहल्ला छोड कर भाग जाता है,या बात को इतनी जोर से बना देती है कि अजनबी भी आकर मुहल्ले मे राज करने लगता है। उनकी बात में इतनी दम है कि अमीर गरीब बूढा जवान स्त्री पुरुष सभी उनकी बातों को बडे गौर से सुनते है और बात को सुनकर अमल भी करते है। उनके बात करने में एक बात और होती है कि वे अपने साथ बात करने की गवाही जरूर रखती है,अगर कहीं गवाही नही मिलती है तो -"भगवान की सौगंध" उनके साथ जरूर चलती है। बात करने मे उनके अन्दर बुजुर्गो के साथ सम्मान होता है,जवान पुरुषों के साथ मजाक होती है,स्त्रियों में बडी बूढी महिलाओं के साथ पैर दबाकर सलीके से सिर पर पल्ला लेकर बात करने की तहजीब होती है,बराबर की महिलाओं से कटाक्ष भरे सैन मटक्के होते है और बच्चों के साथ उनका सलीका इतना मधुर होता है कि कोई भी बच्चा उनके आने के बाद अपनी अम्मा की गोद छोड कर उनकी गोद मे जा बैठता है।

कल्पना भाभी के पतिदेव किसी कचहरी मे बाबू है,जितनी कल्पना भाभी बात करती है उतने ही वे चुप रहते है,जितना कल्पना भाभी आसपास के माहौल के प्रति सजग रहती है उतना ही वे अपने मे ही मस्त रहने वाले आदमी है,उनके पास तीन लडकियां ही सन्तान के रूप मे है,जब पति देव नौकरी पर चले जाते है,लडकियां घर के काम को निपटा लेती है,घर आकर कल्पना भाभी अपनी लडकियों से भी मुहल्ले की बातों को बताती है जिससे उनकी लडकियां भी आसपास की राजनीति घरों के माहौल तथा बुजुर्ग जवान बच्चों के बारे मे पूरी जानकारी रखती है,समय पर जब कल्पना भाभी किसी मुद्दे को लेकर बात करते समय भूलती है तो उनकी लडकियां उन्हे याद दिला देती है,उन्हे इस बात से बहुत खुशी होती है कि उनकी लडकियां अपनी याददास्त को बहुत अच्छी तरह से कायम रखती है। कल्पना भाभी को गाने बजाने नाचने में भी ईश्वर ने अच्छी योग्यता दे रखी है,किसी भी उत्सव में अगर कल्पना भाभी नही है तो वह उत्सव फ़ीका सा ही लगता है,किसी की रसोई में अगर कल्पना भाभी का हस्तक्षेप नही है तो वह रसोई भी बिना मिर्च मशाले के मानी जा सकती है,किसी प्रतियोगिता में अगर कल्पना भाभी अपनी हाजिरी मुख्य सदस्य के रूप में नही रखती है तो वह मुहल्ले की प्रतियोगिता भी रूखी रूखी सी लगती है।

मुहल्ले की राजनीति में कल्पना भाभी को किसी पद से मतलब नही है। वे अपनी उपस्थिति से मुहल्ले के अध्यक्ष के पद के लिये जिसे भी मनोनीत कर देती है वही बिना किसी हील हुज्जत के अध्यक्ष बन जाता है। अगर उन्हे किसी बात से दिक्कत होती है तो वे जरा सी सरगर्मी फ़ैला कर अध्यक्ष पद वाले व्यक्ति को हटाकर दूसरे व्यक्ति को भी चुनने मे अपनी योग्यता को दिखा सकती है। उनके अन्दर यह कला भी है कि उनके पति देव तो जो सैलरी लाते है वह तो उनके कपडों की धुलाई में ही खर्च हो जाती है। बाकी की कमाई का स्त्रोत आजतक किसी मुहल्ले वाले को पता नही है। हाँ इतना जरूर है कि अगर किसी को कैसा भी काम पडता है तो कल्पना भाभी अपनी जान पहिचान और राजनीति से किसी के भी काम को पूरा करवा देती है। कुछ समय पहले की ही बात है शुक्ला जी को मुहल्ले के बारे मे राजनीति करने की बहुत बुरी आदत थी,कल्पना भाभी ने कई बार उन्हे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मना भी किया लेकिन नही माने। कल्पना भाभी के पास श्रीवास्तव जी का आना जाना था,उन्होने पता नही क्या गुड कल्पना भाभी को खिला दिया कि श्रीवास्तव जी तो अध्यक्ष बन गये और शुक्ला जी मकान बेच कर चले गये।

कल्पना भाभी को वैसे तो सभी जगह जाने का शौक है लेकिन उन्हे पता नही अपने वास्तविक धर्म से कितनी अरुचि है। कहीं भी सत्संग होता है तो वे जाती जरूर है और केवल भगवान की सजी हुयी झांकी की सराहना करती है किसने कितने भाव से कीर्तन को गाया,किसने कितने अच्छी तरह से अपने नृत्य को प्रस्तुत किया,कौन सा गीत किस फ़िल्मी गीत की तर्ज पर था,यह सब बातें वे कर सकती है लेकिन भगवान के प्रति श्रद्धा के बारे मे उनसे पूंछा जाये तो वे केवल यही जबाब देती है कि यह सब अपनी अपनी मान्यता है,जितना काम करोगे उतना ही कमा लोगे अपने आप तो आ नही जायेगा। किसी की शादी समारोह मे वे अपने आशीर्वाद को केवल आने वाले व्यवहार की रकम से जोडती है,लडका या लडकी के प्रति उनकी यही भावना रहती है कि आज के जमाने के अनुसार अगर लडका लडकी नहे चले तो कोई बात नही तलाक ले कर दूसरी शादी करने मे अच्छा है। कल्पना भाभी को अपनी हिन्दी भाषा बोलने मे कभी कभी तकलीफ़ होती है वे अपनी भाषा को बोलने मे अक्सर तभी तकलीफ़ महसूस करती है जब वहां सभी हिन्दी बोलने वाले हों तो वे अपनी बात को अपना इम्प्रेसन जमानेके लिये विदेशी भाषाओं में करने लगती है। जो लोग पहले से जाकर कल्पना भाभी को न्यौता देकर आते है उन्हे यह अपने नजरिये से बिलकुल सही देखती है,या जो लोग ऊंची पहुंच रखने वाले होते है अच्छे पदो पर स्थिति होते है उनके लिये कल्पना भाभी सभी को एक तरफ़ करने के बाद उनकी प्रसंशा जरूर करती है। उनके सामने धन और मान सम्मान की मर्यादा बहुत अच्छी है,अगर कोई बुद्धिमान है और उसके पास धन या अपने को प्रसिद्ध करने का तरीका नही है तो कल्पना भाभी की आदत है कि उसे किसी न किसी प्रकार से नीचा दिखा सकती है और जो कुछ नही जानता है केवल कल्पना भाभी की जी हुजूरी करता रहता है उसे कल्पना भाभी आसमान की ऊंचाइयों मे पहुंचाने की हिम्मत रखती है,उसके बारे कितने ही प्रकार के वक्तव्य वे अपने कथन मे लाती है कि एक प्रकार से वह ही सब मे सर्वोपरि है।

जब कभी चुनाव होते है तो राजनीतिक लोग सबसे पहले कल्पना भाभी को ही पुकारते है। उनके घर पर आने जाने वाले लोगों की भीड इकट्ठी हो जाती है और जो भी कल्पना भाभी को खुश करना जानता है उसे ही मुहल्ले के पूरे वोट मिलते है,जो भी उस समय कल्पना भाभी के सामने आता है,उसके सामने ही कल्पना भाभी को पहले गुहारने वाले के लिये शब्दो का जंजाल फ़ैलना शुरु हो जाता है। जो भी उस समय कल्पना भाभी की बात को सुनता है वह कुछ समय के लिये तो सोचने लगता है कि आखिर मे कल्पना भाभी को क्या हो गया जो इतने बुरे आदमी के लिये कल्पना भाभी इतने अच्छे शब्दो का प्रयोग कर रही है और जो वास्तव मे अच्छा आदमी है उसके लिये भी वे कोई खराब बात नही कहती है केवल थोडा बहुत जिक्र कर देती है और जिक्र भी इस प्रकार का होता है कि सामने वाले को बुरा भी नही लगे और सामने वाले को जिक्र करने से कोई लाभ भी नही हो। कल्पना भाभी की बात का जबाब देने के लिये किसी मे भी हिम्मत नही है,कारण पता नही कल्पना भाभी का खोपडा घूम जाये और कल्पना भाभी किसे कहां किस प्रकार से पहुंचा दें।

