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वास्तुशास्त्र के अचूक प्रयोग

वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार अगर मकान या व्यवसायिक भवन का निर्माण नही हुआ है तो कुछ अचूक उपायों के द्वारा वास्तु में सुधार किया जा सकता है। यह तो पता ही है कि वास्तु का प्रभाव जीवन में धर्म अर्थ काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों में बराबर का पडता है,अगर धर्म खराब हो जाता है तो अर्थ पर भी असर आता है और अर्थ के खराब होने पर काम पर असर आयेगा और काम पर असर आते ही मोक्ष नही मिल पायेगा। पहले इन पुरुषार्थों को समझ लेना उचित रहेगा।
धर्म
धर्म का मतलब कोई पूजा पाठ और जाप हवन से ही नही माना जाता है धर्म के और भी कई रूप है,माता पिता ने जन्म दिया है और उन्होने बिना किसी मोह के परवरिस केवल इसलिये की है कि उनका नाम चले और उनके नाम चलने के बाद उनकी संतान इस संसार में अपने नाम को चलाकर आगे की संतति को सही रूप से पाल पोश कर बडा बनाये,इसलिये भी माना जाता है कि माता पिता के बुजुर्ग होने के बाद उनकी संतान उनकी भी देखभाल करे,उनकी मृत्यु के समय उनकी संतान उनके पास हो और वे आराम से अपनी अन्तगति को प्राप्त कर सकें। घर मे रहने वाले लोग अगर अपने अपने अनुसार घर के अन्दर के सदस्यों और उन सदस्यों के रिस्तेदारों को मानते है आने जाने पर और घर के अन्दर रहने के समय चाही गयी आवभगत और एक दूसरे की तकलीफ़ में शामिल होते है,किसी समय चाही गयी सहायता में एक दूसरे की सहायता करते है यह ही धर्म का रूप कहा गया है,फ़र्ज को निभाना और एक ही घर के सदस्य होने के बाद भी तुमने हमारे साथ क्या किया है,हमने तुम्हारे साथ क्या किया है,इन बातों से धर्म नही माना जाता है,परिवार का मतलब होता है सभी सदस्य एक दूसरे के प्रति समर्पित होते है,और किसी भी आडे वक्त पर एक दूसरे के काम आते है। अगर इन बातों में फ़र्क है और घर के अन्दर एक दूसरे की बातों और कार्यों के प्रति बुराइया की जाती है एक दूसरे पर आक्षेप विक्षेप किये जाते है किसी ने किसी की किसी भी मामले में सहायता की है तो उसके प्रति अहसान दिया जा रहा है तो भी धर्म का रूप खराब हो जाता है। इसी प्रकार से घर जहां पर बना है उसके आसपास के पडौसियों से बनती नही है,बात बात पर नालियों और दरवाजों पर किये जाने वाले अतिक्रमणों का प्रभाव है,रोजाना किसी ना किसी मामले में थाना पुलिस होता है कोर्ट केश चलते है लडाई झगडा होता है तो भी वास्तु में धर्म नाम की कोई ना कोई बुराई मिलती ही है।
अर्थ
अर्थ का रूप परिवार में आने वाली आय से माना जाता है। परिवार मे आने वाली आय के स्तोत्र अच्छे है और घर के बनने के बाद आय के साधनों में बढोत्तरी हुयी है या आय के साधनों में कमी आयी है,परिवार के लोग एक दूसरे से अधिक कमाने की प्रतिस्पर्धा कर रहे है कि एक दूसरे के भरोसे रहकर ही काम कर रहे है,घर बनाने के बाद या घर के अन्दर किये गये निर्माण या घर की बनावट रहन सहन करने के बाद कोई अक्समात फ़र्क कमाई पर पडा है आदि बातें वास्तु मे दोष की तरफ़ सूचित करती है,अक्सर देखा गया है कि वास्तु के बिगडते ही बेकार के खर्चे बढने लगते है घर के अन्दर की जाने वाली कमाइयां या तो अस्पतालों की दवाइयों में जाती है या लडाई झगडे में जाती है और कुछ नही तो घर के अन्दर अन्चाहा मेहमान आकर काफ़ी दिन के लिये रुक जाता है। घर के सदस्यों के अन्दर धन के मामले में तूतू मैं मैं होने लगती है,कर्जा बढने लगता है घर के ऊपर कर्ज ले लिये जाते है और वे चुकते नहीं है इस प्रकार से घर के चले जाने की चिन्ता दिमाग में लगी रहती है। घर में कन्या संतान का बोलबाला होने लगता है और उनकी शादी के बाद या तो घर कन्या संतान के हिस्से में चला जाता है अथवा कन्या सन्तान के ससुराल वाले किसी ना किसी राजनीति से घर के ऊपर कब्जा करने लगते है,यह सब अर्थ और भौतिक कारणों से वास्तु के खराब होने की बात कही जाती है। अभी जो कन्या संतान के मामले में बात लिखी है उसके अन्दर अक्सर इस प्रकार के घरों में दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में पानी के बहने के स्थान,जमीन से पानी निकालने के साधन,अग्नि दिशा से ही पानी