शनि मंगल की राजनीति

भारतवर्ष की कुंडली के अनुसार शनि मंगल धन और तरक्की के साथ साथ बाहरी सम्बन्धो और राजनीति के कारक भी है। शनि जहां सरकारी कामो से धन देने के लिये माना जाता है वही वह अपनी स्थिति को दिखाने के लिये तरक्की और कार्यों का असर भी देता है। शनि प्रकृति सभी जानते है वह ठंडा भी है और आलसी भी है साथ ही चालाकी के लिये भी जाना जाता है जब शनि का असर राजकीय कार्यों के रूप मे भारत की कुंडली मे सामने आये तो इसी प्रकार के लोग आसानी से पहिचान मे आजाते है और वह लोग भी देखे जाते है जो राजकीय कार्यों को केवल नगद धन की नजर से देखते है उन्हे राजकीय कार्य करने के बाद कितना वेतन मिलता है इससे उनकी पहिचान नही की जाती है उन्हे अलावा धन शनि वाले कारणो से कितना मिलता है वह समझकर ही राजकीय कार्य की पहिचान की जाती है। भारत की स्वतंत्रता के पहले भी शनि अपनी नजर से देखा जाता था और शनि जैसे लोगो के द्वारा ही भारत पर अधिकार जमा कर रखा गया आजादी के बाद भी शनि ने अपनी पूरी पूरी शक्ति भारत के लिये सहेज कर रखी थी और आजाद होने के बाद से शनि के प्रति जिसे देखो वही अपनी आस्था को लेकर चल रहा है। धर्म पूजा पाठ और कर्मकांड मे भी शनि की स्थिति के अनुसार ही काम करना पडता है समाज मे भी शनि की महत्ता को इतना दे दिया गया है कि एक समुदाय को विशेष दर्जा देकर उन्हे आरक्षण तथा कम काम करने के बाद भी वही पुरस्कार दिया जाता है जो शनि से विलग लोगो को बहुत मेहनत करने के बाद दिया जाता है। शनि का रहना खाना काम करने का तरीका आदि सभी जानते है कि वह कितनी धीमी गति से चलता है नौ दिन मे अढाई कोश की सीमा से अधिक वह पार नही कर पाता है फ़िर भी लोग शनि को गले लगाकर चलने मे ही अपनी भलाई समझते है। राज्य का कारक मंगल होने के बाद शनि पर राज्य करने के लिये जब तक कोई अडंगा शनि के साथ नही लिया जाता है तब तक कोई भी शनि को सम्भालने मे हिम्मत नही रख सकता। शनि का रूप अगर बर्फ़ के रूप मे देखा जाये तो मंगल का रूप गर्मी के रूप मे समझा जा सकता है बर्फ़ को गर्मी मिलने पर ही पिघलाया जा सकता है बिना गर्मी के शनि अपने काम को नही कर सकता है नौकरी करने वालो लोगों को धर्म अर्थ काम और मोक्ष से अगर कन्ट्रोल मे नही रखा जाये तो वे किसी भी प्रकार से अपने कारणो को न तो कर सकते है और न ही किसी प्रकार से सफ़ल ही हो सकते है। शनि को परिवार के रूप मे देखा जाये तो वह बुजुर्गो की तरह से होता है,बुजुर्ग का दिमाग केवल दवाइयों से ही चलता है तो मंगल ही दवाइयों का कारक है। भारत के नेक मंगल ने भारत को सजाया संवारा है वीरो से पूर्ण किया है और वही बद मंगल ने जब बाहरी शक्तियों का सहारा लिया है तभी अपने विनाश का रास्ता भी देखा है अगर एक वीर पुरुष शराब कबाब तामसी कारणो मे फ़ंस जाये तो वह किसी भी प्रकार से अपने पौरुष रूपी प्रताप को नही रख सकता है। राहु शनि को रास्ता देता है और केतु शनि के साथ मिलकर रास्ते का निर्माण करता है शनि जहां है वहां की ही सोच केवल शनि के दिमाग वाले लोगो को देता है । कन्या राशि को गुप्त सम्बन्धो को सामने रखकर देखा जाता है गुप्त कारण बनने के बाद ही लोगो के लिये कर्जा लेने की जरूरत पडती है और गुप्त कारण बनने के बाद ही दुश्मनी तैयार होती है जब तक गुप्त रूप से प्रयोग किये जाने वाले आहार विहार का कारण नही देखा जायेगा तब तक बीमारी का रूप भी सामने नही आयेगा,यही कारण लोगो को अपने रोजाना के जीवन के लिये भी देखा जाता है और यही कारण बीमा बैंक फ़ायनेंस आदि के लिये देखा जाता है पिछले समय मे शनि के कन्या राशि मे होने से शनि ने लोगो के धन सम्बन्धी भेद उजागर किये और राहु ने भारत के बारहवे भाव मे रहकर गडे मुर्दे उखाडने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान किया उधर केतु ने अपनी युति गुरु के साथ लेकर दो बाबा सामने कर दिये बडे बडे मनीषियों की समझ मे जो नही आया वह दो बाबाओं ने अपने प्रभाव से सामने करने की कोशिश की और बाबाओं का उद्देश्य केवल स्वार्थी भावना से दूर होता तो वह अपने उद्देश्य मे सफ़ल भी हो जाते और भारत के अन्दर से शनि वाली नीतियों को दूर भी कर सकते थे लेकिन उनका भी कारण शनि से जुडा हुआ था और तांत्रिक गति से केतु को केतु की नजर से उखाडने के लिये देखा गया भारत के स्वामी गुरु को मंगल की विदेशी नीति से गुरु के केतु यानी दोनो बाबाओं के साथ काम करने वाले शिष्यों के प्रति धारणा को उजागर किया गया और किसी को तो फ़र्जी पासपोर्ट के लिये और किसी को राजनीतिक पार्टी बनाने के लिये दोषी करार देकर उसी प्रकार से दूर कर दिया गया जैसे एक बाप के सामने उसके बेटे की बेइज्जती कर दी जाये और बाप के नाम को धब्बा लगा दिया जाय।

