ताजमहल की कुर्सी

दुनिया में भारतवर्ष और भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश और उत्तरप्रदेश में आगरा,आगरा का ताजमहल, मेरे ख्याल से दुनिया कोइ ही ऐसा व्यक्ति होगा जो ताजमहल के बारे में नहीं जानता होगा.इतिहास कुछ भी हो,कहानी कुछ भी हो,कारण कुछ भी हो लेकिन ताजमहल का शानी इस संसार में नहीं है,हो भी नहीं सकता है,इसका कारण इस स्थान की महानता ज्योतिष के छाया ग्रह राहू ने ही प्रदान की है.मनुष्य अपने धर्म के अनुसार इसे कोइ भी रूप दे दे लेकिन यह इमारत इबादत की इमारत के नाम से जानी जाती है,भले ही शाहजहाँ का नाम मुमताज के लिए बताया जाए और मुमताज के नाम से ताजमहल का नाम मुम हटा कर लिया जाए,लेकिन जो वास्तविकता है वह सच से दूर करना साधारण बात नहीं है.

ताजमहल की इमारत को बनाने के लिए कितने ही कारीगरों ने अपने मेहनत रूपी तपस्या को जग जाहिर किया किस प्रकार से राजस्थान के मकराना से खुदा हुआ संगमरमर का पत्थर आगरा तक उस समय की जटिल बाधाओं से लाया गया उसे काटा गया छाँटा गया मूर्त रूप देकर सकारात्मक किया गया,फिर भवन कला और वास्तुकला का अनूठा उदाहरण पेश किया गया,यह प्रकृति की महानता मानी जाए,तो बहुत बढ़िया बात है,इसे कीई प्रकार के कारण से जोड़ना बेकार की बात है.इस इमारत का निर्माण यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर हुआ है इस प्रकार से उत्तर की तरफ यमुना का बहना साथ ही ईशान कोण से यमुना का पूर्व की तरफ घूम जाना भी एक प्रकार से प्रकृति का करिश्माई कारण ही माना जाता है.चारो तरफ चार मीनारे बीच में गुम्बद और गुम्बद के नीचे बनी ऊपरी भाग में नकली कब्रे और नीचे बनी असली कब्रे तथा असली कब्र पर गिरता बूँद बूँद पानी आज तक लोगो की सोच से परे है की यह पानी आता कहाँ से है,सर्दी गर्मी बरसात किसी भी ऋतू में बिना किसी अवरोध के यह पानी अपनी निश्चित समय रेखा में लगातार गिरता है.

इस ताजमहल को बनाने के समय इसके दक्षिणी सिरे पर एक कुर्सी का निर्माण किया गया था,यह कुर्सी केवल उन्ही लोगो के लिए है जो आकर अपनी उपस्थिति को देने के लिए अपनी फोटो को बनवाते है,पहले लोग अपनी फोटो बनवाने के लिए ब्रूस और केनवास का प्रयोग करने वाले कारीगरों का सहारा लिया करते थे फिर कैमरे का चलन होने के बाद कैमरा वाले फोटोग्राफर अपना काम करने लगे बाद में डिजिटल फोटोग्राफी आने के बाद लोग अपने अपने कैमरे से इस कुर्सी का प्रयोग करने लगे,कभी कभी तो एक एक घंटा लोग पंक्ति में खड़े रहते है की उनका भी नंबर आये और वे अपनी विभिन्न मुद्रा में अपनी फोटो ताजमहल के साथ बनवाकर अपनी यादो को ताज के साथ बरकरार रख सके.इस कुर्सी का सही मायनों में जिन लोगो ने महत्व समझा है वे ही ताज के महत्व को समझते है.

लाल पत्थर के कितने ही किले बने है और उन किलो में एक सफ़ेद पत्थर का रूप ताजमहल में ही मिलता है,जो छवि ताजमहल की है उस छवि की कल्पना करने के लिए कितने ही कवियों ने अपनी अपनी भावना को प्रस्तुत किया है लेकिन आज भी कोइ न कोइ नई छवि इस इमारत के लिए बनाती है और वह छवि अपने एक अनोखे रूप में अपने को प्रस्तुत करती है.इस कुर्सी पर जो बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है उस छवि को निहारने के लिए ताज का रूप बिलकुल उसी व्यक्ति के अनुरूप बन जाता है,जैसा वह व्यक्ति है.

ताजमहल को बनवाने के समय जो कारण प्रकृति ने प्रस्तुत किये उनके अनुसार राहू ग्रह की सीमा के अनुसार ही इसे बनाना माना जा सकता है,जैसे राहू की सीमा वैदिक नियमो के अनुसार पंद्रह सौ मील (सौ योजन,डेढ़ मील का एक योजन) के अनुसार ही बना है.अगर आगरा से भारत के दक्षिणी सीमा को नापा जाए तो श्री लंका का आख़िरी हिस्सा पंद्रह सौ मील ही है,पश्चिम में बन्दर अब्बास से आगे कर्मोस्ताज तक पूर्व में चीन के कूमिंग यान तक तथा उत्तर में रूस की सीमा तक माना जाता है.आगरा नामक स्थान पर २७ अक्षांश उत्तर और अठत्तर देशांतर पूर्व में स्थिति है.ग्रह कक्षा के अनुसार राहू का केंद्र बिंदु इसी स्थान पर माना जाता है,प्रत्येक अठारह साल में यह अपने अनुसार बदलाव करता है.

इस स्थान पर जो कुर्सी संगमरमर की बनी हुयी उसके बारे में कोइ ऐतिहासिक कथन नहीं मिलता है,कब किसने और किस प्रयोजन के लिए इस कुर्सी को यहाँ बनवाया था लेकिन आज यह फोटो ग्राफी के लिए मशहूर कुर्सी है. वास्तुकला से यह कुर्सी जिस स्थान पर है वह स्थान एकाधिकार का स्थान कहा जाता है जब कोइ भी व्यक्ति इस स्थान पर बैठ कर अपनी तस्वीर बनवाता है तो उसे यह पता नहीं होता है की वह किसी अन्य स्थान से आया है उसे यही महशूश होता है की वह ही इस ताजमहल का मालिक है,भले ही कुर्सी से उठाने के बाद उसे यह समझ में आये की वह अन्य देश से अन्य प्रांत से अन्य शहर से अन्य जाति से अन्य कारण से आया है इस कुर्सी पर बैठने के बाद हर व्यक्ति यही सोचता है की वह भी मुमताज और शाहजहाँ के रूप में एक प्रेमी है और वह भी इस इमारत के सामने बैठ कर अपने मन वचन और कर्म से अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित है,अक्सर यहाँ लोग जीवन में तीन बार अवश्य आते देखे गए है,जो एक बार आता है वह अपने जीवन में दो बार अवश्य ताजमहल के दर्शन को आता है चाहे कारण कोइ भी हो या किसी भी प्रकार की चाहत या संगती मिली हो.

