कर्म

कर्म
कार्य का दूसरा नाम ही कर्म कहा जाता है,कर्म के विभिन्न नाम और दिये गये है,विरति,कारज,काज और जो भी संसार का जीवित जगत कर रहा है,वही कर्म कहलाता है,बिना कर्म के कोई अच्छा या बुरा परिणाम नही होसकता है,अच्छा कर्म किया जायेगा तो अच्छा फ़ल मिलेगा,और खराब कार्म को करने पर खराब फ़ल मिलेगा,"जो जस करिय सो तस फ़ल चाखा",गोस्वामी तुलसी दासजी की रामायण में बहुत ही अच्छी तरह से समझाकर लिखा गया है,रामायण में ही ज्योतिष शास्त्र के गूढ शब्दों का भी विवेचन किया गया है,जो लोग रामायण को अपने जीवन का आदर्श ग्रंथ मानकर चलते है,वास्तव में वे सदाचारी होते है.तुलसीकृत रामायण में कर्म के लिये बहुत ही अच्छी चौपाई लिखी गयी है,"धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना",संसार मे सभी किये जाने वाले कर्म केवल धर्म से ही पैदा होते है,और जब धर्म से कर्म पैदा होते हैं,तो कर्म को किये जाने के बाद उनसे ज्ञान नाम फ़ल मिलता है,और जो ज्ञान नाम फ़ल का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों मे किया जाता है,तो मोक्ष नाम शांति मिलती है.यह चौपाई ज्योतिष के नवें भाव धर्म,और दसवें भाव कर्म,ग्यारहवें भाव फ़ल की प्राप्तियां,और बारहवें भाव खर्च करने की क्रिया को बहुत ही सुन्दर रूप से प्रस्तुत करती है.
===धर्म से कर्म===
[[धर्म]] को समझने के लिये [[धर्म]] को ही पढना पडेगा,लेकिन जो बृह्त रूप से अर्थ लिया जाता है,वह सुबह से लेकर शाम तक की क्रियायें,महिने के शुरुआत से लेकर महिने के अन्त तक की क्रियायें,और साल के शुरु से लेकर साल के अन्त तक की क्रियायें,जीवन के शुरु से लेकर जीवन के अन्त तक की क्रियाओं के अन्दर जो मुख्य बात छुपी है वह [[धर्म]] ही छुपा हुआ है,[[हिन्दू]] [[धर्म]] के अन्दर पैदा होने वाला जातक जो भी कर्म करेगा वह [[हिन्दू]] [[धर्म]] के अनुसार ही करेगा,अपने को जो प्राथमिक रूप से ध्यान रखने वाली बात के अन्दर रखेगा वह [[धर्म]] पहली बात ही होगी,[[धर्म]] का [[अर्थ]] केवल मन्दिर,मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारा में पूजा पाठ या इबादत करने से ही नही लिया जाता है,सबसे बडा [[अर्थ]] जो लिया जाता है वह अपने पिछले [[संस्कार]],पुरानी मान्यतायें,और पूर्वजों के अनुसार ही माना जा सकता है.[[हिन्दू]] के कर्म होंगे वे पहले अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाये गये कर्मों के अनुसार ही माने जायेंगे,अधिक नही तो जीवन की पहली सीढी तक तो अपनाने जरूरी ही माने जा सकते हैं,जैसे बच्चा जब समझदार होता जाता है,वैसे ही जो भी कर्म करता है,वे अपने माता पिता के अनुसार ही करता जाता है,वह बात अलग है कि जब वह अपने में इतना सक्षम हो जाता है कि वह अलावा धर्म के अनुसार अपने को ढालना चाहता है,तो ढाल भी लेता है,लेकिन अगर वह अलावा धर्मों की तरफ़ जाता है तो या तो वह अपने को अपने धर्म से पीछे रख देता है,या फ़िर अपने [[धर्म]] से बिमुख ही हो जाता है.जैसे एक उदाहरण है कि मैं खुद ही एक क्षत्रिय राजपूत खानदान भदौरिया जाति में पैदा हुआ हूँ,जबतक समर्थ नही हुआ,पिता के साथ मिलकर घर के कामों के लिये जो भी काम खेती आदि के होते हैं करता रहा,शादी होने के बाद जब [[अर्थ]] की जरूरत पडी तो माता पिता को छोडने के लिये मजबूर होना पडा,गांव जन्म स्थान सभी को छोड कर जयपुर में आकर बसा,और मेहनत वाले काम जानने के कारण केवल मेहनत करने वाले लोगों के साथ ही रहना पडा,मेहनत करने वाले कर्मों का एक ही उद्देश्य होता है,वह होता है केवल [[अर्थ]] सिद्धि,पैसा कमाना,मेहनत मे अपने शरीर को प्रयोग करना और बुद्धि का प्रयोग केवल मेहनत वाले कामों के अन्दर किस तरह से मेहनत करनी है में ही लगाना,जिन लोगो के साथ मेहनत वाले कर्म करने थे,वे सभी पूजा पाठी धर्मों के लोग थे,लेकिन उनका केवल एक ही [[धर्म]] था,और वह था,पेट पूजा का [[धर्म]],पेट पूजा के [[धर्म]] में कर्म का करना बहुत ही जरूरी हो जाता है,वह कर्म चाहे मेहनत करने के द्वारा फ़ावडा चलाकर शाम को मिलने वाली मजदूरी के द्वारा हो या फ़िर हाथ ठेली से लोगों का सामान ढोकर मिलने वाली मजदूरी से हो,इस मेहनत वाले कर्मों के अन्दर कितने ही काम आ जाते है,जो शरीर को प्रयोग करने के बाद [[अर्थ]] साधन की जरूरत को पूरा करदेते है.