दया किस भाव से पैदा होती है ?

बडे बडे ज्योतिषियों से पहल हुई के दया का स्थान कुंडली में कहाँ होता है ? ज्योतिषियों के उत्तर इस प्रकार से सामने आये :-
  • दया का स्थान जीव के ह्रदय मे होता है और ह्रदय के द्वारा ही दया का भाव उत्पन्न होता है.
  • दया सम्बन्ध को समझने के बाद ही आती है सम्बन्ध सप्तम से भी होता है और ग्यारहवे से भी होते है.
  • दया अनुभव के बाद ही पैदा होती है जन्म से नही होती अनुभव काम करने के बाद आता है काम का भाव दसवां है.
  • दया का स्थान दिमाग मे होता है जब तक दिमाग काम नही करता है तब तक दया का अभाव ही रहता है और दिमाग का स्थान पांचवां होता है.
  • दया शरीर के प्रति भी की जाती है और किसी को बखशीस देने की क्रिया भी दया कहलाती है,बखशीस नवे भाव से देखी जाती है.
  • द्रश्य को देखकर समझकर और महसूस करने के बाद ही दया का प्रभाव पैदा होता है देखने की क्रिया दूसरे भाव से होती है समझने की क्रिया पांचवे भाव से होती है और महसूस करने की क्रिया चौथे भाव से होती है.
  • दया का क्षेत्र समाज देश परिवार और रहने वाले स्थान की जलवायु के अनुसार मिलता है समाज नवे भाव से देखा जाता है देश बारहवे भाव से देखा जाता है जलवायु चार आठ और बारह से देखी जाती है.
  • दया माता से मिलती है लेकिन माता को भी दया उनकी माता से मिलती है यह क्रिया लगातार चलती रहती है,यानी चौथे से चौथे चौथे भाव को देखते जाना.
  • दया चन्द्रमा से मिलती है लेकिन छः आठ बारह का चन्द्रमा दया नही रखता है.
  • दया कारण के पैदा होने के बाद ही पैदा होती है और कारण को पैदा करने के लिये राहु मंगल शनि केतु को देखा जाता है.
  • दया पिता के द्वारा मिलती है कारण माता तो पैदा करने वाली होती है लेकिन पिता दया से पालता है.
  • दया समाज मे प्रचलित धारणा के अनुसार मिलती है अगर समाज कसाइयों का है तो दया का रूप देखने को नही मिलेगा पर कसाई का बच्चा चोट खा जायेगा तो वह भी अपने पिता की दया से पूर्ण होता देखा जायेगा.
इन बातो के अलावा भी हजारो तरह के उत्तर सामने आये लेकिन सभी उत्तरो का रूप अगर देखा जाये तो समाज और परिवार से जुडने के बाद दया का प्रभाव पिता से मिलता है और पिता के स्थान को ही ज्योतिष मे धर्म का स्थान कहा जाता है धर्म के स्थान से जो मर्म स्थान की खोज की जाती है तो वह बारहवा स्थान ही मिलता है.