ताजमहल एक अमर और सृष्टि के समय तक अपना स्थायित्व रखने वाली इमारत है,जब तक इंसान आपस में प्रेम करता रहेगा इस इमारत का कोइ भी बाल बांका नहीं हो सकता है,भारत ही नहीं किसी भी स्थान के बारे में आप वास्तु से देख सकते है की जिस स्थान पर भी उत्तर या पूर दिशा में प्राकृतिक जल स्तोत्र है वह स्थान हमेशा के लिए कायम हो जाता है,भले ही वह धार्मिक रूप से हो या भले ही वह बढ़ती हुयी जनसंख्या उद्योग धंधो की भरमार से हो अक्सर इस प्रकार की इमारते शहर आदि हमेशा ही धार्मिक रूप से देखे जाते है,जैसे भारत में अगर समुद्री स्थानों को देखा जाए तो कलकत्ता गंगासागर जगन्नाथपुरी आदि जो भी समुद्र से पश्चिम में बसे है उनके लिए कोइ न कोइ कारण धार्मिक रूप से जुडा है कानपुर में ब्रह्मावर्त इलाहाबाद में संगम जिसमे प्रयाग के ईशान में गंगाजी का बहाव है,दिल्ली में यमुना हरिद्वार में गंगा जी आदि स्थानों को देख कर धार्मिकता के रूप में माना जाता है,दिशाओं के अनुसार जो भी शहर या इमारत या स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से दक्षिण पश्चिम में स्थापित हो जाता है वह राहू के रूप में देखा जाता है और उसकी महिमा किसी न किसी रूप में फैलती जाती है लेकिन जो स्थान प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर दिशा में स्थापित हो जाता है वह केतु के रूप में स्थापित होता है जैसे वनारस मुम्बई पोरबंदर आदि शहर इन स्थानों पर राहू व्यक्तियों के अन्दर निवास करने लगता है.क्राइम के लिए जितने भी शहर प्राकृतिक जल स्तोत्र से उत्तर पूर्व में स्थापित होते है इनके अन्दर अधिक से अधिक क्राइम मारकाट नशे वाली बाते डाक्टरी कारण केवल इसलिए ही मिलते है की व्यक्ति के अंदर राहू प्रवेश करजाता है और व्यक्ति अपनी साख को पैदा करने के लिए अपनी मर्जी का अधिकारी हो जाता है,अक्सर ऐसे स्थानों के लोग अपनी प्रसिद्धि के लिए कोइ भी कार्य कर सकते है.

करपात्री से कारपात्री तक

मकान का बनाना और मकान मे रहना तथा मकान के फ़ल को भोगना अलग अलग प्रकार की बाते है। मकान को सभी उसी प्रकार से बना सकते है जैसे शादी के बाद शरीर और मानसिक दशा ठीक रही तो सन्तान जल्दी आजाती है सन्तान की उम्र और मकान मे रहना दोनो एक प्रकार से देखे जाते है और सन्तान कितना सुख देगी इस बात का अन्दाज बनाये हुये मकान मे रहने से देखा जाता है। जन्म के समय मे राहु बारहवा है ओ लाख धन से युक्त घर मे जन्म ले लिया जाये सुख की प्राप्ति जन्म से लेकर एक सौ बासठ महिने की उम्र तक नही मिल पाता है,किसी न किसी प्रकार की चिन्ता हर तीसरी साल मे मिलने लगती है। उसी प्रकार से अगर घर बनाने के समय मे घर की पूर्व दिशा मे संडास बना लिया है तो इतने ही समय तक रहने वाले घर मे आफ़त का होना माना जाता है। अगर चौथे भाव मे राहु पैदा होने के समय मे है तो शिक्षा के क्षेत्र से लेकर कार्य के क्षेत्र तक किसी प्रकार की सन्तुष्टि नही मिलती है उसी प्रकार से जब घर को बनाते समय घर की उत्तर दिशा मे संडास का निर्माण कर लिया जाये तो गलत प्रसिद्धि तो मिलती ही है धन भी बेकार के साधनो से आने लगता है और इस प्रकार से घर की सन्तान किसी न किसी प्रकार से बरबाद होने लगती है। अष्टम मे राहु जन्म के समय होता है तो जीवन का पतानही होता है कि कब ऊपर जाने का बुलावा आजाये,अगर कोई धन प्रदान करने वाली राशि मे या धन देने वाले ग्रह के साथ मे राहु है तो समझना चाहिये कि धन पर यह राहु अपना हाथ साफ़ करने के बाद अपना करिश्मा दिखा देता है उसी प्रकार से जब ठीक दक्षिण-पश्चिम मे संडास का निर्माण कर दिया जाता है तो घर के सदस्य अस्पताली दवाइयों के खाने के आदी हो जाते है और घर के बुजुर्गों के अन्दर अन्जानी बीमारी हो जाने से घर के अन्दर सडांध आने लगती है घर के पास के जो पडौसी होते है वे घात लगाकर बैठे होते है कि कब इस घर मे तडफ़डाहट हो और घर वालो को अपने चंगुल मे लेकर बरबाद कर दिया जाये।

लगन का राहु जीवन के शुरुआती समय मे करपात्री यानी दूसरो के भरोसे रहकर ही कार्य करने खाने पीने शिक्षा को प्राप्त करने के लिये माना जाता है। लेकिन उम्र की दूसरी सीढी मे जाकर वह कारपात्री यानी कार घर मकान और सुख सुविधा से युक्त बना देता है। दूसरे भाव का राहु कहने को तो अपनी डींग हांकने के लिये काफ़ी होता है लेकिन जब हाथ मे देखा जाता है तो झूठ के अलावा और कुछ नही देखा जाता है,अक्सर इसी प्रकार के लोगो के लिये एक कहावत - "ढपोल शंख" की दी गयी है लेकिन उम्र की दूसरी सीढी मे जाते जाते बच गये तो कोई अन्जाना व्यक्ति आकर अपनी सहायता देने लगता है या जो भी काम दलाली से किये जाते है अक्समात ही भंडार भर देता है और वह कर पात्री से लेकर कारपात्री की श्रेणी मे आजाता है। तीसरे राहु को मेष राशि मिथुन राशि सिंह राशि तुला राशि धनु राशि कुम्भ राशि के लिये कपडो गाने बजाने मनोरंजन के साधनो अपने को प्रदर्शित करने के मामले में राजनीति के मामले मे कानूनी मामले मे बढ चढ कर बोलने की आदत होती है लेकिन जब उन्हे पता लगता है कि उनके द्वारा पैदा किये सभी साधन बेकार के हो गये है उनके लिये सिवाय अपने पूर्वजो की सम्पत्ति का सहारा लिये आगे का जीवन नही चलने वाला है तो वे कारपात्री से कर पात्री की श्रेणी मे गिने जाने लगते है।