को उत्तर दिशा के लिये निकाला जाता हो,पानी सदर दरवाजे के दाहिने से निकाला जाता हो,पानी का बहाव सीढी नुमा दक्षिण से उत्तर की तरफ़ गिरता हो,घर के पांच सौ मीटर के दायरे में दक्षिण की तरफ़ बहती हुयी कोई नदी या कृत्रिम नहर बह रही हो। इसके अलावा वह घर भी कन्या संतान के द्वारा प्रताडित किया जाता है जिसके उत्तर-पूर्व में कोई बडा बिजली का ट्रांसफ़ारमर रखा हो या बिजली घर का सबस्टेशन आदि बना हो। अक्सर बुध का प्रभाव खतरनाक तब और हो जाता है जब घर की किसी महिला को घर के लोगों के द्वारा ही प्रताणित किया जाने लगा हो। वह महिला भी बिना कुछ बोले मन ही मन में परिवार को समाप्त करने की बददुआयें देने लगी हो,अथवा परिवार की बडी और इकलौती बहू हो। पश्चिम मुखी घर अक्सर इन कारणों से सात से पन्द्रह साल के अन्दर उजड जाते है,पूर्व मुखी घर बदचलनी की तरफ़ चले जाते है,दक्षिणमुखी घर रहते तो है लेकिन अक्सर बंद ही रहते है,उत्तर मुखी घर तमाम तरह के राजनीतिक आक्षेप विक्षेपों की बजह से आने वाली पीढी के लिये खतरनाक होजाते हैं।
काम
काम का मतलब शादी विवाह,सन्तान का जन्म और आगे की पीढी की बढोत्तरी से माना जाता है। घर के बनाने के समय काम नामक पुरुषार्थ का विशेष ख्याल रखना पडता है। घर के अन्दर जब पुत्र संतान है और उसकी शादी विवाह के बाद आगे की संतान भी सही सलामत है तो ही माना जा सकता है कि घर सही बना है,अगर घर बनाने के बाद घर में पुत्र संतान की शादी हो गयी,जब तक खुद का या पुत्र का भाग्य सही चला तब तक तो कोई परेशानी नही आयी,लेकिन कुछ समय बाद जैसे ही अपने भाग्य का असर बुरा हुआ और घर का भाग्य भी बुरा था ही अचानक छोटी छोटी बातों में घर के अन्दर क्लेश होने लगा,पुत्रवधू अचानक या तो अपने पीहर चली गई और वहां जाकर कोर्ट केश या अन्य तरह की परेशानी को पैदा करने में लग गयी,अथवा उसका मन नकारात्मक इनर्जी में समाता चला गया,वह लाख दवाई करने और तरह तरह के उपाय करने के बाद भी अपने को सही नही रख पायी,तो यह काम नाम के पुरुषार्थ का बिगडना कहा जा सकता है। अक्सर इस प्रकार के घरों का पानी सदर दरवाजे के नीचे से निकलता है,घर के अगल बगल में या सामने अथवा अग्नि कोण की तरह कोई नि:संतान व्यक्ति या काला या काना रहता होगा। घर के सामने कोई चरित्र से हीन स्त्री का निवास होगा,अथवा घर के बगल में कोई ऐसा व्यक्ति रहता होगा जो अपनी पत्नी से पीडित होगा और उसकी पत्नी नाजायज संबध अपने ही परिवार के व्यक्ति से बनाकर चल रही होगी। अक्सर इस प्रकार के घरों में महिलाओं का स्वास्थ किसी ना किसी कारण से खराब रहता है,इस प्रकार के घरों में घर का दरवाजा भी गंदगी से पूर्ण रास्तों पर खुलता है,अथवा घर के अग्नि कोण में पानी का साधन होता है।
मोक्ष
घर के अन्दर जब उपरोक्त तीनो पुरुषार्थों को पूरा करने का साधन बनता है तभी मोक्ष यानी शांति का प्रादुर्भाव घर के अन्दर समावेशित होता है। खूब धन दौलत है खूब संतान घर के अन्दर है लेकिन घर में शांति नही है तो वह घर भूतों का डेरा ही माना जा सकता है। अक्सर समय से घर का निर्माण करने के लिये वेदों में बताया भी गया है,किसी घर के मालिक की कुंडली में शनि आठवें भाव में गोचर कर रहा है और उसने अपने घर को बनाने या निर्माण करने के बाद कुछ बदलाव करने की सोच ली तो उसका मतलब यह होगा कि घर में अगर पांच रुपये का खर्चा होगा तो अन्य कामों में पचास रुपये का खर्चा हो जायेगा। शांति की स्थापना के लिये घर के ईशान को समजना चाहिये। शांति की किरण सुबह के उगते सूर्य की किरण से जोडा जाता है,जिन घरों में सुबह की किरण प्रवेश करती है,वे घर सभी तरह से शांति मय कहे जाते है,घर में अगर सुबह की सूर्य की किरण नही पहुंचती है तो उन घरों में ईशान कोण में पूजा पाठ और कृत्रिम रोशनी का बन्दोबस्त करना पडता है,ध्यान रखना चाहिये कि ईशान की पूजा कभी धन को बढाने वाली नही होती है केवल घर के सदस्यों के मन को शांत करने वाली होती है घर के अन्दर जो भी काम किये जाते है वे शांति से पूरे होजाते है और सभी सदस्य नमक रोटी भी खाकर मजे से रहते हैं।
आगे आपको हम वास्तुशास्त्र के अचूक प्रयोग जो करने के बाद बिगडे हुये वास्तु में फ़लीभूत हुये है उन्हे लिखूंगा.