हमारे अनुसार हर मुहल्ले मे हर गांव में हर शहर में हर प्रान्त मे हर देश मे कितनी ही कल्पना भाभियां है जो अपनी पहुँच बनाने के लिये अपने अपने अनुसार केवल अपने लाभ और अपनी पहिचान बनाने के लिये प्रयास रत है। कोई कल्पना भाभी बनकर अखबार के रूप मे सामने है कोई कल्पना भाभी बनकर चैनल के रूप मे है,कोई कल्पना भाभी बनकर कम्पयूटर पर बेव साइट के रूप मे है,इन कल्पना भाभी को पहिचानने के लिये खास मेहनत करने की जरूरत नही पडती है। हमारी ज्योतिष की भाषा में कल्पना करना और मूर्त रूप देकर उसे शब्दो मे द्रश्य मे बनावटी रूप से प्रकाशित करने में कल्पना भाभी को शुक्र राहु और उन्हे जो सूचना देने का काम करते है उन्हे बुध केतु के रूप मे देखा जाता है,कल्पना भाभी की तीनो लडकियां जो दत्तक संतान के रूप मे है,वे किसी दिन अपने अपने घर चली जायेंगी,उनसे आगे के जीवन मे कल्पना भाभी का कोई सरोकार नही होगा,जैसे किसी अखबार मे चैनल मे खबरो को लाने वाले रिपोर्टर होते है,अपने अपने समय मे आते है अपने अनुसार अपनी अपनी औकात को दिखाकर क्या अच्छा है क्या बुरा है का रूप नही समझ कर लोगों को क्या अच्छा लग सकता है उसे ही बताने का उद्देश्य रखकर कहते है और चले जाते है।

शुद्ध साधना मन की साधना

शरीर रूपी ब्रह्माण्ड की तीन वृत्तियां है,परा,विराट और अपरा। परा ह्रदय से ऊपर का भाग कहा जाता है,विराट ह्रदय से नाभि पर्यंत का भाग कहा जाता है और अपरा नाभि से नीचे का भाग कहा जाता है। चित्त वृत्ति की उपस्थिति इन तीनो ब्रह्माण्डो मे पायी जाती है,तथा द्रश्य वृत्ति केवल परा ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत ही आती है। चित्त वृत्ति के स्थिर रहने पर देखना श्रवण करना मनन करना सूंघना आदि सूक्ष्म रूप से महसूस किया जा सकता है,द्रश्य वृत्ति को अगर चित्त वृत्ति मे शामिल कर लिया जाये तो कर्म वृत्ति का उदय होना शुरु हो जाता है। अगर चित्त वृत्ति और द्रश्य वृत्ति मे भिन्नता पैदा हो जाती है तो कर्म वृत्ति का नही होना माना जाता है। जिसे साधारण भाषा मे अनदेखा कहा जाता है। चित्त वृत्ति को साधने की क्रिया को ही साधना के नाम से पुकारा जाता है,और जो अपनी चित्त वृत्ति को साधने मे सफ़ल हो जाते है वही अपने कर्म पथ पर आगे बढते चले जाते है और नाम दाम तथा संसार मे प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेते है। चित्त वृत्ति को साधने मे जो रुकावटें आती है,उनमे सबसे बडी बाधा मानसिक भ्रम को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के रूप मे बच्चे से अगर माता कहती है वह खिलौना उठाकर ले आओ,उसी समय पिता अगर बच्चे से कह देता है कि पढाई करो,बच्चे के दिमाग मे भ्रम पैदा हो जाता है कि वह खिलौना उठा कर लाये या पढाई करे,इस भ्रम के अन्दर अगर बच्चे से बाद मे पूंछा जाये कि पहले खिलौना उठाकर लायेगा या पढाई करेगा,बच्चा अगर माता से डरता है तो पहले खिलौना उठाकर लायेगा और पिता से डरता है तो माता की बात को अनसुना करने के बाद पढने बैठ जायेगा। इसी प्रकार से अगर किसी को कहा जाये कि अमुक काम को करना है,अमुक को नही,तो मानसिक धारणा के अन्दर उन दोनो कामो को करने के पहले उनके बीच का अर्थ निकालने मे मन लग जायेगा और वही समय मानसिक भ्रम का माना जायेगा। कारण जब समझ मे आयेगा तब तक या तो मना किये गये काम का रूप बदल चुका होगा या बताये गये काम का करना मुनासिब नही हो पायेगा। इसके अलावा एक और बात मानी जाती है कि किसी व्यक्ति से कह दिया जाये कि वह अमुक कार्य को अमुक तरीके से करो,और उसी समय दूसरा व्यक्ति उसी काम को पहले बताये गये व्यक्ति के तरीके से भिन्न हो जाता है तो भी मानसिक भ्रम की उत्पत्ति हो जाती है। इस भ्रम की स्थिति को बच्चो मे तो खेल कूद और मनोरंजन के साधन तथा नई नई चीजों को देखने के रूप मे मानी जाती है जो जिज्ञासा के नाम से जानी जाती है। वही बात अगर युवाओं मे देखी जाये तो उनकी भ्रम वाली स्थिति शादी विवाह करने अपनी नई दुनिया को बसाने तथा एक दूसरे के ज्ञान धन परिवार रहन सहन समाज मे चलने वाले कारणो को समाप्त करने आदि के प्रति भ्रम बनना माना जायेगा,जब व्यक्ति वृद्ध होता है तो उसके दिमाग मे युवाओ को बदलने वाले कारणो का भ्रम बना रहेगा,कि अमुक कार्य से उसे हानि हो सकती है अमुक वस्तु को खाने पीने से उसके अन्दर बुराई पैदा हो सकती है अमुक सम्बन्ध को बनने के बाद उसकी वैवाहिक जिन्दगी मे बरबादी का कारण बन सकता है या अमुक कार्य करने से बडी हानि या किसी को कष्ट भी पहुंच सकता है,इन भ्रमो के अलावा और भी कई प्रकार के भ्रम माने जाते है जो हर व्यक्ति के जीवन मे अपने अपने रूप मे उपस्थित होते है और उन भ्रमो के कारण ही प्रगति के पथ पर लोग या तो गलत रूप से आगे बढ जाते है या फ़िर कार्य मे तमाम बाधाये प्रस्तुत कर लेते है और कार्य पूरा नही हो पाता है उनके द्वारा पहले की गयी मेहनत बरबाद हो जाती है।