सौ में सूर सहस मे काणा

भदावरी क्षेत्र मे एक कहावत बहुत ही मशहूर है,और यह कहावत एक सौ एक प्रतिशत भी है -"सौ मे सूर सहस मे काणा,एक लाख मे ऐंचक ताना,ऐचंक ताना करे पुकार,कंजा से रहियो हुशियार,जाके हिये न एकहु बार,ताको कंजा ताबेदार,छोट गर्दना करे पुकार,कहा करे छाती को बार",अर्थात- सौर लोगो को अपनी बातों में फ़ंसाने के लिये एक अन्धा आदमी काफ़ी है,पहले उसके लिये हर आदमी के अन्दर दया है,दूसरे बाहर की आंखे नही होने के कारण अन्धे आदमी को सोचने समझने की और अन्तर्द्रिष्टि भी बहुत मजबूत होती है यानी अन्दाज लगाने की कला,स्पर्श अनुभव श्रव्य अनुभव आदि की अच्छी जानकारी होती है भगवान श्रीकृष्ण के लिये सूरदास जी के भजन सबसे अधिक इसीलिये ही भावुकता से पूर्ण है कि उन्हे अनुभव करने की अजीब क्षमता भी बाहरी दुनिया को नही देखने पर और अपने मन के अन्दर सुनी हुयी बातो को अन्दाज से जो रूप बनाकर देखा जाता था वह बाहरी आंखो से सम्बभ नही माना जा सकता है। इसलिये अन्धे आदमी के द्वारा अपनी भावनाओ से सौ लोगों को चलाया जा सकता है। जब बन्दूको चलाया जाता है या तीर को कमान से छोडा जाता है,तो एक आंख को बन्द कर लिया जाता है,लेकिन जिस व्यक्ति की एक आंख चली गयी हो तो वह एक आंख से ही पूरी दुनिया को देखना शुरु कर देता है,एक आंख वाले व्यक्ति को काणे की उपाधि दी गयी है और इस प्रकार के व्यक्ति के अन्दर एक हजार लोगो को एक समय मे चलाने की हिम्मत होती है वह जो भी कारण बताता है वह अक्सर खरा और सही उतरता है,जो भी अनुभव और धारणा बनती है वह एक प्रकार से एक ही जगह पर अपना ध्यान रखने के कारण ज्ञान के क्षेत्र मे उत्तम मानी जाती है। इसी धारणा के कारण एक आंख वाले व्यक्ति अपनी ज्ञान शक्ति से एक हजार आदमी को अपने अनुसार चलाने मे समर्थ होते है। अक्सर देखा जाता है कि आप अपनी बात को कहना शुरु करते हो और दूसरा आदमी आपकी शुरु की गयी बात को अक्समात कहने लगता है जब आपकी बात शुरु की गयी बात को दूसरा आदमी कहना शुरु कर दे तो आपको चुप रहना जरूरी हो जाता है,इसका मतलब है बात को काट देना और बात को काट कर अपने अनुसार उस बात को कहना शुरु कर देना,इस प्रकार से आपकी मान्यता तो खत्म हो गयी और उस बात को शुरु करने वाले व्यक्ति की बात चलने लग गयी। इस प्रकार के व्यक्ति को ऐंचकताना की उपाधि दी जाती है इस प्रकार का व्यक्ति अनुभवी होता है और सभी क्षेत्रो मे अपनी जानकारी को रखने वाला होता है वह बात चाहे आज की हो या इतिहास से सम्बन्धित हो किसी की परेशानी वाली बात हो या न्याय वाली बात हो इस प्रकार का व्यक्ति एक लाख लोगो को अपने अनुसार चलाने की हिम्मत रखता है। इसी प्रकार के लोग अक्सर वकील का काम करने मे सफ़ल हो जाते है किसी प्रकार के राजनीति के क्षेत्र मे और मीडिया के क्षेत्र मे सफ़ल होते भी देखे गये है। जब किसी प्रकार का नौकरी आदि का इन्टरव्यू आदि होता है तो इसी प्रकार के लोग अधिक जानकारी रखने के कारण को सोच कर अपनी योजना मे सफ़ल हो जाते है। दो व्यक्ति अगर अपने सामान को बेच रहे होते है और एक व्यक्ति उनके अन्दर ऐंचकताना की आदत को रखता है तो वह अपने माल को बेच कर आजायेगा जबकि दूसरा आदमी बिना बेचे ही वापस आयेगा। भूरी आंखो वाले व्यक्ति को कंजा की उपाधि दी जाती है जिसकी आंखे भूरी होती है वह अपनी योजना को अपने अनुसार ही लेकर चलने वाला होता है वह अपने भेद को किसी को नही बताता है कि वह अगले पल क्या करने जा रहा है। जब किसी को भेद का पता नही होगा तो वह अपने कार्य को बडी आसानी से कर भी आयेगा और किसी को पता भी नही चलेगा,अगर वह पास मे रहने वाला है तो वह अपने कारणो को इस प्रकार से प्रयोग मे लायेगा कि वह आपको काट कर भी चला जाये और आपको पता भी नही लगे,यानी खुद को तो कारण से दूर रखेगा और ठंडा पानी देकर यही साबित करेगा कि वह बहुत ही हितैषी है लेकिन अन्दर से वह दूसरे आदमी से या दूसरे कारण से खुद ही फ़ंसाकर खुद ही छुडाने की कोशिश करता हुआ दिखाई देगा इस प्रकार का आदमी ऐंचकताना व्यक्ति से भी खतरनाक माना जाता है। पुरुष वर्ग के लिये एक बात देखी जा सकती है कि जिसके छाती मे बाल नही होते है उसकी बात का भरोसा नही होता है। कहने के लिये तो वह बहुत कुछ कह जायेगा लेकिन अपनी योजना को किसी को नही बतायेगा अक्सर अवसरवादी लोगो की श्रेणी मे इस प्रकार के लोगो को देखा जा सकता है। वे बात के पक्के नही माने जाते है और अपने खुद के लिये भी अपनी योजना मे सफ़ल नही होते है,अपने ही परिवार के लोगो को भी वे अपने अनुसार खड्डे मे ले जा सकते है,अपनी योजना को सफ़ल करने के लिये वे सौ फ़ायदे आपको बता कर जायेंगे लेकिन जो फ़ायदे आपके लिये बताये है वे उन्ही के लिये सही माने जायेंगे आपको फ़ायदा होना तो दूर नुकसान भी नही माना जा सकता है बल्कि पूरी की पूरी पूंजी का खात्मा होना ही एक प्रकार से अधिक समझना ठीक होगा। इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी नही होते है और अपनी संतान को भी ठिकाने लगा सकते है साथ ही अपनी योजना को साम दाम दण्ड भेद से पूरी करने मे सफ़ल होते देखे जा सकते है। सबसे खतरनाक और अपनी चालाकी मे सभी पर अपनी योग्यता की छाप छोडने के लिये छोटी गर्दन वाला व्यक्ति माना जा सकता है। इस प्रकार का व्यक्ति किसी भी क्षेत्र मे अपने को आगे निकाल ले जाता है चुगली करना और चुगली से भेद को लेकर दूसरो का सफ़ाया करना ही उसका काम होता है,वह अपने फ़ायदे के लिये एक भीड को समाप्त कर सकता है साथ ही किसी भी प्रकार की राजनीति मे वह आगे बढकर सफ़ल हो सकता है। 

