धर्म स्थान और उनका महत्व

हर राशि की अपनी अपनी उन्नति की दिशा है और हर दिशा अपना अपना महत्व रखती है। मेष राशि अपनी उन्नति पूर्व दिशा मे करती है वृष राशि अपनी उन्नति वायव्य दिशा मे करती है मिथुन भी अपनी उन्नति वायव्य मे ही कर पाती है कर्क राशि उत्तर दिशा मे उन्नति के लिये मानी जाती है,सिंह राशि पूर्व के लिये कन्या राशि उत्तर के लिये तुला राशि पश्चिम के लिये वृश्चिक राशि नैऋत्य के लिये धनु राशि अग्नि के लिये मकर राशि दक्षिण के लिये कुम्भ राशि अग्नि कोण के लिये और मेन राशि भी अग्नि कोण के लिये उन्नति के लिये मानी गयी है. इसी प्रकार से धर्म स्थान भी हर राशि के लिये अपने अपने महत्व और उन्नति देने तथा पूजा पाठ के फ़लो के लिये भारत मे स्थापित किये गये है.उत्तर दिशा मे कुबेर का स्थान माना गया है और बद्रीनाथ वृष राशि केदार नाथ मिथुन राशि वालो के लिये उत्तम भाग्य को देने वाले है,जगन्नाथ पुरी मकर राशि वालो के लिये रामेश्वरम तुला राशि वालो के लिये द्वारका नाथ मीन राशि वालो के लिये सोमनाथ कुम्भ राशि वालो के लिये उत्तम फ़ल देने वाले माने गये है.बारह शिवलिंग अपनी अपनी राशि के अनुसार स्थापित किये गये है.चौसठ योगिनी आठ दिशाओं के चार चार भाग बनाकर स्थापित की गयी है.एक सौ आठ शक्ति पीठ सत्ताइस नक्षत्रों के अनुसार चारो दिशाओं में स्थापित किये गये है.राहु के लिये केवल सिर से युक्त भगवान की पूजा की जाती है जैसे बर्बरीक महाराज को श्याम बाबा के नाम से और केतु के लिये गणेशजी की पूजा को मान्यता दी गयी है.चन्द्र के लिये शिव स्थान तथा चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार (५४०००) शिव रूपों का स्थापन किया गया है,यह कलायें भारत मे कुछ ही बाकी रह गयी है अन्य का काल के अनुरूप लुप्त हो जाना भी मिलता है.बारह रवि बारह अर्क बारह भास्कर बारह दिनकर बारह तमारि और बारह मार्तण्ड बारह प्रभारि रूप में शिव स्थान है.

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