ज्योतिष मे इस भ्रम नाम की बीमारी को पैदा करने वाला राहु है।राहु एक छाया ग्रह है जिसका प्रभाव उल्टे रूप मे पडता है। जैसे एक व्यक्ति को जंगल के रास्ते जाना है और उसे कोई पहले बता देता है कि रास्ते मे शेर मिल सकता है। व्यक्ति को भले ही शेर नही मिले लेकिन उसके दिमाग मे शेर का भय पैदा हो जायेगा कि शेर अगर मिल गया तो वह उसे मार भी सकता है या उसके शरीर को क्षति भी पहुंचा सकता है। वह व्यक्ति अपनी सुरक्षा के चक्कर मे अपने दिमाग का प्रयोग करेगा,और अपने को सतर्क करने के बाद ही जंगल का रास्ता तय करेगा। इस सोचने की क्रिया के अन्दर जो मुख्य भाव आया वह मृत्यु का भय,जीवन चलने का नाम है और मृत्यु समाप्ति का नाम है,जीवन का नाम सीधा है तो मृत्यु का नाम उल्टा है। यही राहु का कार्य होता है। उल्टा सोचने के कारण ही लोग अपने लिये सुरक्षा का उपाय करते है,उल्टा सोच कर ही लोग समय पर पढने का कार्य करते है या उल्टा सोच कर ही लोग किसी भी कार्य को समय से पहले करने की सोचते है या अपने जीवन के प्रति सजग रहने की बात करते है। जब इस प्रकार की बाते आती है तो राहु कुंडली मे अच्छी स्थिति मे होता है और जब राहु गलत भाव मे होता है तो वह बजाय सीधे रास्ते जाने के उल्टे रास्ते से जाने के लिये अपनी गति देने लगता है। जैसे कुंडली मे चन्द्रमा के साथ राहु किसी खराब भाव मे है तो वह मन के अन्दर एक छाया सी पैदा करे रहेगा। मन का एक स्थान मे रहना नही हो पायेगा। जब मन का बंटवारा कई स्थानो मे हो जायेगा तो याददास्त पर असर पडेगा। रास्ता चलते हुये जाना कहीं होगा तो पहुंच कहीं जायेंगे। करना कुछ होगा तो करने कुछ लगेंगे। किसी रखी हुयी वस्तु को भूल जायेंगे,या रखी कहीं थी खोजने कहीं लग जायेंगे,इस बीच मे बुराइयां भी बनने लगती है,जैसे वस्तु को आफ़िस मे रखा था और खोजने घर मे लगेंगे,फ़िर जब नही मिलेगी तो तरह तरह की शंकाओं के चलते जो भी पास मे रहा होगा उस पर झूठा आक्षेप लगाया जाने लगेगा। यह स्थिति राहु के भावानुसार मानी जायेगी,जैसे राहु धन स्थान मे है और चन्द्रमा से युति ले रहा है तो पर्स को रखा तो टेबिल की दराज मे आफ़िस में जायेगा और खोजा घर के अन्दर जायेगा,घर के किसी सदस्य पर आक्षेप लगेगा और बुराई अपमान आदि की बाते उस सदस्य के पल्ले पडेंगी। इसी प्रकार से लडके लडकियां जब बडे हो जाते है तो उनके अन्दर बडी शिक्षा मे जाने के बाद एक सोच पैदा हो जाती है कि वे अपने सहपाठी से नीचे क्यों है,उसका सहपाठी तो बडी और लक्जरी गाडी मे आता है,वह पैदल या बस से आता है,उसके पास कोई आजकल का चलने वाला साधन नही है,जबकि उसके साथी सभी साधनो से पूर्ण है। यह भाव अपने ही मन मे लाने के कारण पढाई लिखाई तो एक तरफ़ रखी रह गयी,अपने को और भी नीचे ले जाने के लिये सोच को पैदा कर लिया। मन के अन्दर माता पिता दादा दादी और परिवार को जिम्मेदार मान लिया गया,और उनके प्रति मन के अन्दर एक अजीब सी नफ़रत पैदा हो गयी। यह कारण अष्टम मे राहु के होने से और ग्यारहवे भाव के स्वामी से युति लेने के कारण बन जाती है। इसी प्रकार से जब राहु का गोचर पंचम भाव मे होता है या वह पांचवे भाव मे शुरु से ही बैठा होता है या चन्द्र मंगल की युति धन भाव मे होती है और राहु का स्थान पंचम मे होता है अथवा राहु का प्रभाव पंचम से शुक्र के साथ हो रहा होता है तो व्यक्ति के अन्दर बचपन मे मनोरंजन के साधनो का और वाहन सम्बन्धी कारण पैदा होता है,जवानी मे इश्क का भूत सवार हो जाता है और वह या तो अपने लिये नये नये लोगो पर छा जाने वाले कारण पैदा करने लगता है या अपनी दहसत से लोगो के अन्दर भय को पैदा करना शुरु कर देता है। इसी प्रकार से अन्य भाव मे विराजमान राहु अपनी विचित्रता से उल्टे काम करने के लिये अपना प्रभाव देने लगता है।

कहा जाता है कि नशे के अन्दर क्षत्रिय दाढी वाला बाबा शमशान मे निवास करने वाला पागल जैसा लगने वाला व्यक्ति की बराबरी उसी व्यक्ति से की जा सकती है जो नितांत अकेला बैठा सोचता रहता है,जिसे दिन मे सोचने से फ़ुर्सत नही होती और रात को नींद उससे कोशो दूर होती है। वह जब कभी सो भी जाता है तो स्वप्न भी बहुत ही अजीब अजीब आते है जैसे मुर्दो के बीच मे रहना आसमान मे पानी की तरह से चलना,जंगल बीहड वीराने क्षेत्र मे चलना,खतरनाक जानवर देखना या ऐसा लगना कि वह अक्समात ही नीचे गिरता चला जा रहा है यह एक राहु की सिफ़्त का उदाहरण है जो बारहवे भाव अष्टम भाव या चौथे भाव मे बैठ कर अपनी स्थिति को दर्शाता है। जैसे लोग अपने मन को साधने के लिये शराब का सेवन करते है या राशि के अनुसार जो चौथे भाव मे होती है उसके अनुसार नशे को करने लगते है का फ़ल चौथे राहु के द्वारा देखा जाता है,शमशानी राशि अष्टम मे बैठा राहु जिसे वृश्चिक राशि के नाम से जाना जाता है उसके साथ भी दिमाग का बंटवारा एक साथ कार्यों मे बाहरी खर्चो मे घर के लोगो मे धन के मामले मे तथा मानसिक सोच मे जाने के लिये अपनी एक साथ युति को देता है,इस युति के कारण अक्सर लोग या तो बडा एक्सीडेंट कर लेते है या कोई भयंकर जोखिम को ले लेते है,या फ़िर किसी ऊंचे स्थान से कूद जाते है या वाहन आदि को चलाते समय कहीं जाना होता है कहीं चलते है और अपने साथ साथ दूसरो के लिये भी आफ़त का कारण बन जाते है।

राहु को साधने का तरीका आज के युग के लोग अपने को शराब आदि के कारणो मे ले जाते है कोई नींद की गोली लेता है,कोई अफ़ीम आदि के आदी हो जाते है कोई नशे के विभिन्न कारण अपने मन को साधने के लिये लेना शुरु कर देते है,यह प्रभाव उनके ऊपर इतनी शक्ति से हावी हो जाता है कि यह ईश्वर का दिया हुआ रूप बल शक्ति मन दिमाग सभी बरबाद होने लगते है और जो कार्य यह शरीर अपने परिवेश के अनुसार कर सकता था उससे दूर रखने के बाद अपनी लीला को एक दूसरो पर बोझ के नाम से समाप्त कर लेने मे जल्दबाजी भी करते है। राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है,जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है।