नाहर मुखी और गोमुखी

वास्तु मे नाहर मुखी और गोमुखी का फ़र्क भी समझना बहुत जरूरी होता है। गोमुखी घर मे रहने वाले सदस्यों की संख्या मे बढोत्तरी होती रहती है जबकि नाहर मुखी घर अक्सर सदस्यों के अभाव मे सूने हो जाते है। जिन घरो मे यह प्रभाव घर के दो तरफ़ या तीन तरफ़ होता है उन्हे बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत पडती है।
गोमुखी मकान का पिछला हिस्सा चौडा हो जाता है और दरवाजे तक आते आते संकडा हो जाता है ऐसे मकान गोमुखी कहलाते है। ऐसे मकानो मे सदस्यों की संख्या बढती रहती है और घर मे धन की कमी देखी जाती है अक्सर आलस्य का होना और कमाई के साधनो मे कमी होना घर के सदस्यों का काम मे मन नही लगना और बेकार की कारणो को घर के अन्दर ही पैदा करते रहना घर के कई हिस्से हो जाना और फ़िर भी आपस मे सामजस्य नही बैठना माना जाता है। अक्सर ऐसे घरो मे एक सदस्य बहुत ही धार्मिक रहता हुआ देखा जा सकता है जो किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो लेकिन वह धर्म के मामले मे पक्का आशावादी होता है। मृत्यु सम्बन्धी कारण उस व्यक्ति के रहते हुये बहुत ही कम होते है,जहां नाहर मुखी मकानो मे अस्पताली कारण बहुत बनते रहते है वही गोमुखी मकानो मे रहने वाले लोगो को या तो कोई रोग होता नही है और होता भी है तो वह जरा सी दवाइयों में ही ठीक हो जाता है। अगर यही प्रभाव व्यवसाय के लिये देखा जाये तो ऐसे दुकानो मे या व्यवसाय स्थानो मे जो माल आकर रखा गया वह रखा ही रहता है यानी कम बिकता है जो कर्मचारी आकर बैठ गया है उसे निकलने मे काफ़ी कठिनाई रहती है। अगर संस्थान घाटे मे भी चल रहा है तो कर्मचारी कई महिने तक बिना वेतन के काम भी करते देखे जा सकते है। रोजाना के कामो के अन्दर केवल माल की गणना और उसी स्थान मे माल को इधर से उधर रखने वाली बात मानी जा सकती है जब कि नाहर मुखी व्यवसाय स्थानो मे अक्सर देखा जाता है कि माल का टोटा ही बना रहता है ग्राहको की भीड तो लगती है लेकिन माल के कम होने से अक्सर लोग खरीद करने के लिये इन्तजार करते ही देखे जा सकते है।नाहर मुखी मकानो का गेट अगर दक्षिण की तरफ़ है और वह अस्पताल इन्जीनियरिन्ग तकनीकी होटल या बिजली आदि से सम्बन्धित नही है तो अक्सर आग लूटपाट या माल के खराब होने के कारको मे अधिक देखा जाता है वही अगर इन उपरोक्त कारको से सम्बन्धित व्यवसाय है तो खूब चलते भी देखे जा सकते है और आय भी अधिक होती देखी जाती है। गोमुखी संस्थान का मुख अगर दक्षिण की तरफ़ है और वह होटल आदि से सम्बन्धित है तो उस होटल के रूम अधिकतर भरे ही रहते है लेकिन होटल के कर्मचारी अक्सर आलसी होते है या काम को सही नही करने के कारण अक्सर गंदगी से पूर्ण देखे जा सकते है लेकिन ग्राहक फ़िर भी कम नही होते है। यही हाल अगर किसी प्रकार से खानपान से सम्बन्धित है तो अक्सर इस प्रकार के संस्थानो मे माल को सडता हुआ या किसी प्रकार से गलत उत्पादन से भी माल को बिगडता देखा जा सकता है। बिजली आदि के काम के लिये भी देखा जा सकता है कि एक बार कोई सामान ठीक करवा दिया गया है लेकिन जल्दी ही वह किसी न किसी कमी से वापस आजाता है या उसके किसी सामान के नही मिलने से वह काफ़ी समय तक पडा रहता है। अक्सर ऐसे संस्थानो मे एक बात और देखी जा सकती है कि ग्राहक कभी कभी अपने सामान को ठीक करवाने के लिये लाता भी है और उसके पास उस सामान को उठाने के लिये या तो वक्त नही होता है और जब वक्त होता है तो सामान की मजदूरी को चुकाने के लिये धन का अभाव हो जाता है इस प्रकार से अधिक दिन तक सामान का पडा रहना भी माना जा सकता है।
नाहर मुखी दुकान का दरवाजा अगर पूर्व मे है तो माल को दान खाते मे अधिक जाता हुआ देखा जाता है अथवा जान पहिचान और उधार के मामले भी देखे जाते है या तो उस सामान को बेचने के बाद उगाही नही की जाती है या की भी जाती है तो औने पौने दामो मे सामान को बेचना भी देखा जा सकता है। यही प्रकार आफ़िस आदि के लिये भी देखा जा सकता है या तो कर्मचारी कार्य मे टिकता नही है और टिकता भी है तो मालिक के लिये कोई न कोई ऐसा कारण पैदा करता रहता है मालिक खुद ही दुकान पर आना बन्द कर देता है और दुकान केवल कर्मचारी के भरोसे पर चलती रहती है वह अपने खर्चे को निकालने के अलावा दुकान आदि का किराया अथवा उसके खर्चो को भी मुश्किल से निकाल कर दे पाता है। नाहर मुखी दुकान का दरवाजा अगर उत्तर की तरफ़ होता है तो धन आदि के लिये बहुत उत्तम माना जाता है ब्याज का काम करने वाली कम्पनिया लोगो को गहने जेवरात आदि पर लोन देने वाली कम्पनिया ट्रान्स्पोर्ट कम्पनिया खूब चलती देखी जा सकती है। कर्मचारी अगर एक बार चला जाता है तो जल्दी ही कर्मचारी आ भी जाता है इसलिये दुकान मालिक को परेशानी नही होती है। इसी प्रकार से नाहर मुखी संस्थान का मुंह अगर पश्चिम की तरफ़ होता है तो भी देखा जाता है कि माल कम ही रुकता है और बिल्डिंग मैटेरियल वाहन वाले काम खाद बीज की दुकान रोजाना के उपयोग के लिये प्रयोग किया जाने वाला प्लास्टिक आदि का सामान खूब बिकता देखा जा सकता है कपडों की दुकाने भी खूब चलती देखी जा सकती है जो लोग सेल लगाकर काम करने वाले होते है अगर वह अपनी सेल का मुख्य दरवाजा पश्चिम मुखी करने के बाद नाहर मुखी कारण को पैदा करते है तो उनकी सेल मे लगा हुआ सामान जल्दी ही निकल जाता है लेकिन वही सेल अगर गोमुखी स्थान मे कर लिया गया है तो माल जैसा का तैसा भी पडा रहता है और खूब अच्छा होने के बावजूद भी कोई खरीदने वाला नही होता है।