वास्तु के नियम

 वास्तु के नियम
कहावत है कि आधा भाग्य मनुष्य का और आधा भाग्य रहने वाले स्थान का काम करता है,अगर किसी प्रकार से मनुष्य का भाग्य खराब हो जावे तो रहने वाले घर का भाग्य सहारा दे देता है,और जब घर का भाग्य भी खराब हो और मनुष्य का भाग्य भी खराब हो जावे तो फ़िर सम्स्या पर समस्या आकर खडी हो जाती है और मनुष्य नकारात्मकता के चलते सिवाय परेशानी के और कुछ नही प्राप्त कर पाता है.मैने अपने पच्चीस साल के ज्योतिषीय जीवन में जो अद्भुत गुर वास्तु के स्वयं अंजवाकर देखे है,और लोगों को बता कर उनकी परेशानियों का हल निकालने में सहायता दी है वह विकिपीडिया के पाठकों को सप्रेम अर्पित कर रहा हूँ,यह कोई ढकोसला या प्रोप्गंडा नही है.
वास्तु क्या है
कम्पास को देखने के बाद और पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बारे में सभी जानते है,कम्पास की सुई हमेशा उत्तर की तरफ़ रहती है,कारण खिंचाव केवल सकारात्मक चुम्बकत्व ही करता है और विपरीत दिशा में धक्का देने का काम नकारात्मक चुम्बकत्व करता है,कभी आपेन चुम्बक को देखा होगा होगा,उसकी उत्तरी सीमा में लोहे को ले जाते ही वह चुम्बक की तरफ़ खिंचता है और नकारात्मक सीमा में ले जाते ही वह चुम्बक विपरीत दिशा की तरफ़ धक्का देता है,उत्तरी ध्रुव पर सकारात्मक चुम्बकत्व है,और दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ नकारात्मक चुम्बकत्व है,उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ लगातार बिना किसी रुकावट के प्रवाहित होती रहती है,यही जीवधारियों के अन्दर जो जैविक करेन्ट उपस्थित होता है,वह इस प्रवाहित होने वाले चुम्बकीय प्रभाव से अपनी गति को बदलता है,सकारात्मक प्रभाव के कारण दिमाग में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है और नकारात्मक प्रभाव के कारण नकारात्मक प्रभाव पैदा होते है.
सकारात्मकता के होते भी नकारात्मक प्रभाव
मनुष्य शरीर के पैर के तलवे,और हाथों की हथेलियां दोनो ही शरीर के करेंट को प्रवाहित करने और सोखने के काम आती हैं,हाथ मिलाना भी एक ऊर्जा को अपने शरीर से दूसरे के शरीर में प्रवाहित करने की क्रिया है,चुम्बन लेना और देना भी अत्यन्त प्रभावशाली ऊर्जा को प्रवाहित करने और सोखने का उत्तम साधन है,बिना चप्पल के घूमना शरीर की अधिक सकारात्मक ऊर्जा को ग्राउंड करने का काम है जबकि लगातार चप्पल पहिन कर और घर में रबर का अधिक प्रयोग करने पर व्यक्ति अधिक उत्तेजना में आ जाता है,और नंगे पैर रहने वाला व्यक्ति अधिकतर कम उत्तेजित होता है.नकारात्मक पभाव का असर अधिकतर स्त्रियों में अधिक केवल इसलिये देखने को मिलता है कि वे अपने निवास स्थान में नंगे पैर अधिक रहना पसम्द करती है,और जो स्त्रियां पुरुषॊ की तरह से चप्पले या जूतियां पहना करती है वे सकारात्मक काम करना और सकारात्मक बोलना अधिक पसंद करती है.सूर्य सकरात्मकता का प्रतीक है,सूर्योदय के समय जो प्रथम किरण निवास स्थान में प्रवेश करती है,वह ऊर्जा का पूरा असर निवास स्थान में भरती है,और जो भी लोग उस निवास स्थान में रहते है,चाहे वह पशु पक्षी हो या मनुष्य सभी को उसका प्रभाव महसूस होता है.भारत के पुराने जमाने के जो भी किले बनाये जाते थे,उनका सबका सामरिक महत्व केवल इसलिये ही अधिक माना जाता था कि,उनके दरवाजे दक्षिण की तरफ़ ही अधिकतर खुलते थे,मन्दिर जिनके भी दरवाजे दक्षिण की तरफ़ खुलते है,वे सभी मन्दिर प्रसिद्ध है,अस्पताल भी दक्षिण मुखी प्रसिद्ध इसी लिये हो जाते है कि उनका वास्तविक प्रभाव मंगल से जुड जाता है.
साउथ फ़ेसिंग मकान और कार्य स्थलों मे अन्तर
साउथ को मंगल का क्षेत्र कहा गया है,उज्जैन में मंगलनाथ नामक स्थान पर जो मंगल का यंत्र स्थापित है उसकी आराधना करने पर आराधना करने वाले का फ़ेस दक्षिण की तरफ़ ही रहता है,मन्दिर का मुख्य दरवाजा भी दक्षिण की तरफ़ है,मंगल का रूप दो प्रकार का ज्योतिष में कहा गया है,पहला मंगल नेक और दूसरा मंगल बद,मंगल नेक के देवता हनुमानजी,और मंगल बद के देवता भूत,प्रेत,पिसाच आदि माने गये है.इसी लिये जिनके परिवारों में पितर और प्रेतात्मक शक्तियों की उपासना की जाती है,अधिकतर उन लोगों के घर में शराब कबाब और भूत के भोजन का अधिक प्रचलन होता है,जबकि नेक मंगल के देवता हनुमानजी की उपासना वाले परिवारों के अन्दर मीठी और सुदर भोग की वस्तुओं के द्वारा पूजा की जाती है.साउथ फ़ेसिंग मकान में रहने वाले लोग अगर तीसरे,सातवें,और ग्यारहवें शनि से पूरित हैं तो भी वे अच्छी तरह से निवास करते हैं.साउथ फ़ेसिंग भवन केवल डाक्टरी कार्यों,इन्जीनियरिन्ग वाले कार्यों,बूचडखानों,और भवन निर्माण और ढहाने वाले कार्यों, के प्रति काफ़ी उत्साह वर्धक देखे गये हैं,धार्मिक कार्यों का विवेचन करना,पूजा पाठ हवन यज्ञ वाले कार्यों,आदि के लिये भी सुखदायी साबित हुए हैं,टेक्नीकल शिक्षा और बैंक आदि जो उधारी का काम करते हैं,भी सफ़ल होते देखे गये है,गाडियों के गैरेज और वर्कशाप आदि का मुख दक्षिण दिशा का फ़लदायी होता है,होटल और रेस्टोरेंट भी दक्षिण मुखी अपना फ़ल अच्छा ही देते है.
वास्तु के नियमों का विवेचन
कुन्डली को देखने के बाद पहले कर्म के कारक शनि को देखने के बाद ही मकान या दुकान का वास्तु पहिचाना जाता है,राहु जो कि मुख्य द्वार का कारक है,को अगर मंगल के आधीन किया जाता है तो वह शक्ति से और राहु वाली शक्तियों से अपने को मंगल के द्वारा शासित कर लिया जाता है,राहु जो कि फ़्री रहने पर अपने को अन्जानी दिशा में ले जाता है,और पता नही होता कि वह अगले क्षण क्या करने वाला है,इस बात को केवल मंगल के द्वारा ही सफ़ल किया जा सकता है.हर ग्रह को समझने के लिये और हर ग्रह का प्रभाव देखने के बाद ही मुख्य दरवाजे का निर्माण उत्तम रहता है,अग्नि-मुखी दरवाजा आग और चोरी का कारक होता है,यह नियम सर्व विदित है,लेकिन उसी अग्नि मुखी दरवाजे वाले घर की मालिक अगर कोई स्त्री है और वह घर स्त्री द्वारा शासित हि तो यह दिशा जो कि शुक्र के द्वारा शासित है,और स्त्री भी शुक्र का ही रूप है,उस घर को अच्छी तरह से संभाल सकती है,लेकिन उस घर में पुरुष का मूल्य न के बराबर हो जाता है,दूसरी विवाहित स्त्री के घर में स्थान पाते ही और उसके पुत्र की पैदायस के बाद ही वह घर या तो बिक जाता है,या फ़िर खाली पडा रहता है,उस घर का पैसा भी स्त्री सम्बन्धी परेशानियों में जिसका शनि और केतु उत्तरदायी होता है,के प्रति कोर्ट केशों और वकीलों की फ़ीस के प्रति खर्च कर दिया जाता है.ईशान दिशा सूर्योदय की पहली सकारात्मक किरण को घर के अन्दर प्रवेश देती है,अगर किसी प्रकार से इस पहली किरण को बाधित कर दिया जाये और उस किरण को जिस भी ग्रह से मिलाकर घर के अन्दर प्रवेश दिया जाता है,उसी ग्रह का प्रभाव घर के अन्दर चालू हो जाता है,पहली किरण के प्रवेश के समय अगर कोई बिजली का या टेलीफ़ोन का खम्भा है,तो पहली किरण केतु को साथ लेकर घर में प्रवेश करेगी,और केतु के १८० अंश विपरीत दिशा में राहु अपने आप स्थापित हो जाता है,यह राहु उस घर को संतान विहीन कर देगा,या फ़िर वहां पर बने किसी भी प्रकार कृत्रिम निर्माण को समाप्त करके शमशान जैसी वीरानी दे देगा,इस बात का सौ प्रतिशत फ़ल आप किसी भी मन्दिर या मीनार की पहली सूर्योदय की किरण के पडने वाले स्थान को देखकर लगा सकते है,उस मंदिर या मीनार के दक्षिण-पश्चिम दिशा में वीराना ही पडा होगा.