लेकिन इन सब कामों के अन्दर शरीर की बहुत अधिक जरूरत पडती है,शरीर को पालने के लिये माता पिता और समाज की जरूरत पडती है,शरीर की रक्षा करने के लिये भी समाज और गांव की जरूरत पडती है,तो जिस जगह पर मनुष्य निवास करता है,उस स्थान की खुशी में खुश रहना,उस स्थान की गमी में गम करना भी मुख्य [[धर्म]] माना जाता है,[[धर्म]] को न पालने पर कर्म के अन्दर हील हुज्जत आ जाती है,जैसे एक ईसाई मुहल्ले मे रहना है,क्रिसमिस के दिन सभी अपने घरों को गुब्बारों और सितारों से सजाते हैं,"ईसामसीह" जिनका उल्टा नाम समझने से "हंसी मे सांई" का सीधा [[अर्थ]] आ जाता है,की इबादत और प्रार्थना करनी पडती है,को न करने पर बगल वाला पडौसी ही नफ़रत भरी द्रष्टि से देखना चालू कर देता है,और कोई मिलने वाला भी आता है बगल वाले पडौसी से पता पूंछता है,तो वह पता नही है कहकर सीधा मानसिक प्रहार करता है,मानसिक प्रहार के कारण जो मिलने जुलने वाले लोग है,वे भी दूर और दूर होते जाते हैं,अक्सर कहा जाता है,कि अगले को तो पडौसी भी नही जानते,तो उसका क्या भरोसा,और कर्म के अन्दर कितनी ही दखलंदाजी पैदा हो जाती हैं.आज के राजनीतिक लोग जो फ़ायदा उठा रहे हैं वह [[धर्म]] का फ़ायदा ही तो उठा रहे हैं,[[काग्रेस]] मुसलमानों और पंडितों का फ़ायदा उठा रही है,मुसलमानों का इसलिये के भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादाजी,का असली नाम ग्यासुद्दीन गाजी था,और उन्होने ब्रिटिस सेना से बचने के लिये अपना नाम बदल कर "गंगाधर" रख लिया था,इन्हीं बने हुए ब्राहम्ण गंगाधर के मोतीलाल हुए और कालचक्र की कसौटी पर पंडित बन गये,फ़िर इतिहास स्वर्गीय इन्दिरा गांधी ने अपनाया और फ़िरोजखांन से शादी करने के बाद उन्हें गांधी जी ने गांधी बना दिया.[[भाजपा]] भी [[धर्म]] को भुनाकर अपनी राजनीति कर रही है,सुश्री मायावती भी समाज को वर्गीकृत करने के बाद राजनीति कर रही है.लेकिन जो सबसे बडा [[धर्म]] पेट पूजा वाला [[धर्म]] न किया जाये,तो किये जाने वाले कर्म को व्यक्ति कहां से कर पायेगा.
===कर्म से अर्थ===
कर्म के कितने ही रूप आज सामने है,कोई नौकरी करने को कर्म मानते है,नौकरी दूसरों की सेवा करने के बाद मिली हुई तन्खाह यानी [[अर्थ]] है,और कोई अपने सामान को बेचने और दूसरों का खरीदने का कर्म कर रहे है,वे व्यवसायी कहलाते है,कोई खेती का कर्म करने के बाद लोगों का पेट पालने के लिये अन्न आदि का उत्पादन कर रहे है, और बदले में अन्न को बेच कर अपने परिवार की अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे है,कुन्डली का दूसरा भाव ही भौतिक धन का का कारक कहा जाता है,और व्यक्ति के शरीर और नाम के बाद धन की मात्रा का ही ज्ञान किया जाता है,वह धन जो भौतिक रूप से दिखाई देने वाले होता है,सोना,चांदी,जेवरात,हीरे जवाहारात,नगद रुपया आदि इसी भाव से देखे जाते है.