प्लाट नम्बर 31

हम अपने अनुसार जमीन लेकर घर बनाते है और जिस प्रकार से सरकारी स्कीम और सोसाइटी हमे जमीन देती है उसका नम्बर होता है दुर्भाग्य से अगर नम्बर इकत्तीस मिलता है तो उसके बारे क्या क्या फ़ल हमे अच्छे बुरे मिलते है यह एक शोधित विषय है और इस विषय पर पच्चीस साल की विवेचना मेरे खुद के द्वारा की गयी है.
प्लाट नम्बर 31 नाम गोपाल सिंह
अपने भाइयों और घर वालो से त्यक्त होकर उक्त व्यक्ति ने अपने को बहुत ही तिरस्कृत काम मे लगाया,जैसे घोडों की साफ़ सफ़ाई करना तबेले के अन्दर से उनकी लीद साफ़ करना घोडो के दाने से कुछ हिस्सा चुराकर घर लाना और उससे परिवार की पालन पोषण की जरूरतो को पूरा करना,इसके अलावा भी शहर में अलावा समय मे घूमते रहना और जहां किसी का आवारा पशु जैसे गाय भैंस आदि देखी उसे पकड कर अपने घर मे ले आना उसकी तीमारदारी करना अगर दूध देने लग गयी तो दूध बेचना या छाछ गोबर आदि बेच कर अपने काम का गुजारा करना,अक्समात ही किसी अनजान बीमारी से ग्रसित होना और अन्तगति को प्राप्त होना.
उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र को उसी स्थान पर नौकरी पर लगना उसका भी काम वैसा ही होना जैसा बाप का था सरकारी तबेला होने के कारण पिता की मौत के बाद धन का मिलना उससे उस घर को बनवाना और उस घर मे किरायेदारो का रखना,माँ का भूखा प्यासा एक ही कमरे मे रहना कभी कभी किरायेदारो से उसे भोजन का दिया जाना या उसकी बहिनो के द्वारा समय समय पर सहायता देते रहना। अन्जान बीमारी का साथ मे बने रहना और शरीर से पनपने की बजाय कुछ भी खाने पीने का मन नही करना जब भी मन चलना तो तामसी भोजन की तरफ़ मन चलना,पत्नी का अतिचारी हो जाना कुकृत्य मे मन को लगाये रखना,किरायेदारो मे केवल पुरुषों को रखना और उनसे अपनी इच्छानुसार कार्य करवाना। सन्तान के मामले मे केवल दो पुत्री ही होना और आपरेशन के कारण किसी अन्जान नश के कटने के कारण आगे की सन्तान मे बाधा होना।दान धर्म पुण्य आदि से दूर रहना,अलावा कमाई के लिये रात को निकलना और आसपास के क्षेत्र से लकडी आदि को काटकर लाना सुखाकर बेचना आदि काम।
प्लाट नम्बर 31 नाम गोमाराम
पिता के गांव की जमीन का सरकारी क्षेत्र मे आजाना उससे मिलने वाले मुआवजे से शहर मे आकर घर का बनवा लेना और उसे किराये से चलाना। खुद को नौकरी आदि के लिये घूमना सफ़ल नही होने पर चाट पकौडी का ठेला लगाना उस काम की ओट मे अन्य अनैतिक कार्य करना,अचानक एक ही रात मे माता पिता का गुजर जाना,अन्त्येष्टि के दिन खुद का एक्सीडेन्ट हो जाना माता पिता की अर्थी को भी कन्धा नही दे पाना,उनकी मृत्योपरान्त की क्रियायें नही हो पाना। पत्नी का लकवा मे चले जाना एक तरफ़ का धड सुन्न हो जाना किसी भी दवाई से ठीक नही होना,सन्तान मे एक पुत्र और एक पुत्री का होना,पुत्र का पढाई लिखाई मे मन नही लगना उसका आवारा घूमना जवान होने पर रीकवरी के काम मे लगना जो भी कमाना वह अनैतिक कामो मे खर्च कर लेना,पुत्री का विजातीय व्यक्ति के साथ भाग जाना,पुत्र का एक हत्या के केश मे आजीवन कारावास हो जाना,जो भी मकान का किराया आना उससे पति पत्नी और वकील आदि का खर्चा करना कोर्ट कचहरी पुत्र के लिये भागते रहना लेकिन नौ साल गुजरने के बाद भी जमानत नही होना।
दुकान नम्बर 31 मेडिकल स्टोर 
प्रसिद्ध अस्पताल के सामने दुकान का होना शुरु मे बहुत जोरो से दुकान का चलना,दुकान मे अचानक तीसरी साल आग लग जाना,इन्श्योरेशं से भी कोई सहायता नही मिल पाना कम्पनियों की दवाई का भुगतान करना और उधारी का सिर पर चढ जाना,जोड तोड कर पैत्रिक सम्पत्ति का निकाल देना उसकी एवज मे फ़िर से दुकान पर माल भरना अचानक सरकारी नीति का बदलना और अस्पताल मे फ़्री दवाइयों का बंटना दुकान पर नौकर का भी खर्चा नही निकलना दवा कम्पनियों के तकादे से तंग आकर घर पर पडे रहना दुकान पर आना ही नही। सिर पर घर के खर्चो के अलावा ब्याज और इसी प्रकार के कारण पैदा होते जाना,बच्चो की शिक्षा का रुकना घर का लोन  चलना और बैंक से बार बार घर को खाली करवाने के लिये जोर आना,एक दिन घर से अचानक गायब हो जाना,बच्चे और उनकी माता के द्वारा गारमेंट की कम्पनी मे रोजनदारी से काम करना।
इसी प्रकार से अन्य घरो और दुकान व्यवसाय स्थानो आदि के नम्बरो को देखा उनके मालिको से बात की तो किसी का भी पनपने वाला कारण नही देखा।

