एक करोड बनाम नौ करोड

कभी राजनीति वाली बात आती है तो धरती की सीमाओं को बांट कर देशवाद फ़िर प्रान्त की बात आती है तो प्रान्तवाद फ़िर जिलावाद फ़िर तहसीलवाद ब्लाकवाद शहर है तो मुहल्लावाद और घर के अन्दर हिस्सावाद मेरे ख्याल से सृष्टि के शुरु होने से वाद का चलन शुरु हो गया होगा। इस वाद के कारण ही आज हर आदमी के अन्दर कोई न कोई वाद का चलना पाया जाता है। यह वाद और कोई नही चलाता है बल्कि हमारे अन्दर के बैठे मुफ़्तखोर ही इस वाद का रूप प्रकट करते है। हमारे शरीर के अन्दर हमारी कुल दस करोड कोशिकाओं ही अपनी कोशिकायें होती है बाकी की नौ करोड कोशिकायें मुफ़्तखोर कोशिकाओं के रूप में हमारे शरीर मे अपना निवास करती है। जब भी उनकी चलने लगती है तो अपनी खुद की कोशिकाओं को अपनी मानसिक स्थिति को  चलान से मजबूर कर देती है और खुद की चलाने लगती है उसी समय से दिमाग वाद को प्रकट करने लगता है। इस वाद के कारण ही शरीर कई प्रकार के विवादों में फ़ंस कर दुख प्राप्त करने लगता है और हम यह कहने लगते है कि यह आखिर में वाद आया कहां से। हमने अपने को हर प्रकार से इन मुफ़्तखोरों के चंगुल में फ़ंस कर बांध रखा है। कभी हम अपने धर्म में बंध गये है,हमे पता होता है कि हम इस संसार में आये है और जैसे हमारे से पहले आने वाले चले गये है और हमे भी चले जाना है लेकिन यह मुफ़्तखोर हमें अहम से पूर्ण कर देते है और हमे हमारे मुख्य उद्देश्य से भटकाकर दूर कर देते है,इसके साथ ही हमारे अन्दर एक प्रकार का बंधन पैदा हो जाता है और उस बंधन के कारण हम जो हमें नही करना होता है उसे भी करने लगते है और जो करना है उसे भूल जाते है। बात भी सही है कि हमारे से नौ गुने परजीवी हमारा ही खाकर हमे ही भटकाने की नीयत से कुछ भी कर सकते है और जब दस लोग एक साथ बैठ जाते है और उनके अन्दर कोई अनीति वाली बात होती है तो नौ एक को बरबाद कर अपनी संख्या को नौ में ही रखना चाहते है।
यह सीमा विवाद भी एक तरह से व्यक्ति के लिये फ़लदायी भी है और नुकसान दायक भी है। इस कारण को वैसे ही समझा जा सकता है जैसे सूर्य के सामने रहकर प्रकाश को नही समझ पाते है लेकिन जैसे ही सूर्य छुपता है प्रकाश का महत्व समझ मे आजाता है। सूर्य के छुपने के बाद हम प्रकाश की व्यवस्था करते है और जहां तक प्रकाश जाता है वहां तक का तो सब कुछ समझ मे आता है लेकिन जहां अन्धेरा होता है वह स्थान केवल अंदाज से ही समझा जा सकता है। अन्धेरे मे अन्धेरे को नही देखा जा सकता है तो प्रकाश मे प्रकाश को नही देखा जा सकता है। कम और अधिक प्रकाश तथा अन्धेरे को बदलाव के रूप मे देखते है और वही बदलाव हमे रंगो के रूप मे समझ मे आता है। यह रंग की परिभाषा के रूप मे समझा जा सकता है। आपके दिमाग में शायद इस बात का ज्ञान नही था कि रंग की परिभाषा क्या होती है तो आज भदौरियाजी ने आपके सामने रंग की परिभाषा का रूप भी रख दिया है। यह रंग की परिभाषा ही वाद का कारक है और इस वाद को समझने के लिये मानसिक