व्यक्ति का प्रत्येक कार्य धन कीमापना से देखने के कारण जो लोग दूसरों के प्रति उनकी भलाई आदि का भाव भी रखते है वह भी समय आने पर भुनाने की कोशिश करते है,एक बाप अपने बेटे को पालता है पढाता है लिखाता है और जब वह समर्थ हो जाता है तो बुढापे के लिये आशा रखता है, कि वह उनकी कमजोरी की हालात में सहायता करता है,लेकिन वही लडका अगर किसी कारण से उस समाज में जाकर घिर जाता है,जहां पर माता पिता को मान्यता ही नही देते है,माता और पिता बच्चे को पैदा जरूर करते है उनकी समय की जरूरतों को भी पूरा करते है लेकिन अधिकतर मामलो मे वे जब स्वतन्त्र प्रकृति के हो जाते है तो उनको ख्याल ही नही रहता है कि कोई उनके लिये जीवन रूपी रास्ते मे आशा लगाकर भी बैठा है,कर्म किया जाता है,कर्म का मतलब अगर हर तरह से अर्थ से लिया जायेगा तो माता पिता का प्यार बच्चे को पैदा करने के बाद प्रसव की पीडा उसकी हर प्रकार की परवरिश का परिमाप किसी भी प्रकार से धन से तो लगाया नही जा सकता है,अपने से छोटे भाई बहिनो को बताये जाने वाले रास्तों के लिये उनसे समाधान की फ़ीस तो नही ली जा सकती है,अपने साथ अपने घर मे रखने पर उनसे किराया तो नही लिया जा सकता है,उनको जो भी शिक्षात्मक बातें बताईं जाती है,उनके लिये चार्ज तो नही किया जाता है,बीमारी कर्जा और दुश्मनी मे उनसे सभी खर्च तो नही लिये जाते है,उनकी शादी करने और और उनके लिये पति या पत्नी खोजने के लिये मैरिज ब्यूरो की तरह् से धन का कमीशन तो नही लिया जाता है,उनमे अगर किसी की मृत्यु हो जाती है,तो उनसे शमशानघात तक लेजाने और उनकी क्रिया कर्म करने की फ़ीस तो चार्ज नही की जा सकती है,उनके जन्म के बाद जो भी जायदाद का हिस्सा होत अहै उसमे से उनको बेदखल तो नही किया जा सकता है,वे जिसे पिता कहते है वही पिता सामने वाले का भी होता है,उससे अंकल कह कर तो नही बुलाया जाता है,अगर रास्ते में कोई मित्र मिल जात अहै और पूंछता है कि क्या आप अमुक के ब्डे भाई है तो आप यह तो नही कह सकते कि नही उससे मेरा कोई रिस्ता नही है,और वक्त पर जब उसे कही जाना होता है तो वह अगर आपकी सहायता चाहता है,तो आप मना तो नही कर सकते है कि नही आप किसी अजनबी की तरह यह कह देम्गे कि अभी आपके पास समय नही है,यह सब बाते कर्म और कर्म के बदले में धन की चाहत परिवार और खासकर अपने लोगो के साथ नही मानी जाती है,मैने कितने ही राजस्थानी लोगो को देखा है,हम सब तो भाई बहिनो तक ही सीमित होकर रह गये है,यहां पर जब जमात जुडती है तो पिता के भाई की पत्नी के भाई का साला और उसके भी रिस्ते दारों का ख्याल किया जाता है,और इसका प्रभाव यह भी होता है कि कोई भी काम सरकारी रूप मे अटक जाता है,या पुलिस आदि किसी को परेशान करती है तो व्यक्ति सीधी जान पहिचान करने के बाद ही बेदाग बच जाता है और उसी जगह पर जो राजस्थान का निवासी नही है,कितनी ही कोशिश करे,वह नही बच पाता है,तो जो फ़ायदा वंशानुगत जान पहिचान से कर्म करने से होता है,वह साधारण रूप से केवल मुद्रा तक ही सीमित होता है,उस मुद्रा में अपनत्व नही होता है.
===अर्थ से संतुष्टि===
कार्य करने के बाद जो भी बदले मे पारिश्रमिक मिलता है,उसे ही किये जाने वाले कार्य की संतुष्टि या फ़ल कहते हैं,नौकरी करने के बाद जो तन्खाह मिली उसे अपने परिवार या निजी इच्छा पूर्ति के लिये खर्च करने के बाद जो मानसिक प्रतिफ़ल मिला वही अर्थ की सम्तुष्ति कहलाती है.यह बात ज्योतिष के अनुसार ग्यारहवां घर तो फ़ल का है और उस मिले फ़ल को प्रयोग करना,जैसे पैसे के रूप में फ़ल मिला तो खर्च करने से और अगर खाने के रूप मे फ़ल मिला तो शरीर को पालने के लिये,और नाम के रूप मे फ़ल मिला तो उसे समाज मे बताकर आगे की प्रभुता लेने के लिये प्रयोग करने पर जो भावनात्मक इच्छापूर्ति होती है वही शांति या मोक्ष कहलाती है.इस प्रकार से तुलसीदास जी की रचित चौपाई का अर्थ धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना,और ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना,को माना जकता है.
नोट:- यह लेख मैने विश्व की प्रसिद्ध साइट विकिपीडिया के लिये लिखा था,उसके अन्दर प्रकाशित भी है.