भूमि की पहिचान

भूमि परीक्षण
 जमीन को खरीदने से पहले भूमि का परीक्षण कर लेना भी हितकर होता है,भूमि परीक्षण कोई भी साधारण आदमी कर सकता है उसके लिये कोई विशेष विद्वान की जरूरत नही पडती है। भूमि परीक्षण इस प्रकार से करना चाहिये:-

मिट्टी भराव के द्वारा

खरीदी जाने वाली भूमि के अन्दर एक हाथ लम्बा और एक हाथ चौडा खड्डा खोद लें,उस खोदी गयी मिट्टी से दुबारा से उस खड्डे को भरें,अगर मिट्टी पूरी भरने के बाद बच जाती है तो जमीन शुभ है और खड्डा नही भर पाता है तो अशुभ है तथा खड्डा भर कर मिट्टी नही बचती है तो जमीन सामान्य कहलाती है।

जल द्वारा परीक्षण

जमीन में खड्डा ऊपर की विधि से खोदें और उसे पूरा पानी से भर कर सौ कदम पूर्व दिशा में जाकर वापस आजायें,अगर खड्डा पानी से भरा रहता है तो शुभ है,खड्डा बिलकुल खाली हो जाये तो अशुभ है,अगर आधा रह जाये तो सामान्य है।

जल बहाव द्वारा

जमीन के बीच में बैठ कर जल को फ़ैलाया जाये और जल अगर उत्तर दिशा में पहली बार बहता है तो जमीन धन और सम्मान दायक है, पूर्व की तरफ़ बहता है तो परिवार दायक है,और धर्म कर्म में विश्वास करने वाले लोग ही उस घर में निवास करेंगे,दक्षिण की तरफ़ बहता है तो वह जमीन मारकाट और लडाई झगडे के लिये मानी जायेगी,पश्चिम दिशा में जल बहता है तो भौतिक सम्पत्ति तो मिलेगी लेकिन मन की शांति नही मिलेगी।

रंग द्वारा जमीन का परीक्षण

सफ़ेद रंग वाली जमीन ब्राह्मण वर्ग की लाल रंग वाली क्षत्रिय वर्ण की काले रंग वाली जमीन शनि वर्ण की और राख या रेत वाली जमीन शमशानी शक्तियों वाली जमीन बताई जाती है।

स्वाद से जमीन की पहिचान

मीठा स्वाद ब्राह्मण तीखा स्वाद क्षत्रिय अन्न बिना स्वाद की मिट्टी वैश्य वर्ण की और कसैले आदि स्वाद वाली जमीन शूद्र वर्ण की मानी जाती है।

नींव खोदते समय शुभ अशुभ देखना

जब जमीन को परख लिया गया और जमीन को अपने कब्जे मे लेकर जमीन में नींव को खोदा जाने लगा तो मिट्टी के अन्दर से शंख कछुआ द्रव्य तांबा आदि धातु निकले तो वह जमीन उत्तम फ़ल वाली मानी जाती है,कोयला राख हड्डी कौडी घास फ़ूस दीमक सांप सिर के बाल अंडा लोहा आदि निकले तो जमीन निकृष्ट फ़ल देने वाली मानी जाती है। अगर अशुभ वस्तुयें निकलती है तो पूरी जमीन की पांच फ़ुट तक की मिट्टी निकलवा कर नयी साफ़ मिट्टी को भरवा देना चाहिये। और् जमीन का शुद्धिकरण किसी योग्य ब्राह्मण से करवा लेना चाहिये।


नींव पूजन
विधि विधान से योग्य आचार्य द्वारा नींव पूजन करवायें,नाक नागिन कछुआ मगरमच्छ दीपक कलश की स्थापना करवायें एवं भूमि को ऊर्जावान बनाने के लिये धातुओं को दिशानुसार एक बेल्ट की तरह से जोड देंवे,इस प्रकार से उस घर में सुख समृद्धि का बास हमेशा रहेगा। और पीढियां दर पीढियां उस घर में अपना स्थान बनाकर रह सकेंगी। लेकिन यह सब तभी तक माना जाता है जब तक कि नींव का दायरा नही बिगाडा जायेगा।