कारण
संख्या शास्त्र के अनुसार यह नम्बर मोक्ष देने का कारक बताया गया है,इस नम्बर के अनुसार इस तारीख मे जन्म लेने वाले जातक भी अपने जीवन की जद्दोजहद मे आगे बढने की बहुत इच्छा रखते है लेकिन लाख कोशिश करने के बाद वे आगे नही निकल पाते है। तीन काम पूरे करने के बाद जैसे ही काम की आखिरी मंजिल पर जाते है उनका एक काम उन तीनो कामो को समाप्त कर देता है। यह इकत्तीस नम्बर का खेल सांप सीढी के खेल से कम नही माना जा सकता है। जैसे इस खेल मे निन्यानबे की श्रेणी मे जाते ही वापस नीचे आजाते है उसी प्रकार से इस नम्बर से जुडे जातक आगे बढकर कर भी तीसरी सीढी पर जाकर वापस नीचे आजाते है। हिन्दी शास्त्रो के अनुसार तीस के बाद एक का मतलब होता है एक महिना काम करने के बाद एक दिन और अधिक काम करना,इसी बात का प्रयोग हिब्रू ने भी अपने लेखों मे किया है कि यह नम्बर एक प्रकार से केतु की श्रेणी मे आता है और वाहन आदि के नम्बरो का जोड भी अगर इस नम्बर से आता है तो वाहन कितना ही कीमती भी क्यों न हो वह मिट्टी के भाव मे ही एक दिन चला जाता है। इस नम्बर का जातक अगर किसी प्रकार से मृत्यु सम्बन्धी कामो को करने वाला जैसे चर्च या कब्रिस्तान मे काम करने वाला होता है तो उसे आशातीत सहायताये मिलती रहती है जो डाक्टर इस तारीख के जन्म लेने वाले होते है और अपनी डाक्टरी की सेवा मुर्दो को देते है यानी पोस्टमार्टम आदि मे अपना कार्य जारी रखते है तो उनकी सेवा बहुत अच्छी चलती रहती है लेकिन इस काम को करने वाले डाक्टर राहु के द्वारा ही अपने को सुरक्षित रख पाते है यानी वे किसी न किसी प्रकार के नशे से युक्त माने जाते है। इस नम्बर वाले जातक अगर किसी के साथ चलना शुरु कर देते है तो यह भी देखा गया है कि अलावा नम्बर वाले व्यक्ति बर्फ़ मे लगने से नही बचते है। जैसे एक नम्बर वाला जातक अगर राजनीति मे सफ़ल होता चला जाता है और जैसे ही उसके साथ इस नम्बर वाला व्यक्ति साथ मे आता है उस व्यक्ति की पोजीशन बर्फ़ मे लग जाती है उसे वापस उठने मे कोई भी सहायता नही मिल पाती है। कबाडी का काम करने वाले इस नम्बर का फ़ायदा लेते देखे गये है जो माल किसी के पास नही बिकता है इस नम्बर वाले व्यक्ति उस माल को आसानी से बेचने मे सफ़ल होते देखे गये है,जो लोग इस नम्बर से युक्त है और वे भूत प्रेत तंत्र मंत्र आदि मे लग जाते है तो उनकी ख्याति अघोरी बाबा के रूप मे मिलती है। लोग उनकी कार्य शैली को साधारण आदमी की श्रेणी मे नही ला पाते है। अक्सर इस नम्बर वाले स्थान जातक आदि पर भूत प्रेतो का शासन माना जाता है।