वर्ण गुण बोधक चक्र (Varna Gun Bodhak Chakra)

वर्ण गुण बोधक चक्र (Varna Gun Bodhak Chakra)

वर्ण चक्र (Varna Chakra) से किस प्रकार गुण मिलाये जाते हैं, इसके परिणाम की यहां विवेचना करते हैं। अष्टकूट मिलान करते समय वर्ण गुण बोधक चक्र में अगर वर का राशि वर्ण शूद्र एवं कन्या का राशि वर्ण ब्राह्मण ज्ञात होता है तब स्थिति अनुलोम मानी जाती है क्योंकि कन्या की राशि पुरूष की राशि से पहले हुई। इस स्थिति में वर कन्या के वर्ण गुण का योग शून्य आता है। इस योग को सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इस स्थिति में अगर विवाह (Marriage) सम्पन्न किया जाता है तब पति को कष्ट होता है या विदेश जाना पड़ता है साथ ही संतान सम्बन्धी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।

वर्ण गुण बोधक चक्र में योग द्वारा अंकों का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है इसे आप उदाहरण से स्पष्ट समझ सकते हैं मान लीजिए वर का जन्म स्वाति नक्षत्र (Swati Nakshatra) में एवं तुला राशि में हुआ हो और कन्या का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र (Punarvashu Nakshatra) के चतुर्थ चरण एवं कर्क राशि में हुआ है तो इस स्थिति में अष्टकूट मिलान करने पर वर का राशि वर्ण शूद्र एवं कन्या का राशि वर्ण ब्राह्मण होता है।

शास्त्रों की मानें तो उनमें निर्देश दिया गया है कि कन्या की राशि अगर पुरूष की राशि से पहले हो तो विवाह नही करना चाहिए। इस सम्बन्ध में यह बताया गया है कि अनुलोम विवाह से वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति बनी रहती है। इन स्थितियों में दोष नहीं लगता है: 1. यदि वर और कन्या दोनों की राशि एक हो।