वास्तु के वैज्ञानिक आधार

वास्तु विज्ञान को समझने के लिये निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिये।
  1. पृथ्वी की गति
  2. पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव
  3. सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा
  4. सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा
  5. ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम
  6. अलग अलग स्थानों की ऊर्जा और मानवीय स्वभाव
  7. ऋतुओं के अनुसार अलग अलग ऊर्जा के प्रकार
  8. स्थल पठार पहाड जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग अलग ऊर्जा के प्रकार
  9. अलग अलग ऊर्जा से शरीर का अलग अलग विकास और सभ्यता की नई और पुरानी विकास की गति
  10. मस्तिष्क को मिलने वाली नई और पुरानी ऊर्जा के अनुसार किये जाने वाले निर्माण और विध्वंशकारी कार्य तथा सृजन क्षमता का विकास या विदीर्ण दिमाग की गति.
भूगोल में आप लोगों ने पढा होगा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर साढे तेइस अंश झुकी हुयी है,अगर यह झुकाव नही होता तो सभी दिन रात आचार विचार व्यवहार मानव जीव जन्तु सभी एक जैसे होते। दिन रात का माप बराबर का होगा,उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर छ: छ: महिने के दिन और रात नही होते। भूमध्य रेखा पर बारह महीने लगातार पानी नही बरसता और भयंकर गर्मी नहीं पडती आदि कारण मिलते। लेकिन हवाओं का प्रवाह नही होता,ऋतुओं का परिवर्तन नही होता,पानी की गति नही होती नदियां बहती नही पहाड बनते नहीं यह सब भी पृथ्वी की गति और उसके झुके होने का फ़ल है। उत्तरी ध्रुव का फ़ैल कर घूमना और दक्षिणी ध्रुव का एक ही स्थान पर सिमट कर घूमना,यह दोनो बातें धरती के लिये एक भराव और जमाव वाली बातों के लिये मानी जा सकती है,जिस तरह से एक पंखा अपनी हवा को उल्टी तरफ़ से खींच कर सीधी तरफ़ यानी सामने फ़ेंकता है उसी तरह से धरती उत्तरी ध्रुव से अन्य ग्रहों की चुम्बकीय शक्ति को इकट्ठा करने के बाद धरती के अन्य भागों को प्रेषित करता है। अक्सर आपने देखा होगा कि उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले लोग अपने आप में विलक्षण बुद्धि के मालिक होते है उनके शरीर सुडौल और दिमागी ताकत अधिक होती है। पूर्वी भागों में रहने वाले लोग शरीर से कमजोर ठिगने और बुद्धि से चालाक होते है,पानी के अन्दर रहने या उष्ण जलवायु के कारण उनका शरीर काले रंग का होता है। इसके विपरीत दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ रहने वाले लोग अत्याचारी और अपनी बुद्धि को मारकाट की तरफ़ ले जाने वाले हिंसक प्रवृत्ति वाले होते है।यह सकारात्मक और नकारात्मक गति का प्रभाव माना जाता है। नदियों का पानी अधिकतर पश्चिम से पूर्व की तरफ़ उत्तरी ध्रुव की तरफ़ तथा कर्क रेखा के आसपास के क्षेत्रों में बहता हुआ पाया जाता है,लेकिन जैसे जैसे मकर रेखा के पास पहुंचते जाते है पानी की गति पश्चिम की तरफ़ जाती हुयी मिलती है। समुद्र के पानी की गति भी अक्सर देखने को मिलती है कि जैसे जैसे सूर्य कर्क रेखा की तरफ़ चलता जाता है,समुद्र का पानी दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ सिमटता जाता है और जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ बढता जाता है समुद्र का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ बढना शुरु हो जाता है। सपाट मैदानी भागों में हवा का रुख काफ़ी तेज होता है और पहाडी भागों में तथा हिमालय के तराई वाले भागों में हवा का बहाव कम ही मिलता है। तूफ़ान पहाडी चोटियों और समुद्री किनारों की तरफ़ अधिक चलते है,पृथ्वी का पानी उत्तरी ध्रुव की तरफ़ अधिक जमता हुआ चला जाता है,और सूर्य के कर्क रेखा की तरफ़ आने पर वह पिघल कर नदियों के रास्ते दक्षिण की तरफ़ के समुद्रों को भरने लगता है। जैसे ही सूर्य मकर रेखा की तरफ़ आता है समुद्रों का पानी वाष्पीकरण द्वारा हवा में नमी के रूप में आता है बादलों की शक्ल में बदलता है और उत्तरी भागों की तरफ़ बढता चला जाता है,हिमालय पहाड की चोटियों से टकराकर कुछ बादल तो भारत में बरस जाते है और जो बाहर उत्तर की तरफ़ निकल जाते है वे बर्फ़ के रूप में जम कर उत्तरी ध्रुव में पानी को जमाकर बर्फ़ में बढोत्तरी करते हैं। यह गति धरती की असमान्य गति है,जब भी कोई भूमण्डलीय बदलाव की स्थिति होती है अथवा मानवीय कारणों से कोई विकृति धरती के अन्दर पैदा की जाती है तो अचानक भूकम्प टीसुनामी आदि से धरती के ही वासियों को प्रकोप को भुगतना पडता है। वास्तु का रूप अगर सही बनाया गया है तो व्यक्ति जंगल में भी मकान बनाकर सृजन की तरफ़ लगा रहेगा,और अगर उसने मकान किसी बहुत सुन्दर जगह पर भी बनाया हुया है लेकिन वास्तु अनुरूप नही है तो वह हमेशा विध्वंशकारी नीतियों में चलकर केवल विनाश की बात को ही दिमाग में रखेगा।
सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा
सकारात्मक ऊर्जा के लिये पहले क्षितिज पर उदय होते सूर्य को देखना चाहिये,घर का दरवाजा अगर उदय होने वाले सूर्य के सामने आता है तो सूर्य से निकलने वाली रश्मियां सीधे रूप से घर के अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन अस्त होने के समय सूर्य की विघटित ऊर्जा घर के अन्दर प्रवेश करती है अगर घर का द्वार नैऋत्य में होता है। सुबह का मौसम नमी युक्त होता है और जो भी ऊर्जा आती है वह द्रव अवस्था मे होती है लेकिन शाम के समय की ऊर्जा सूखी और निरीह होती है,इसी कारन से पूर्व मुखी द्वार वालो को अक्सर पूजा पाठ और ध्यान समाधि के साथ उत्तरोत्तर आगे बढता हुआ देखा जाता है तथा पश्चिम मुखी दरवाजे वालों के यहां भौतिक साधन तो खूब होंगे लेकिन मन की शांति नही होगी,वे तामसी खाने पीने की आदत में जरूर चले गये होंगे,अगर वे किसी प्रकार से तामसी खाने पीने के साधनो में नही गये होंगे तो उनके घरों में सबसे अधिक खर्चा दवाइयों में ही होता होगा। रिस्तेदारी और प्रेम वाले मामलो में ईशान मुखी दरवाजे वाले व्यक्ति अधिक भरोसे वाले होते है,और नैऋत्य मुखी दरवाजे वाले लोग कभी भी किसी प्रकार की भी रिस्तेदारी तोड सकते है।
भूमि का चयन
जब मकान बनाना होता है तो सबसे पहले भूमि की जरूरत पडती है,भूमि को लेने के पहले उसके चारों ओर की बसावट पर्यावरण दोष आदि की परीक्षा,शमशान के पास वाली जमीन,गंदा नाला या नदी अथवा गंदा भरा हुआ पानी,वर्कशाप के पास वाली जमीन,जमीन पर किसी प्रकार का चलने वाला कोर्ट केश आदि, बिजली की लाइनों के नीचे वाली जमीन,झोपड-पट्टी वाली जमीन,जो जमीन डूब क्षेत्र में हो,बीहड या जंगल वाली जमीन,जिस जमीन पर कोई अपराध वाली घटनायें गोली कांड या दुर्घटना आदि हुयी हो,भूखण्ड का आकार चित्र विचित्र हो, दलदली भूमि,पानी वाले स्थान को मिट्टी भर कर पाट कर बनायी गयी जमीन,आदि दोष वाली जमीन लेने से बचना चाहिये। जमीन लेने के पहले देखलें कि जमीन पर निर्माण करने के बाद तथा बाद में निर्माण होने के बाद प्राकृतिक रूप से मिलने वाले प्रकाश में कमी तो नही हो जायेगी। रहने वाली जमीन के आसपास कोई आगे चल कर व्यवसायिक रूप तो नही रख लेगा,आने जाने के मार्ग को कोई अतिक्रमित तो नही कर लेगा,जिस बस्ती या मुहल्ले में जमीन क्रय की जा रही है वह नाम राशि के अनुकूल है कि नही,इस प्रकार से खरीदी गयी जमीन हमेशा सुखदायी होती है।
भूमि परीक्षण
भूमि परीक्षण से पहले नगर ग्राम की अनुकूलता ग्रह मैत्री विचार नामाक्षर नक्षत्र राशि वर्ग बोध एवं कांकिणी फ़ल का विचार चक्र से जान लेना चाहिये। मेष राशि की दिशा पूर्व की होती है,वर्ग अ होता है स्थान गरुड का होता है,उसी तरह से तुला राशि की दिशा पश्चिम होती है,वर्ग त होता है,और स्थान सर्प का होता है,कर्क राशि की दिशा उत्तर की होती है,वर्ग य होता है,स्थान मूषक का होता है। मकर राशि की दिशा दक्षिण की होती है,वर्ग च होता है,स्थान मार्जार (बिल्ली) का होता है। इसी तरह से अन्य दिशाओं के बारे में जान लेना चाहिये।