चित्त वृत्ति को साधने के लिये महापुरुषो ने कई उपाय बताये है। पहला उपाय योगात्मक उपाय बताया है। जिसे त्राटक के नाम से जाना जाता है। एक सफ़ेद कागज पर एक सेंटीमीटर का वृत बना लिया जाता है उसे जहां बैठने के बाद कोई बाधा नही पैदा होती है उस स्थान पर ठीक आंखो के सामने वाले स्थान पर चिपका कर दो से तीन फ़ुट की दूरी पर बैठा जाता है,उस वृत को एक टक देखा जाता है उसे देखने के समय मे जो भी मन के अन्दर आने जाने वाले विचार होते है उन्हे दूर रखने का अभ्यास किया जाता है,पहले यह क्रिया एक या दो मिनट से शुरु की जाती है उसके बाद इस क्रिया को एक एक मिनट के अन्तराल से पन्द्रह मिनट तक किया जाता है। इस क्रिया के करने के उपरान्त कभी तो वह वृत आंखो से ओझल हो जाता है कभी कई रूप प्रदर्शित करने लगता है,कभी लाल हो जाता है कभी नीला होने लगता है और कभी बहुत ही चमकदार रूप मे प्रस्तुत होने लगता है। कभी उस वृत के रूप मे अजीब सी दुनिया दिखाई देने लगती है कभी अन्जान से लोग उसी प्रकार से घूमने लगते है जैसे खुली आंखो से बाहर की दुनिया को देखा जाता है। वृत को हमेशा काले रंग से बनाया जाता है। दो से तीन महिनो के अन्दर मन की साधना सामने आने लगती है और जो भी याद किया जाता है पढा जाता है देखा जाता है वह दिमाग मे हमेशा के लिये बैठने लगता है। ध्यान रखना चाहिये कि यह दिन मे एक बार ही किया जाता है,और इस क्रिया को करने के बाद आंखो को ठंडे पानी के छींटे देने के बाद आराम देने की जरूरत होती है,जिसे चश्मा लगा हो या जो शरीर से कमजोर हो या जो नशे का आदी हो उसे यह क्रिया नही करनी चाहिये।

दूसरी क्रिया को करने के लिये किसी एकान्त स्थान मे आरामदायक जगह पर बैठना होता है जहां कोई दिमागी रूप से या शरीर के द्वारा अडचन नही पैदा हो। पालथी मारक बैठने के बाद दोनो आंखो को बन्द करने के बाद नाक के ऊपर अपने ध्यान को रखना पडता है उस समय भी विचारों को आने जाने से रोका जाता है,और धीरे धीरे यह क्रिया पहले पन्द्रह मिनट से शुरु करने के बाद एक घंटा तक की जा सकती है इस क्रिया के द्वारा भी अजीब अजीब कारण और रोशनी आदि सामने आती है उस समय भी अपने को स्थिर रखना पडता है। इस क्रिया को करने से पहले तामसी भोजन नशा और गरिष्ठ भोजन को नही करना चाहिये। बेल्ट को भी नही बांधना चाहिये। इसे करने के बाद धीरे धीरे मानसिक भ्रम वाली पोजीशन समाप्त होने लगती है।

तीसरी जो शरीर की मशीनी क्रिया के नाम से जानी जाती है,वह शब्द को लगातार मानसिक रूप से उच्चारित करने के बाद की जाती है उसके लिये भी पहले की दोनो क्रियाओं को ध्यान मे रखकर या एकान्त और सुलभ आसन को प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है,नींद नही आये या मुंह के सूखने पर पानी का पीना भी जरूरी है। बीज मंत्र जो अलग अलग तरह के है उन्हे प्रयोग मे लाया जाता है,भूमि तत्व के लिये केवल होंठ से प्रयोग आने वाले बीज मंत्र,जल तत्व को प्राप्त करने के लिये जीभ के द्वारा उच्चारण करने वाले बीज मंत्र,वायु तत्व को प्राप्त करने के लिये तालू से उच्चारण किये जाने वाले बीज मंत्र और अग्नि तत्व को प्राप्त करने के लिये दांतो की सहायता से उच्चारित बीज मंत्र का उच्चारण किया जाता है साथ ही आकाश तत्व को प्राप्त करने के लिये गले से उच्चारण वाले बीज मंत्रो का उच्चारण करना चाहिये।ज्योतिष भगवत प्राप्ति और भविष्य को देखने की क्रिया के लिये दूसरे नम्बर की क्रिया के साथ तालू से उच्चारित बीज मंत्र को ध्यान मे चलाना चाहिये। जैसे क्रां क्रीं क्रौं बीजो का लगातार मनन और ध्यान को दोनो आंखो के बीच मे नाक के ऊपरी हिस्से मे ध्यान को रखकर किया जाना लाभदायी होता है।

गुरु की सिफ़्त

गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु है गुरु ही महेश्वर है,गुरु ही साक्षात दिखाई देने वाला ब्रह्म है तो गुरु को क्यों नही माना जाये। वैसे पूजा गुरु की ब्रह्मा के रूप में की जाती है,और गुरु के रूप में चलते फ़िरते धार्मिक लोगों को उनकी जाति के अनुसार धर्म कर्म करवाने वाले लोग जिन्हे हिन्दू पंडित कहते है मुसलमान मौलवी कहते है ईशाई पादरी कहते है। गुरु कोई बनावटी काम नही करता है वह जन्म से ही रूहानी कार्य करने के लिये अपने को आगे रखता है। वह अपनी हवा को चारों तरफ़ फ़ैलाने की कार्यवाही करता है,पहला गुरु पिता होता है जिसने अपने बिन्दु को माता के गर्भ के द्वारा शरीर रूप में परिवर्तित किया है दूसरा गुरु संसार का हर रिस्ता है जो कुछ न कुछ सिखाने के लिये अपना धर्म निभाता है वह रिस्ता अगर दुश्मनी का भी है तो भी लाभकारी होता है कि उससे दुश्मनी के गुण धर्म भी सीखने को मिलते है,तीसरा गुरु अपना खुद का दिमाग होता है जो समय पर अपने ज्ञान की समिधा से जीवन के लिये अपनी सुखद या दुखद अनुभूति को प्रदान करता है। बाकी के गुरु स्वार्थ के लिये अपना काम करते है जोई धर्म को बढाने के लिये और कोई अपनी संस्था के विकास के लिये मायाजाल फ़ैलाने का काम करते है। गुरु के अन्दर की शक्ति एक हाकिम जैसी होती है यानी जैसा हुकुम गुरु ने दिया उसी के अनुसार सभी काम होने लगे,बिना गुरु के सांस लेना भी दूभर होता है कारण गुरु ही हवा का कारक है और सांस बिना गुरु के नही ली जा सकती है। धातुओं मे गुरु को उसी धातु को उत्तम माना जाता है जो खरीदने में महंगी हो और दूसरे के देखने से अपने आप ही उसे प्राप्त करने की ललक दिमाग में लग जाये,अगर अधिक आजाये तो दिमाग ऊपर चढ जाये और नही आये तो उसी के लिये दिमाग ऊपर ही चढा रहे यानी सोना और रत्नो में गुरु का रत्न पुखराज को माना जाता है सही पुखराज मिल जाये तो करोडों की कीमत दे जाये और गलत मिल जाये तो जीवन की कमाई को ही खा जाये साथ ही चलते हुये रिस्ते भी तोड दे,शरीर में गुरु की पहिचान नाक से की जाती है शरीर में अगर तोंद नही बढी है तो नाक सबसे आगे चलती है,माथा देखकर पता कर लिया जाता है कि सामने वाले के अन्दर कितना गुरु विद्यमान है यानी कितना समझदार है,अगर कपडों से गुरु की पहिचान की जाये तो पगडी हैट टोपी आदि से की जाती है कारण सभी वस्त्रों में सबसे ऊंचे स्थान पर अपना स्थान रखती है,भले ही बहुत कम कीमत की हो लेकिन अपनी इज्जत शरीर और जीवन से अधिक रखती है। अगर फ़लों में गुरु का स्थान देखा जाये तो जिस टहनी में फ़ल लटका होता है उसे ही मुख्य मानते है उस टहनी के आगे वृक्ष की भी कोई कीमत नही होती है,जब फ़ल टूटकर संसार में आता है तो केवल फ़ल में लगी हुयी डंडी ही साथ आती है बाकी का पीछे ही छूट जाता है जब फ़ल को प्रयोग में लिया जाता है तो सबसे पहले टहनी को अलग कर दिया जाता है,अगर पशुओं में गुरु को देखा जाये तो वह शेर भी नही बब्बर शेर के रूप में जाना जाता है अक्समात सामने आजाये तो अच्छे भले लोगों की हवा निकल जाये,पेडों के अन्दर गुरु को पीपल के पेड में माना जाता है,कितने चिकने और हरे पत्ते,रेगिस्तान में भी हमेशा अपने हरे रंग को बिखेरने वाला,हर अंग काम आने वाला और यहां तक कि पागल भी दिन के समय पीपल के नीचे निवास करने लगे तो जल्दी ही ठीक हो जाये और रात के समय में बुद्धिमान भी पीपल के नीचे निवास करने लगे तो पागल हो जाये।