सामजस्य

घर परिवार और मुहल्ला समाज मे हर आदमी को अपने अपने अनुसार सामजस्य बैठाकर चलना पडता है। दूसरे मायने मे कहा जाये तो हर आदमी को अपने अपने अनुसार बांध कर चलना पड सकता है। घर के खर्चो मे भी और बाहर के रिस्तो मे भी अपने को बांध कर चलना बहुत जरूरी है। जैसे अचानक घर मे गैस खत्म हो जाये तो कोई बात नही चूल्हे पर रोटी बनाने मे कोई हर्ज नही है यह नही होना चाहिये कि गैस के खत्म होने पर घर मे कोहराम मच जाये कि गैस ही नही है और रोटी कैसे बने ? अगर रोटी नही बनेगी तो भोजन कैसे प्राप्त होगा लेकिन घर के अन्दर अगर समझदार लोग है तो महसूस भी नही होने देंगे कि कब गैस खत्म हो गयी और कब आ गयी लेकिन रोटी समय से मिलती रही। वक्त वेवक्त के लिये घर मे एक लोहे का बना हुआ उठाऊ चूल्हा जरूर होना चाहिये सर्दी मे कभी कभी आग तापने की जरूरत पड ही जाती है और इस चूल्हे के होने से एक तो घर के अन्दर का लकडी का बेकार का सामान भी काम मे आजाता है दूसरे ठंड से दूर होने के लिये आग तापने को भी मिल जाती है लेकिन यह काम उन घरो मे नही हो सकता है जहां वातानुकूलित घर है वहां तो इस बात से दूर ही रहना पड सकता है। कभी कभी कुकर पर बनी सब्जियां भी खाने से जी भर जाता है फ़िर तलाश होती है किसी ऐसे होटल की जहां पर कडाही का बना खाना मिले और कढाई मे भी तभी खाना पकाया जा सकता है जब धीमी आंच पर सब्जी को बनाया गया हो और जब धीमी धीमी आंच पर सब्जी बनेगी तो बहुत ही उम्दा स्वाद भी होगा और रोजाना की गैस की पकी सब्जी खाने से स्वाद मे भी बदलाव होगा।
 अगर कढाही मे आलू के साथ पनीर भी डाला गया हो और मटर को भी हरी मिर्च के साथ डालकर धीमी आंच मे पकाया गया हो तो उस सब्जी का स्वाद भी निराला ही होगा जब पकाने वाले को कला भी आती हो और वह उन बातो से दूर हो कि काली कढाही मे सब्जी बनाते वक्त सेहत के लिये भी कोई दिक्कत आ सकती है,जब आलू को उगाते समय खादो का प्रयोग किया जाता है दूध का पनीर बनाते वक्त यह ध्यान नही रखा जाता है कि दूध को फ़ाडने के वक्त जो कैमिकल प्रयोग मे लाये जाते है वे किस प्रकार से बने है या पनीर को बनाते समय किस मशीन को कैसे प्रयोग मे लाया गया है तो फ़ालतू मे अपने घर पर उन बातो को नही पैदा करना चाहिये कि आलू के साथ पनीर बनाने के वक्त मे जलने वाली आग मे कौन सी लकडी का प्रयोग किया गया है। वैसे भी लकडी के लिये जंगल अब खोजने के बाद भी नही मिलते है वह तो भला हो कांग्रेस का जिसने विलायती बबूल को पूरे भारत मे हवाई जहाज से बिखेर कर हरिक्रान्ति के नाम पर बडे बडे कांटो वाले वाले वृक्ष उगा दिये है जो किसी भी अलावा वनस्पति को नही उगने देते और अपनी ही गरिमा को कायम रखने के लिये जमीन से उष्ण्ता को तो खींचते ही है साथ मे जो भी पौधो के पोषक तत्व होते है उन्हे भी खींच कर अपनी लकडी को बनाने मे काम आते है यह भी मेरे ख्याल से अंग्रेजो का एक ख्याल होना चाहिये था कि जब भारत मे कोई जडी बूटी ही नही मिलेगी तो भारत मे लोग अपने आप ही अंग्रेजी दवाइयों के घेरे मे आजायेंगे और उनके बनाये हुये अस्पतालों जाकर भर्ती होंगे फ़िर वे जैसा चाहेंगे वैसा व्यवहार मरीजो के साथ करेंगे उनके अन्दर उन तत्वो को इंजेक्सन और दवाइयों से भर दिया जायेगा जो शरीर मे जाकर अंग्रेजी व्यवहार को करने के लिये अपने आप जिम्मेदार हो जायेंगे।
भाषा से तो उन्होने दूर ही कर दिया है साथ ही आदमी के अन्दर इतना बडा भेद भाव पैदा कर दिया है कि वह अपने अलावा और किसी को जानता ही नही है अगर गांव का आदमी किसी शहरी औरत से शादी कर लेता है तो उसका गांव का व्यवहार खत्म होता ही है वह शहर के माहौल मे भी अपने को नही ढाल पाता है वह कभी तो गांव के ख्याल अपने मन मे लाता रहता है कभी वह अपने ख्यालो मे शहर की चमक दमक मे लेकर चलने लगता है उसकी औलाद ऐसी होती है कि वह अपने पिता के गांव की सभ्यता को तो बेहूदा मानने लगती और अपने को आगे बढाने के लिये वह गांव के प्रति भी दुर्भावना रखने लगती है। जो सब्जी कढाही मे बनायी गयी थी वह बनी तो चूल्हे पर थी लेकिन उसे लाकर जब सजे सजाये कमरे मे बनाकर रखा जाता है तो वह शहरी सब्जी बन जाती है और ऊपर से जो हरा धनिया आदि डालकर उसे छींट का कलर दिया जाता है तो उसकी बात ही कुछ और होती है वह सजावटी सब्जी के रूप मे देखी जाती है और जिसे देखो वही कहने लगता है भाई यह तो बहुत अच्छी और देखने मे सुन्दर लगती है। अक्सर कहा जाता है कि भोजन और भजन को कभी अकेले मे करने से मजा नही आता है कीर्तन को तो साथ साथ करने मे बहुत ही अच्छा लगता है भोजन को भी साथ साथ मे करना बहुत अच्छा लगता है अगर उसी भोजन को अपने पडौस के लोगों के साथ किया जाये और भी बात होती है इस बात से इस बात का तो मजा ही होता है कि बोलने चालने मे और व्यवहार आदि मे दुख सुख मे किसी भी कारण के बनने से पडौसी भाग कर पहले आजाते है कई लोग अपने पडौसी से ही लडाई झगडा कर लेते है उन्हे लगता है कि उनके सामने पडौसी की कोई औकात नही है वह भूल जाता है कि जिस कार्य के लिये वह शहर मे आया है उसी कार्य से उसके पडौसी का भी आना हुआ है।