अर्धनारीश्वर

स्त्री पुरुष का भेद समझने के लिये अर्धनारीश्वर रूपी भगवान शिव की महिमा को समझना जरूरी है। स्त्री के चिन्ह पुरुष शरीर में भी मिलते है। स्त्री पुरुष की पूरक है और पुरुष की पूरक स्त्री है। दोनो का भेद एक जगह इकट्ठा रखकर मनुष्य को चलना पडता है। अर्थात बिना पुरुष के स्त्री अधूरी है और बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है। दोनो में जमीन आसमान का भेद होने के बावजूद भी दोनो को अपने अपने अनुसार एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिये मनसा वाचा और कर्मणा सामजस्य बनाकर चलना पडता है। अर्धनारीश्वर रूप में माता पार्वती और भोलेनाथ शिवजी की पूजा अर्चना का जो रूप बताया गया है,वह केवल देखने और अचम्भा जताने के लिये नही है,इस रूप की आराधना के साथ जो श्रद्धा मिलती है उसे भी अपने मनोमस्तिष्क में धारण करने की जरूरत होती है। इन बातों को समझने के लिये इस रूप में क्या क्या समताये-विषमतायें है उनका पहले विचार करना जरूरी है,और समता विषमता को बिना पूरे किये अर्धनारीश्वर की महत्वता का कोई फ़ल सामने नही आ सकता है। सबसे पहले समझना जरूरी है कि उपरोक्त चित्र को देखने के बाद पहले ईश्वर रूप में दोनो को देखने के बाद श्रद्धा का भाव उत्पन्न होना जरूरी है,बिना श्रद्धा के ज्ञान को समझना कतई सम्भव नही है इसलिये इस रूप को समझने के लिये ईश्वर रूप का निर्धारण महापुरुषों ने किया है। श्रद्धा के बाद जो बात सामने आती है वह है स्त्री और पुरुष का रूप,आइये असमानताओं के भेद को प्रदर्शित करते हैं।
नकारात्मक सकारात्मक
नकारात्मक सकारात्मक के बारे में जानने के लिये दोनो रूपों के एक जगह इकट्ठा होने की बात को लेते है,शिव का वाहन नन्दी बैल है और माता पार्वती का वाहन शेर है,शेर के लिये बैल पूरक है,बैल घास खाने वाला है और शेर मांस खाने वाला है,बैल शेर का भोजन है,एक साथ इकट्ठे कभी रह ही नही सकते है,यह प्रकृति की बात होती है,इन दोनो के द्वारा जो दर्शाव हुआ है वह है कि बैल नकारात्मक है और शेर सकारात्मक है बैल को शेर खा लेगा तो बैल है ही नही,लेकिन बैल के नही होने से शेर भी नकारात्मक है,जब भोजन ही नही होगा तो शेर जिन्दा कैसे रहेगा,एक की प्रकृति में मरना है और दूसरे की प्रकृति में मारना है। मतलब एक तो मरेगा ही चाहे कितने ही जतन करो,और एक मारेगा ही चाहे समय कितना ही लगे। दोनो का रूप शिव-पार्वती के लिये एक ही प्रयोग के लिये प्रयुक्त किये गये है,दोनो ही शिव और पार्वती के वाहन है,मतलब बिना शेर के पार्वती नही चल सकती है और बिना नन्दी के शिवजी नही चल सकते है। लेकिन दोनों को ही अपने अपने उद्देश्य के लिये एक ही स्थान में रखना और दोनो से ही अपना अपना काम लेने के लिये जो साधन आपको इस चित्र में देखने को मिलते है उन्हे गौर से देखिये। शक्ति के लिये जो अहम का रूप त्रिशूल डराकर काम निकालने के लिये शिवजी के हाथ में है,प्रेम से काम निकालने के लिये कमल का फ़ूल माता पार्वती के हाथ में है। जो शेर जैसी हिंसक शक्ति को प्रेम रूपी कमल से साधने की कला को जानती है,और वही अहिंसक रूपी बैल को डराकर काम निकालने के लिये त्रिशूल का रूप काम में लिया गया है। इसका मतलब है कि हिंसा को प्रेम से जीता जा सकता है,और अहिंसा को कायम रखने के लिये डर की जरूरत होते है। पुरुष रूपी शिव का हाथ केवल आशीर्वाद की मुद्रा में है,लेकिन स्त्री रूपी पार्वती का हाथ प्रदान करने वाली मुद्रा में नीचे की तरफ़ है,जो दोनो को समान्तर समझते है,उनके लिये तो शक्ति का हाथ काम करता है,लेकिन जो अहम को सामने रख कर काम करते है,उनके लिये आशीर्वाद तो है लेकिन शक्ति दे कुछ नही सकती है,इस भाव का एक अर्थ और लिया जा सकता है कि जो खडे होकर और तन कर शक्ति से प्राप्त करने की इच्छा करते है उनके लिये केवल आशीर्वाद ही है और जो झुक कर प्राप्त करना चाहते है उनके लिये शक्ति प्रदान करने की मुद्रा में नीचे की तरफ़ इशारा कर रही है। शिव का बीज "क्रीं" है और शक्ति का बीज "ह्रीं" है,क्रीं को मारक रूप में और ह्रीं को पालन के लिये प्रयोग में लाया जाता है। स्त्री का रूप पृथ्वी रूप में है,लेकिन पुरुष का रूप आकाश रूप में है इसी बात को समझाने के लिये शिवजी की जटाओं में चन्द्रमा को स्थापित किया गया है। पुरुष को अघोर वृत्ति पसंद होती है,लेकिन स्त्री को दीप्तमान बने रहने की प्रवृत्ति पसंद होती है,पुरुष कार्य करने के लिये और स्त्री कार्यो और कार्यों से मिलने वाले फ़लों को समाप्त करने के लिये जानी जाती है। अगर पुरुष स्त्री से प्राप्त करने की कामना रखता है तो वह या तो अपने को स्त्री के पूर्ण समर्पण में डाल दे,और अगर वह अहम को दिखाने की कोशिश करने के बाद प्राप्त करने की कामना करता है तो स्त्री उसे कहीं भी किसी भी जगह पर नीचा दिखाने में सफ़ल हो सकती है। बिना शक्ति के शिव नही है,और बिना शिव के शक्ति नही है,शब्दों के अन्दर भी इसी भावना का प्रयोग किया गया है,शब्द "शव" तब तक मुर्दा है जब तक कि उसके ऊपर छोटी "इ" की मात्रा नही लगती है,जैसे ही यह मात्रा लग जाती है वही "शव" "शिव" रूप हो जाता है,इस रूप को समझने के लिये जो एक बात समझने के लिये प्रयोग में होती है वह है कि पुरुष कमाने के लिये और स्त्री खर्च करने के लिये ही इस संसार में अवतरित है। लेकिन जो वह खर्च करती है उसका करोडों गुना फ़ल वह पुरुष को देती है,अप्रत्यक्ष तरीके से अगर समझा जाये तो इस अर्धनारीश्वर की महत्ता समझ में आसानी से आजाती है। इस अर्धनारीश्वर रूप का मंत्र है,-"ऊँ नम: शिवाये".

