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यंत्र विज्ञान और फ़ायदे नुकसान

यंत्र मंत्र तंत्र के बारे मे जो धरणायें प्राचीन काल से चली आ रही है उनके प्रति जानकारी करना जरूरी है। यंत्र जो आज के जमाने मे मशीन के नाम से जानी जाती है,तंत्र उस मशीन की कारीगरी को जानने की कला का नाम है और मंत्र उस यंत्र को संचालित करने की कला के प्रति अपनी धारणा को व्यक्त करना माना जाता है। शरीर भी एक यंत्र है इसे संचालन की कला का जानना मंत्र है और उसके अन्दरूनी कार्यों व्यवहार को जानना तंत्र है। भौतिकता मे वस्तु का उपयोग निर्जीव वस्तु से लिया जाने वाला कार्य और कार्य की कला के बारे मे आधुनिक विज्ञान से साबित करके दिखा ही दिया है। जितनी भी जलचर थलचर नभचर जीवित वस्तुये है जिनके अन्दर जड चेतन सभी आजाते है जड के अन्दर पेड पौधे और चलने फ़िरने वाले चेतन के रूप मे दिखाई देते है सभी के प्रति तांत्रिक यांत्रिक और मांत्रिक कारण समझना हर किसी एक के वश की बात नही है,अलग अलग विभाग बनाकर अलग अलग रूप से सभी के बारे मे जानकारी दी जाती है जैसे जैसे मनुष्य की कल्पना शक्ति का विकास हो रहा है,वैसे वैसे यंत्र मंत्र तंत्र का विकास हो रहा है,भौतिक रूप मे वह मसीनो के रूप मे और जीवन के प्रति तरह तरह की खोजो और कोशिकीय विश्लेषण के रूप मे आप सभी को पता होगा ही। मैने अभी कहा है कि हमारा शरीर भी एक यंत्र है और इस शरीर के बारे मे जानना ही तंत्र है तथा इस शरीर को संचालन करने का ज्ञान प्राप्त करना ही मंत्र है,इसी प्रकार से हमारा रहनेका स्थान भी एक यंत्र है रहने वाले स्थान के बारे मे तकनीकी जानकारी तंत्र है और रहने मे जो भावना प्रकट की जाती है वह ही मंत्र है। हमारे विज्ञान मे प्राचीन काल से ही द्रश्य श्रव्य और भव्य यानी जो देखी जा सके सुनी जा सके महसूस की जा सके उन तकनीको का विकास किया था। साथ ही शरीर विज्ञान के लिये कई तरह के सिद्धांत प्रतिपादित किये थे,सभी मे अपनी अपनी विशेषता थी। मनुष्य को परा और अपरा शक्ति का आभास भी होता था और वह इन शक्तियों के विकास मे लगा हुआ भी था। जिन यंत्रो का विकास प्राचीन काल मे कर लिया गया था उनके बारे मे आज भी विज्ञान अपने कार्यों मे लगा हुआ है और उन कारको की खोज कर रहा है जिन कारको से प्राचीन काल मे यंत्रो का प्रयोग किया जाता था। जैसे कुबेर का पुष्पक विमान जो मन की इच्छा से चलता था उसे किसी प्रकार के ईंधन की जरूरत नही पडती थी। उस समय के आग्नेय हथियार जो युद्ध मे प्रयोग किये जाते थे उन हथियारो की शक्ति खत्म नही होती थी जो वाल्मीकि रामायण मे शतघ्नी के नाम से लिखे गये है,आदि की बाते पढने को सुनने और महसूस करने के लिये प्रेरित करती है।
मिश्र की पिरामिड कला को सभी लोग जानते होंगे वह भी एक जीवित उदाहरण यंत्र के रूप मे है जिसमे हजारो साल एक मृत शरीर को रखा जा सकता था तथा उस शरीर को प्राकृतिक क्षरीय कारण बरबाद नही कर सकते थे। प्राचीन काल मे बाधा निवारण के लिये यंत्रो का प्रयोग भी किया जाता था उन यंत्रो के अनुसार ही धर्म स्थान और पूजा पाठ आदि के लिये स्थान भी बनाये जाते थे,तथा यंत्र की विशेषता से उनके अन्दर एक पराशक्ति का विकास किया जाता था उस पराशक्ति का रूप अप्रत्यक्ष रूप से महसूस होने की बात भी देखी जाती थी,उदाहरण के रूप में उज्जैन के मंगलनाथ नामक स्थान पर मंगल के यंत्र की विशेषता और मिलने वाले प्रत्यक्ष प्रमाणो के लिये बहुत अधिक