अपने ही घर मे पडौसी के साथ बैठकर खाना खाया जाये तो बहुत ही अच्छा लगता है कई जगह पर जाने के बाद पता चला कि जिसके घर गये थे उसके घर तो आने जाने के वक्त ही खाना खा पाये वरना पडौसी ही अपने यहां निमंत्रण देकर चले जाते और विभिन्न प्रकार का भोजन करने के बाद पता चलता कि कैसी सामजस्यता बैठाकर लोग आपस मे रहते है उन्हे इस बात का पता ही नही होता है कि वे एक परिवार के है या अलग अलग परिवार के है इसके साथ ही मजा तब और अधिक आता है जब पडौसी अलग अलग प्रांत के हो या अलग अलग सभ्यता से जुडे हो कारण उनके यहां बनने वाला भोजन बिलकुल ही अलग होता है और वह भोजन कुछ मानसिक इच्छाओ को भी पूरा करता है जैसे रोटी खाने वाला व्यक्ति अगर दक्षिण के पडौसी के यहां निमंत्रण मे जाता है तो उसे दौसा और सांभर का स्वाद पता लगता है या महाराष्ट्र के पडौसी के यहां जाने पर उसे भाखरे खाने को मिलते है गुजराती के यहां जाने पर खम्मण ढोकले भी खाने को मिलते है,मालवा के पडौसी के यहां जाने पर हींग के बघार वाली सब्जी भी खाने को मिलती है। इसके अलावा भी कई प्रकार के खाने अलग से बनाये जाते है उसके लिये एक दूसरे पडौसी के प्रति सद्भावना भी रखते है कि आया हुआ मेहमान कभी यह न कह बैठे कि वे जिसके घर गये थे उनके पडौसी कुछ भी ख्याल रखना नही जानते थे या उनके यहां भोजन बनाने मे कोताही की जाती थी या लोभी थे खिलाने मे भेद रखते थे,अगर उनके घर के आसपास कोई मेहमान आजाता तो उनके घर के बच्चे भी यही मानने लगते थे कि अब तो एक दिन उनके घर पर भी गहमागहमी हो जायेगी और वे भी उस गहमागहमी मे अपने को उन पकवानो का स्वाद लेने से नही चूकेंगे।
मेहमान जब घर मे आते है तो बच्चो से उनकी जानपहिचान होती है बच्चे अपने अपने स्वभाव के अनुसार उन मेहमानो से अपनी अपनी भावना को व्यक्त करते है कोई अच्छी कविता को सुनाना जानता है तो कोई चुटकुले ही सुनाना जानता है कोई केवल हंसना ही जानता है तो कोई अपनी व्यथा को बताने मे ही अपनी सीमा को संकुचित रखता है। कहावत भी सही है कि जब किसी के घर की हालत को जानना हो तो बच्चे उस घर की हालत को बहुत ही ठीक तरह से उसी प्रकार से बता देते है जैसे किसी लडकी के लिये लडका देखना है तो उसके पडौस के नाई धोबी और पंडित से घर का पूरा राज पता किया जा सकता है जैसे नाई के यहां घर के पुरुष दाढी बाल आदि बनवाने जाते है उस समय सब अपने अपने बारे मे कोई न कोई बात करता रहता है नाई को सभी के घरो की हालत का पता चलता है कोई नाई से सुबह सुबह ही झगडा कर लेता है कि जरा सी मूंछ छांटने का दस रुपया ले लिया तो कोई दस की जगह पर पन्द्रह देकर इसलिये चला जाता है कि नाई का काम तो लोगो की सेवा ही करना है और कोई जानना भी चाहेगा तो नाई बढचढ कर उस दस रुपये देने वाले की और पन्द्रह रुपये देने वाले की हालत को कैसे बतायेगा यह तो बाद मे ही पता चलेगा इसके अलावा हर घर से प्रेस होने के लिये धुलने के लिये और कपडे की तीमारदारी करने के लिये कपडा धोबी की दुकान पर भी जाता है जब धोबी को यह भी पता होता है कि एक कपडा कितने दिनो से उसके पास धुलने के लिये आ रहा है अगर देर से आता है तो उसे पता होता है कि धुलने के लिये पैसे नही है और जल्दी जल्दी आता है तो उसे पता होता है कि कपडे बनवाने के लिये पैसे नही है इसलिये एक ही कपडा जल्दी जल्दी प्रेस होने के लिये या धुलने के लिये आता है इसके अलावा भी कपडे की क्वालिटी कैसी है इस बात का पता भी धोबी को ही होता है अलावा लोगो को इस बात की जानकारी नही होती है।
जब मुहल्ले मे रहा जायेगा तो किसी न किसी बात पर झगडा भी होगा और जब झगडा होगा तो उसे निबटाने के लिये समझदार लोग अपनी अपनी तरह से समझायस भी करेंगे,जैसे रात को काम से लौटने के बाद पास की शराब की दुकान पर दो पडौसी मिल जाते है और पहले तो हाफ़ हाफ़ की कहकर एक दूसरे के पैसो की पूर्ति करते है किसी एकान्त स्थान पर कोई नही है को देखकर उस पौवे को पी लिया जाता है मूंगफ़ली आदि मिल गयी तो ठीक है नही मिली तो कोई बात नही,शुरुर के आने से अपनी अपनी बात को कहना चालू कर देते है और जब बाते की जाती है तो मुहल्ले के प्रति किसी न किसी बात से आपसी सामजस्य भी बिगड जाता है और जैसे ही सामजस्य बिगडता है लोग आपस मे गाली गलौज या मारपीट भी कर लेते है जो अन्न एक ने खाया है वही अन्न दूसरे ने भी खाया है कम कोई किसी से नही पडता है बात दो परिवारो के आपसी भिडने तक आजाती है रात को हो सकता है कि लाठी डंडे की जगह पर क्रिकेट खेलने वाले बल्ले ही काम आ रहे हो,लेकिन यह भी पता नही होता है कि किसके लग रही है और कौन जख्मी हो रहा होता है वहां तो आन बान शान तीनो ही दिखाई देती है अगर देखने के लिये कोई पडौसी आते है तो ठीक है अन्यथा नगर निगम की लाइट वैसे दिन मे चलती रहे लेकिन रात को जरूर बन्द हो जाती है उस लाइट मे किसी का चेहरा तो दिखाई नही देता है,सुबह को जब नशा दूर होता है तो एक दूसरे की गल्ती को मानते हुये एक दूसरे के घर पर भी जाना पडता है फ़िर घर की औरते ही रह जाती है कारण आदमी तो काम पर चले जाते है और घर की औरतो को लडको को समझाना पडता है कि कोई बात नही जो हुआ उसे भूल जाओ एक छोटा बन जाता है या तो हाथ जोड लेता है या यह कहकर कि तू छोटा था वह उम्र मे बडा था पीट लिया कोई बात नही अब शैतानी नही करना और न ही शराब पीकर लडाई करना। अक्सर देखा जाता है कि कहीं पर भी लडाई झगडा हो लेकिन औरते और बच्चे अपनी अपनी तरह से देखने की कोशिश करते है इसका भी एक कारण तो समझ मे आया कि उन्हे या तो एक दूसरे की ताकत को देखने मे मजा आता है वैसे टीवी शो मे उन्हे पता होता है कि लडाई कैसे होती है लेकिन वह लडाई जब हकीकत की हो तो और ही बात है बच्चे लडाई के बाद यह कहते देखे जाते है कि कैसे हाथ घुमा घुमाकर बैट को चला रहा था उसकी खोपडी मे बैट का पूरा हिस्सा नही पडा था नही तो राम नाम सत्य हो जाती। यह बात केवल आपसी समझौते से दूर हो जाती है अन्यथा अन्य स्थानो पर तो जरा सी तू तू मै मै मे पुलिस का सौ नम्बर घुमा दिया जाता है पुलिस आती है दोनो पक्षो से थोडा बहुत लेकर राजीनामा करवा दिया जाता है।