मानवीय रिस्ते और निभाने का तरीका

संसार में व्यक्ति का जन्म होता है और जन्म के बाद पहले माता फ़िर पिता और पिता के बाद घर के अन्य सदस्यों से व्यक्ति की मुलाकात होती है। माता का लगाव संतान के प्रति आजीवन रहता है,पिता का लगाव संतान से रहता तो आजीवन है लेकिन वह अपनी संतान को आगे बढने के लिये लगातार प्रयत्न करता रहता है,लेकिन संतान पारिवारिक या अन्य कारणो से अलग दूर रहना शुरु कर देती है तो पिता केवल संतान से अपने बुढापे का सहारा ही लेने की इच्छा करता है अगर संतान उसे सहारा देती है तो ठीक है अन्यथा वह अपने मानसिक आघात को अपने अन्दर ही छिपाकर अपनी वेदना के अन्दर खुद को ही धीरे धीरे समाप्त कर लेता है।
भाई बहिन 
भाई बहिन भी व्यक्ति को परिवार में सहारा देने के लिये मिलते है,और उनके अन्दर लगाव भी एक समय तक रहता है,जब तक व्यक्ति अपने अन्दर अपने भाई बहिनो के प्रति दया का भाव और सहायता का भाव रखता है तो वे भी उस व्यक्ति के प्रति अपनी दया और सहानुभूति को रखते है,लेकिन व्यक्ति जब परिवार मर्यादाओं और घर की समझ से दूर हो जाता है तो भाई बहिन भी धीरे धीरे दूर होते चले जाते है। लेकिन एक खून और एक खानपान होने के कारण रिस्ते का अट्रेक्सन दूर नही हो पाता है जब भी दूर रहने वाले भाई या बहिन के बारे में बातें चलती है तो व्यक्ति के द्वारा किये गये कार्य व्यवहार सभी का ध्यान भाई बहिनो के अन्दर आता है और वह अपने अपने अनुसार दूर रहने की व्यथा को अपने अन्दर ही अन्दर झेलते रहते है। अक्सर भाई बहिनो के प्रति खून के सम्बन्ध वाले लोग अपने अनुसार ही मान्यता रखते है और कुटुम्ब की धारणा के अनुसार अपने को उनके अनुसार वक्त पर साथ आते रहते है लेकिन धारणा अगर भाई की भाई के प्रति अति कटु हो जाती है तो भाई या बहिन दूर रहने में ही अपनी भलाई इसीलिये समझते है क्योंकि अगर कुछ बुरा हो जाता है तो घर के सदस्य जो व्यक्ति के साथ नये जुडे होते है वे सीधा आक्षेप करने से नही चूकते हैं।
भाई भाई को दूर करने के लिये जीवन साथी की भूमिका
अक्सर शादी के बाद विवाहित व्यक्ति का रुख परिवार से दूर होता चला जाता है,परिवार में आने वाली अन्य कुटुम्ब की स्त्रियां अपने अनुसार परिवार को चलाने की भूल कर बैठती है। उन्हे यह पता होता है कि उनके परिवार और परिवेश में पहले जैसा होता रहा है अगर पति के परिवार में उसी तरह का माहौल चलाया जायेगा तो उनके लिये आरामदायक हो जायेगा। वे अपने अनुसार परिवार के लोगों के साथ बर्ताव करने लगती है और जब उनका किया जाने वाला किसी तरह का आक्षेप विक्षेप वाला बर्ताव परिवार के लोगों से सहन नही होता है तो व्यक्ति को परिवार से दूर कर दिया जाता है,वह दूरियां चाहे जीवन यापन के लिये की जाने वाली नौकरी से हों या किसी भी प्रकार के व्यापार या रोजगार से सम्बन्धित हों। जैसे ही व्यक्ति परिवार और अपने भाई बहिनो से दूर होता है दूसरे परिवार के लोग जो उस व्यक्ति के परिवार से द्वेष की भावना शुरु से रख रहे होते है वे उसके साथ मिलना शुरु कर देते है और परिवार के लोगों के प्रति उससे तरह तरह की बातें करने के बाद उसे और परिवार से दूर करते चले जाते है। अक्सर यह भी एक अजीब सा व्यवहार देखा जाता है कि व्यक्ति के अलावा उसकी पत्नी का ऐसे लोग भरपूर उपयोग करते है और किसी भी घरेलू कारण को नमक मिर्च लगाकर बखान करते है और अपने अपने अनुसार समय समय पर कान भरते रहते है,दूसरे परिवार से आने वाली स्त्री के अन्दर कोई खून का रिस्ता तो होता नही है,उसके साथ परिवार के लिये केवल सामाजिक रिस्ता होता है और परिवार के प्रति उसकी मन के अन्दर भरी गयीं दुर्भावनायें उसे और परिवार से दूर कर देती है इन मामलों में अधिकतर देखा जाता है कि चुगली के द्वारा व्यक्ति के भाई बहिन उसके लिये हमेशा के लिये दूर होते चले जाते है,जो भी दोष दिया जाता है वह अक्सर पैतृक सम्पत्ति के प्रति दिया जाता है,और उसके लिये अलग अलग समय की गाथा अलग अलग समय पर जब कोई जरूरत वाला काम पडता है तभी कही जाती है। और उस गाथा के प्रभाव को असरदार करने के लिये समय का हिसाब किताब घर वाले सदस्यों के पास नही होता लेकिन द्वेष रखने वाले अपने पास हमेशा रखते है।
सम्बन्धी ही पारिवारिक दुर्भावना का कारण होते है
अक्सर परिवार में जो सम्बन्ध बनाये जाते है वे अपने अपने अनुसार स्वार्थ पूर्ति की कामना रखते है,व्यक्ति की ससुराल वाले चाहते है कि उनकी बहिन बुआ बेटी जो भी व्यक्ति को ब्याही गयी है उसका आधिपत्य रहे और वे लोग समय पर अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये उसका उपयोग करते रहें। दूसरी तरफ़ व्यक्ति के परिवार वाले केवल उनसे इसलिये दूरियां चाहते है कि वे कहीं व्यक्ति का बेकार में उपयोग करने के बाद उनके परिवार का खात्मा ना कर दें। इसी जद्दोजहद के अन्दर दोनो परिवार आपस में उलझते रहते है। और तरह तरह की समय के अनुसार बुराइयां दोनो के अन्दर पैदा होती रहती है।
उदाहरण