ज्योतिष में अगर गुरु को देखा जाता है तो पहले भाव में सिंहासन पर बैठा साधु ही माना जाता है उसके पास चाहे कुछ भी हो लेकिन उसके अन्दर अहम नही होता है और न ही वह दिखावा करता है,दूसरे भाव में संसार के लिये तो वह गुरु होता है लेकिन अपने लिये वह हमेशा फ़कीर ही रहता है तीसरा भाव गुरु को खानदान का मुखिया तो बना देता है लेकिन अपने ही बच्चे उसका आदर नही करते है,चौथा गुरु रखता तो राजा महाराजा की तरह से लेकिन अपन को कभी स्थिर नही रहने देता है,पांचवा गुरु स्कूल के मास्टर जैसा होता है कहीं भी गल्ती देखी और अपनी विद्या को बिखेरना शुरु कर देता है कितने ही गालियां देते जाते है और कितनी ही सिर को टेकते जाते है उसे गालियों से और सिर टेकने से कोई फ़र्क महसूस नही होता है। छठा गुरु जब भी बुलायेगा तो बुजुर्गों को ही मेहमान के रूप में बुलायेगा कभी भी जवान लोगों से दोस्ती नही करता है,सातवां गुरु रहेगा हमेशा निर्धन ही लेकिन वह कितना ही जवान हो अपने को बुजुर्गों जैसा ही शो करेगा,आठवां गुरु बच्चे को भी बूढों की बाते करते हुये देख कर खुस होने वाला होता है,नवां गुरु घर में सबसे बडा होगा मगर यह शर्त नही है कि वह अपने ही खून का रिस्तेदार है या कहीं से आकर टिका हुआ व्यक्ति है। दसवां गुरु खतरनाक होता है अपने बाप की खराब आदतों की बजह से दूसरे ही बचपन को जवानी तक खींच कर ले जाने वाले होते है,ग्यारहवा गुरु बिना बुलाये ही मेहमान बनकर आने वाला माना जाता है उसे मान अपमान की चिन्ता नही होती है उसे केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है,कहीं भी दिक्कत आने पर पतली गली से निकलने में अपनी भलाई समझता है,बारहवां गुरु अपने परिवार के लिये बेकार माना जाता है उसे अपने शरीर की भी चिन्ता नही रहती है और मिल जाये तो रोज लड्डू खाये नही तो नमक रोटी से भी गुजारा चला ले,बच्चे हो तो भी बिना बाप जैसे बच्चे दिखाई देते है।

Baba Neemkaroli

Babaji laying on Takhat (wooden coat) and always in thinking for the making good to people who have much faith on lord Hanuman ji. Neemkaroli is place on Farrukhabad-Mainpuri Railway line.I seen the temple and Moorti of baba Neem karoli every tuesday there much rush of worshipers those always faith on baba and lord Hanumanji,there Prashad restricted by temple committee,prasahs always distributed by temple,and if anyone want to make donations then there are donation boxes are laying in each place of temple.
Babaji was always busy to distribute prashad of mishri mewa.










सिंह राशि का बारहवां सूर्य

भचक्र की पांचवी राशि सिंह राशि है,लगन में इस राशि का प्रभाव बहुत ही प्रभाव वाला माना जाता है,यह अपनी औकात के अनुसार जातक के अन्दर गुण देती है,जैसे जातक का स्वभाव बिलकुल शेर की आदत से जुडा होता है,जातक जो खायेगा वही खायेगा,जातक जहां जायेगा वहां जायेगा,जातक के लिये कोई बन्धन देने वाली बात को अगर सामने लाया जायेगा तो वह बन्धन की बात को करने वाले या बन्धन का कारण पैदा करने वाले के लिये आफ़त को देने वाला बन जायेगा। इस राशि के स्वभाव के अनुसार वह एक सीमा में अपने को बान्धने के लिये मजबूर हो जाता है,वह अपने परिवार यानी माता पिता से तभी तक सम्बन्ध रखता है जब तक माता पिता के द्वारा वह समर्थ नही हो जाता है,अक्सर जातक को माता के प्रति सहानुभूति अधिक होती है लेकिन पत्नी के आने के बाद माता से दूरिया बढ जाती है पिता को केवल पिता की शक्ति के अनुसार ही जातक मानता है जैसे ही पिता से दूरिया होती है वह अपने बच्चों और जीवन साथी के प्रति समर्पित हो जाता है और जीवन साथी के द्वारा ही उसके लिये अधिक से अधिक कार्य पूरे किये जाते है,जब तक जीवन साथी के द्वारा उसके लिये प्रयास करने के रास्ते नही दिये जाते है वह किसी भी रास्ते पर जाने के लिये उद्धत नही होता है लेकिन जीवन साथी के उकसाने के बाद वह अपने को पूरी तरह से करना या मरना के रास्ते को अपना लेता है,जितना वह जीवन साथी के लिये समर्पित होता है उतनी ही आशा अपने जीवन साथी से छल नही करने के लिये रखता है,अगर कोई शक्ति को अपना कर जीवन साथी के प्रति आघात करता है तो वह अपने अनुसार या तो अपने को पूरी तरह से समाप्त कर लेता है या अपने को इतना बेकार का बना लेता है कि वह दूसरे किसी जीवन साथी को अपना कर उसी प्रकार से त्यागना शुरु कर देता है जैसे एक कुत्ता अपने लिये कामुकता की बजह से भटकाना शुरु कर देता है। यह तभी होता है जब उसे जीवन साथी के द्वारा कोई आहत करने वाला कारण बनता है।इस राशि वाले जातक की आदत होती है कि वह अपनी शक्ति से ही कमा कर खाने में विश्वास रखता है और जब वह शक्ति से हीन हो जाता है तो अपने को एकान्त में रखकर अपनी जीवन लीला को समाप्त करने की बाट जोहने लगता है। वह दया पर निर्भर रहना नही जानता है।अक्सर इस राशि वाले की पहिचान इस प्रकार से भी की जाती है कि वह अगर किसी स्थान पर जाता है तो वह उस स्थान पर अपने को बैठाने के लिये किसी के हुकुम की परवाह नही करता है उसे जहां भी जगह मिलती है आराम से  अपनी जगह को सुरक्षित रूप से तलाश कर बैठने की कोशिश करता है। एक बात और भी देखी जाती है कि इस राशि वाले अक्सर किसी के प्रति लोभ वाली नजर से देखते है तो उनकी पहली नजर गले पर जाती है वे आंखों से आंखो को नही मिलाते है।

बारहवा स्थान भचक्र के अनुसार गुरु की वायु राशि मीन है,लेकिन सिंह लगन के लिये इस इस राशि मे पानी की राशि कर्क का स्थापन हो जाता है। कर्क राशि के स्थापन के कारण और सूर्य का बारहवे भाव में बैठना आसमान के राजा का आसमान में ही प्रतिस्थापन भी माना जाता है। यह सूर्य बडे सन्स्थानों में राजनीति वाली बाते करने और राजनीति के मामले में भी जाना जाता है,कर्क राशि घर की राशि है,और सूर्य इस राशि में लकडी अथवा वन की उपज से अपना सम्बन्ध रखता है। जातक की पहिचान और जाति के समबन्ध में कर्क राशि का सूर्य अगर किसी प्रकार से मंगल से सम्बन्ध रखता है तो जातक के परिवार को उसी परिवार से जोड कर माना जाता है जहां से जातक की उत्पत्ति होती है,जातक या तो वन पहाडों में लकडी के बने घर में पैदा होता है और पिता के द्वारा मेहनत करने के बाद वन की उपज से घर को बनाया गया होता है,जातक का पैदा होना और जातक के पिता का बारहवें भाव में होना यानी पिता का बाहर रहना भी माना जाता है। चन्द्र केतु अगर चौथे भाव में है और मंगल का भी साथ है तो जातक के पैदा होने के समय में जितनी मंगल में शक्ति है उतनी ही तकनीक को रखने वाली दाई के साये में जातक का जन्म हुआ होता है और जातक के पिता के साथ किसी प्रकार की दुर्घटना होनी मानी जाती है।मंगल के साथ केतु के होने से जातक के लिये एक तकनीकी काम का करने वाला साथ ही धन वाले कारणो को पैदा करने के लिये।