जानने की धारणा भी उन लोगो के लिये नही होगे जो उस स्थान पर जा चुके है और मंगल ग्रह की प्रत्यक्ष शक्ति को महसूस कर चुके है। महाराजा विक्रमादित्य की सिंहासन बतीसी वाली कथा जो एक काल्पनिक बात लगती है लेकिन उस समय के इतिहास और प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर सुनने और पढने मे तो अजीब लगती है लेकिन उनका प्रयोग और उनका प्रमाण आज भी किसी न किसी रूप मे देखा जा सकता है। यही बात वनस्पति शास्त्रो मे देखने को मिलती है,जैसे वृक्ष महसूस भी करते है और आपसी व्यवहार भी रखते है प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिये छुई मुई के पेड को छूने से वह अपनी पत्तियों को सिकोड लेता है,केले के पेड को काटने के समय पहले सफ़ेद और बाद मे लाल रंग का पदार्थ बनना शुरु हो जाता है,उस सफ़ेद और लाल रंग के पदार्थ मे बहुत बडी असमानता होती है,सफ़ेद पदार्थ को अगर हथेली मे लगा लिया जाये तो केवल पानी से ही साफ़ हो जायेगा और लाल रंग के पदार्थ को हथेली मे लगाने के बाद साबुन और अन्य प्रकारो से हाथ को साफ़ करने के बाद ही हाथ साफ़ होगा इसी प्रकार से नीम और बबूल के पेड के बारे मे भी कई बाते साक्षात देखने को मिलती है,जैसे नीम के पेड को काट दिया जाये और काटने के तीसरे या नवे महिने मे जरूर दुर्घटना का सामना करना पडता है,बबूल के पेड को काटने के बाद कितनी ही कोशिश की जाये लेकिन घर का कोई न कोई सदस्य एक सम्पत्ति का विनास कर ही देगा आदि बाते अप्रत्यक्ष रूप से अपने कारण पैदा करने के लिये माने जाते है।
ज्योतिष मे मुहूर्त को बहुत से लोग जानते होंगे,अक्सर विवाह के लिये घर बनाने के लिये गाडी खरीदने के लिये मुहूर्त को लोग पूंछा करते है कई लोग बिना मुहूर्त के ही अपने सामान को लेकर आजाते है लेकिन एक कार्य शुभ मुहूर्त मे किया और और एक कार्य अशुभ मुहूर्त मे किया हुआ कितने काम आ सकता है या उसका फ़ल कितना अच्छा और बुरा मिलता है उसके बारे विद्व जन अपने अपने अनुभव को समझ कर बता ही सकते है। जो गाडी सफ़र आदि करवाने मे बडी भूमिका को अदा करती है वही गाडी पूरे परिवार को काल के गाल मे भी डाल देती है,जो घर वंश को चलाने के लिये अपना अच्छा असर प्रदान करता है वही घर बसे बसाये परिवार को उजाडने मे अपनी गति प्रदान करत है। जैसे शरीर की संरचना को बद्लाने के लिये आपरेशन आदि करने के बाद डाक्टर कई कारण बनाते है वही प्रकार घर मे अगर कोई बिगाड हो जाता है तो उसे वास्तु से सम्भाला भी जाता है,किसी बुरे मुहूर्त मे कोई सामान अगर खरीद लिया जाता है तो उस सामान मे शुभता लाने के लिये उपाय भी किये जाते है,यह उसी प्रकार से है जैसे कोई घडी गलत समय देती है तो उस घडी को सुधारक के पास लेजाकर उसकी मशीन मे फ़ेर बदल करवा देते है उसकी टाइमिंग मे परिवर्तन करवाकर घडी को सही कर लेते है। ज्योतिष के अनुसा रत्न भी एक यंत्र का काम करते है उन्हे साफ़ करने के बाद उनकी कटाई रत्न के ग्रह के मालिक के अनुसार करना और रत्न के ग्रह के योग मे उसे धारण करना आदि रत्न की कीमत भी बढा देता है और बहुत उपयोगी भी बना देता है। लेकिन हारा हुआ आदमी और हारा हुआ घोडा अपनी शक्ति को जुटाने मे शुरु के समय मे असमर्थ ही रहता है उसे कोई भी कारण एक बार तो खराब लगता ही है कारण उसे हार दिलाने मे उसी के कारणो ने ही तो बाध्य किया था आदि बाते समझने की भी जरूरत होती है।

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