एक व्यक्ति नाम मालीराम तीन लडके एक लडकी,चारों संतानो की परवरिश एक ही घर में हुयी। एक को ठेकेदार दूसरे को डाक्टर तीसरे को  मा्र्केटिंग में महारत हासिल हुयी और तीनो ही अपने अपने क्षेत्र में काम धन्धे में व्यस्त हो गये। एक लडकी उसकी भी शादी कर दी,दामाद भी खाता कमाता मिला कोई परेशानी नही रही। ठेकेदार का काम भला चंगा चला वह घर से दूर चला गया,उसकी शादी के बाद पत्नी का झुकाव हमेशा अपने पीहर के लिये केवल इसलिये रहा कि उसके परिवार में सभी अव्यवस्थित थे,किसी के पास कोई रोजगार नही सभी खेती किसानी करने के बाद पेट पालने वाले मिले,जब भी ठेकेदार की पत्नी अपने पीहर जाती उसके पीहर वाले उनके लिये कोई ना कोई फ़रमाइस कर देते,वह अपने द्वारा ठेकेदार की कमाई से होने वाली आय का अधिकतर हिस्सा अपने भाई बहिनो और माता पिता के लिये खर्च करने लगी,ठेकेदार को जब पता लगा तो पत्नी को पीहर से रिस्ता नही रखने के लिये दबाब दिया जाने लगा। पत्नी का पीहर नही जाने के कारण उसका रोजाना का नाटक चालू हो गया वह किसी ना किसी बात का बहाना लेकर रोजाना परिवार में खटर पटर चालू कर दी,लेकिन जब उसकी कोई बात नही चली तो वह बीमारी का बहाना बनाकर एक दम चुप हो गयी। डाक्टर की भी शादी ऐसे घर में जहां सभी घर वाले शराबी और बेरोजगार मिले,बडी जेठानी को अपने पीहर से रिस्ता रखने के कारण और सास के द्वारा उसे पूरी बात ठेकेदार की पत्नी के लिये बताने के कारण उसके अन्दर भी यह भावना भर गयी कि वह भी अपने पीहर वालों की सहायता करे। वह भी अपने अपने समय पर पीहर को सहायता देने लगी,तीसरे लडकी की शादी भी हो गयी और उसकी पत्नी एक पढे लिखे खानदान से थी,उसे रीति रिवाज और व्यवहार का पूरा ज्ञान था लेकिन वह अपनी जेठानियों के व्यवहार से एक भरे पूरे परिवार में रोजाना का क्लेश होने के कारण दुखी रहने लगी और वह परिवार के व्यवहार से तथा रोजाना की टेंसन से बीमार रहने लगी। डाक्टर की पत्नी के व्यवहार को देख कर और मालीराम की बीमारी के कारण बडे लडके ने जो ठेकेदार है ने अपनी पत्नी को अपने साथ काम करने वाले स्थान पर ले जाकर रख लिया,और अपने अनुसार चलने लगा,जैसे ही मालीराम को कोई जरूरत पडती वह आकर अपनी सहायता देता और चला जाता। डाक्टर की पत्नी ने अपनी जेठानी को देखा तो वह भी अपने पिता के घर जाकर केवल इसलिये बैठ गयी कि जब उसे भी परिवार से अलग कर दिया जायेगा तभी वह पति के पास जायेगी। माता पिता को भी के बहाना मिल गया और वह अपने अनुसार जैसे भी उनका कमन्यूकेशन का साधन था,उससे मालीराम को खबरें करने लगे कि अगर उसकी लडकी की बात को नही माना गया तो वे अदालत का सहारा लेकर डाक्टर की कमाई को लेंगे तो वह तो है ही,लेकिन उनके प्रति भी पुलिस में कम्पलेन करने के बाद दहेज एक्ट और स्त्री प्रताडना का मुकद्दमा करने के बाद जेल भी भेज देंगे। मालीराम ने पूरी जिन्दगी इज्जत की जिन्दगी जी थी,इसलिये उन्होने भी अपने डाक्टर लडके को अलग कर दिया और उससे कह दिया कि अपने परिवार के साथ जाकर खाओ कमाओ। इधर जो लडका मार्केटिंग का काम करता था वह भी अपने साथ अपनी पत्नी को ले गया और अपने काम में फ़ंसे होने के कारण तथा उसकी पत्नी का शिक्षित होने के कारण और पत्नी द्वारा भी शिक्षिका का काम करने के कारण मालीराम से दूरियां अपने आप बन गयीं। जब घर के अन्दर अपने आप ही अलगाव हो गया तो लडकों को भी समझ में आने लगा कि उनकी पत्नियां कहां क्या चाहती थी। सम्मिलित परिवार में खर्चे का पता नही चलता था और जब कोई चीज घर के अन्दर खत्म हो जाती थी तो एक दूसरे पर आक्षेप लगाकर दुबारा से चीज को मंगवा लिया जाता था,लेकिन जब वे अलग अलग रहने लगे तो उनके अन्दर भी समझ में आया कि गल्ती कहां हुआ करती थी,अपने अपने लिये परिवार को बसाने और अपने अपने लिये घर मकान का सपना देखने के कारण सबने अपने अपने खर्चे दबा लिये। परिवार फ़िर भी सही सलामत चलता रहा। लेकिन जो पडौसी या परिवार वाले पहले से ही मालीराम के परिवार को सुखी देखकर दुखी थे,उन्हे अब अपने कार्यों को अंजाम देने का मौका मिल गया। बडे लडके के केवल लडकियां ही थीं और डाक्टर के कोई संतान नही थी,तथा मारकेटिंग वाले लडके के भी कोई संतान नही थी। जो जलन रखते थे उन्होने डाक्टर की पत्नी को भरना चालू कर दिया कि उसके ससुर को तांत्रिक क्रियायें आती है और उन्ही के द्वारा ही उसे संतान से बिमुख रखा गया है,जो गल्ती किये होता है उसे फ़ौरन अपने व्यवहार का भान होना जरूरी होता है,वह एक धार्मिक मौके पर मालीराम के पास घर पर आयी और बिना सोचे समझे मालीराम को गालियां देने लगी,मालीराम को कुछ भी पता नहीं था वे अपनी सामाजिक और पारिवारिक मर्यादा में रहने वाले व्यक्ति है,लेकिन उनकी पत्नी को यह सहन नही हुआ कि उनके पति को बिना किसी कारण के कोई आक्षेप दिया जाये,दोनो सास और बहू में पहले तो बतकही हुयी और बाद में दोनो के अन्दर मारपीट भी हो गयी। डाक्टर की बहू उसी मारपीट का फ़ायदा उठाकर अपने पीहर चली गयी और अपने पीहर वालों से कहा,वे भी बिना सोचे समझे एक गाडी में भर कर आ गये और सीधे से मालीराम और उनके अलावा लडकों पर हमला बोल दिया,बात घर की घर में रही और पुलिस या थाने तक मामला नहीं पहुंचा। मालीराम को कभी यह बात हजम नही हुयी और वे अकेले ही अपने को रखने लगे,एक तो चिन्ता और दूसरे चिन्ता के कारण लगने वाली बीमारियां,दोनो पति पत्नी आज भी अकेले है और जब वे किसी कारण से दुखी होते है तो जो लोग उनसे द्वेष रखते है तो बहुत खुश होते है। एक भला चंगा परिवार बिना किसी कारण के टूट गया।