मिथुन का केतु

लगन मिथुन राशि की हो और केतु लगन मे विराजमान हो तो व्यक्ति को लोगों की भीड में अग्रणी बना देता है। आज के युग मे सबसे आगे वही निकल जाता है जो कमन्यूक्शन मे परफ़ेक्ट होता है,जिसे लोगों से बोलना आता है जिसे समय पर लोगों की सहायता करना आता है जिसे बोलने की कला आती है जो धर्म नियम समाज परिवार पिता कानून विदेशी लोगों के बारे में जानकारी रखता है वही आगे निकलता चला जाता है। लगन में मिथुन राशि का केतु अपनी ताकत को सप्तम से लेता है,कोई भी व्यक्ति उससे साझेदारी वाली हैसियत में आने पर उसे असीम शक्ति को प्रदान कर देता है। राहु की शक्ति धर्म मर्यादा कानून विचारों की श्रंखला को बेलेंस बनाने के लिये शक्ति के साधनों में तालमेल बैठाने में जीवन साथी की सोच को अपने आप सही रूप में प्रदर्शन करने के लिये अपने भावों को प्रदर्शित करने के लिये अपने द्वारा जीवन की लडी जाने वाली लडाइयों के लिये चाहे वह धर्म के लिये हों सोफ़्टवेयर तकनीक के लिये हो ज्योतिष और पराशक्तियों के बारे में विश्लेषण करने के लिये हो सभी के लिये अपनी अलग से बेलेंस करने की क्षमता का विकास यह केतु अपने आप करवा लेता है,गोचर से जहां जहां यह केतु जाता है अपने अनुसार उसी भाव का फ़ल देता जाता है,राहु और केतु की चाल उल्टी होती है,तो जो व्यक्ति सीधे रास्ते से चलता है लोगों के अन्दर साधारण आदमी माना जाता है लेकिन जो कुछ अलग से और उल्टे रूप में चलता है वह अपने नाम को कमाने में जाना जाता है।
मिथुन के केतु की तीसरी नजर तीसरे भाव में सिंह राशि में होती है,यह राशि बुद्धि के लिये मानी जाती है,जब कोई केतु रूपी साधन सरकार से सम्बन्ध रखने वाली बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाली सन्तान से सम्बन्ध रखने वाली मनोरन्जन और खेलकूद से सम्बन्ध रखने वाली हो साथ ही वह अपने अहम के लिये भी जानी जाती हो तो जातक के लिये हमेशा फ़लीभूत करने वाली होती है। तीसरे भाव का सीधा सम्पर्क सप्तम से भी होता है और सप्तम का राहु इस भाव में अपना असर देता है तो व्यक्ति के अन्दर कलाकारी का भूत सवार कर देता है,और इस भाव में अगर किसी प्रकार से शुक्र का बैठना बन जाये तो जातक बुद्धि के मामले में मनोरंजन और कम्पयूटर की एमीनेशन चित्रकारी कपडों के कामो के लिये औरतों को सजाने संवारने के लिये मनोरन्जन के मामले में खेल कूद के मामले में अपने नाम को कमाता चला जाता है लेकिन यह राहु शुक्र का असर जीवन के शुरु में तो मनोरन्जन और कलाकारी को प्रदान करता है तथा जवानी में स्त्री सम्पर्क और लव अफ़ेयर आदि की बात करता है बुढापे में चमक दमक वाली सम्पत्ति को इकट्ठा करने और अपने नाम को चमकाने के लिये अपने कार्यों को करने के लिये माना जाता है शुक्र सजावटी कामों के लिये जाना जाता है साथ ही केतु की शक्ति से अपने को कलम या ब्रुस का भी हुनरमंद होने के लिये भी संसार में उपस्थित करता है। इस भाव का मालिक कालपुरुष के अनुसार बुध है बुध हमेशा गणित और बोलने की शक्ति को प्रदान करने वाला है,अगर बुध किसी प्रकार से इस भाव से अपना सम्बन्ध रख लेता है तो व्यक्ति को एक्टर बनाने की पूरी की पूरी शक्ति प्रदान कर देता है,व्यक्ति बोलने में अपने प्रदर्शन करने में किसी से कम नही होता है। वह कपडों को पहिनें ड्रेस को बनवाने में और बनाने में वक्त के अनुसार सजाने में टीवी मीडिया कैमरा के सामने आने में विज्ञापन आदि को प्रदर्शित करने में अपनी कला का पूरा का पूरा प्रयोग कर सकता है,अक्सर इस प्रकार के लोग अगर किसी प्रकार से फ़ैसन डिजायन आदि में आजाते है तो उनका नाम हमेशा के लिये केवल फ़ैशन वाले कामो के लिये जाना जाता है। अगर इस भाव में गुरु का सम्बन्ध बन जाये तो व्यक्ति को अपने को शिक्षा या कानून के मामले में अथवा किसी प्रकार पत्नी को शिक्षा वाले मामले में जाना पडता है अथवा शादी करने के लिये किसी शिक्षा या कपडे के व्यवसाय के अन्दर अपने को रखने वाले व्यक्ति से अपना सम्पर्क रखने के लिये माना जाता है। इस राशि के केतु का पंचम में स्थापित ग्रहों और तुला राशि से होता है,तुला राशि को बेलेन्स बनाने की राशि मानी जाती है,अगर जातक का रुझान जरा भी खेल कूद में जाता है तो व्यक्ति के लिये हिम्मत और पराक्रम के लिये अपने को प्रदर्शित करने में कोई परेशानी नही होती है। इस प्रकार का व्यक्ति एक अच्छे खिलाडी के रूप में अपने को सामने ला सकता है,लेकिन शिक्षा मे जाने के बाद अगर वह खेलकूद का शिक्षक बन जाता है तो उसे हमेशा अपनी मानसिकता को मार मार कर जीना पडता है। केतु का प्रभाव पंचम के मंगल पर जाने के बाद जातक के लिये बुद्धि और परिवार से शेर कुत्ते की लडाई जैसा माहौल बन जाता है प्राथमिक शिक्षा के जमाने से ही जातक को दादागीरी करने का शौक पैदा हो जाता है और नौकरी आदि के मामले में वह हमेशा अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों से बडे बडे अधिकारियों के लिये आफ़त की पुडिया बना रहता है। मिथुन राशि के लिये शनि अपमान देने और जान जोखिम के लिये भी माना जाता है दूसरे उसके लिये अपमान और रिस्क वाले काम ही भाग्य के कारक बन जाते है। अगर मिथुन लगन में धन का स्वामी चन्द्रमा चौथे भाव मे हो साथ ही सूर्य जो तीसरे भाव का मालिक है साथ हो तथा चौथे भाव की राशि कन्या का प्रभाव सूर्य और चन्द्र पर हो तो माता पिता की कठिन कमाई से परिवार का बेलेंस बैठाने और अचानक आने वाले खर्चे तथा उनके पूर्वजों के कृत्य को भुगतने के कारण कोई भी साधन नही बन पाता है,बुध भी साथ हो तो किसी न किसी प्रकार से धन कमाने वाले बैंकिंग आदि के काम लेबर यूनियन के काम मेहनत से किये जाने वाले काम माने जाते है,इस केतु को अगर मंगल का असर व्याप्त हो तो शनि केतु का इकट्ठा प्रयोग फ़ायदा देने वाला होता है,इसके लिये काले रंग का धागा गले मे पहिनना पड्ता है,नाखूनो को साफ़ करने के बाद तथा सिर के बाल बढाने पर भी केतु का असर खराब होता है.