2.वर-वधू के राशीश (Lord of Zodic Sign) परस्पर मित्र हों।

3.वर-वधू के नवांशेश परस्पर मित्र हों।

4.वर-वधू के नवांशेश एक हों।

कुन्डली मिलान

कुन्डली मिलान

हम सभी चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन में सौहार्द एवं परस्पर सामंजस्य बना (Astrology for marriage compatibility) रहे। परंतु कई बार वैवाहिक जीवन में इस तरह गतिरोध उत्पन्न होने लगता है कि पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ती चली जाती हैं और सम्बन्ध विच्छेद तक हो जाता है।
इस तरह की स्थिति न आये और वैवाहिक जीवन सुखमय रहे इसके लिए हमारे समाज में कुण्डली मिलान (Marriage kundali matching) किया जाता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि विवाह के संदर्भ में जब कुण्डली मिलान किया जाता है तब इसमें मुख्य रूप से अष्टकूट मिलान किया जाता है और इसी से निष्कर्ष निकाला जाता है कि जिन दो स्त्री-पुरूष की कुण्डली मिलायी जा रही है उनका वैवाहिक जीवन सफल रहेगा अथवा नहीं।

ज्योतिर्विद कहते हैं कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपनी साधना एवं योग शक्ति के आधार पर जिन सूत्रों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उन्हें अष्टकूट के नाम से जाना जाता है। अष्टकूटों में 36 गुणों का योग होता है। अष्टकूट (Asht Kuta) कौन-कौन से एवं कितने प्रकार के होते हैं तथा किस प्रकार वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं, आइये इसकी व्याख्या करते हैं।

1. वर्णकूट विचार: (Varna kuta Consideration)

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशियों के चार वर्ण होते हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। राशियों में वर्ण विभाजन क्रमश: इस प्रकार से किया गया है, कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशियों को ब्राह्मण वर्ण की श्रेणी में रखा गया है। सिंह, धनु एवं मेष राशियों का वर्ण क्षत्रीय होता है, कन्या, मकर एवं वृष राशियों को वैश्य वर्ण का नाम दिया गया है जबकि तुला, कुम्भ एवं मिथुन राशियों को शूद्र वर्ण की संज्ञा दी गयी है।

विवाह के सम्बन्ध में जब कुण्डली मिलायी जाती है तब राशिगत तौर पर पुरूष का वर्ण स्त्री के वर्ण से पहले होने पर वैवाहिक जीवन में तारतम्य बने रहने का संकेत मिलता है अर्थात राशिगत तौर पर यह स्थिति होने पर विवाह संस्कार सम्पन्न किया जा सकता है। उपरोक्त स्थिति के विपरीत अगर कन्या की राशि पुरूष की राशि से पहले हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है अत: इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्र विवाह की आज्ञा नहीं देता है।

अगर कन्या (Bride) की राशि (Zodic Sign) "वैश्य" है और पुरूष (Groom) की राशि (Zodic Sign) "ब्राह्मण" है तो इस स्थिति में स्त्री अपने पति पर हावी नहीं रहती है अर्थात अपने पति की बातों को मानती व समझती है। कुण्डली मिलान करते समय अगर कन्या उच्च राशि यानी क्षत्रीय हो और पुरूष की राशि शूद्र हो तो इस स्थिति में शादी होने पर स्त्री अपने पति पर प्रभावी होती है यानी घर में पति की नहीं, पत्नी की कही चलती है। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार राशियों के इस अनुलोम विवाह में वैवाहिक जीवन सुखमय रहने की संभावना कम रहती है अर्थात पति पत्नी में सामंजस्य की कमी रहती है इस तरह की समस्या से बचने के लिए ही कुण्डली (Birth Chart) में अष्टकूट (Astkut) मिलान करते समय राशियों के वर्ण (Cast) का विचार किया जाता है।