विवाद की भी जरूरत है। जब तक प्रकाश में अन्धेरे का कारण नही होता है आपको प्रत्यक्ष दर्शन भी नही हो सकता है जैसे आप इस ब्लाग में जो भी पढ रहे है वह प्रकाश में अन्धेरे की उपस्थिति से ही सम्भव है अगर पूरा प्रकाश ही प्रयोग में लाया जाता है तो आप स्क्रीन को साफ़ और क्लीयर ही देख सकते थे अक्षर जो काले रंग का लिखा हुआ है वह आपको दिखाई ही नही देता,तो समझ मे आगया होगा कि प्रकाश में अन्धेरे का और अन्धेरे मे प्रकाश का कितना महत्व है। अब आपक अन्दर यह भी प्रश्न उत्पन्न हो रहा होगा कि आखिर मे इस प्रकाश और अन्धेरे का महत्व सीमा विवाद और घर के मुफ़्त खोरो से कैसे जुडा है।
जो लोग अपने को उन्नत मानते है और अपने समाझ धर्म मर्यादा को अपनी सीमा तक सुरक्षित रखना चाहते है वे नही चाहते है कि उनकी मर्यादा धर्म और समाज के साथ उनके खुद के कानून जिनके अन्दर वे बंधे है और बंधे रहकर ही जीना चाहते है उन्हे कोई आकर उनके बन्धन को खोले और वे फ़्री होकर कुछ और देख सकें,इसलिये लोग अपनी अपनी सीमा में बंधे रहकर जीने के लिये मजबूर है और वे यह भी चाहते है कि वे केवल अपनी बंधी हुयी दुनिया में ही रहें उन्हे कोई किसी प्रकार से छेडे भी नही। यही कारण सीधा सीमा विवाद के कारण पैदा हो जाता है। हमारे शरीर मे एक करोड तत्व जो कोशिकाओं के रूप मे उपस्थित होते है वह हमारे रूप को रंग को हाथ पैर और दिमाग के संचालन का काम तो सभी की तरह से करते है और पैदा होना आगे की सन्तति को पैदा करना पेट भरना और शरीर को चलाना यह सभी बाते उन एक करोड कोशिकाओं की बदौलत एक सा चलता है लेकिन नौ करोड जो मुफ़्त खोर हमारे अन्दर निवास करते है वे नही चाहते है कि उन्हे किसी अन्य प्रकार से छेडा जाये। कारण अगर उन नौ करोड को छेड दिया जाता है तो उनके अन्दर बदलाव भी शुरु हो सकता है और आदमी को बजाय बंधन में जीने के उसे खुलकर भी जीना पड सकता है। यह उसी प्रकार का बंधन माना जाता है जैसे एक पति अगर विदेश मे नौकरी करने के लिये जाना चाहता है तो उसकी पत्नी को डर लगता है कि उसका पति अगर विदेश मे चला गया तो उसके अन्दर विदेश के रीति रिवाज और कारण पैदा हो जायेंगे वह अपने परिवार को भूल जायेगा और वह वापस अपने देश को वापस नही आयेगा। इस कारण से पति को पत्नी विदेश नही भेजना चाहती है। यही प्रकार पति के अन्दर भी देखा जाता है कि अगर पत्नी को अकेला छोड दिया गया तो कोई दूसरा उसकी पत्नी को ले जायेगा और वह अपनी पत्नी को दूसरे के पास कैसे देख सकता है। जबकि उसे यह भी पता है कि पत्नी के अन्दर भी उतना ही दिमाग है जितना उसके अन्दर है,अगर पत्नी के शरीर मे मुफ़्त खोरों की चलती है तो पत्नी अपने एक करोड की सहायता नही ले पायेगी और बाकी के नौ करोड के चक्कर में फ़ंस कर अपने को दूर ले जाकर अपने नाम निशान और औकात को भुला देगी। अगर पत्नी के अन्दर वह एक करोड सबल है और वह मजबूत है तो किसी प्रकार से उसकी पत्नी उन नौ करोड को भी झुठलाकर अपने ही घर मे रहेगी।