बुध का लालकिताबी रूप

"छठा तीसरा बारह बैठा वक्त घात वो करता है,
उलटा सीधा कैसे भी हो नहीं किसी से डरता है,
कथनी का घर दूजा होता करे दिखावा तीजा है,
चौथा मन में रख कर चलता समय का यही नतीजा है,
पंचम हँसे हँसावे सबको छठा गुप्त मर जाता है,
और सातवा बहिन को भोगे बात बदल डर जाता है,
अष्टम झूठा और फरेबी नवम् फिसलता किस्मत से,
दसवा राज भोग से पूरा हुकुम चलावे दस्तखत से,
भाव ग्यारह में जब जाता बड़ी बुआ बन जाता है,
यारो बुध का रूप यही है क्या से क्या कर जाता है."
अर्थ :-
बुध जब छठे भाव में हो तो मीठा बनकर लूटने में माहिर होता है,तीसरे भाव में हो तो बाते बनाने में माहिर होता है,वक्री हो या मार्गी हो वह अपनी आदत को नहीं बदलता है,बात बनाने के साथ बातो के रूप में ही वह धनवान होता है जब बुध का स्थान दूसरे भाव में हो,तीजा अपने को बात वाला बनकर दिखाने में माहिर होता है कानूनी रूप से बातो को करता है,चौथा कही हुई बात को मन में रखकर चलने वाला होता है और जो बात मन में रखकर चलता है उस बात की एवज में कब घात कर दे कोई पता नहीं होता है,माता से भी बनिया व्यवहार कर सकता है,हंसी करके मखौल करके चुटकुले सुनाकर लूटने में पंचम को माना जाता है,छठा तो मीठा होता ही है,सातवा अगर स्त्री है तो उसे भाई जैसे पुरुष के साथ और पुरुष है तो बहिन जैसी स्त्री के साथ घराने बनाकर रहने में कोई संकोच नहीं होता है,आठवा जो भी कहेगा वह सौ में एक ही सच्ची होगी,नवा कब भाग्य को एन वक्त पर पलट दे कोई पता नहीं होता है दसवा हुकुम देकर काम करवाने वाला होता है ग्यारहवा भाई की औलाद को प्यार देने वाला होता है.

गोमती चक्र नजर दोष और वास्तु

समुद्री किनारों पर लोग सीप से मिलते जुलते सामान को खोजते रहते है,गोदावरी नदी के किनारे पर अक्सर गोमती चक्र पडे मिल जाते है,इनकी पहिचान को करने के लिये अगर पलट कर देखा जाये तो हिन्दी संख्या ७ लिखी मिलती है। इस अंक का प्रकृति के द्वारा सफ़ेद वस्तु पर लिखा पाया जाना और इस अंक का राहु से सम्बन्ध रखना दोनो के मेल से राहु चन्द्र शनि की उपस्थिति को मानना ही गोमती चक्र की महानता को पूरा करता है। शनि चन्द्र की युति वैसे तो प्लास्टर आप पेरिस में भी मिलती है और राहु के कारण उसके अन्दर जल्दी से जमाव का कारण भी मिलता है,इसके साथ चूने के अन्दर भी शनि चन्द्र राहु की उपस्थिति मिलती है लेकिन राहु का साक्षात प्रभाव मिलना केवल प्लास्टर आफ़ पेरिस में और चूने में मिलाये जाने वाली पानी के मिलने तक ही माना जा सकता है। जैसे ही पानी को मिलाया जाता है राहु अपने प्रभाव को समाप्त कर देता है और केव्ल शनि चन्द्र का मरा हुआ रूप ही सामने रहता है इसलिये ही प्लास्टर आप पेरिस और चूने को पानी रहने तक ही कार्य में लिया जा सकता है जैसे ही पानी सूखा और इनकी शक्ति को खत्म मान लिया जाता है। गोमती चक्र के अन्दर बिगुल के आकार की बनावट और राहु का हमेशा के लिये प्रभाव को बनाये रखने के लिये लोग कई तरह से इसे प्रयोग में लाते है।

कुन्डली के अनुसार लगन का राहु अगर शनि से युति करता है और शनि का प्रभाव अगर अष्टम के फ़ल को देने वाला होता है तो व्यक्ति के अन्दर शैतानी आंख की शक्ति को देता है अगर ऐसा व्यक्ति किसी के अच्छे कारण को देख ले तो उसके द्वारा देखे जाने या जलन रखने के कारण ही उस वस्तु व्यक्ति या स्थान पर दिक्कते पैदा हो जाती है। अक्सर इस प्रकार के राहु के प्रभाव को दूर करने के लिये लोग मोर पंख से झाडा लगाने का कार्य करते है और मोर पंख में इतनी ताकत होती है कि वह राहु के इस प्रकार के प्रभाव को दूर करने के लिये काफ़ी माना जाता है। दूध पीने वाले बच्चे या नया बना हुआ मकान राहु शनि की इस प्रकार की द्रिष्टि को रखने वाले व्यक्ति की नजर में आते ही अपनी ताकत को समाप्त करने लगते है बच्चे को तो मोर पंख से झाडा देकर ठीक किया जा सकता है लेकिन मकान के अन्दर मोर पंख की बिसात नही चल पाती है। इसके लिये केवल गोमती चक्र को ही प्रयोग में लिया जाता है और यही बात चलते हुये व्यवसाय के लिये भी माना जा सकता है। जो व्यवसाय कल तक बहुत अच्छा चल रहा था और अचानक आज से क्या हुआ कि कोई ग्राहक मुड कर भी नही देख रहा है,इस बात को समझने के लिये आप ने कभी महसूस किया होगा कि जब आप बाजार जाते है और कोई सामान आपको लेना होता है एक दुकान पर काफ़ी भीड जमा होती है और एक दुकान वाला मक्खियां मार रहा होता है जबकि उसके पास भीड वाली दुकान से अधिक अच्छा और सस्ता सामान रखा दिखाई देता है लेकिन उस स्थान की तरफ़ जाने में पता नही क्यों आपके कदम नही मुडते है। यह प्रभाव ही राहु शनि के प्रभाव से युक्त माना जाता है। अगर इस प्रकार के व्यवसाय स्थान से कोई सामान ले भी लिया जाये तो उसके अन्दर कोई न कोई कमी जरूर मिलती है,भोजन वाला सामान है तो वह खाने पीने के बाद दिक्कत कर देता है और पहिनने वाला सामान है तो या तो वह जल जाता है फ़ट जाता है अथवा चोरी होजाता है या किसी कारण से पहिना ही नही जा सकता है। यही बात वाहन के लिये भी मानी जाती है उसी रास्ते से सभी वाहन जा रहे है लेकिन अचानक झपकी लगी और खरीदे गये वाहन की ऐसी की तैसी होने में देर नही लगती है,उसका भी कारण माना जाता है कि वाहन को किसी की नजर लगी है या वाहन को चलाने वाले पर किसी की नजर लगी है। वाहन के लिये भी गोमती चक्र अपने प्रकार की शक्ति से बचाकर रखता है,और द्रिष्टि दोष से दूर रखने में मदद करता है। इसे बच्चे को पहिना कर रखा जाये या धन स्थान में रखा जाये अथवा कार्य स्थान में अपने दाहिने हाथ की तरफ़ रखा जाये यह किसी भी प्रकार से अपने असर को खराब नही करता है।

मकान के वास्तु दोष के लिये भी इसका प्रयोग किया जाता है, चार गोमती चक्र को निश्चित मुहूर्त में सिन्दूर के साथ लाल कपडे में बांध कर मकान के मुख्य दरवाजे के ऊपर अन्दर की तरफ़ लटका देने से किसी भी प्रकार का वास्तु दोष होने पर उसके अन्दर सहायता मिलती है। अगर हर कमरे के बाहर की तरफ़ इसी प्रकार से लटका दिया जाये तो भोजन शयन शिक्षा और मेहमान आदि के प्रति अच्छे प्रभाव देखने को मिलते है।