भूतवर्ग का विचार

भूतवर्ग का विचार

ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि आमतौर पर इस तरह की घटना इसलिए होती है क्योंकि हम बाहरी तौर पर गुणों का आंकलन (Assessment of Characterstic) करते हैं और कुण्डली में स्थित ग्रहों(Stages of Planets) के गुणों को नज़र अंदाज़ कर जाते हैं। आप चाहते हैं कि आपका वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण और सुखमय हो तो इसके लिए विवाह पूर्व कुण्डली मिलान (Kundli Matching) जरूर करलें। कुण्डली मिलान के लिए आप उत्तर भारतीय पद्धति (Method of North Indians) का चयन कर सकते हैं या चाहें तो दक्षिण भारतीय पद्धति(South Indians method) को अपना सकते हैं अगर आप दोनों से आंकलन करना चाहते हैं तो यह भी कर सकते हैं। उत्तर भारतीय पद्धति के आठ वर्ग से आंकलन(Assessment of North Indians from 8 Varg)(Assessmet of South indians methods from 20 koot) करने के पश्चात आप अगर दक्षिण भारत के 20 कूटों से आंकलन करना चाहें तो इसके अन्तर्गत भूतवर्ग से भी विचार करलें तो अच्छा रहेगा।

भूतवर्ग से किस तरह कुण्डली मिलायी (Kundli Matching from Bhoot Koot) जाती है तथा इससे कैसे फलादेश देखा जाता है आइये इसे समझते हैं। ज्योतिष ग्रंथ (Astrological Granth) प्रश्न मार्ग के अनुसार 27 नक्षत्रों को पंच महाभूतों में बॉटा(Division of 27 nakshatras in Five Muhurats) गया है। सबसे पहले महाभूतों का नाम जान लेते हैं, ये पंच भूत हैं क्रमश: 1. पृथ्वी तत्व (prithvi Tatv) 2. जल तत्व (Jal Tatv);3.अग्नि तत्व (Agni Tatv) 4.वायु तत्व(Vayu Tatv) और 5. आकाश तत्व (Akash Tatav)। भूतवर्ग में नक्षत्रों को क्रमश: 5, 6,5,6,5 के क्रम में रखा गया है, इस प्रकार देखें तो पृथ्वी तत्व के हिस्से में पांच नक्षत्र आते हैं अश्विनी, भरणी Bhrni), कृतिका (kritika), रोहिणी (Rohini) और मृगशिरा (Mrigshira)। जल तत्व के अन्तर्गत 6 नक्षत्र आते है आर्द्रा (Ardra), पुनर्वसु (Punrvasu), पुष्य (Pushay), आश्लेषा (Ashlesha), मघा (Mgha), पूर्वा फा.(Purva Phalguni)। अग्नि तत्व के अन्तर्गत उ. फा.(Utra Phalguni), हस्त (Hast), चित्रा (Chitra), स्वाती (Swati) और विशाखा(Vishakha) ये पांच नक्षत्र आते हैं। वायु तत्व के अन्तर्गत 6 नक्षत्र अनुराधा (Anuradha), ज्येष्ठा( jayeshtha), मूल (Mool), पूर्वाषाढ़ा (Purva Shada), उत्तराषाढ़ा (utra Shada) श्रवण  (Sharvan) आते हैं और आकाश तत्व(Akash Tatv) के हिस्से में घनिष्ठा (Ghnishtha), शतभिषा (Shatbisha), पूर्वाभाद्र.(Purva Bhadr), उ. भा (Utra Bhadr). और रेवती (Raevti) ये पांच नक्षत्र आते हैं।

फलादेश की दृष्टि (Aspect of prediction)  से देखा जाए तो वर और वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक भूतवर्ग में हो तो बहुत ही अच्छा माना जाता है, यह विवाह के श्रेष्ठ कहा जाता है। पृथ्वी तत्व सभी के साथ शुभ सम्बन्ध बनाता है अत: इसे भी अच्छा माना जाता है। अगर स्त्री- पुरूष में से कोई भी पृथ्वी तत्व का है तो विवाह किया जा सकता है। पृथ्वी तत्व के पश्चात आकाश तत्व को रखा गया है इसे सामान्य माना जाता है। मेलापक की दृष्टि से भूतवर्ग में जल और अग्नि तत्व में नक्षत्र होने पर अशुभ होता है अर्थात विवाह की इज़ाजत नहीं दी जाती है क्योंकि यह घातक होता है।