व्यवसाय स्थान पर पीतल के लोटे में जल रखा जाये और साथ गोमती चक्र उसके अन्दर डालकर खुला रखा जाये तथा जिस स्थान पर व्यापारी की बैठक है उसके दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे ऊपर की तरफ़ स्थापित करने के बाद रखा जाये सुबह को उस लोटे से सभी गोमती चक्र को निकाल कर उस पानी को व्यसाय स्थान के बाहर छिडक दिया जाये और नया पानी भरकर फ़िर से गोमती चक्र डालकर रख दिया जाये तो व्यवसाय में बारह दिन के अन्दर ही फ़र्क मिलना शुरु हो जाता है।

जिस बच्चे को नजर लगती हो उसके गले में गोमती चक्र को मोर पंख के ऊपरी हिस्से के साथ लाल रंग के कपडे में ताबीज की तरह से बांध कर और लाल ऊन के धागे में गले में पहिना दिया जाये तो नजर दोष दूर होता देखा गया है इसके साथ बच्चे के अन्दर बुद्धि का तेज प्रभाव भी देखा गया है।

लाल चन्दन के साथ गोमती चक्र को घिस कर माथे पर तिलक जैसा लगाने के बाद किसी भी कोर्ट केश विवाद या किसी प्रतियोगिता में जाने से भी फ़र्क मिलता देखा गया है।

पति पत्नी सम्बन्धो में विवाद के चलते गोमती चक्र को चांदी की अंगूठी में उल्टा लगवा कर एक साथ पहिनने पर भी सम्बन्धो में सुधार देखा गया है।

सन्तान हीनता में गोमती चक्र को एक चम्मच शहद में सात फ़ेरा किसी पत्थर पर घिस कर एक गिलास दूध के साथ बासी पेट लेने से सन्तान के आने का कारण देखा गया है।

मति भ्रम वाले रोगों में चार तुलसी के पत्तों के साथ गोमती चक्र को हरे कपडे में ताबीज की तरह बांध कर हरी ऊन के धागे में बांध कर गले में पहिनने से भी मति भ्रम वाले रोगों में फ़ायदा होता देखा गया है।

वाहन के लगातार एक्सीडेंट होने पर गोमती चक्र को वाहन के आगे एरल्डाइट से चिपका कर ऊपर से स्वास्तिक का निशान बनाने से वाहन के साथ होने वाली दुर्घटना को भी कम होता देखा गया है।


वास्तु से दिशा बन्धन

हमेशा यह जरूरी नही है कि आपके द्वारा बनाया गया मकान वास्तु के नियमों से पूरा ही हो,साथ ही यह भी जरूरी नही है कि मकान को बनाने के बाद उसकी कटाई छटाई की जाय,जिस प्रकार से शरीर में जीव रहता है और शरीर के किसी हिस्से में बनाव बिगाड करने पर दर्द और उस अंग के पुन:निर्माण में समय लगता है और जरूरी भी नही है कि जो अंग दुबारा बनाया गया है वह सही तरीके से कार्य ही करने लगे।यह भी हो सकता है कि जिस अंग का निर्माण किया गया है वह दुबारा से निर्मित होने के बाद अपनी गति ही भूल जाये। उसी प्रकार से मकान को बनाने के बाद भी उसके अन्दर मनुष्य रूपी जीव रहता है,और मकान का प्रत्येक अंग अपने अपने अनुसार कार्य नही करता है तो मनुष्य रूपी जीव उस मकान के अन्दर दुखी रहेगा। उस दुख के कारण वह अपने कार्यों और मानसिक भावनाओं का विकाश भी नही कर पायेगा,जब सभी बाते सही नही मिलेगी तो जीव का आना और नही आना बेकार ही हो गया। जिन लोगों का विश्वास वास्तु पर नही उन्हे केवल इतना पता होता है कि बरसात होने पर छतरी का प्रयोग करने के बाद भीगने से बचाया जा सकता है या बरसात होने पर रास्ते के किसी सार्वजनिक शेड में खडे रहकर अपने को भीगने से बचाया जा सकता है,लेकिन बरसात होने पर चैन की नींद अपने घर के अन्दर ही आ सकती है छतरी के नीचे या किसी सार्वजनिक शेड के नीचे नही,उसी प्रकार से व्यक्ति अपनी भूख को कुछ समय के लिये तो किसी भी होटल में खाना खा कर मिटा सकता है लेकिन शांति और चैन का भोजन अपने ही घर पर प्राप्त होता है। इसी प्रकार से जीवन के सभी क्षेत्रों की तरफ़ देखा जा सकता है। अगर वास्तु से मकान बना है और पानी की जगह पानी आग की जगह आग हवा की जगह हवा और मजबूती की जगह मजबूत और चिरस्थाई जमीन पर भवन का निर्माण वास्तु अनुरूप किया गया है तो भवन रहने वाले व्यक्ति के लिये हमेशा सुख देने वाला और बलवान भाग्य के निर्माण में सहायक होगा। जैसे पानी का स्थान भवन में इकट्ठा करने का है वह ब्रह्म स्थान से हटकर थोडा सा पूर्व दिशा की तरफ़ है,और पूर्व दिशा से पानी की आवक है,उसी प्रकार से शरीर में मुंह के बायें हिस्से से पानी की ग्रन्थिया सजीव रहती है और ह्रदय के नीचे पानी का इकट्ठा रहना मिलता है,जिस प्रकार से शरीर के दाहिने हिस्से में आग की प्रबलता होती है उसी प्रकार से मकान के दाहिने हिस्से में रसोई के निर्माण का उपयोग किया जाता है। कहने के लिये तो कई वास्तु विद कहते है कि मकान के नैऋत्य कोण में घर के मुखिया का निवास होना चाहिये,लेकिन नैऋत्य कोण शरीर के अन्दर दाहिना पुट्ठा होता है,क्या शरीर के अन्दर जीव का निवास इसी हिस्से में होता है,यह बात कदापि नही है,मकान के अन्दर घर के मुखिया का निवास हमेशा ब्रह्मस्थान में होना जरूरी है जिस प्रकार से ह्रदय और आत्मा के स्थान को शरीर के बायें हिस्से में निवासित किया गया है उसी प्रकार से मकान के ईशान से नीचे के हिस्से में घर के मुखिया का निवास होना जरूरी है।

मकान के अन्दर दोष होने से या किसी प्रकार से मकान के दोषी बना लेने से जब घर के मुखिया को परेशानी होने लगे तो मकान का दिशा बन्धन करवा लेना चाहिये। दिशा बन्धन करवा लेने से मकान के दोषों का शमन उसी प्रकार से होता है जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति अमृत को प्राप्त कर जाये। यह दिशा बन्धन करने के लिये हवा पानी आग और मिट्टी का प्रयोग यथा स्थान पर किया जाता है। रोजाना शाम के समय जब सूर्यास्त हो जाता है तो मकान की छत पर और मकान की छत नही होने पर मकान के अन्दर चारों दिशाओं में पूर्व में पानी का रखा जाना पश्चिम में किसी मिट्टी वाली वस्तु का रखा जाना दक्षिण में आग के रूप में अगरबत्ती आदि जलाना और उत्तर में किसी गुब्बारे आदि का रखा जाना या हवा से चलने वाले वाद्य यंत्र का बजाना आदि वास्तु के लिये दिशा बन्धन का कार्य कार्य करता है,यह दिशा बन्धन वर्ष में एक दिन किसी पूर्णमाशी के दिन किया जाता है और चारों दिशाओं में यह कार्य करने के बाद ग्रह स्वामी उत्तर पूर्व के कोने से थोडा बीच की तरफ़ पूर्व की तरफ़ मुंह करने के बाद गायत्री मंत्र का अपनी राशि के अनुसार एक या जितनी भी श्रद्धा या शक्ति हो उतनी माला का जाप करे।